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ऑनलाइन कोचिंग संकट का सबसे बड़ा उदाहरण है BYJU'S का संकट

यह एक वास्तविकता है कि BYJU'S भारी कर्ज में डूब चुका है। उधर, महामारी के बाद छात्र समुदाय के बीच ऑनलाइन शिक्षा अपना आकर्षण खो चुकी है।
BYJU'S
फ़ोटो साभार: Reuters

आज, एडटेक (Edtech) उद्योग (मुख्य रूप से ऑनलाइन कोचिंग) संकट में है। महामारी के दौरान जब स्कूल और कॉलेज बंद हो गए थे, तब मध्यम वर्ग में उन लोगों के बीच ऑनलाइन शिक्षा के लिए एक अपरिहार्य सनक पैदा हो गई थी, जो महंगी ऑनलाइन शिक्षा का खर्च उठा सकते थे। एक बार जब महामारी समाप्त हो गई, तो ऑनलाइन शिक्षा ने अपनी गति खो दी। छात्र समुदाय के बीच ऑनलाइन शिक्षा बुरी तरह फ्लॉप हो गई, क्योंकि उसमें बहुत किस्म की दिक्कतें थीं।

ऑनलाइन शिक्षा की प्रचुर शैक्षिक क्षमता और लागत लाभ होने के बावजूद, क्योंकि इसे आकर्षक तरीके से पैक और प्रस्तुत नहीं किया गया, और वह सामान्य कक्षा-कार्य (class work)और गृह-कार्य (home work) के अलावा केवल एक अतिरिक्त बोझ बन गया; छात्रों ने ऑनलाइन पाठ्यक्रमों में रुचि खो दी। इसलिए इसे महामारी के बाद की अवधि में जारी नहीं रखा जा सका। एडटेक उद्योग अब बुरे संकट में फंस गया है।

BYJU'S की कहानी

एडटेक उद्योग के संकट को बायजूज़ (BYJU'S), जो सबसे अधिक लोकप्रिय है, के संकट से सबसे अच्छी तरह समझा जा सकता है। इसे ‘थिंक एंड लर्न प्राइवेट लिमिटेड’ के रूप में शुरू किया गया था। यह बायजू रवीन्द्रन, दिव्या गोकुलनाथ और साथी छात्रों के एक समूह द्वारा 2011 में 2 लाख रुपये की प्रारंभिक पूंजी लागत के साथ एक स्टार्ट-अप के रूप में आरंभ किया गया था। इसमें ज़बरदस्त वृद्धि हुई। जून 2023 तक यह 41,820 करोड़ रुपये की कंपनी बन गई । प्रारंभ में, इसने स्कूली छात्रों के लिए ऑनलाइन पाठ्यक्रम की पेशकश की। फिर इसने आईआईटी-जेईई (IIT JEE), एनईईटी (NEET) परीक्षा या यूपीएससी (UPSC) प्रवेश परीक्षा जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग शुरू की। बायजूज़ ने हजारों शिक्षकों और अन्य ऑनलाइन शैक्षिक सामग्री निर्माताओं को नियुक्त किया और ऑनलाइन शैक्षिक सामग्री की एक विशाल श्रृंखला की पेशकश की। इनमें से कई लोगों ने ईमानदारी से काम किया और इन ऑनलाइन शैक्षणिक सामग्रियों की गुणवत्ता भी काफी अच्छी थी। बायजूज़ का दावा है कि 2023 में उसके 30 लाख पेड सब्सक्राइबर होंगे।

इसके ग्राहक आधार के बारे में ध्यान देने योग्य बात यह है कि उनमें से लगभग 60% छोटे कस्बों या ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं। इससे पता चलता है कि व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए मध्यम वर्ग का ‘बुखार’ ग्रामीण मध्यम वर्ग को भी चढ़ गया है। संक्षेप में, संभावित रूप से बेहतर तनख्वाह वाले करियर की तलाश में अपेक्षाकृत कम विकसित लोगों के लिए बायजूज़ सफलता का एक शॉर्टकट रास्ता बन गया।

