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बोरिस जॉनसन भारत के सीरम इंस्टीट्यूट को हँसते-हँसते ले उड़े

डाउनिंग स्ट्रीट ने कहा है कि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया यूके के भीतर भी बिक्री कार्यालय स्थापित करेगा, जिसके ज़रिये कम से कम "1 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक का व्यापार होने की उम्मीद है, इसके लिए सीरम इंस्टीट्यूट यूके में 200 मिलियन ग्रेट ब्रिटेन पाउंड का निवेश करेगा।"
बोरिस जॉनसन

महामारी के दौरान आवश्यक आपूर्ति और सेवाओं के वितरण के मुद्दे पर भारतीय सुप्रीम कोर्ट द्वार खुद से किए गए हस्तक्षेप के तीन बेहतरीन बिन्दु हैं। भारत, जिसे "विश्व फार्मेसी" का नायक जाना जाता है, वह शार्क के खतरे वाले पानी में प्रवेश कर रहा है, क्योंकि वैक्सीन की आपूर्ति पर देश की अपारदर्शी निर्णय लेने की प्रणाली और इसकी शक्तिशाली कॉर्पोरेट संस्कृति और सीमित या चयनित कूटनीति के साथ परस्पर जुड़ रही है।

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) ब्रिटेन में 240 मिलियन ब्रिटिश पाउंड का निवेश कर रही है ताकि वह आरएंडडी और वैक्सीन उत्पादन के अपने मुख्य फोकस को यूनाइटेड किंगडम में स्थानांतरित कर सके, यह तथ्य इस बात को रेखांकित करता है कि भारतीय कंपनी हरे-भरे चरागाहों की तरफ रुख कर रही है। बोरिस जॉनसन ने भारतीय कंपनी को एक ऐसा प्रस्ताव दिया जिसे वह मना नहीं कर सकी, इसके लिए मार्लन ब्रैंडो द्वारा फिल्म द गॉडफादर में निभाई गई डॉन कॉर्लोन की भूमिका और उसके प्रसिद्ध संवाद को यहाँ इस्तेमाल किया गया है, से मना नहीं किया जा सकता है। डाउनिंग स्ट्रीट घोषणा का पाठ कुछ इस तरह है।

डाउनिंग स्ट्रीट का तर्क है कि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया यूके में एक बिक्री कार्यालय की शुरुवात करेगा, और इसके माध्यम से करीब "1 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक का नया व्यापार पैदा होने की उम्मीद है, एसआईआई इसके लिए ब्रिटेन में 200 मिलियन ग्रेट ब्रिटेन पाउंड का निवेश करेगा।" 

"सीरम का निवेश नैदानिक जांच, अनुसंधान और उसके विकास और संभवतः टीकों के निर्माण का रास्ता साफ करेगा। इससे यूके और दुनिया भर को कोरोनोवायरस महामारी और अन्य घातक बीमारियों को हराने में मदद मिलेगी। सीरम पहले ही कोडोनजीनिक्स इंक के साथ मिलकर कोरोनोवायरस की नाक के जरिए एक-खुराक की यूके में जांच शुरू कर चुका है।"

बिना किसी संदेह के, जॉनसन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बाज़ी मार ली है, तब जब भारतीय विदेश नीति यूके को चीन के पर कतरने के लिए क्वाड में संभावित रूप से शामिल करने के बारे में सोच रही थी। स्पष्ट रूप से, जॉनसन की प्राथमिकताएं अलग हैं – जो पूर्व-औपनिवेश से जीवनरक्षक रक्त ले रहा है, जो उनके "ग्लोबल ब्रिटेन" परियोजना के मामले में उनके ताज में एक आभूषण का काम करता है। 

जॉनसन एक चतुर राजनेता है जैसा कि उनका डाउनिंग स्ट्रीट की गद्दी को फुर्ती से कब्ज़ा लेना इस बात का सबूत है। वे निश्चित तौर पर जानते हैं कि भारतीय अहंकार को कैसे बेअसर किया जाता है और एसआईआई को वैश्विक ब्रिटेन में जगह देने करने की खबरों को भारतीय सार्वजनिक जागरूकता में कैसे एक "नरम खबर" बनाकर पेश किया जाता हैं। जॉनसन ने उपरोक्त को अंजाम देने के अगले दिन बाद मोदी को फोन किया।

उन्होंने 11-13 जून को कॉर्नवॉल में होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन में मोदी को "अतिथि" के रूप में आमंत्रित किया है। भारत का विदेश मंत्रालय धनी देशों के चैम्बर में प्रवेश करने की पीएम की संभावना से काफी रोमांचित है। विदेश मामलों के मंत्री एस॰ जयशंकर पहले ही "शेरपा" की हैसियत से लंदन का दौरा कर चुके हैं। किस बी समय, क्या साउथ ब्लॉक में बैठे हमारे स्मार्ट नौकरशाहों या मंत्रियों को इस बात की कोई हवा थी - कि जॉनसन और एसआईआई के अडार पूनावाला एक बड़ी पार्टी के जश्न की योजना बना रहे हैं – पब्लिक डोमेन में  या मसला हमेशा के लिए "अज्ञात अज्ञात" रहेगा।

