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सिखों के प्रति भाजपा और संघ की ‘हमदर्दी’ के मायने

मोदी का ‘सिख प्रेम’ एक ऐसा राजनीतिक जुमला है जिसकी आड़ में वह बीजेपी और संघ के सिख विरोधी इतिहास को छिपाना चाहते हैं।
BJP’s Punjab Card
Image Courtesy : The Print

नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर देशभर में जहां विरोध प्रदर्शन का सिलसिला चला वहीं 17 दिसंबर को अकाल तख्त ने इसमें पड़ोसी देशों से आए सिखों और हिंदुओं को शामिल करने का स्वागत किया। तख्त के जत्थेदार या मुख्य प्रवक्ता ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि कई हिंदू और सिख भारत में शरणार्थी हैं। वे अब अधिकारों को लेकर राहत की उम्मीद कर सकते हैं जो नागरिकता प्रदान करता है। सिंह ने यह भी कहा, “... हम सिख किसी के भी धर्म और जाति के आधार पर अंतर नहीं कर सकते। इसी तरह, संविधान भी धर्म और जाति के आधार पर अंतर नहीं करता है। इसलिए, मुसलमानों को बाहर रखने की कोई आवश्यकता नहीं थी।”

सिख धर्म के सिद्धांत को उजागर करते हुए सिंह ने सिखों और संघ परिवार-भारतीय जनता पार्टी के बीच संबंधों के मूल में निहित मतभेद पर रोशनी डाली है।

भारत में सिख धार्मिक अल्पसंख्यक है जो पंजाब की कुल आबादी के 57% हैं। बीजेपी पंजाब में अकाली दल की सहयोगी है लेकिन वह राज्य में अपने दम पर सत्ता में आने की इच्छुक है। पंजाब में अपने सहयोगी अकाली दल की कमजोर हालत और आम आदमी पार्टी की टूट-फूट के चलते ताकतवर विरोधी दल की गैर-मौजूदगी का फायदा लेने के लिए बीजेपी भीतरखाने अपने दम पर 2022 के विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में है। इस बात का जिक्र बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष श्वेत मलिक कर चुके हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता मदन मोहन मित्तल भी अपने सहयोगी अकाली दल को तंज कसते हुए कह चुके हैं कि अब हम छोटे भाई नहीं रहे, अगली बार हम कम सीटों पर चुनाव लड़ने वाले नहीं हैं।

ग्रामीण इलाकों में अपना आधार मज़बूत करने के लिए भाजपा ने जहां सिख चेहरों को (खासकर जट्ट सिखों को) पार्टी में शामिल करना शुरू किया है वहीं संघ परिवार द्वारा भी ऐतिहासिक सिख शख्सियतों के नाम पर समाज कल्याण संस्थाएं बनाकर काम किया जा रहा है, जो ऊपरी तौर पर तो समाज कल्याण संस्थाएं नज़र आएंगी पर पड़ताल करने पर उनका असल एजेंडा सामने आ जाएगा। 2016 में आरएसएस द्वारा आदिवासी बच्चियों की तस्करी के बारे में ‘आउटलुक’ मैगज़ीन में छपी नेहा दीक्षित की स्टोरी इस बात की पुष्टि करती है। इस स्टोरी में पटियाला में चल रही ऐसी ही संस्था का जिक्र किया गया है।

सिख समुदाय में अपना आधार बनाने के लिए भाजपा की नज़र अकाली दल से नाराज़ हुए नेताओं पर है। नामवर सिख हस्ती एच.एस. फूलका भी भाजपा के प्रति उदार दिख रहे हैं। प्रवासी सिखों को रिझाने के लिए भी भाजपा हर हथकंडा अपना रही है। पिछले कुछ समय से भाजपा नेताओं ने सिख भाईचारे को अपनी तरफ खींचने वाले अनेक बयान और ऐलान किए हैं। लोकसभा चुनावों के दौरान मोदी ने अपने एक चुनावी भाषण में सिखों को 1984 के कत्लेआम का इंसाफ दिलवाने की बात कही है। अमित शाह ने भी मोदी को सिखों का हितैषी बताते हुए कहा है कि सिर्फ मोदी ने ही ’84 के पीड़ित परिवारों को न्याय दिलवाया है।