उच्च शिक्षा शुल्क

आईआईटी-जेईई (IIT-JEE) की कोचिंग के लिए बायजूज़ ने एक छात्र से 95,000 रुपये और एनईईटी (NEET) की कोचिंग के लिए 1,35,000 रुपये तक चार्ज किया, कक्षा 7 के छात्रों के लिए उसने 3500 रुपये प्रति माह और कक्षा 8 के छात्र के लिए 4000 रुपये प्रति माह चार्ज करना शुरू कर दिया। ऑनलाइन ट्यूशन के हिस्से के रूप में, उसने कुछ किताबें, पाठ्यक्रम सामग्री, टैबलेट नामक ऑनलाइन मॉड्यूल और कुछ ऑनलाइन व्याख्यान की पेशकश की। 9-10 कक्षा की एक छात्रा ने बताया कि उससे 2021 में 90,000 रुपये लिए गए थे। 2021 तक, बायजूज़ को भारत में फ्लिपकार्ट के बाद दूसरा सबसे सफल स्टार्ट-अप यूनिकॉर्न माना गया। फिर इसमें तेज़ गिरावट (free fall) शुरू हुई।

छंटनी का सिलसिला

2022 तक बायजूज़ का बुलबुला फूटने लगा था। यह महसूस करते हुए कि उसने अत्यधिक संख्या में शिक्षकों और अन्य सामग्री तैयार करने वाले कर्मचारियों की भर्ती कर दी है, कम्पनी ने छंटनी की होड़ शुरू कर दी 2022-23 में 5000 से अधिक कर्मचारियों को घर भेज दिया। अपने उभार के दिनों में, उसने विदेशी वित्तीय निवेशकों से $2.5 बिलियन तक का उधार लिया। 2023 में, यह ऋण वापस करने या ब्याज का भुगतान करने में भी असमर्थ था। उसने पुनर्भुगतान में चूक की। वह 2021-22 के लिए अपने वित्तीय खातों को अंतिम रूप देने और अनिवार्य वार्षिक वित्तीय विवरण जारी करने में भी सक्षम नहीं रहा।

अपने द्वारा रिपोर्ट की गई वित्तीय अनियमितताओं को बर्दाश्त करने में असमर्थ, उसके ऑडिटर डेलॉइट ने कंपनी छोड़ दी। और इसके बाद सरकारी एजेंसियों के छापे पड़े। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने बायजूज़ कार्यालय की तलाशी ली और दावा किया कि उसने कुछ "आपत्तिजनक दस्तावेज़" ज़ब्त किए हैं।

BYJU'S का जोखिमपूर्ण पूंजीवाद

पूंजीवाद में व्यवसायों में तेजी और मंदी बिल्कुल सामान्य बात है। लेकिन बायजूज़ का किस्सा एक असाधारण मामले के रूप में सामने आया है। इसने आक्रामक (aggressive) मार्केटिंग की रणनीति अपनाई। हर जगह आपने बायजूज़ के विज्ञापन देखे होंगे। नई तकनीकें काम आईं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप इंटरनेट पर किस साइट पर जाने की कोशिश करते हैं, बायजूज़ का कोई न कोई विज्ञापन सामने आ ही जाता है। बायजूज़ ने अपने कर्मचारियों की सेना द्वारा बनाए गए लगभग हर सामयिक विकास पर मुफ्त समाचार विश्लेषण ऑनलाइन अपलोड किया है और यह उन सभी लोगों की ई-मेल आईडी या फोन नंबर एकत्र करेगा जो इस मुफ्त सामग्री को ब्राउज़ करना चाहते हैं। एक बार जब वे अपनी निजी जानकारी दे देते हैं, तो बायजूज़ उन पर दैनिक संदेशों की बौछार करता रहता है। ये आक्रामक ऑनलाइन विज्ञापन इतने हास्यास्पद स्तर पर पहुंच गये हैं कि 70 वर्ष की एक बुजुर्ग महिला को प्रतिदिन किशोरों के लिए बनाए गए ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के विज्ञापन वाले 20-30 संदेश मिलते थे! बायजूज़ की कुल लागत में से विज्ञापन का खर्च 80% था।

