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आर्ट गैलरी : देश की प्रमुख महिला छापा चित्रकार अनुपम सूद

अनुपम सूद के चित्र आकृति मूलक हैं। उनके चित्रों में कुछ उदासी और बेचैनी लिए हुए मानवाकृतियां खामोशी और मौन प्रतिक्रिया से ही अव्यक्त को व्यक्त कर देती हैं।
शिफ्टिंग हालो, चित्रकार-अनुपम सूद,  रंगीन अम्लांकन, 1980 , 52 × 67 सेमी., साभार: समकालीन कला, ललित कला अकादमी की पत्रिका, नवम्बर 1985 अंक
शिफ्टिंग हालो, चित्रकार-अनुपम सूद,  रंगीन अम्लांकन, 1980 , 52 × 67 सेमी., साभार: समकालीन कला, ललित कला अकादमी की पत्रिका, नवम्बर 1985 अंक

समकालीन भारतीय कला जगत में लंबे समय तक कठिन परिश्रम करने के बाद सफल हुई चंद महिला कलाकारों और बड़े बजट को लेकर कलासृजन करने वालों को छोड़ दें तो पूरा भेद-भाव किया जाता रहा है। महिला कलाकारों और उनकी कलाकृतियों के साथ, उनकी कल्पना और विचारों के तह तक कोई जाने का प्रयत्न नहीं करता, उल्टे माखौल उड़ाते हैं। उन्हें कला समीक्षक तक गंभीरता से नहीं लेते। यद्यपि अब समय काफी बदल रहा है। छिटपुट अंग्रेजी भाषा में कुछ महिला कला समीक्षक लिख रही हैं लेकिन वे कला और कलाकृतियों की तह में नहीं जा पा रहीं।   वहीं समकालीन कला सृजन पर नजर डालते हैं तो भली भांति दिख रहा है कि युवा महिला कलाकार निरंतर नवीन और समाज के परिदृश्य और उनकी विरूपित तस्वीर को अपनी कलाकृतियों में अभिव्यक्त करने का जोखिम उठा रही हैं।

अनुपम सूद

कला और कलाकारों को फिल्मों के समान छ्द्म चकाचौंध की दुनिया दिखाने वाला वर्ग ( जिसके अंदर अंधेरा ही अंधेरा और अविश्वास भरी दुनिया है वहां प्रेम नहीं है)। कला को भी ग्लैमरस सिद्ध करने का प्रयत्न हावी रहता है। वहां  भावनाओं और भावाभिव्यक्ति का कोई अर्थ नहीं रह जाता। आर्थिक लाभ और प्रसिद्धि के लिए कला स्तर युग के चलन और मांग का मुखापेक्षी होता जा रहा है। वहाँ चित्रकला को चटख रंगों के इस्तेमाल , चमक-दमक वाले, मात्र बेचने और सजावट की सामग्री मान लिया जाता है।

ऐसे में छापा चित्रकला कम लोकप्रिय विधा है। क्योंकि वहां चित्रकला के समान छापाकला में रंगों का भरपूर इस्तेमाल नहीं होता। यद्यपि सिल्क स्क्रीन (सेरियोग्राफी) में भरपूर मनचाहे रंगों का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन वो बारीकियां, गहराई और लय नहीं आ पाती जो अम्लांकन (एचिंग), लिथोग्राफी (जमाए हुए पत्थर के रेखांकन कर या चित्र बनाकर इंक द्वारा कागज पर छपाई) या काष्ठ छापा चित्र कला में आती है। क्योंकि यह विधा ज्यादातर तकनीकी कौशल और छापा मशीनों पर आधारित है। अतः ज्यादा कलाकार इस विधा को नहीं अपनाते। लेकिन यह भी सच है कई मशहूर चित्रकारों ने इस विधा में सृजन कर्म किया है और उत्कृष्ट कलासृजन किया है। महिला छापा चित्रकारों की बात करें तो देश में बहुत  कम  छापा कलाकार रही हैं या हैं  जिन्होंने सहजता और गम्भीरता से इस माध्यम को अपनी कल्पना और भावाभिव्यक्ति के लिए अपनाया है।

