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अफ़ग़ानिस्तान: अपने हक़ के आवाज़ उठाती महिलाएं, तालिबान से मांग रही हैं बराबरी का अधिकार

महिलाएं अब सोशल मीडिया पर मदद की गुहार लगाने के बजाय तालिबान की आंखों में आंखें डालकर अपने शिक्षा और रोजगार का हक़ मांग रही हैं, अपनी आज़ादी के लिए संघर्ष कर रही हैं।
अफ़ग़ानिस्तान: अपने हक़ के आवाज़ उठाती महिलाएं, तालिबान से मांग रही हैं बराबरी का अधिकार
Image courtesy : Reuters

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की दहशत के बीच महिलाएं अपने अधिकारों के लिए बेखौफ आवाज़ बुलंद कर रही हैं। शुक्रवार, 3 सितंबर को जब तालिबान अपने मंत्रिमंडल और सरकार गठन की तैयारी कर रहा था तभी राजधानी काबुल में कुछ महिलाएं राष्ट्रपति भवन के सामने सरकार में अपनी भागेदारी की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहीं थी। उनके हाथों में जो परचे थे उनपर लिखा था - एक बहादुर कैबिनेट जिसमें महिलाएं भी मौजूद हों, महिलाओं का अधिकार, मर्दों से बराबरी। अफगान महिलाओं ने अपने विरोध प्रदर्शन के दौरान जमकर नारेबाजी भी की। उनका कहना था कि वो अब 20 साल पहले वाली औरतें नहीं हैं। अब उन्हें समानता, न्याय और लोकतंत्र चाहिए।

बता दें कि ये पहला मौका नहीं है जब तालिबान के राज में महिलाएं सड़कों पर उतरी हों। इससे पहले 17 अगस्त को भी महिलाओं ने काबुल में तालिबान के खिलाफ प्रदर्शन किया था। ये पहली बार था जब अफगानिस्तान की महिलाओं ने तालिबान के खिलाफ प्रोटेस्ट किया।

शिक्षा और रोज़गार का हक़ मांगती महिलाएं

अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े के बाद से दुनिया भर में तालिबान के शासन में महिलाओं की स्थिति पर चिंता व्यक्त की जा रही है। लेकिन शुक्रवार को काबुल और हेरात से जो तस्वीरें आई हैं उसने डर के साए में महिलाओं के संघर्ष की एक नई इबारत लिख दी है। महिलाएं अब सोशल मीडिया पर मदद की गुहार लगाने के बजाय तालिबान की आंखों में आंखें डालकर अपने शिक्षा और रोजगार का हक मांग रही हैं, अपनी आज़ादी के लिए आवाज़ उठा रही हैं।

विरोध प्रदर्शन में शामिल 24 साल की मरियम अबराम ने ‘अल-जजीरा’ टीवी से कहा, "हमने मजबूरी में विरोध का फैसला किया। तालिबान महिलाओं को रोजगार के अवसर देने पर साफ बात करने को तैयार नहीं दिखते। हमें कहा जा रहा है कि आप काम पर नहीं जा सकतीं। ऑफिस जाते हैं तो वहां से लौटा दिया जाता है। हमने पुलिस चीफ और कल्चरल डायरेक्टर से भी बात की। उन्होंने डेमोक्रेसी खत्म करके मुल्क पर कब्जा किया है। ये बताएं कि अब क्या करेंगे?”

मरियम ने आगे कहा कि तालिबान कहते हैं अशरफ गनी की पिछली सरकार भ्रष्ट थी, लेकिन ये क्या कर रहे हैं? इनके नेता शेर मोहम्मद स्टेनकजई कहते हैं कि कैबिनेट में महिलाओं को जगह नहीं मिलेगी। हम अपना हक मांग रहे हैं। महिलाओं के बिना तालिबान की सरकार चल नहीं पाएगी। अगर नेशनल असेंबली (लोया जिरगा) में महिलाओं को बराबर की हिस्सेदारी मिलती है तो हम इसे स्वीकार करेंगे।

तालिबान शरिया की बात कर रहा है लेकिन असल में इसका मतलब नहीं बता रहा

मालूम हो कि तालिबान ने काबुल पर कब्जे के बाद कई बार कहा है कि वे महिलाओं को शरियत के दायरे में रहकर काम और शिक्षा का अधिकार देना चाहते हैं। हालांकि, उन्होंने ये नहीं बताया है कि असल में इसका मतलब क्या है। तालिबान इस बार अपने पिछले क्रूर शासन के उलट खुद को अधिक उदार दिखाने की कोशिश तो कर रहा है, लेकिन उसकी वापसी से अफगान महिलाएं अब भी आशंकित हैं, सबसे ज्यादा असुरक्षित महसूस कर रही हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अफगानिस्तान में करीब 250 महिला न्यायाधीशों का जीवन खतरे में है। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने एक समय जिन अपराधियों को सजा सुनाकर जेल भेजा था, वे अब आजाद हो गए हैं। तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद जेलों में बंद सभी कैदियों को मुक्त कर दिया है। जेल से छूटे अपराधी अब खुद को गिरफ्तार करने और सजा सुनाने वाले पूर्व सरकार के अधिकारियों-कर्मचारियों को बदला लेने के लिए ढूंढ रहे हैं।

