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यूपी चुनाव: सपा द्वारा पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का वादा मतदाताओं के बीच में असर कर रहा है

2004 में, केंद्र की भाजपा सरकार ने सुनिश्चित पेंशन स्कीम को बंद कर दिया था और इसकी जगह पर अंशदायी पेंशन प्रणाली को लागू कर दिया था। यूपी ने 2005 में इस नई प्रणाली को अपनाया। इस नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) से राज्य के लाखों सरकारी कर्मचारी असंतुष्ट हैं।
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गोरखपुर/लखनऊ: जहाँ एक तरफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को गरीब और हाशिये पर पड़े लोगों को मुफ्त राशन वितरण से चुनावी लाभ पाने की उम्मीद है, वहीँ वृद्धावस्था पेंशन स्कीम की बहाली का वादा समाजवादी पार्टी (सपा) के पक्ष में काम करता दिख रहा है।

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव इस मुद्दे पर विभिन्न समुदायों के मतदाताओं का बड़े पैमाने पर अधिकाधिक समर्थन हासिल करने के लिए अपनी पार्टी की ओर से बनाये गये चुनावी घोषणापत्र में किये गए इस वादे के बारे में लगभग सभी जनसभाओं में बात कर रहे हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री का कहना है कि पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का फैसला वित्तीय विशेषज्ञों, सरकारी कर्मचारियों की यूनियनों के प्रतिनिधियों और सेवानिवृत्त लोक सेवकों के संघों के साथ विस्तृत बातचीत के बाद लिया गया है। अखिलेश ने कहा, “हमने विस्तार से इस योजना के वित्तीय प्रबंधन पर चर्चा की है और विशेषज्ञों का मत है कि राज्य सरकार इसके लिए एक कोष स्थापित करने में सक्षम है जो आवश्यक धन का ख्याल रखेगी।” उन्होंने आगे कहा, “पेंशन स्कीम की बहाली हमारी पार्टी के घोषणापत्र का एक अन्य महत्वपूर्ण तत्व है।”

​​गोरखपुर के एक जूनियर हाई स्कूल के सहायक अध्यापक, सुग्रीव मिश्रा का इस बारे में कहना है कि कर्मचारियों की ओर से पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली की मांग लंबे अर्से से की जा रही है, लेकिन सभी सरकारों ने उनकी मांग को अनदेखा कर दिया है। न्यूज़क्लिक से अपनी बातचीत में उन्होंने कहा, “सरकार को यह समझना चाहिए कि बुजुर्गों के लिए बुढ़ापे में पेंशन उनका एकमात्र सहारा थी, लेकिन जबसे सरकार ने इसे रोक दिया है, हम अपने बच्चों की दया पर निर्भर हो गए हैं। अब हमें उनसे अपनी चिकत्सकीय सहायता तक के लिए पूछना होगा।” उनका आगे कहना था कि वे सत्तारूढ़ सरकार का कट्टर समर्थक होने के बावजूद इस बार समाजवादी पार्टी को अपना समर्थन देंगे।

कुछ इसी प्रकार की राय देवरिया में एक ग्रामीण बैंक से सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारी, सचिन सिंह से भी सुनने को मिली। उन्होंने कहा, “बैंक कर्मचारियों को पूर्व में सरकार की ओर से पेंशन मिलती थी। यह पेंशन अब बंद हो गई है, और ऐसा करके सरकार ने हमें बुढ़ापे में बेसहारा कर दिया है। जब हमें पैसे की सबसे अधिक जरूरत है, तब हमें अपने बच्चों और रिश्तेदारों से इसके लिए मांगने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। सरकार को पहले की तरह ही बैंक कर्मचारियों को पेंशन प्रदान करनी चाहिए। सभी बैंक कर्मचारीगण बैंकों के विलय किये जाने का विरोध कर रहे हैं। बैंकों का निजीकरण भी नहीं किया जाना चाहिए।”

वे इतने पर ही नहीं रुके और उन्होंने सवाल किया, “क्या यह सौतेला व्यवहार नहीं है कि यदि कोई कर्मचारी ओपीएस के साथ रिटायर होता है, तो उसे पेंशन के तौर पर प्रति माह तकरीबन 25,000 रूपये से लेकर 45,000 रूपये मिलते हैं, जबकि वहीँ दूसरी तरफ एनपीएस के तहत सेवानिवृत्त होने वाले उसी कर्मचारी को मात्र 1,500 रूपये से लेकर 4,000 रूपये प्रति माह पेंशन मिलेगा?” इसके साथ ही उनका कहना था कि यदि दोनों के लिए काम एक समान है तो फिर पेंशन में यह भेदभाव क्यों है।

