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AIUFWP चर्चा: महिलाओं ने किया संसाधनों पर मालिकाना हक का दावा, मिलकर लड़ने का ऐलान

अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन (AIUFWP) और विकल्प सामाजिक संस्था की ओर से "सामुदायिक वनाधिकार, महिला सशक्तिकरण और शिक्षा-स्वास्थ्य" विषय पर एक दिवसीय चर्चा आयोजित की गई जिसमें सहारनपुर के साथ यूपी, दिल्ली, मध्य प्रदेश, जम्मू कश्मीर आदि देश भर से अलग अलग जनसंगठनों से जुड़े महिला प्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया।
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18 जनवरी की सर्द सुबह और शिवालिक की गोद में बसे नागल माफी, शाकंभरी क्षेत्र स्थित भारती सदन एकाएक महिला अधिकारों के नारों से गूंज उठा। इन नारों में पितृसत्तात्मक समाज में अपने हकों के लिए महिलाओं की कुलबुलाहट साफ देखी-पढ़ी जा सकती थी। मौका था संघर्षों की अगुआ रही भारती राय चौधरी को उनके 12वें परिनिर्वाण दिवस पर याद करने और श्रद्धांजलि देने का। इसके लिए अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन (AIUFWP) और विकल्प सामाजिक संस्था की ओर से "सामुदायिक वनाधिकार, महिला सशक्तिकरण और शिक्षा-स्वास्थ्य" विषय पर एक दिवसीय चर्चा आयोजित की गई जिसमें सहारनपुर के साथ यूपी, दिल्ली, मध्य प्रदेश, जम्मू कश्मीर आदि देश भर से अलग अलग जनसंगठनों से जुड़े महिला प्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। महिला प्रतिनिधियों ने दो टूक कहा कि उन्हें जल जंगल जमीन आदि संसाधनों पर बराबर की हिस्सेदारी यानी मालिकाना हक चाहिए। लेकिन यह कोई ऐसे देने वाला नहीं है, लड़कर लेना होगा। कहा, इसके लिए सरकार के साथ परिवार रूपी पितृसत्तात्मक व्यवस्था को भी बदलना होगा। सरकार की ही तरह परिवार में भी मठाधीश बैठे हैं जो महिलाओं को हक पाने में सबसे बड़ी रुकावट है। लेकिन याद रखना होगा कि सरकार बराबरी देगी तभी परिवार भी देगा। इसलिए मुख्य लड़ाई सरकार से है।

इस दौरान अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन की ओर से वनाधिकार को लेकर लघु वन उपज और सामुदायिक दावे दायर करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर तीन साल का व्यापक कार्यक्रम तैयार किए जाने की प्रस्ताव रखा। तय हुआ कि मार्च में दिल्ली में होने वाली राष्ट्रीय समिति बैठक में इसे अंतिम रूप दिया जाएगा। साथ ही तय हुआ कि वनाधिकार आंदोलन को बाकी मुद्दों के साथ जोड़कर देखना होगा। यही नहीं, बढ़ते महिला उत्पीडन के साथ साथ कोविड व लॉक डाउन आदि से जुड़े मुद्दों के लिए महिला प्रतिनिधियों ने साझा मंच बनाने और मिलकर महिलाओं के मुद्दों को उठाने की जरूरत बताई।

भारती जी के पसंदीदा "इसलिए.. राह संघर्ष की हम चुनें" गीत के साथ कार्यक्रम की शुरुआत कर महिलाओं ने अपने बुलंद इरादों और हौसलों को बखूबी जता दिया था। कहा- जल जंगल जमीन आदि संसाधनों पर महिलाओं के हकदारी के सपने को पूरा करना ही, भारती जी को सच्ची श्रद्धांजली देना होगा। महिला शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी विचार रखते हुए वक्ताओं ने कहा कि महिला शिक्षित होगी और उसका स्वास्थ्य सही होगा तभी वह आगे बढ़ पाएगी। महिला हिंसा और पितृसत्तात्मक समाज से लड़ सकेंगी और उसे मात दे सकेंगी।

कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत करते हुए यूनियन की राष्ट्रीय महासचिव रोमा ने कहा कि वनाधिकार कानून में महिलाओं के नाम से दावे होते है तो इसका बड़ा श्रेय भारती जी को जाता है। आम साधारण महिला होते हुए भारती जहां ताउम्र खुद के स्वास्थ्य को लेकर संघर्षरत रहीं। डायलिसिस जैसी कष्टप्रद स्थिति से गुजरने के बावजूद, भारती ने हिम्मत नहीं हारी और लगातार एक सच्चे पुरोधा की तरह लोगों के बीच संगठन और आंदोलन की अलख जगाती रही। कहा- पैदा करने वाली एक मां होती है उसी तरह हमारी शिक्षा की मां सावित्रीबाई फुले व फातिमा बहन है तो संगठन की मां भारती है। महिला सशक्तिकरण को लेकर हाथियों का उदाहरण देते हुए रोमा ने कहा कि जानवरों में भी महिलाओं का सम्मान होता है। हाथियों में परिवार की मुखिया हथिनी होती है, हाथी कुछ नहीं होता है लेकिन मानव समाज में चाहे सरकार हो या परिवार ससुराल हो, औरत हर जगह बेचारी बनाकर रख दी गई है। उसे न सरकार हक देती है और न ही परिवार में हक मिलता है। दोनों जगह पितृसत्तात्मक व्यवस्था के मठाधीश हैं। इनसे पार पाने के लिए महिलाओं को एकजुट होना होगा। महिलाओं को ताकतवर बनाना होगा। उनकी ताकत को दुनिया के सामने लाना होगा। मिलकर लड़ना होगा, तभी हक मिल सकेंगे।

'मकाम' व एक्शन ऐड संस्था की सुलेखा ने कहा कि महिला शिक्षित होगी और उसका स्वास्थ्य बेहतर होगा तभी आवाज उठा पाएंगी, लड़ पाएंगी। कहा कि इसके लिए सभी संस्थाओं को मिलकर काम करना होगा। यूनियन की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुकालो गोंड ने कहा कि मां की सोच से ही बच्चो की सोच विकसित होती है। उन्होंने शिक्षा स्वास्थ्य के मुद्दे पर अभी से शुरुआत करने की जरूरत बताई। सोनभद्र की राजकुमारी ने संगठन की महत्ता को बताते हुए कहा कि जंगल में सब कुछ है लेकिन कंपनी यानी कॉरपोरेट सब कुछ हड़प कर ले जा रहे हैं। कहा जल जंगल जमीन की हमारी लड़ाई जिंदा रहने की लड़ाई है। इसके लिए महिला पुरुष सबको जुड़कर लड़ना होगा। राजकुमारी ने दिल्ली मुंबई के साथियों से भी टीम बनाकर क्षेत्र में काम करने की अपील की।

एडवा की प्रमुख महिला नेता राधा मिश्रा ने कहा कि लोकतंत्र में अधिकार पाने के लिए एकजुटता ज्यादा जरूरी है। दूसरा पिछले कुछ सालों में स्थिति और बद से बदतर हुई है। बेरोजगारी बढ़ी है कमाई घटी है जो सीधे सीधे महिलाओं के स्वास्थ्य और कुपोषण से जुड़ी समस्या है। इससे मिलकर ही निपटा जा सकता है।

अस्तित्व सामाजिक संस्था से जुड़ी वरिष्ठ महिला कार्यकर्ता गुरमीत ने कहा कि महिला स्वास्थ्य का मुद्दा सबसे अहम है जो अक्सर बाकी मुद्दों के साथ कही खो जाता है। इसके लिए सामूहिक चिंता करने की जरूरत है। कहा भाभड आंदोलन की तर्ज पर सहारनपुर के घाड़ क्षेत्र में महिला शिक्षा और स्वास्थ्य पर मुहिम चलाने की आवश्यकता है। अस्तित्व की ही प्रतिभा कहती हैं कि महिलाओं पर लगातार हिंसा बढ़ रही है जो रिपोर्ट तक नहीं हो पा रही है। कहा कि जल जंगल जमीन पर हकदारी के साथ महिला हिंसा भी बड़ा सवाल है जिसके लिए सभी जन संगठनों को इकट्ठा होकर चलना होगा।