ऑटम, चित्रकार अनुपम सूद, रंगीन अम्लांकन , साभार , भारत की समकालीन कला एक परिपेक्ष्य।

अनुपम सूद भारत की सबसे महत्वपूर्ण छापा चित्रकार हैं जिन्होंने सफलतापूर्वक अम्लांकन विधि द्वारा स्वअनुभव, अपने इर्द-गिर्द की घटनाओं और अंतरअनुभूति को संवेदनशील ढंग से अभिव्यक्त किया है। छात्र जीवन से ही उनके छापा चित्र मुझे बहुत प्रभावित करते रहे हैं। अनुपम सूद के चित्र आकृति मूलक हैं। उनके चित्रों में कुछ उदासी और बेचैनी लिए हुए मानवाकृतियां खामोशी और मौन प्रतिक्रिया से ही अव्यक्त को व्यक्त कर देती हैं। उनके चित्रों में स्त्री- पुरूष आकृतियाँ अनावृत जरूर हैं लेकिन वे दर्शकों के मन को  उत्तेजित करने के बजाय उद्वेलित करती हैं, रुक कर कुछ सोचने को बाध्य करती हैं। कभी वे मुखौटा समेत मानव को, मनुष्य के जीवन की त्रासदी को बड़े ही सरलता और कुशलता से अभिव्यक्त करती हैं।

समाज विकास की सीढ़ियां चढ़ता गया,- सदियों से घर में बंद महिलाएं शिक्षित होती गईं। हर दिशा में अपनी रूचि अनुसार अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम तलाशने लगीं । सफल होने के लिए उन्हें पुरूषों की तुलना में ज्यादा परिश्रम करना पड़ा। अनुपम सूद एक महिला प्रिंट मेकर हैं । उनकी पीढ़ी अलग अनुभवों और अलग तरह के संघर्षों से गुजर रही होंगी, आज की महिला कलाकारों के बनिस्पत। यद्यपि अभी भी हालात बहुत बेहतर नहीं हैं। स्त्री पुरूष संबंधों पर आधारित उनके चित्रों कई बार ठहर कर सोचने को बाध्य करते हैं। उदाहरण स्वरुप,  'शिफ्टिंग हालो'  रंगीन अम्लांकन, 1980, 52×67 सें.मी. छापाचित्र में एक ठोस दीवार के पार्श्व में एक प्रेमी युगल प्रेम में डूबा है। लेकिन चित्र के सामने के भाग में मूर्तिनुमा एक पुरूष आकृति निर्जीव सी पड़ी है। यह चित्र भी कलात्मक और बढ़िया ढंग से संयोजित है।

देश में आम आदमी त्रस्त है नौकरशाही से। बहुत मुश्किल है नागरिकों को बुनियादी सुविधाओं को ही पाना। कभी न मिटने वाली इस त्रासदी को, इससे प्रभावित आदमी के दर्द और विवशता को कुछ चित्रों में अनुपम सूद ने अभिव्यक्त किया है, जिसमें कुछ कठपुतलियां की डोर अनजान हाथों ने थाम रखा है और माईक के सामने उपस्थित हैं। इन चित्रों में देश, समाज की विरूपित, खोखले परिदृश्य को लक्ष्य किया गया है। यह अनुपम सूद की निर्भिकता ही है। उनके चित्रों में भावनात्मक रूप से समाज और दैनिक जीवन की घटनाओं को दृश्यमान कर देते हैं ।

त्रिमूर्ति, अम्लांकन, 1982-83, 49×67 सेमी., साभार: समकालीन कला, ललित कला अकादमी की पत्रिका, नवम्बर 1985 का अंक

अनुपम सूद की छापा चित्र शैली कथात्मक जरूर है लेकिन उन्होंने अपनी कृतियों को अलंकरणात्मक होने से बचाया है। उनके चित्रों की तकनीकी में उत्कृष्टता है, लयात्मकता है, रहस्यात्मक है। वे चित्रों में नाटकीय ढंग से छाया और प्रकाश को दर्शाती हैं जो आकर्षक और प्रभाशाली प्रतीत होते हैं।