2005 से पूर्व की पेंशन स्कीम की बहाली की घोषणा से राज्य के उन 12 लाख अवकाशप्राप्त सरकारी कर्मचारियों के लाभान्वित होने का अनुमान है जो कई वर्षों से इस विषय पर राज्य सरकार के साथ टकराव की स्थिति में बने हुए हैं। इसके अलावा, सपा ने निजी स्कूलों के सेवानिवृत्त अध्यापकों के लिए भी वित्तीय मदद का वादा किया है और तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को उनके गृह जनपद में नियुक्ति किये जाने की अनुमति दी है।

केंद्र की भाजपा सरकार ने 2004 में सुनिश्चित पेंशन योजना को बंद कर दिया था और इसके स्थान पर अंशदायी पेंशन व्यवस्था को चालू किया था। यूपी ने इस व्यवस्था को 2005 में अपना लिया था। राज्य के लाखों सरकारी कर्मचारी इस नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) से संतुष्ट नहीं हैं।

कर्मचारी संघों के छतरी निकाय, यूपी राज्य कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष कमलेश मिश्रा का इस बारे में कहना था, “राज्य सरकार के सभी कर्मचारी उन राजनीतिक शक्तियों के पीछे लामबंद होंगे जो ओपीएस की बहाली को लेकर मुखर रहेंगे।” वहीं सत्तारूढ़ योगी आदित्यनाथ सरकार पर आरोप लगाते हुए मिश्रा का कहना था कि यदि नई पेंशन योजना (एनपीएस) पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) से अधिक लाभदायक होती, तो सरकार ने इसे विधायकों और मंत्रियों की पेंशन के लिए क्यों लागू नहीं किया।

यूनियन के द्वारा चलाए जा रहे लंबे आंदोलन को इसका श्रेय देते हुए मिश्रा ने आगे कहा कि विधानसभा चुनावों से पहले ओपीएस को राजनीतिक चर्चा में लाने के लिए 15 वर्षों से अधिक का समय लग गया।

बिजली विभाग के कर्मचारी भी पूर्व मुख्यमंत्री, अखिलेश यादव एक इस ऐलान से खुश नजर आ रहे हैं कि यदि उनकी सरकार बनती है तो पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल कर दिया जायेगा। आल इंडिया पॉवर इंजिनियर्स फेडरेशन के शैलेन्द्र दूबे के अनुसार यह यूपी सरकार के कर्मचारियों की बहु-प्रतीक्षित मांग थी, जो एनपीएस का लगातार विरोध करते आ रहे हैं, जो कि बाजार के उतार-चढ़ाव के अधीन भी है। दूबे के अनुमान के मुताबिक सेवानिवृत्त कर्मचारीगण भी ओपीएस मुद्दे पर कार्यरत कर्मचारियों के साथ समर्थन में खड़े हैं, जो संभवतः उनके मतदान के पैटर्न को प्रभावित कर सकता है।

कुशीनगर में एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सीमा भारती का कहना था कि राज्य कर्मचारियों को सांप्रदायिक आधार पर ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि उस पार्टी का समर्थन करना चाहिए जो ईमानदारी से उनके लिए सोचती है।

कर्मचारी यूनियनों ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई विरोध प्रदर्शन आयोजित किये हैं और 2005 से पूर्व की पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली की मांग के साथ महीने भर के आंदोलन चलाए हैं, जिसके बारे में उनका कहना है कि बाजार आधारित एनपीएस की तुलना में वे कहीं अधिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के पूर्वी क्षेत्र में सभी जातियों के लोगों के विभिन्न समूहों से मिल रही अच्छी-खासी छूट से उस खामोश “अंडरकरंट” का अंदाजा लगाया जा सकता है, जो विपक्षी गठबंधन के खिलाफ जा सकता था, जिसने सत्तारूढ़ भाजपा को कड़ी लड़ाई में घेर रखा है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/UP-elections-SP-promise-reinstating-old-pension-scheme-bearing-fruit-voters

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