यह सड़क पर शोहदों द्वारा युवतियों का पीछा करके उत्पीड़न करने के समान एक प्रकार की ऑनलाइन स्टॉकिंग थी। इस नई आक्रामक उद्यमिता में अंतर्निहित नैतिक मानक इसी प्रकार के हैं। बायजूज़ के कारोबार के तेजी से बढ़ने ने फाइनेंसरों को मंत्रमुग्ध कर दिया था। निवेश कंपनियां विस्तार में निवेश के लिए धन की पेशकश करने के वास्ते कतार में खड़ी हो गईं। इस तरह गुब्बारा और भी बड़ा होता गया था।

प्रतिकूल कारक

महामारी के बाद की रिकवरी, जहां स्कूल और कॉलेज फिर से खोले गए, के अलावा कुछ अन्य कारक भी थे जिनकी वजह से एडटेक सैचुरेशन में तेजी आई। हमारी शैक्षिक प्रणाली और उसकी गलत प्राथमिकताओं के कारण, ट्यूशन की संस्कृति फली-फूली। लेकिन माता-पिता अपने बच्चों को शारीरिक रूप से पड़ोस के सामान्य कोचिंग सेंटरों में पढ़ने के लिए भेजना पसंद करने लगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि छात्र के सीखने की प्रक्रिया में गुणात्मक सुधार करने में ट्यूशन की असमर्थता, और इससे भी अधिक, परीक्षा में बच्चे के कम अंकों का दोष ट्यूशन की ऑनलाइन प द्धति पर डाला गया। इसलिए माता-पिता ने कोचिंग सेंटरों में ट्यूशन पर वापस लौटने को प्राथमिकता दी। ऑनलाइन शिक्षण की गति से ताल मिलाने में असमर्थ बायजूज़ के ग्राहकों के बीच ड्रॉपआउट दर भी लगभग 15% थी, जो कुछ हद तक सामान्य स्कूलों में ड्रॉपआउट दर के करीब थी। इसका मतलब है कि 1 लाख रुपये के पूर्व भुगतान के बाद भी, कई छात्र इसे बर्दाश्त नहीं कर सके और इसलिए बायजूज़ के पाठ्यक्रम से बाहर हो गए।

वैकल्पिक निःशुल्क ऑनलाइन पाठ्यक्रम उपलब्ध

इसके समानांतर, उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्य सरकारों ने गरीब वर्ग के छात्रों के लिए मुफ्त ऑनलाइन कोचिंग शुरू कर दी है। इसके अलावा, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने नेशनल प्रोग्राम ऑफ टेक्नोलॉजी एन्हांस्ड लर्निंग (NPTEL) के तहत पेश किए जाने वाले मुफ्त ऑनलाइन पाठ्यक्रमों की श्रृंखला का भी काफी विस्तार किया है, जो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IIT) और बेंगलूरु के आधारित भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के साथ मंत्रालय का एक संयुक्त उद्यम था। IIT और IISc के कई अनुभवी प्रोफेसरों ने स्नातक और यहां तक कि स्नातकोत्तर छात्रों के लिए मुफ्त ऑनलाइन व्याख्यान और मुफ्त इंटरैक्टिव शिक्षण की पेशकश भी की है। NPTEL द्वारा दी जा रही इस ऑनलाइन शिक्षा सामग्री की गुणवत्ता बायजूज़ द्वारा पेश किये जा रहे पाठों की अपेक्षा कहीं ज्यादा बेहतर है।