हाल ही में केन्द्र सरकार ने विदेशों में बस रहे 312 सिखों के नाम ‘ब्लैक लिस्ट’ से हटाने का ऐलान किया है, जिसके परिणामस्वरूप वे भारत आ सकते हैं। हालांकि प्रवासी सिख इस ऐलान को शक की निगाह से देख रहे हैं। केन्द्र सरकार ने गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाशपर्व पर आतंकवाद के दौर के 8 सिख कैदियों को जेल से रिहा करने का भी ऐलान किया है। इनमें से पंजाब के स्वर्गीय मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के कातिल बलवंत सिंह राजोआना की फांसी की सजा माफी का ऐलान भी शामिल है। (हालांकि गृह मंत्री अमित शाह ने 3 दिसंबर को संसद में एक सवाल के जवाब दौरान कहा है कि राजोआना की सजा माफ नहीं की गई है) इसी तरह कनाडा के करोड़पति सिख रिपुदमन सिंह मलिक को भी केन्द्र सरकार ने भारत आने के लिए वीजा दे दिया है। रिपुदमन 1985 में हुए एअर इंडिया कांड का संदिग्ध माना गया था।

वैनकूवर की उच्च अदालत ने उसे सबूतों की कमी के कारण बरी कर दिया था। बरी करने वाले जज ने यह साफ कहा था कि छोड़ा इसलिए जा रहा है क्योंकि पर्याप्त सबूत नहीं मिले लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि मलिक बेगुनाह है। रिपुदमन सिंह मलिक के उग्र सिख संगठनों से पुराने संबंध माने जाते रहे हैं। पर उग्र सिख संगठन उसे भारतीय एजेंसियों का जासूस मानते हैं।

अब सवाल पैदा होता है कि क्या भाजपा व नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा सिखों के प्रति जताया जा रहा ‘प्यार’ उनका बेड़ा पार कर सकेगा? क्या संघ और भाजपा का पंजाब व सिख विरोधी अतीत उसका पीछा छोड़ेगा? भाजपा व उसकी माईबाप आरएसएस जो पूरे भारत को एक रंग, एक विचार, एक संस्कृति में रंगा देखना चाहते हैं, अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ उनके छोटे-बड़े नेता नफरत भरे भाषण देते हैं, क्या वे सचमुच सिख हितैषी हैं? इन सवालों का जवाब ढूंढने की भी जरूरत है कि जब पंजाब जल रहा था तो 1984 के कत्लेआम के दौरान भाजपा और संघ की क्या पोजीशन थी?

भाजपा व संघ का सिख विरोधी अतीत

जब ‘पंजाबी सूबा’ आंदोलन चल रहा था तो आज पंजाब हितैषी होने का दावा करने वाली बीजेपी की पूर्व अवतार पार्टी भारतीय जनसंघ ‘महा-पंजाब’ लहर चलाकर पंजाब के दो बड़े संप्रदायों को आपस में लड़वाने का काम कर रही थी। अमृतसर में दरबार साहब के नजदीक बीड़ी, गुटखा और तंबाकू की दुकानें खोलने की मांग करने वाले संगठनों को इनका पूर्ण सहयोग था। दरबार साहब का मॉडल तोड़ने वाला हरबंस लाल खन्ना बीजेपी का राज्य स्तरीय नेता था।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के लिए सरकार पर दबाव डालने वालों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी आगे थे। ऑपरेशन ब्लू स्टार से कुछ दिन पहले लाल कृष्ण अडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी इस बात को लेकर धरने पर बैठे थे कि दरबार साहब में फौज भेजी जाए। आडवाणी अपनी आत्मकथा ‘माई कंट्री माई लाईफ’ में इस बात को स्वीकारते हैं और फौजी कार्रवाई की सराहना भी करते हैं। स्वर्ण मंदिर में फौजी कार्रवाई के बाद आरएसएस द्वारा लड्डू बांटे जाने की खबरें भी प्रकाश में आई थीं।

