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यूपी में मोदी के 'राष्ट्रवाद' के सामने सपा-बसपा का समीकरण फेल हो गया!

उत्तर प्रदेश में बीजेपी 2014 वाली सफलता तो नहीं दोहरा पा रही है लेकिन रुझानों में 60 सीटें जीतती दिखाई दे रही है।
फाइल फोटो
(फोटो साभार: एनडीटीवी)

उत्तर प्रदेश में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति काम कर गई। उन्होंने कहा था कि सपा, बसपा और रालोद के गठबंधन से निपटने के लिए 80 लोकसभा सीटों वाले इस सबसे बड़े राज्य में वह 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। अभी तक हुई मतों की गिनती में शाह की रणनीति की सफलता साफ झलक रही है। 

वैसे उत्तर प्रदेश की राजनीति में कैराना और गोरखपुर उपचुनाव ने बड़े बदलाव का बिगुल फूंका था। एक ओर जहां विपक्षी दल सपा, बसपा और रालोद को जीत का फार्मूला मिला था, वहीं दूसरी ओर बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव की घोषणा की थी। बीजेपी को समझ में आ गया कि अगर विरोधी दल एकजुट हो गए तो उसे हार का सामना करना पड़ सकता है। 

हालांकि कांग्रेस को छोड़कर लोकसभा चुनाव 2019 में सभी विपक्षी दल एकजुट हुए लेकिन तब भी बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए चौंकाने वाले नतीजे दिए हैं। 

आपको बता दें कि यूपी की 80 लोकसभा सीटों में बीजेपी 60 सीटों पर जीत हासिल करने की तरफ अग्रसर है। वहीं, बीएसपी को 11 सीट, सपा को 6, कांग्रेस को 1, अपना दल को 1, अपना दल सोनेलाल को 1 सीट पर जीत मिलती दिखाई दे रही है। 

वहीं, अगर हम वोट शेयर की बात करें तो बीजेपी ने शाम छह बजे तक कुल 49.4 प्रतिशत वोट हासिल किए हैं। जबकि महागठबंधन के दल बसपा को 19.3 प्रतिशत, सपा को 17.9 प्रतिशत और रालोद को 1.17 प्रतिशत मत मिले हैं। अगर हम इनके कुल मत प्रतिशत को जोड़ दे तो भी यह कुल मिलाकर 39 फीसदी के आसपास ठहरता है जो बीजेपी से काफी कम है। इसके अलावा कांग्रेस को सिर्फ 6.3 फीसदी मत मिलता दिखाई पड़ रहा है।

यूपी में विपक्ष के कई दिग्गज भी मुश्किल में फंसे नजर आ रहे हैं। सबसे ज्यादा खराब हालत कांग्रेस के नेताओं की है। रायबरेली से सोनिया गांधी को छोड़कर सभी नेता पीछे चल रहे हैं या हार चुके हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी से पीछे चल रहे हैं तो वहीं राज बब्बर, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, संजय सिंह समेत दूसरे दिग्गज बुरी तरह से हार रहे हैं। 

हालांकि यूपी के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार की हालत भी इस बार ठीक नहीं दिखाई पड़ रही है। अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव को छोड़कर इस परिवार के बाकी सदस्य भी आसानी से जीतते नजर नहीं आ रहे हैं। डिंपल यादव, धर्मेंद्र यादव, तेज प्रताप यादव, अक्षय यादव अपनी सीटों पर बहुत कम मार्जिन से आगे-पीछे चल रहे हैं। 

वहीं बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, वीके सिंह, वरुण गांधी, रीता बहुगुणा जोशी समेत ज्यादातर बड़े नेता आसानी से जीत हासिल करते दिख रहे हैं। 

उत्तर प्रदेश में महागठबंधन समेत विपक्ष की करारी हार पर फैजाबाद में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार और जनमोर्चा अखबार के संपादक कृष्ण प्रताप सिंह कहते हैं, 'अगर राजनीति में जैसे भी सम्भव हो सत्ता पर कब्जा करना एक कला है,  तो कहना होगा कि मोदी से इसमें अपनी महारत ओैर इच्छाशक्ति दोनों सिद्ध कर दी है। उन्होंने साम, दाम, दंड और भेद में, जब भी जिसकी और जैसी भी जरूरत समझी, उसे बरता। इसके उलट विपक्ष के अनेक महानुभावों के लिए अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं से पार जाना भी संभव नहीं हुआ। तिस पर वे सब के सब जमीनी हकीकत के ऐसे गलत आंकलन के शिकार रहे कि उत्तर प्रदेश में नतीजे आने के कुछ घंटे पहले तक बसपा सुप्रीमो मायावती प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रही थीं। क्या जनता से गहरे कटाव के बगैर ऐसा गलत आकलन संभव है?'

आपको बता दें कि जातिगण समीकरणों के आधार पर राजनीतिक विश्लेषकों ने कयास लगाए कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजय रथ को कहीं रोका जा सकता है तो वो यूपी ही है। महागठबंधन से मिल रही चुनौती को देखते हुए यहां बीजेपी को नुकसान होने के कयास लगाए जा रहे थे। लेकिन नतीजे इसके विपरीत आए हैं। 

जातीय समीकरण के सवाल पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एडजंक्ट और वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी कहते हैं,' उत्तर प्रदेश में बीजेपी को उम्मीद के मुताबिक सीटें हासिल हुई हैं। इस चुनाव का सबसे बड़ा संदेश यह है कि जातिगण समीकरणों के आधार पर आप बीजेपी को नहीं रोक सकते हैं। उसने राष्ट्रवाद का जो नैरेटिव डेवलप किया है वह यूपी ही नहीं पूरे देश को अपने आगोश में ले चुका है। ये भी साफ है कि अखिलेश और मायावती गठबंधन को जो गणित था, उसके साथ वो कोई आइडियोलॉजी नहीं दे पाए। ये लोहिया और आंबेडकर का गठजोड़ तो था ही नहीं, ये मुलायम और कांशीराम का भी गठजोड़ नहीं बन पाया। ये बच्चों का एक तरह से गेम प्लान था, दोनों ने बड़प्पन दिखाया लेकिन वैचारिक ताना बाना नदारद रहा।'

वो आगे कहते हैं,'सोशल जस्टिस का सारा एजेंडा बीजेपी आत्मसात कर चुकी है। अगर महागठबंधन के लोग विचारधारा का बड़ा ताना बाना बुनते हैं तभी जीत हासिल कर सकते हैं सिर्फ जातीय समीकरण से यह कतई संभव नहीं है। बीजेपी का चक्रव्यूह बड़ा है। इसको हराने के लिए बड़ी योजना, बड़ी दृष्टि और नैतिक शक्ति की जरूरत पड़ेगी। इसके लिए महागठबंधन को मंथन की जरूरत है।'

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