इसके अतिरिक्त, महामारी के दौरान, अधिकांश ऑनलाइन कक्षाएं भारतीय विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, स्कूलों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों द्वारा ज़ूम या गूगल मीट के माध्यम से आयोजित की गईं। हालाँकि ज़ूम का मुख्यालय सैन जोस, कैलिफ़ोर्निया में है, लेकिन इसके मजबूत चीनी संबंध हैं क्योंकि ज़ूम की तीन कंपनियों में से दो चीनी कंपनियाँ हैं और तीसरी के स्वामित्व का मामला अस्पष्ट है। इसके अलावा ज़ूम द्वारा उपयोग किए जाने वाले सॉफ़्टवेयर की आपूर्ति चीन और ज़ूम द्वारा व्याख्यानों का डेटा चीनी सर्वर में संग्रहीत किया जाता है। यदि डीयू के कोई प्रोफेसर ज़ूम के माध्यम से बायोकैमिस्ट्री में व्याख्यान आयोजित करते हैं, तो यह पाठ्य सामग्री ज़ूम संपत्ति बन जाती है, और भारत में कोई डिजिटल डेटा या गोपनीयता कानून नहीं है जो उस सामग्री को ज़ूम जैसी विदेशी कंपनी, या यहां तक कि गूगल मीट ऐप द्वारा दुरुपयोग से बचाता हो। कई चीनी कंपनियों ने ऐसे व्याख्यानों को दोबारा पैक किया है और उन्हें अफ्रीका, मलेशिया और फिलीपींस आदि में सक्रिय छोटी कंपनियों को बेच दिया, जिन्होंने उन्हें मुफ्त में ऑनलाइन अपलोड किया या तुलनात्मक रूप से बहुत सस्ती दर पर उपलब्ध कराया है। ये सामग्रियां निःशुल्क ऑनलाइन उपलब्ध हैं। तो छात्र समान पाठ ऑनलाइन समझने के लिए बायजूज़ को 1 लाख रुपये का भुगतान क्यों करना चाहेंगे? स्वाभाविक रूप से, मध्यम वर्ग के बीच बायजूज़ का चमत्कार फीका पड़ने लगा।

लेकिन भारत में ऑनलाइन कोचिंग आ गई है और भारतीय मध्यम वर्ग की प्राथमिकताओं को देखते हुए इसका बने रहना तय है। इसलिए नई चुनौतियों के मद्देनज़र अप्रैल 2021 में, बायजूज़ ने 950 मिलियन अमेरिकी डॉलर में प्रतिस्पर्धी और प्रवेश परीक्षा तैयारी सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनी आकाश एजुकेशन सर्विसेज का अधिग्रहण कर लिया। आकाश- बायजूज़ अब कक्षा कोचिंग कार्यक्रमों (classroom coaching programmes) और डिजिटल और दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों (digital and distance education programmes) दोनों को जोड़ रहा है। आकाश-बायजूज़ का अब दावा है कि संस्थान के लगभग 1,06,870 छात्रों ने राष्ट्रीय स्तर पर NEET UG परीक्षा 2023 उत्तीर्ण की है। यह विशाल मध्यमवर्गीय छात्र समुदाय के बीच प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के लिए बायजूज़ के कोचिंग कार्यक्रमों की निरंतर लोकप्रियता को बताता है। यह देखते हुए कि इस वर्ष लगभग 20 लाख छात्र NEET परीक्षा में शामिल हुए और उनमें से 11.46 लाख उत्तीर्ण हुए, बायजूज़ जैसे ऑनलाइन कोचिंग कार्यक्रमों का अभी भी एक बड़ा बाजार है।