मोदी सरकार ने जिन नानाजी देशमुख को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया है उन्होंने अपने एक लेख ‘मोमेंट ऑफ सोल सर्चिंग’ में दरबार साहब में की गई फौजी कार्रवाई के लिए इंदिरा गांधी की प्रशंसा की थी और 1984 के सिख कत्लेआम को यह कहकर सही ठहराया था कि यह सिख नेताओं की गलतियों का परिणाम है। आजकल बीजेपी से नाराज चल रहे लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे अरुण शौरी ने भी अपने लेख ‘लैसन्स फ्रोम द पंजाब’ में स्वर्ण मंदिर में फौजी कार्रवाई को जायज ठहराया है। शौरी का यह लेख “द पंजाब स्टोरी” नाम की किताब में प्रकाशित है। इसके अलावा यह भी एक सच्चाई है कि बीजेपी के कई नेता ऐसे हैं जो राजीव गांधी के समय कांग्रेस में थे।

इसी प्रकार 1984 के सिख विरोधी कत्लेआम में बीजेपी और संघ के नेताओं का शामिल होना भी एक सच्चाई है जिसे संघ या बीजेपी के नेता भुला देना चाहते हैं। दिल्ली सिटी पुलिस स्टेशन में दर्ज 14 एफआईआर में बीजेपी और संघ से संबंधित 49 व्यक्तियों के नाम शामिल हैं।

श्रीनिवासपुर पुलिस स्टेशन दक्षिण दिल्ली में ज्यादा मामले दर्ज हैं। एफआईआर से पता लगता है कि हरिनगर, आश्रम, भगवाननगर और सन लाईट कालोनी में बीजेपी और आरएसएस के नेताओं के खिलाफ हत्या, आगजनी, लूटपाट के मामले दर्ज हैं। जिन व्यक्तियों के नाम एफआईआर में दर्ज हैं उनमें से एक नाम है राम कुमार जैन, जो 1980 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी का चुनाव एजेंट था।

लेखक और इतिहासकार शम्सुल इस्लाम का कहना है, “कत्लेआम के बाद राजीव गांधी ने चुनाव राष्ट्रवाद के नाम पर जिस ढंग से बहुसंख्यकों की भावनाओं को उकसा कर जीता था, उससे यह बात साफ है कि कट्टरवादी हिन्दू संगठन पूरी तरह कांग्रेस के साथ थे।”

1991 में बीजेपी की कल्याण सिंह सरकार के समय उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में 10 सिख श्रद्धालुओं को आतंकवादी कह कर पुलिस ने मार दिया था।

जिस मोदी को अमित शाह सिख हितैषी कहते हैं उसी मोदी ने पहले सिख प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के बहाने सिख समुदाय की बेइज्जती की है। एक संदर्भ में मोदी ने मनमोहन सिंह को ‘शिखंडी’ कहा तो दूसरी बार डॉ. सिंह पर “बारह बजने वाला” व्यंग्य किया था जिसका सिख तबके में कड़ा विरोध हुआ था। गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए मोदी, सालों से गुजरात के कच्छ और भुज इलाके में बसे सिख किसानों की जमीनें छीनने वाला बिल लेकर आए। जब सरकार हाई कोर्ट से हार गई तो वह मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गए। गुजरात में बसने वाले पंजाबी किसानों के नेता सुरेन्द्र सिंह भुल्लर के अनुसार, “अब बीजेपी के स्थानीय नेता हमारे साथ गुंडागर्दी करते हैं, हमें धक्के देकर यहां से निकालना चाहते हैं। असल में मोदी केवल मुसलमानों के ही नहीं बल्कि तमाम अल्पसंख्यकों के विरोधी हैं।”

बीजेपी के कई नेता सरेआम सिखों के बारे में विवादास्पद बयान देते रहे हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने सिखों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की थी। कुछ महीने पहले हरियाणा सरकार के मंत्री अनिल विज ने भी सिख समुदाय को गालियां दी थीं।