बीते हफ्तों में इनमें से कुछ महिला न्यायाधीश अफगानिस्तान से निकलने में कामयाब हो गई हैं लेकिन अभी भी ज्यादातर वहीं पर फंसी हुई हैं और जान बचाने के लिए इधर-उधर भटक रही हैं। सत्ता में आए तालिबान ने ज्यादातर कार्यो में महिलाओं की भागीदारी पर प्रतिबंध लगा दिया है। तालिबान ने कहा है कि कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की जाएगी लेकिन उन्होंने अभी यह स्पष्ट नहीं किया है कि महिलाओं को कौन से कार्य करने दिए जाएंगे।

बीस साल पहले तालिबान का क्रूर शासन

बता दें कि इससे पहले तालिबान शासन के दौरान औरतों का पर्दा करना अनिवार्य कर दिया गया था। वो घर के बाहर ऐसे कोई कपड़े नहीं पहन सकती थीं, जिनसे उनके शरीर का कोई अंग दिखे। लड़कियों के स्कूल जाने और औरतें के बाहर जाकर काम करने पर रोक थी। महिलाएं बिना किसी पुरुष रिश्तेदार के घर से बाहर नहीं जा सकती थीं। औरतों को पब्लिक प्लेस पर बोलने की आज़ादी नहीं थी और न वो किसी पॉलिटिक्स में शामिल हो सकती थीं। कुल मिलाकर नियम-कानून के नाम पर औरतों के अधिकार बर्बरता से कुचल दिए गए थे।

साल 2001 में पेंटागन आंतकी हमले के बाद जब अमेरिका ने अपनी सेनाएं अफगानिस्तान भेजी तब तालिबान का शासन खत्म हुआ। साल 2004 में अफगानिस्तान का संविधान बना, औरतों को कई तरह के अधिकार मिले। कई स्कूलों के दरवाज़ें लड़कियों के लिए खुल गए, औरतों ने दोबारा काम पर जाना शुरू कर दिया। लेकिन अब एक बार फिर अमेरिकी नेतृत्व वाली विदेशी सेना की वापसी के साथ ही तालिबान दोबारा अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हो गया है और लोगों को बीस साल पुराना डर सताने लगा है।

हालांकि तालिबान ने 7 अगस्त को पूरे अफगानिस्तान में ‘आम माफी’ की घोषणा की और महिलाओं से उसकी सरकार में शामिल होने का आह्वान किया। इसके साथ ही तालिबान ने लोगों की आशंका दूर करने की कोशिश की। देश के लोगों के लिए कुछ करने और उनकी ज़िंदगी सुधारने की बात कही। लेकिन सोशल मीडिया पर काबुल के एयरपोर्ट पर भागते लोगों का हुजूम, गोलियों की आवाज़ें और विमान पर चढ़ने की कोशिश करते लोगों की वायरल हो रही तस्वीरें काफी डराती हैं।

बीते सालों में अफ़ग़ान औरतों ने अहम तरक्की की हासिल

गौरतलब है कि बीते 20 सालों में अफगान औरतों ने कई अहम तरक्की हासिल की है। लड़कियां स्कूल जाने लगीं, औरतों ने दोबारा काम पर जाना शुरू कर दिया। औरतों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कई सारे ऑर्गेनाइज़ेशन्स अफगानिस्तान में खुल गए। संसद तक औरतों ने अपनी पहुंच बना ली। एक फीमेल कैंडिडेट मसूदा जलाल प्रेसिडेंट तक का चुनाव लड़ीं, प्रांतों में गवर्नर्स के चुनावों में भी महिलाओं ने हिस्सा लिया ओर इस पद तक पहुंचीं। जज के पद पर भी महिलाएं आसीन हुईं। धीरे-धीरे औरतों ने खुद के हालात को सुधारा और अपने लिए एक मुकम्मुल जगह बनाई। लेकिन अब तालिबान का दोबारा अफगानिस्तान में कब्ज़ा पाना, औरतों के लिए सबसे खतरनाक है।

अफगान औरतों ने 20 साल में जो कुछ भी हासिल किया, उन्हें डर है कि कहीं एक झटके में ये सब खत्म न हो जाए। तालिबान हमेशा से महिलाओं को लेकर काफी सख्त शरिया कानून लागू करने का हिमायती रहा है। इनमें उनके पहनावे से लेकर काम न करने के नियम तक शामिल हैं। इसलिए औरतों को डर है कि कहीं 1996 से 2001 के बीच का समय वापस न आ जाए और उनकी जिंदगी घर की चार दीवारी में ना सिमट कर रह जाए।

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