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भारत में 53% वयस्क समलैंगिक विवाह को वैध बनाने का समर्थन करते हैं: प्यू रिसर्च

सर्वेक्षण में पता चला है कि यह ‘विकसित, पश्चिमी यूरोपीय देश’ हैं जो समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के लिए सबसे ज़्यादा तैयार रहते हैं, लेकिन धार्मिक देश होने के बावजूद भारत इन अपवादों में से एक है।
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नई दिल्ली: केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार समलैंगिक विवाह के रजिस्ट्रेशन की अनुमति देने के वास्ते सरकार को निर्देश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं का विरोध कर रही है। वहीं, वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर के निष्कर्षों से पता चला है कि भारत की आबादी का महत्वपूर्ण वर्ग इस विचार का विरोध नहीं कर रहा है।

मोदी सरकार ने इस आधार पर याचिकाओं का विरोध किया कि “शादी की भारतीय धारणा”, “अनिवार्य रूप से एक बायोलॉजिकल पुरुष और एक बायोलॉजिकल महिला के बीच संबंधों का अनुमान लगाती है”। इसने उन याचिकाओं को भी खारिज कर दिया था, जो “सामाजिक स्वीकृति के उद्देश्य से शहरी अभिजात्य विचारों को दर्शाती हैं”— एक दावा जिसे सुप्रीम कोर्ट ने डेटा द्वारा समर्थित नहीं होने के चलते खारिज कर दिया था।
 
अब, प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा एक सर्वेक्षण—स्प्रिंग 2023 ग्लोबल एटिट्यूड्स सर्वे जिसके परिणाम मंगलवार को जारी किए गए थे, में पाया गया है कि सर्वे में शामिल लगभग 53% भारतीय समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की बात को स्वीकार कर रहे हैं।

सर्वेक्षण में शामिल जनसंख्या के प्रतिशत के मामले में भी भारत शीर्ष तीन देशों में शामिल है, जो “सर्वाधिक धार्मिक देशों” की श्रेणी में होने के बावजूद समलैंगिक विवाह को वैध बनाने का समर्थन करता है। सामान्य तौर पर जिन देशों में अधिक उत्तरदाताओं ने कहा कि धर्म उनके लिए महत्वपूर्ण था, उन्होंने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने में कम स्वीकृति दिखाई।

मार्च में सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में केंद्र सरकार ने तर्क दिया था कि विवाह का जुड़ाव पवित्रता से है और भारत के प्रमुख हिस्सों में इसे “पवित्र मिलन और संस्कार” माना जाता है। एक पुरुष और महिला के बीच अनिवार्य रूप से यह रिश्ता “सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी रूप से जुड़ा हुआ” है।

इसने आगे तर्क दिया था कि अदालत को इसलिए, न्यायिक व्याख्या द्वारा विवाह की अवधारणा को कमज़ोर नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह पूरी विधायी नीति को बदल देगी जो “धार्मिक और सामाजिक मानदंडों में गहराई से रच बस गई” है।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

स्प्रिंग 2023 ग्लोबल एटीट्यूड सर्वे इस साल मार्च में 3,500 अमेरिकी और 27,000 से अधिक गैर-अमेरिकी निवासियों के बीच आयोजित किया गया था।

सर्वेक्षण में शामिल 24 देशों में से 15 में अधिकांश उत्तरदाताओं—कम से कम 51 प्रतिशत ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने का समर्थन किया।

भारत दूसरे देशों से कैसे तुलना करता है

सर्वेक्षण के निष्कर्ष कनाडा, भारत, ब्राजील, अर्जेंटीना, मैक्सिको, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे कुछ देशों के साथ “पश्चिमी यूरोपीय देशों” से समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की स्वीकृति के अधिक संकेत देते हैं—जहां 50 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं ने ऐसे संबंधों को वैध बनाने की स्वीकृति दिखाई।

स्वीडन में 94 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने का समर्थन किया, जबकि नीदरलैंड में यह आंकड़ा 89 प्रतिशत, स्पेन में 87 प्रतिशत, फ्रांस में 82 प्रतिशत और जर्मनी में 80 प्रतिशत था।