डाउनिंग स्ट्रीट भारत के दर्द और पीड़ा को कम करने के लिए मानवीय सहायता के आकर्षक काम पर लग गया है। डाउनिंग स्ट्रीट की एक शब्दबहुल प्रेस रिलीज़ का शीर्षक है "यूके भारत को और अधिक जीवन-रक्षक सहायता भेजेगा"। अगर स्पष्ट रूप से कहा जाए तो ब्रिटेन भारत को 1,200 वेंटिलेटर, 495 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स और 3 ऑक्सीजन जेनरेशन यूनिट्स दे रहा है।

बेशक, खाली बाल्टी के लिए हर बूंद मायने रखती है, लेकिन इन हालात में बीजिंग को भारतीय राष्ट्र से आभार के रूप में क्या उम्मीद करनी चाहिए? चीन आज भी भारत को महामारी से निपटने में दवाओं, चिकित्सा उपकरणों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है।

जॉनसन की हरकतें ब्रिटेन द्वारा एसआईआई के अपहरण से भारत का ध्यान हटाने के लिए हैं तब-जब भारत का ध्यान महामारी पर ध्यान केंद्रित कर वैक्सीन उत्पादन में तेजी लाने पर होना चाहिए। जॉनसन द्वारा यूरोपीयन यूनियन की शर्मनाक बैकस्टैबिंग के बाद वे इस तरह की दूसरी हरकत कर रहे हैं।

एस्ट्रा-ज़ेनेका वैक्सीन (कोविशिल्ड) पर ब्रिटेन ने यूरोपीयन यूनियन को कैसे मात दी, यह वास्तव में एक महाकाव्य की कहानी है। जैसे कि पोलिटिको अख़बार ने इसे पूरी तरह से पेश किया है,  जिसके तहत ब्रिटेन ने यूरोपीयन यूनियन की तुलना में एस्ट्राज़ेनेका के साथ बेहतर अनुबंध हासिल किया है। अनुबंध करते हुए जॉनसन ने इस बात को सुनिश्चित किया कि यूके की वैक्सीन आपूर्ति अनुबंधों में उस खंड को जोडा जाए जिसकी जरूरत एस्ट्राज़ेनेका (या उस मामले में एसआईआई) जैसे आवश्यक आपूर्तिकर्ता वैक्सीन उत्पादकों को होती है: यानी यदि उत्पादन में कमी होती है, तो पहले आपूर्ति यूके को की जाएगी और दूसरों को आपूर्ति तब तक बंद कर दी जाएगी। ऐसा करने में विफल होने पर भयंकर दंड भरना होगा। 

इसके अलावा, लंदन ने यह भी सुनिश्चित किया कि टीके निर्माताओं के साथ इसके सात हुए सौदे में उसका अतिरिक्त दावा रहे। जैसे कि, ब्रिटेन को उसके आदेश की पूरी ख़ुराक मिल चुकी हैं, जबकि यूरोपीयन यूनियन को एस्ट्राज़ेनेका से अनुबंधित मात्रा का केवल एक चौथाई से भी कम प्राप्त हुआ है! कहना होगा कि यूके के टीके की दो-तिहाई ख़ुराक यूरोपीय उत्पादन से पूरी की गई है!

लेकिन जब यूरोपीय लोगों ने इस बेईमानी पर शोर मचाया तो जॉनसन को कोई फर्क नहीं पड़ा।  उन्होंने शांतिपूर्वक जोर देकर कहा कि उन्हें तरजीही पूर्ण आपूर्ति का हक़ है, क्योंकि अनुबंध यही कहता है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में किए गए शोध में निवेश करने के बाद, ब्रिटेन सरकार ने एस्ट्राज़ेनेका (कोविशिल्ड) टीके को हासिल किया और वैसे भी फर्म का मुख्यालय चेस्टरफोर्ड रिसर्च पार्क, कैम्ब्रिज, इंग्लैंड में है।

दिलचस्प बात यह है कि एसआईआई को भी मार्च के अंत में एस्ट्राज़ेनेका की तरह कानूनी नोटिस मिला, और पूछा गया कि यूके को वैक्सीन की आपूर्ति में देरी क्यों हो रही है। एसआईआई ने तुरंत मोदी सरकार को इसका हवाला दिया। हमें नहीं पता कि दिल्ली और लंदन के बीच क्या घटा, लेकिन कॉनवल में आगामी फोटो-ऑप वार्ता को देखते हुए, विदेश मंत्रालय ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया है।