वरिष्ठ समाजसेवी रेहाना ने कहा कि स्वास्थ्य सही होगा तभी महिलाएं आगे बढ़ सकेंगी। इसलिए बाकी मुद्दों के साथ सेहतमंद महिला भी हमारा मुद्दा होना चाहिए। कहा कि आज धर्म जाति के मुद्दों में असल मुद्दे छुप जा रहे हैं, इससे बचना होगा।

यूनियन के दिल्ली से आए साथी अभिजीत चटर्जी ने वनाधिकार के साथ संसाधनों की मार्केटिंग पर प्रकाश डाला। प्रस्ताव रखा कि लघु वन उपज और सामुदायिक दावे दायर करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर तीन साल का व्यापक कार्यक्रम तैयार किया जाए। तय हुआ कि मार्च में दिल्ली में होने वाली राष्ट्रीय समिति बैठक में इसे अंतिम रूप दिया जाएगा। एक साल में कम से कम 100 गावों के सामुदायिक दावे करने है ताकि संसाधनों पर ग्राम सभा का हक हो और संसाधनों का लाभकारी मूल्य मिल सके। कहा कि इसके लिए हमें अपने अपने सामुदायिक जंगल में किस किस्म के कितने पेड़ (संसाधन) है, का हिसाब देखना होगा। मुख्य उत्पादों पर फोकस करते हुए, संसाधनों का सही मूल्य पाने के लिए 20 से 30 ग्राम सभाओं का समूह बनाना होगा। इसके साथ ही अभिजीत ने यूनियन का सदस्यता अभियान चलाए जाने पर भी जोर दिया।

दिल्ली समर्थक समूह के वरिष्ठ साथी विजयन एमजे ने कहा कि महिलाओं की ताकत से देश आगे बढ़ रहा है। लेकिन कोविड़ हो या नोटबंदी, जहां सबसे ज्यादा महिलाएं प्रभावित हुई है। वहीं दूसरी ओर सरकार का रवैया एकदम गैरजिम्मेदाराना और चीजों को छुपाने वाला ही दिखा है। कहा कि क्या कोई कल्पना कर सकता है कि संसद में कोई मंत्री यह कह सकता है कि ऑक्सीजन की कमी से देश में कोई नहीं मरा है। लोगों पर टूटी इस आपदा को लेकर सरकार जरा भी संवेदनशील नहीं दिखी है। उसका तो, जो हो गया हो गया, सब कुछ भूलकर आगे बढ़े, का ही रवैया रहा है, जो अपने आप में विरोधाभासी है। कहा 2023 में 9 राज्यों में चुनाव है तथा 2024 में आम चुनाव होने हैं। इसलिए जहां हमें महिलाओं के प्रतिरोध को एक नई ताकत देनी होगी वहीं जनवादी तरीके से चुनाव हो, इसका भी ध्यान रखना होगा। इसके लिए अपने अपने क्षेत्रों में लोगों के बीच खड़े होकर सवाल पूछने होंगे। कोविड ने जान ली तो नोटबंदी ने पैसा छीना लेकिन इन सबसे भी कीमती जो पिछले आठ सालों ने छीना है वो है करने की ताकत। इसलिए सबको साथ लाना होगा और साझे आंदोलन को ताकत देनी होगी। अंत में विजयन ने फैज का मशहूर "हम सारी दुनिया मांगेंगे" गीत गाकर सभी में जोश भर दिया।