बायजूज़ अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों से बड़े ऋण जुटाने के लिए ऐसे प्रभावशाली आंकड़ों का प्रभावी ढंग से उपयोग करता है। बायजूज़ ने 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण जुटाया और आकाश जैसी तीन अन्य कंपनियों का अधिग्रहण करने में 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किए। उसका बकाया ऋण अब 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। मार्च 2022 में भी, रेटिंग एजेंसियों ने उसका मूल्य 22 बिलियन अमेरिकी डॉलर आंका था, लेकिन उसके सबसे बड़े शेयरधारक प्रोसस (Prosus) ने अब मूल्यांकन घटाकर 5.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर कर दिया है। मूल्यांकन में इतनी तेज गिरावट के साथ, बायजूज़ के ऋणदाता स्वाभाविक रूप से घबरा गए होंगे और उन्होंने अपना धन वापस निकालना शुरू कर दिया है। हाल ही में, जब बायजूज़ को 40 मिलियन डॉलर के ऋण पुनर्भुगतान की समय सीमा का सामना करना पड़ा, तो उसने 6 जून 2023 को पुनर्भुगतान में चूक कर दी, और तब बेताब सीईओ रवींद्रन ऋणों के पुनर्गठन के लिए बातचीत में लग गए, भले ही अधिक प्रतिकूल शर्तों पर। यह विशाल ऋण संस्कृति अब बायजूज़ को परेशान करने लगी है। व्यवसाय चलाने के लिए बड़े पैमाने पर ऋण वित्तपोषण का जुआ स्पष्ट रूप से उल्टा पड़ रहा है।

सेलिब्रिटी विज्ञापन बायजूज़ के व्यवसाय को कायम नहीं रख सका। इसने छात्रों को अपने ऑनलाइन पाठ्यक्रमों की ओर आकर्षित करने के लिए अपने विज्ञापनों में शाहरुख खान का भरपूर इस्तेमाल किया। फिर आर्यन खान का नशीली दवा दुरुपयोग विवाद सामने आने के बाद उन्हें शाहरुख को छोड़ना पड़ा। बायजूज़ आईपीएल विज्ञापन का भी मुख्य प्रायोजक था। आईपीएल टीमों के खिलाड़ी उसके नाम वाली जर्सी पहनते थे। संकट के बाद, वह बीसीसीआई को राजस्व का भुगतान नहीं कर सका और फैंटेसी गेमिंग प्लेटफॉर्म ड्रीम 11 (Dream 11) ने बायजूज़ की जगह ले ली।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि बायजूज़ के प्रमोटरों, जिनमें बायजू रवींद्रन भी शामिल हैं, ने निजी लेनदेन में उसके 400 मिलियन डॉलर मूल्य के शेयर दूसरों को बेच दिए हैं और इससे गैर-सूचीबद्ध कंपनी में प्रमोटरों की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2016 में 71.6% से घटकर अब 21.2% हो गई है। क्या इसका मतलब यह है कि प्रवर्तक स्वयं अपनी ही कंपनी का कोई उज्ज्वल भविष्य न देखकर डूबते जहाज से भाग रहे हैं?

12 वर्षों में 2 लाख रुपये से 42,000 करोड़ रुपये की कंपनी का उदय वास्तव में एक नाटकीय वृद्धि कही जाएगी। ऐसी पृष्ठभूमि के बावजूद, सीईओ रवींद्रन को उम्मीद है कि बायजूज़ के लिए बाजार की संभावनाओं को देखते हुए कंपनी बदलाव ला सकती है और अपनी वित्तीय समस्याओं से निपट सकती है। हम नहीं जानते कि यह यथार्थवादी आशावाद है या इच्छाधारी समझ। लेकिन यह एक वास्तविकता है कि बायजूज़ भारी कर्ज में डूब चुका है। यह देखना बाकी है कि क्या कंपनी इन ऋणों के बोझ तले पूरी तरह डूबती है, और यदि हां, तो कब और कैसे? बायजूज़ ऋण वित्तपोषण पर आधारित साहसिक पूंजीवाद का एक मॉडल बन गया। लेकिन बुलबुले अनिवार्य रूप से फूटते ही हैं। कुल मिलाकर बायजूज़ का पतन उतना ही तेज़ है जितना कि उसका उल्कापिंड सरीखा उदय!

(लेखक श्रम और आर्थिक मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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