बड़ा सवाल यह है कि क्या भारतीय कानून राष्ट्रीय हितों की रक्षा के मामले में दंतहीन हैं? फिर, देखना बाकी है कि एसआईआई ने मोदी और जॉनसन के बीच कितना बेहतर खेल खेला है। एसआईआई के बॉस पूनावाला ने खुद लंदन टाइम्स अखबार के साथ एक सप्ताहांत के साक्षात्कार में दावा किया कि "भारत के कुछ सबसे शक्तिशाली लोगों" उन्हें भारत से बाहर जाने पर मजबूर किया है और उन पर दबाव "लगातार और बहुत ही खतरनाक भी था।"

एम्स्टर्डम की व्रीजे यूनिवर्सिट में यूरोपीयन यूनियन के कानून के जाने-माने बैरिस्टर और अकादमिक प्रोफेसर गैरेथ डेविस ने हाल में लिखा है कि, “लेकिन किसी के साथ तरजीही अनुबंध पर हस्ताक्षर करना कोई जोर-जबरदस्ती का मामला नहीं है: यह सिर्फ एक ही सामान को दो बार बेचना है। एस्ट्राज़ेनेका द्वारा ब्रिटेन को वादा करने से यूरोपीयन यूनियन के दायित्वों में कमी नहीं आ जाती है ... इसने शायद बहुत अधिक लोगों को बहुत कुछ का वादा कर लिया लगता है।" अब आप, एसआईआई और भारत के मामले में क्रमशः "एस्ट्राज़ेनेका" और "ईयू" शब्दों को बदलें, और एक बदसूरत तस्वीर सामने उभर कर आएगी।

प्रो॰ डेविस कहते हैं, “सवाल यह है कि एस्ट्राज़ेनेका ने यूके के बजाय यूरोपीयन यूनियन के अनुबंध को भंग करने का विकल्प क्यों चुना। ज्यादतर यह इसलिए है क्योंकि यूके के सौदे में बहुत कठोर दंड था -जबकि यूरोपीयन यूनियन के सौदे में भुगतान न करने से कोई दंड नहीं है और जब समस्या उत्पन्न होती है तो मुकदमेबाजी के बजाय अनौपचारिक बातचीत का रास्ता खुला है।"

प्रो॰ डेविस का मानना है: कि “बल्कि, ऐसा लगता है कि ब्रिटेन ने इस अर्थ में बेहतर अनुबंध हासिल किया है क्योंकि उसके अनुबंध के साथ किसी भी तरह का धोखा अधिक महंगा पड़ सकता है। यह आंशिक रूप से विभिन्न कानूनी प्रणालियों और उनकी शैलियों का ही एक उत्पाद है: चूंकि यूरोपीयन अनुबंधित पार्टियां अनुबंध को विश्वास और दीर्घकालिक संबंधों को बनाने के एक उपकरण के रूप में देखती हैं। इसलिए एंग्लो-अमेरिकन लीगल कल्चर कांट्रैक्ट को जरूरत से ज्यादा भरोसे से बचने के तरीके के रूप में देखता है।"

हालाँकि, क्या भारतीय कानून एंग्लो-अमेरिकी कानूनी संस्कृति के पूर्वज नहीं हैं? यदि ऐसा है, तो लब्बोलुआब यह है कि ब्रिटेन एसआईआई को बाहर ले जा रहा है, और भारत उसे खो रहा है। जबकि भारतीय हुकूमत को तय करना चाहिए था कि एसआईआई वैक्सीन की खुराक कहां जानी चाहिए थी। महत्वपूर्ण रूप से, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि दिल्ली में बैठे स्मार्ट नौकरशाह या मंत्रियों को कितना होश है या है भी नहीं कि जॉनसन और पूनावाला किसी एक बड़ी पार्टी की योजना बना रहे थे।

बोरिस जॉनसन बहुत सुसंगत ढंग से तय कर रहे है: कि ब्रिटेन को पहले खुद की मदद करनी चाहिए। जॉनसन बिलकुल बाइडेन की तरह है। दोनों कहते हैं कि वे दूसरों की मदद करने के लिए तैयार हैं, लेकिन खुद की जरूरतों को पूरा करने के बाद ही ऐसा कर पाएंगे। अब तक, वह बिंदु नहीं आया है। जॉनसन ने यूरोपीयन यूनियन का मूर्ख और हारे हुए योद्धा के रूप में मज़ाक उड़ाया है। वास्तव में, ब्रिटेन पिछले सप्ताह के अंत तक अपनी आबादी का 21 प्रतिशत टीकाकरण पूरा कर चुका है, जबकि यूरोपीयन यूनियन मात्र 9 प्रतिशत ही पूरा कर पाया है। 

जॉनसन कठिन खेल खेलते हैं। उनके पास वसुधैव कुटुम्बकम के लिए समय नहीं है। जॉनसन ने ब्रिटिश सांसदों से बात करते हुए हाल ही में कहा, दोस्तों, "वैक्सीन की सफलता का कारण हमारे देश का पूंजीवाद और उसके लिए बेपनाह लालच है।"

सौजन्य: Indian Punchline

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