अनेक सिख बुद्धिजीवी व नेता मानते हैं कि आरएसएस उनके धर्म को हिन्दू धर्म में जज्ब करना चाहता है। इसके कई उदाहरण समय-समय पर सामने भी आए हैं। आरएसएस व उसकी सोच वाले प्रकाशनों द्वारा सिख इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता रहा है। सिख गुरुओं की मानवता के लिए लड़ी लड़ाईयों को मुस्लिम विरोधी दिखाया गया है। कई किताबों में सिख गुरुओं का कृतित्व हनन भी किया गया है, 2006 में गुरु अर्जन देवजी के 400वें शहीदी दिवस के मौके पर आयोजित समारोह में बीजेपी नेता सुषमा स्वराज ने गुरु साहब की शहीदी से जुड़े चंदू के नाम पर भी एतराज किया था। (सिख कथा में चंदू वह शख्स है जिसके बारे में कहा जाता है कि मुगल दरबार का करीबी था और गुरु अर्जन देवजी के बेटे से अपनी बेटी का ब्याह कराना चाहता था। जब ऐसा नहीं हो पाया तो उसने मुगल बादशाह को गुरु के खिलाफ भड़काया) उसी समारोह में राष्ट्रीय सिख संगत पर लगी रोक हटाने की मांग भी भाजपाइयों ने कर डाली थी।

सरकारी दस्तावेजों में मोदी सरकार आज भी सिख आतंकवाद शब्द का प्रयोग कर रही है। मई 2019 में कारवां में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, “आतंक को मिलने वाले वित्तपोषण पर स्थाई फोकस समूह” का “उद्देश्य इस्लामिक और सिख आतंकवाद पर काम करना है।”
वर्तमान में भाजपा द्वारा सिखों के प्रति जताए जा रहे ‘प्यार’ को कई सिख विद्वान देश के मौजूदा राजनीतिक माहौल से जोड़कर देख रहे हैं। उनका मानना है कि एक तरफ भगवा सरकार कश्मीरियों को दबाना चाहती है दूसरी तरफ सिखों व पंजाब को खुश रखने का पाखंड कर रही है।

असल में पंजाबियों व कश्मीरियों की नज़दीकी हिंन्दुत्ववादी सरकार को परेशान कर रही है, क्योंकि पूरे मुल्क में से पंजाब से ही कश्मीरियों के हक में बड़े स्तर पर आवाज़ बुलंद हुई है। विदेशों में भी पंजाबियों व सिखों द्वारा मोदी की विदेशी यात्राओं का विरोध किया गया है और कश्मीरियों के पक्ष में आवाज़ उठाई गई है। सिख बु़द्धिजीवी मानते हैं कि भाजपा द्वारा सिखों के लिए दिखाई जा रही हमदर्दी का छुपा मंतव्य सिखों को आपस में बांटना है। हाल ही के दिनों में ही अकाल तख्त के जत्थेदार ने आरएसएस पर रोक लगाने की मांग की है और उसे देश को बांटने वाली संस्था बताया है।

कनाडा में रहने वाले पंजाबी मूल के पत्रकार गुरप्रीत सिंह का कहना है कि बीजेपी सिखों के साथ झूठा अपनापन जता कर प्रवासी सिखों में अपनी साख बनाना चाहती है क्योंकि दुनिया के कोने-कोने में बसने वाले सिखों का अपने देशों में अच्छा रुतबा है और उनके सहारे बीजेपी दुनिया में अपनी उदार छवि बनाना चाहती है।

भाजपा और संघ का अतीत सिखों के दोस्त के रूप में बिलकुल सामने नहीं आता। संघ सिख धर्म की आजाद हस्ती को हमेशा नकारता रहा है और इसे हिन्दू धर्म का हिस्सा मानता रहा है। इन तमाम बातों से यह बिल्कुल भी दिखाई नहीं पड़ता कि आने वाले समय में सिखों में अपना आधार बना पायेंगे। दरअसल मोदी का ‘सिख प्रेम’ एक ऐसा राजनीतिक जुमला है जिसकी आड़ में वह बीजेपी और संघ के सिख विरोधी इतिहास को छिपाना चाहते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

BJP’s Punjab Card: Political Jumla Vs. Anti-Sikh Past

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