कनाडा में, लगभग 79 प्रतिशत आबादी ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने का समर्थन किया, इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में 75 प्रतिशत और इटली और जापान में 74 प्रतिशत ने समर्थन किया 

भारत में 28 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने का “दृढ़ता से समर्थन” किया, जबकि 25 प्रतिशत ने “कुछ हद तक इसका समर्थन किया”, जिससे देश में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के पक्ष में लोगों की कुल संख्या 53 प्रतिशत हो गई। हालांकि, भारत के विचार का विरोध करने वालों का प्रतिशत भी महत्वहीन नहीं था—31 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने उस आशय के किसी भी नीति परिवर्तन का “दृढ़ता से विरोध” किया।

केवल 12 प्रतिशत भारतीय उत्तरदाताओं ने कहा कि वे समान-लिंग विवाह को वैध बनाने का कुछ हद तक विरोध करते हैं, जिससे कुल नकारात्मक प्रतिक्रिया लगभग 43 प्रतिशत हो गई। लगभग 4 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने सवाल का जवाब नहीं दिया।

धर्म और समलैंगिक विवाह

एक अन्य बिंदु जिस पर प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वेक्षण में ज़ोर दिया गया, वो यह कि ज्यादातर मामलों में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की स्वीकृति देश में धार्मिकता के स्तर से दृढ़ता से जुड़ी हुई है।

उत्तरदाताओं से पूछा गया कि धर्म उनके लिए कितना महत्वपूर्ण था—किसी देश की धार्मिकता के स्तर को नापने के लिए विकल्पों के साथ “बहुत महत्वपूर्ण” और “कुछ हद तक महत्वपूर्ण” को धार्मिक होने के पक्ष में गिना जा रहा है।

सर्वेक्षण के अनुसार, ज्यादातर मामलों में अधिक धार्मिकता समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की स्वीकृति के व्युत्क्रमानुपाती पाई गई।

इसका मतलब यह है कि जैसे-जैसे धार्मिकता का स्तर बढ़ता है, समलैंगिक विवाहों को वैध बनाने की स्वीकृति कम होती जाती है। सर्वेक्षण में उल्लेख किया गया है कि सहसंबंध का गुणांक – जो इसकी शक्ति को मापता है—0।74 था, जिसका अर्थ है कि सर्वेक्षण किए गए 74 प्रतिशत देशों में धार्मिकता और समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की स्वीकृति के बीच नकारात्मक संबंध था।

भारत उन देशों में से था जहां यह सच नहीं था। अधिक धार्मिक देश होने के बावजूद, भारत ने ऐसे विवाहों को वैध बनाने के प्रति अपेक्षाकृत उच्च स्वीकृति प्रदर्शित की।

सर्वे के मुताबिक, इसमें शामिल 94 फीसदी भारतीय अपने लिए धर्म को अहम मानते हैं। इसके बावजूद 53 फीसदी समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के पक्ष में थे।

इंडोनेशिया में, जहां 100 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे धर्म को महत्वपूर्ण मानते हैं, बमुश्किल 5 प्रतिशत ने समलैंगिक विवाहों को वैध बनाने का समर्थन किया। इसी तरह, नाइजीरिया में 99 प्रतिशत धार्मिकता के साथ, केवल 2 प्रतिशत समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की बात को स्वीकार कर रहे थे।

दक्षिण अफ्रीका में जहां 86 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि धर्म उनके लिए महत्वपूर्ण था, केवल 38 प्रतिशत ने समलैंगिक विवाहों को वैध बनाने के प्रति स्वीकृति दिखाई।

समलैंगिक विवाहों के नियम को वैध बनाने की धार्मिकता बनाम स्वीकृति के अन्य अपवादों में ब्राजील और मैक्सिको शामिल हैं। ब्राजील में, जहां 89 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि धर्म उनके लिए महत्वपूर्ण था, 52 प्रतिशत ने समलैंगिक विवाह के वैधीकरण के लिए आवाज़ उठाई। मेक्सिको में यह संख्या क्रमशः 63 प्रतिशत और 81 प्रतिशत थी।

साभार : सबरंग 

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