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बिहार: पिछले एक महीने में क्यों ध्वस्त हो गईं गोपालगंज के तीन नवनिर्मित पुलों की एप्रोच रोड?

बिहार के गोपालगंज जिले में गंडक नदी पर स्थानीय लोगों को खुश करने के लिए बहुत कम दूरी पर कम लंबाई के तीन पुल बना तो दिये गये। मगर उनकी डिजाइन में इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि बाढ़ आने की स्थिति में क्या ये पुल नदी का दबाव झेल पायेंगे।
बिहार
सत्तर घाट पुल का सम्पर्क पथ इसके उदघाटन के एक महीने के भीतर ध्वस्त हो गया था।

बिहार के गोपालगंज जिले में गंडक नदी पर बने तीन पुलों के संपर्क पथ (एप्रोच रोड) पिछले एक महीने के दौरान ध्वस्त और क्षतिग्रस्त हो गये। इन घटनाओं ने भ्रष्टाचार के नजरिये से तो लोगों का ध्यान खूब खींचा। इस पर राजनीतिक बहसें भी हुईं। मगर इन पुलों के संपर्क पथों के एक साथ क्षतिग्रस्त होने के असली कारणों की तफ्तीश नहीं हुई।

जानकारों का मानना है कि ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि राजनीतिक कारणों से स्थानीय लोगों को खुश करने के लिए बहुत कम दूरी पर कम लंबाई के तीन पुल बना तो दिये गये। मगर उनकी डिजाइन में इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि बाढ़ आने की स्थिति में क्या ये पुल नदी का दबाव झेल पायेंगे। अगर इनकी जगह बेहतर डिजाइन वाला एक या दो पुल बनता तो स्थिति ऐसी नहीं होती।

पिछले महीने, 15 जुलाई को गोपालगंज के एक बड़े पुल के एप्रोच रोड के बहने की घटना ने पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा था। पहले खबर यह फैली कि उद्घाटन के महज 29 दिन के भीतर यह पुल ध्वस्त हो गया। मगर बाद में सरकार ने यह स्पष्टीकरण जारी किया कि मुख्य पुल नहीं बहा है, उसके संपर्क पथ पर बनी एक छोटी पुलिया ध्वस्त हुई है। इस घटना के लगभग एक महीने बाद, 12 अगस्त को फिर से एक बड़े पुल के संपर्क पथ के ध्वस्त होने की खबर आयी।

गोपालगंज के ही बंगराघाट पर बने पुल का संपर्क पथ उसी रोज ध्वस्त हो गया, जिस रोज मुख्यमंत्री उस पुल का उद्घाटन कर रहे थे। इस बीच गोपालगंज जिले के ही एक अन्य बड़े पुल मंगलपुर सेतु के भी संपर्क पथ में दरार आने की खबर है, वह पुल 2015 में बना था।

बिहार के गोपालगंज जिले में गंडक नदी पर बने इन तीन बड़े पुल जिनकी लंबाई औसतन डेढ़ से दो किमी के बीच है और उनकी लागत भी 250 से 500 करोड़ रुपये के बीच है। इसी जिले में गंडक नदी पर बना एक चौथा पुल जिसे वहां डुमरिया घाट पुल कहते हैं, जर्जर हाल में है और वहां एक अन्य निर्माणाधीन पुल बरसों से आधा बना हुआ और कहा जाता है कि उस पुल का ठेकेदार निर्माण आधा छोड़ कर भाग गया है।

पहले तीन पुलों का निर्माण पिछले पांच वर्षों में हुआ है और इन तीन पुलों के निर्माण पर 1112. 4 करोड़ खर्च करने के बाद भी गोपालगंज से तिरहुत और चंपारण के इलाके को जोड़ने के लिए कोई भरोसेमंद रास्ता नहीं है।

इस रास्ते पर पहले एनएच 28 पर एक पुल हुआ करता था, जिसे बैकुंठपुर पुल कहते हैं। उस पुल की स्थिति काफी खराब है। उस पुल के बदले वहां बरसों से एक पुल निर्माणाधीन है, अधूरा बना पड़ा है, जिसके पूरा होने की संभावना नहीं है। उसके बाद 2015 में 330 करोड़ की लागत से यादोपुर-मंगलपुर सेतु बना, जिसकी लंबाई 1.92 किमी है।

2020 में चुनावी वर्ष में इसी जिले में गंडक नदी पर दो और पुलों का उद्घाटन हुआ। पहले सत्तरघाट पुल का उद्घाटन जून महीने में हुआ, जिसकी लंबाई 1.44 किमी है और उस पर 263.43 करोड़ की राशि खर्च हुई है। फिर 12 जुलाई को बंगराघाट पुल का उद्घाटन हुआ, जिसकी लागत 508.98 करोड़ बतायी जा रही है, इसकी लंबाई 1.5 किमी है।

दिलचस्प है कि ये सभी पुल एक ही जिले गोपालगंज में, एक ही नदी गंडक पर एक ही दिशा में बने हैं। इन सभी चार पुलों से होकर गोपालगंज के लोग या तो चंपारण के जिलों में जाते हैं, या मुजफ्फरपुर। इन चारों पुलों के बीच एक पुल से दूसरे पुल की दूरी भी बमुश्किल 10 से 12 किमी बतायी जा रही है। हालांकि स्थानीय लोगों को यह देखकर अच्छा लगता है कि उनके नदी पार करने के लिए छोटी-छोटी दूरी पर एक साथ चार पुल हो गये हैं। मगर कई लोग यह सवाल भी उठाते हैं कि क्या एक ही नदी पर एक ही रास्ते में जाने के लिए गोपालगंज जैसे जिले में चार बड़े पुल होने चाहिए।