अनुपम सूद द्वारा सृजित चित्रों में आभास ही नहीं होता की ये चित्र श्रमसाध्य एचिंग छापा प्रक्रिया के कठिन तकनीकी से छपे हैं। अम्लांकन विधि से छापा प्रक्रिया को प्रमुख माध्यम के रूप में अपनाने के बारे में अनुपम सूद का कहना है कि " मेरे लिए एक शुद्ध और उत्कृष्ट रेखा और गहरी - हल्की रंगतों का अत्यधिक महत्व है। इसके लिए लिए एक्वाटिंट और मिजोटिंट जैसी तकनीकी विधियों का संयोग बहुत सहायक होता है। कोलोग्राफ विधि की तुलना में , जहां तेजी से काम करना होता है, धातु - प्लेट पर सिंथेटिक रेजिन से काम करने के कारण प्लेट धीरे-धीरे आगे बढ़ती है।" साभार : समकालीन कला  ,  नवम्बर 1985 , ललित कला अकादमी की पत्रिका ।

दरअसल एचिंग प्रिंटिंग जैसे मेहनत वाले कला सृजन प्रक्रिया में जिंक धातु के प्लेट पर मनपसंद आकार, आकृतियों को  रेखात्मक , टेक्सचर वाली शैली में नुकीले सुईनुमा उपकरण से खुरचकर उकेरते हैं ।इसके पश्चात उसे साइट्रिक एसिड के घोल में कुछ देर  डुबोते हैं । इसके पश्चात रोलर से प्लेट पर प्रिंटिंग इंक लगाते हैं । प्लेट पर  कागज रख कर प्रिंटिंग प्रेस के रोलर को संचालित कर कई प्रिंट निकालते हैं । जब तक मनचाहा परिणाम न आये । सचमुच सिद्धहस्त कलाकार इस प्रक्रिया में अपने छापा चित्रों में अद्भुत और सुन्दर परिणाम लाते हैं । अनुपम सूद के चित्र भी अनोखे हैं ।

अम्लांकन के अतिरिक्त उन्होंने ड्राइ प्वाइंट, मिजोटिंट और एक्वाटिंट में भी काम किया है।

अनुपम सूद का जन्म 1944 को होशियारपुर में हुआ था। दिल्ली कालेज ऑव आर्ट से उन्होंने डिप्लोमा लिया।  1971 -72 तक ब्रिटिश काउंसिल से छात्रवृत्ति प्राप्त किया। तत्पश्चात  स्लेड स्कूल ऑफ आर्ट, लंदन से प्रिंटमेकिंग की शिक्षा ग्रहण की। शिक्षा पूरी करने के बाद वे 'दिल्ली स्कूल ऑफ आर्ट' में ही अध्यापन करने लगीं। लंदन में उन्हें अंतर्राष्ट्रीय कला और तकनीकी को जानने और समझने का अवसर मिला। उन्हें अनेक अंतराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं । अनुपम सूद के चित्र भारत के अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, यूगोस्लाविया, इटली, कोरिया, आस्ट्रेलिया आदि अनेक देशों में सफल एकल प्रदर्शनी किया। अंतर्राष्ट्रीय कला प्रदर्शनियों में भारत का नेतृत्व किया है। महत्वपूर्ण संग्रहालयों में उनके चित्र संग्रहित हैं। अनुपम सूद दिल्ली के भीड़- भाड़ वाले क्षेत्र से कुछ दूर मण्डी में रहती हैं, वहीं उनका स्टूडियो भी है।

अनुपम सूद के अतिरिक्त कुछ और महत्वपूर्ण महिला कलाकार हैं जिन्होंने छापा चित्रकला में बढ़िया काम किया है। नैना दलाल , जरीना हाशमी , कविता नायर , गोगी सरोजपाल, कंचन चंदर, शुक्ला सावंत , सावित्री पाल आदि ऐसे ही प्रमुख नाम हैं।

(लेखिका डॉ. मंजु प्रसाद एक चित्रकार हैं। आप इन दिनों लखनऊ में रहकर पेंटिंग के अलावा ‘हिन्दी में कला लेखन’ क्षेत्र में सक्रिय हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।) 

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