वरिष्ठ मजदूर नेता कामरेड तिलक राज भाटिया ने कहा कि महंगाई बेरोजगारी से एक आदमी को दाल रोटी नसीब नहीं हो पा रही है वही एक आदमी अरबों खरबों पति हुआ जा रहा है। विषमता की इस खाई को मिलकर ही पाटा जा सकता है। चित्रकूट से यूनियन के सचिव माता दयाल ने कहा कि सामूहिक खेती और लघु वन उपज आदि सामुदायिक संसाधनों पर कब्जा होगा तो राशन की जरूरत नहीं पड़ेगी। कश्मीर से आए साथी शकील ने बताया कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद हमारे अधिकार कम हुए हैं और संसाधनों पर माइनिंग माफिया यानी कॉरपोरेट हावी हो गया है। कहा कश्मीर में 2020 के बाद वनाधिकार कानून लागू हुआ है लेकिन धरातल पर अधिकारों की आवाज उठाने में खतरा है। एनएसए/यूएपीए लगा दिया जा रहा है। लेकिन बात तो करनी ही है। कहा AIUFWP के साथ हम नेशनल प्लेटफार्म से जुड़ जाएंगे तो निसंदेह वनाधिकार का लाभ मिलने का काम आसान होगा। 

जनसंगठनों को मिलकर काम करना होगा: संजय

पूर्व मंत्री व यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष संजय गर्ग ने कहा कि आज लोगों के सामने सम्मानजनक भविष्य का सवाल सबसे बड़ा है। कहा लड़कर 2006 में वनाधिकार कानून तो ले लिया लेकिन अधिकार अभी तक भी नहीं मिल पाए हैं। 2012 में समीक्षा में लघु वन उपज पर सामुदायिक हक मिला लेकिन कहीं न कहीं इस लघु वन उपज पर भी सरकार की नजर है और सरकार कॉरपोरेट के भरोसे ही आत्मनिर्भर भारत बनाना चाह रही है। कहा इस दौरान सभी सरकारें रही है लेकिन यह काम सरकार या राजनीतिक दल कभी नहीं करेंगे, जनसंगठनों को ही मिलकर करना होगा। लघु वन उपज समुदाय का अधिकार है जो लेना होगा। याद रहे कि हमें हिस्सेदार नहीं, मालिक बनना है। इसलिए आर्थिक आधार पर आत्मनिर्भर बनने के लिए सामुदायिक अधिकारों की लड़ाई को तेज करना होगा। सामुदायिक अधिकार होगा तो ना कोई उसे बेच पाएगा और न ही कोई दलाल उसका लाभ उठा पाएगा। समुदाय को खरीदना मुश्किल है।

संजय गर्ग ने संविधान के प्रति सरकार की कुत्सित इरादों को लेकर भी लोगों को आगाह करते हुए कहा कि वन अधिकारों के  साथ साथ हमें अपने संवैधानिक अधिकारों और मूल्यों को भी बचाना होगा। सक्रिय रहकर संविधान की रक्षा करनी है। संविधान है तो अधिकार है। इसलिए जाति धर्म और लिंग भेद की संकीर्णताओं से ऊपर उठना है और एक जागरूक नागरिक बनना है। 

सहारनपुर बेहट से वरिष्ठ साथी एडवोकेट मो अहमद काजमी ने कहा कि भारती जी की याद में आयोजित कार्यक्रम के उपलक्ष्य में अलग अलग जगहों के साथी इकट्ठा होकर चर्चा करते है तो सभी को एक हौंसला मिलता है। दिशा सामाजिक संगठन के केएन तिवारी ने सबसे एकजुटता का आह्वान करते हुए चर्चा कार्यक्रम का समापन किया। 

अंत में यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक चौधरी ने धन्यवाद ज्ञापित किया और वरिष्ठ पत्रकार व मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाड़ तथा एनटीयूआई के साथी गौतम मोदी आदि के द्वारा भेजे गए संदेशों को जानकारी दी।दिल्ली समर्थक समूह के साथियों ऐश्वर्या, रोशनी, सबीना आदि के साथ चित्रकूट से रानी, दिल्ली से सुजन, बेहट क्षेत्र से नईम, विशाल, प्रद्युमन, राखी, गोपाल व ललिता गौतम आदि ने भी विचार रखे। एडवोकेट अनिता ने संचालन किया।

साभार : सबरंग 

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