दिलचस्प बात यह भी है कि बंगराघाट पुल के उद्धाटन के दिन 12 जुलाई को बैकुंठपुर से स्थानीय विधायक मिथिलेश तिवारी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सालेमपुर घाट पर एक और पुल की मांग कर डाली, उन्होंने कहा कि केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी इस पुल के लिए मौखिक सहमति दे चुके हैं।

यह मामला इसलिए भी समझ से परे है, क्योंकि गोपालगंज को छोड़ दिया जाये तो बिहार के किसी अन्य जिले में एक ही नदी को पार करने के लिए एक साथ इतने बड़े पुल नहीं हैं। राजधानी पटना में भी गंगा नदी को पार करने के लिए सिर्फ दो पुल है, जिसमें एक महात्मा गांधी सेतु क्षतिग्रस्त है, उसके मरम्मत का काम चल रहा है। दूसरे दीघा घाट सेतु पर सिर्फ छोटे वाहनों के परिचालन की अनुमति है।

गंगा और गंडक के बाद बिहार की एक अन्य बड़ी नदी कोसी पर सिर्फ पांच बड़े पुल हैं, मगर ये सब पर्याप्त दूरी पर अलग-अलग जिलों में हैं। इनमें से दो सहरसा में हैं, मगर अलग-अलग दिशा में, अलग-अलग जिलों को जोड़ने के लिए। एक सुपौल में, एक मधेपुरा और एक कटिहार में है। ऐसे में गोपालगंज जैसे जिले में एक ही नदी पर चार बड़े पुलों का होना अजीब लगता है।

एक स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार अवधेश राजन कहते हैं कि ऐसा यहां के स्थानीय विधायकों के दबाव में हो रहा है। हर कोई अपने क्षेत्र में पुल बनाकर अपने क्षेत्र की जनता का समर्थन हासिल करना चाह रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस वजह से भी इन नेताओं की मांग को मान ले रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि पारंपरिक रूप से राजद का गढ़ रहे इस क्षेत्र में उनकी पैठ बढ़ेगी। बैकुंठपुर के विधायक के ताजा बयान से भी इस बात की पुष्टि होती है।

वे कहते हैं, मगर छोटी-छोटी दूरी पर चार पुल बना देने से भले ही लोगों को तात्कालिक तौर पर खुशी मिल जाए, मगर उनकी समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो पा रहा। इन पुलों के संपर्क पथ पर गंडक नदी का बार-बार हमलावर होना इसी का संकेत है।

वे कहते हैं, पुल तो चार बन गये, मगर ज्यादा से ज्यादा लोगों को खुश करने के चक्कर में एक भी पुल ऐसा नहीं बन सका जिससे गंडक नदी निर्बाध रूप से बहती। इस्टीमेट कम करने और ज्यादा पुल बनाने के चक्कर में हर बार पुल की लंबाई कम की गयी और इसके डिजाइन में बदलाव किया गया। यह उसी का नतीजा है।

बिहार में नदियों के बड़े जानकार रंजीव कहते हैं, किसी भी नदी पर पुल बनाते वक्त इस बात का समुचित ध्यान रखना चाहिए कि पुल की लंबाई उस नदी के मैक्सिमम फ्लड डिस्चार्ज को, यानी उस लंबाई को जिसमें अपने इतिहास के सबसे बड़े बाढ़ के वक्त में नदी बहती रही हो, पुल को बनाना चाहिए। अगर नदी के दोनों तरफ तटबंध बने हो, तो उस तटबंध पर ही एक तरफ से दोनों तरफ पुल बनने चाहिए। मगर अमूमन पुल बनाते वक्त इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता है।

वे कहते हैं, पैसों की कमी की बात भी ठीक नहीं लगती। क्योंकि वहां तीन पुलों पर 11 सौ करोड़ से अधिक की राशि खर्च हुई है, अगर इन पैसों से एक पुल बनता तो उसकी डिजाइन ठीक रखी जा सकती थी। मगर राजनीतिक कारणों से वहां इन्हीं पैसों में तीन छोटी लंबाई के पुल बन गये और तीन नाकाम साबित हो रहे।

वे कहते हैं, हालांकि यह बात सच है कि इस साल गंडक की बाढ़ भी भीषण है, मगर इसके बावजूद अगर पुलों की संरचना सही होती तो नुकसान नहीं होता। वैसे भी पुलों को बाढ़ के खतरे को देखते हुए ही बनाना चाहिए।

वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कहते हैं, कि पहले के जमाने में पुलों के दोनों तरफ सीमेंट की दीवारें भी बनती थी, जो नदी के हमले से पुल को बचाती थी, मगर अब नये डिजाइन में वे भी बनने बंद हो गये हैं।

इस तरह देखें तो ऐसा प्रतीत होता है, राजनीतिक कारणों से गोपालगंज में गंडक नदी बने तीन पुल अपनी डिजाइन की गड़बड़ियों की वजह से संदिग्ध हो गये हैं।

इस बारे में जब बिहार राज्य पुल निर्माण निगम के प्रबंध निदेशक सुरेंद्र यादव से पूछा गया तो उन्होंने यह कहा कि पुल कैसे बने यह तो हम बता सकते हैं, मगर इतनी कम दूरी पर गोपालगंज में चार पुल क्यों बन गये, यह बताना हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात है। हमें जो आदेश दिया जाता है, उसे हम पूरा करते हैं। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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