असम एनकाउंटर हत्याएं : जनहित याचिका से सामने आईं जांच रिपोर्ट की ग़लतियां
असम पुलिस, पिछले कुछ दिनों से दो कारणों से चर्चा में है। एक तरफ तो इसने गुवाहाटी में कुछ जघन्य हत्या और अपहरण के मामलों को सुलझाया है, तो दूसरी ओर इसने दो दिनों तक लगातार मुठभेड़ों को अंजाम दिया है।
सनसनीखेज रंजीत बोरा हत्याकांड के मुख्य आरोपी शाह आलम तालुकदार की पुलिस मुठभेड़ में मौत हो गई। पुलिस के मुताबिक, आलम हिरासत से हथकड़ी समेत भाग गया था और अगले दिन उसे मुठभेड़ में उसी जगह मार दिया जहां वह छुपा हुआ था। इसी तरह, चराइदेव जिले में पुलिस की "जवाबी गोलीबारी" में एक कुख्यात बाइक चोर संतोष जायसवाल की मौत हो गई।
असम पुलिस ने गुवाहाटी के सनसनीखेज दोहरे हत्याकांड को सुलझाते हुए, मुख्य आरोपी बंदना कलिता और दो अन्य आरोपी को पकड़ लिया और राज्य की राजधानी में बिस्वजीत हजारिका के अपहरण-हत्या जैसे मामलों को सुलझा दिया जिससे पुलिस की सार्वजनिक प्रशंसा की गई।
मई 2021 में दूसरी बार बनी एनडीए सरकार के बाद से पुलिस द्वार की गई कई मुठभेड़ों पर सवाल भी उठाया गया है। पुलिस ने नए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व में ड्रग्स, उग्रवाद और अन्य अपराधों के खिलाफ कई अभियान चलाए, जिसमें कई मुठभेड़ें भी हुई हैं।
दिल्ली के एक वकील और असम के एक्टिविस्ट आरिफ जवादर ने 8 दिसंबर, 2021 को गौहाटी उच्च न्यायालय (एचसी) में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें सीबीआई या कोर्ट के अधीन एसआईटी गठित कर, मई 2021 से पुलिस मुठभेड़ों के रिकॉर्ड और मामले की स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी। अदालत ने जनवरी के अंत में यह कहते हुए जनहित याचिका को निपटा दिया था कि कथित 'फर्जी मुठभेड़ों' की जांच चल रही है।
मुठभेड़ों पर पिछले डेढ़ साल से चल रही जांच का उल्लेख करते हुए, जवादर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्होंने पहली बार 10 जुलाई, 2021 को एनएचआरसी में एक आवेदन दायर किया था, जिसमें लगभग 10 मामलों को सूचीबद्ध किया गया था और ये ऐसे मामले थे जिनमें मुख्यत मुस्लिम और आदिवासी मारे गए थे। कई ईमेल भेजने के बाद, एनएचआरसी और लगभग एक सप्ताह बाद 16 जुलाई को उन्हे सूचित किया कि आवेदन स्वीकार कर लिया गया है।
जब स्थानीय मीडिया से जवादर के एनएचआरसी के आवेदन के बारे में पता चला, तो एएचआरसी के एक सदस्य सचिव ने संवाददाताओं को बताया कि उसने 7 जुलाई को असम सरकार को एक संज्ञान नोटिस जारी किया था। हालांकि, जवादर द्वारा दायर एक आरटीआई आवेदन से पता चला कि एएचआरसी ने 12 जुलाई को नोटिस भेजा था।
कानून के अनुसार, एएचआरसी या कोई भी राज्य मानवाधिकार आयोग किसी मामले की जांच कर सकता है और जो भी इसे पहले शुरू करेगा, वह इसकी जांच करना जारी रखेगा। जवादर द्वारा दायर एक अन्य आरटीआई आवेदन से पता चलता है कि एनएचआरसी ने एएचआरसी, असम के डीजीपी और राज्य सरकार को मामले पर नोटिस भेजा था।
जांच में धीमी प्रगति को देखते हुए, जवादर ने पीआईएल दायर की और अधिक मुठभेड़ों को सूचीबद्ध किया। जनहित याचिका में मई 2021 से दिसंबर 2021 तक हुई 80 मुठभेड़ों में 28 मौतों और 48 घायलों का जिक्र है। 3 जनवरी 2022 को पहली सुनवाई के दौरान असम के महाधिवक्ता देवजीत सैकिया ने अदालत से जवाब देने के लिए समय मांगा था।
21 फरवरी को अदालत को दिए गए पहले सरकारी हलफनामे में 16 मुठभेड़ों में पूछताछ सूचीबद्ध करने वाला एक अनुलग्नक शामिल था।
जवादर ने कहा कि जनहित याचिका पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र राज्य, 2014 में जारी सुप्रीम कोर्ट (एससी) के दिशा-निर्देशों पर आधारित थी। उनके अनुसार, असम मुठभेड़ों की जांच दिशानिर्देशों के अनुसार होनी चाहिए थी लेकिन उनका "उल्लंघन" किया गया था।
कुछ दिशा-निर्देशों में देश में कहीं भी किसी भी मुठभेड़ की जांच करने वाले से कम से कम एक रैंक ऊपर के पुलिस अधिकारी द्वारा स्वतंत्र जांच का उल्लेख है। जवादर ने कहा कि इसके अलावा, जिस पुलिस थाने के अधिकार क्षेत्र में मुठभेड़ हुई है, वह जांच किसी और पुलिस थाने द्वारा जांच की जानी चाहिए।
जवादर के अनुसार, अनुलग्नक में मजिस्ट्रियल जांच की रिपोर्ट है, न कि स्वतंत्र जांच की। “पुलिस मुठभेड़ों में मजिस्ट्रियल जांच नियमित बात है जिसमें डॉक्टर की रिपोर्ट, फोरेंसिक रिपोर्ट और पुलिस का बयान दर्ज करना शामिल है। वह इस तरह के गंभीर मामले की स्वतंत्र जांच नहीं कर सकते हैं।”
जवादर ने कहा कि, हलफनामे में सूचीबद्ध छह मामलों की जांच रिपोर्ट मुठभेड़ों पर सवाल उठाने की पर्याप्त गुंजाइश छोड़ती है। "उदाहरण के लिए, कार्बी आंगलोंग में छह डीएनएलए (दिमासा नेशनल लिबरेशन आर्मी) के आतंकवादियों की हत्या के बारे में मजिस्ट्रियल रिपोर्ट में पुलिस टीम और उनके बीच 15 मिनट की गोलीबारी का उल्लेख है।"
जबकि पुलिस को "शवों के पास हथियार और गोला-बारूद मिले, लेकिन हाथों पर उंगलियों के निशान (जैसा कि राज्य फिंगर प्रिंट ब्यूरो, सीआईडी से हासिल हुआ है) मृतक के साथ मेल नहीं खाते थे। जवादर ने पूछा कि ऐसा कैसे हो सकता है"?
हलफनामे में एक अन्य मजिस्ट्रियल रिपोर्ट में मोरीगांव जिले में बलात्कार और हत्या के आरोपी सैयद अली उर्फ पाठा को गोली मारने का उल्लेख है।
अली को सुबह करीब 3 बजे जागीरोड पुलिस स्टेशन से जांच के लिए अपराध स्थल पर ले जाया गया था। रास्ते में, उसने पुलिस से अनुरोध किया कि वह शौचालय जाना चाहता है और इस लिए कार रोक दी जाए। जब उसे पास के धान के खेत में ले जाया गया, तो आरोपी ने भागने की कोशिश की और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक की मौजूदगी में उसके पैरों में गोली मार दी गई।”
जवादर के मुताबिक, हालांकि, "रिपोर्ट में उल्लिखित डॉक्टर की राय से पता चलता है कि अली को बाएं पैर में आगे से और दाहिने पैर में पीछे से गोली मारी गई थी।"
एक अन्य रिपोर्ट में सिबसागर जिले में एक "तथाकथित मुठभेड़" में एक बुबू कोंवर की मौत का उल्लेख है। जवादर ने कहा, "पुलिस के बयान के अनुसार, कोंवर एक अन्य व्यक्ति के साथ दोपहिया वाहन से भागते समय उन पर गोली चला रहा था।"
जांच अधिकारी ने "रिपोर्ट में लिखा है कि इसका कोई तटस्थ चश्मदीद गवाह नहीं था क्योंकि घटना एक दूरदराज के इलाके में हुई थी"। ज्वादर ने कहा, “यह बॉलीवुड फिल्म की कहानी लगती है। हलफनामे में ऐसी और भी खबरों का जिक्र है, जो इस तरह की मुठभेड़ों पर संदेह को बढ़ाती हैं।'
जवादर ने सर्वोच्च न्यालाय के दिशानिर्देशों के मुताबिक एक जवाबी हलफनामा दायर किया, जिसमें ऐसी हर मुठभेड़ और स्वतंत्र जांच में शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज़ करने की जरूरत होती है। इसके बजाय, पुलिस ने मुठभेड़ों में मारे गए लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की।'
सितंबर 2022 में दायर एक अन्य हलफनामे में, राज्य सरकार ने कहा था कि मई 2021 से असम में 171 मुठभेड़ हुई और जिनमें 56 मौतें हुई हैं।
जवादर के मुताबिक, असम मानव अधिकार आयोग (AHRC), जिसने हाल ही में 2021 में एक चोरी के आरोपी को मारने के लिए दो पुलिसकर्मियों पर जुर्माना लगाया था, ने 12 जनवरी, 2022 को बिना किसी उच्च न्यायालय के नोटिस के जनहित याचिका का हवाला देते हुए मुठभेड़ों के मामलो को बंद कर दिया था।
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PIL ‘Exposes Holes’ in Assam Encounter Killings Probe Reports
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