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बिहार में थर्मल पावर के खिलाफ चौसा के किसानों का आंदोलन जारी निकाली ‘किसान ट्रैक्टर रैली’

ट्रैक्टर रैली के माध्यम से यह भी मांग की गयी कि- बिहार के किसानों को समुचित कृषि कार्य के लिए यहां  की सभी नदियों का पानी बचाया जाए, ज़ल्द से ज़ल्द सुव्यवस्थित सिंचाई व्यवस्था लागू हो।
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शाम का धुंधलका लगातार बढ़ता जा रहा था और बनारपुर गांव में माइक से ये ऐलान हो रहा था कि- थोड़ी देर बाद ठाकुरबाड़ी के प्रांगण  में सभी को आकर कल की ट्रैक्टर रैली की तैयारी के बारे में बातचीत करनी है। इसके पहले की सभी मीटिंगें गांव के पश्चिमी छोर पर स्थित पंचायत भवन के प्रांगण में होती थी। लेकिन पिछले दिनों पुलिस दमन की घटनाओं को लेकर सुरक्षा कारणों से आज की मीटिंग गांव  के बीचोबीच ठाकुरबाड़ी प्रांगण में बुलाई गयी थी।

बक्सर जिला के चौसा स्थित थर्मल पावर प्लांट निर्माण कंपनी के किसान विरोधी रवैये और  मनमानी के खिलाफ विगत तीन महीनों से भी अधिक समय से ‘प्रभावित किसान खेतिहर मोर्चा’ के नेतृत्व में क्षेत्र के किसान आंदोलन हैं। जिसमें किसी भी राजनीतिक पार्टी और उसके नेता के आने पर रोक है।

16 जनवरी को आंदोलनकारी  किसानों के बुलावे पर चर्चित किसान नेता राकेश सिंह टिकैत इनके धरना- आंदोलन स्थल पर पहुंचे थे। अपने संबोधन में उन्होंने सरकार व प्रशासन के किसान विरोधी रवैये की चर्चा करते हुए बनारपुर के किसानों के आंदोलन का ज़ोरदार समर्थन किया था। 26 जनवरी के दिन राष्ट्रव्यापी किसान ट्रैक्टर-रैली अभियान के तहत यहां भी ट्रैक्टर रैली निकालने का प्रस्ताव देते हुए ये अल्टीमेटम दिया कि- यदि 20 फ़रवरी तक यहां के किसानों की मांगें नहीं मानी गयीं तो वे खुद आकर यहां के  आंदोलन को और भी जुझारू बनायेंगे। उसी दिन से यहां के सभी किसान 26 जनवरी की ट्रैक्टर-रैली की तैयारी में जुट गए थे। 

ग्राम मीटिंग में प्रस्तावित ‘किसान प्रतिवाद ट्रैक्टर रैली’ की तैयारी को लेकर सभी ने अपने विचार प्रकट किये। मीटिंग का संचालन कर रहे ‘प्रभावित किसान खेतिहर मजदूर मोर्चा’ के नेताओं  ने रैली के लिए गाइड लाइन और रूट चार्ट पढ़कर सुनाया। रैली में शामिल किसानों से आत्म-अनुशासित होने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि- कंपनी के इशारे पर स्थानीय प्रशासन हमें “उपद्रवी” साबित करने पर तुला हुआ है। ताकि यहां के किसानों को बदनाम कर इनके आंदोलन को कुचल दिया जाए। इसलिए उनसे किसी सकारात्मक सहयोग की अपेक्षा न करके हमें अपने आत्म-अनुशासन और संयम से ये साबित कर देना है कि हम सभी किसान कितने शांतिप्रिय हैं।

26 जनवरी को सुबह से ही गांव के खेल के मैदान में किसानों का जुटान शुरू होने लगा। युवाओं के जत्थे रैली में शामिल होने आ रहे ट्रैक्टरों को व्यवस्थित ढंग से खड़ा करने में मुस्तैद दिखे । 10 बजे दिन मैदान के बीचोबीच लोगों ने एकत्र होकर झंडोत्तोलन कर राष्ट्र गान गाया।
वहां उपस्थित कुछ किसानों व युवाओं से पूछे जाने पर सबों ने एक स्वर से बताया कि- हम कोई विकास विरोधी नहीं हैं। लेकिन कंपनी अधिगृहित ज़मीनों के लिए किसानों को उचित मुआवजा देने में आनाकानी कर जबरन हमारी फसल लगी ज़मीनों पर बुलडोजर चलवा रही है। हमारी ज़मीनों को बंज़र घोषित कर आज के बाज़ार-मूल्य के हिसाब से मुआवजा नहीं देने पर अड़ी हुई है। प्रशासन को मैनेज कर हम पर दमनात्मक कार्रवाई कर आतंक का माहौल बनाया जा रहा है। आंदोलन की अगुवाई कर रहे सभी लोगों पर फर्जी मुक़दमे थोप दिए गए हैं।

नियत समय पर जोशपूर्ण नारों के साथ ट्रैक्टर रैली शुरू हो गयी। उधर मीडिया के जरिये प्रशासन ने लोगों में भ्रम फैलाना चाहा कि- किसानों ने इसकी विधिवत कोई अनुमति नहीं ली है और ना ही ट्रैक्टरों का कोई कागज़ात जमा किया है। थर्मल पॉवर के सभी गेट पर इस अंदाज़ में भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिए थे मानो यहां कोई ‘बाहरी’  हमला होनेवाला हो। रैली मार्ग के भी सभी चौक चौराहों पर भी सशस्त्र पुलिस बल की तैनाती थी।

ट्रैक्टर रैली को बक्सर स्थित लाल किला मैदान जाना था लेकिन एसएसपी के नेतृत्व में पुलिस ने “26 जनवरी की शांति व्यवस्था” का हवाला देते हुए रैली को शहर में घुसने से रोक दिया। इस कारण किसानों और पुलिस में काफी देर तक नोक-झोंक हुई और जबरन रोके जाने से नाराज़ किसानों ने पुलिस के विरोध में काफी नारे लगाए। बाद में रूट बदलकर रैली शांतिपूर्ण ढंग से वापस चली आई।

प्रशासन की भूमिका से क्षुब्ध किसानों ने पुलिस पर किसान विरोधी होने  का आरोप लगाते हुए कहा कि ज़ल्द ही हम जुझारू आंदोलन का अभियान शुरू करेंगे। किसान नेताओं ने फिर दुहराया कि हमारा यह आंदोलन सिर्फ किसानों का है। जिसमें किसी भी राजनीतिक दल का झंडा या नेता को शामिल होने की अनुमति नहीं है। लेकिन फिर भी कंपनी  और पुलिस-प्रशासन इसे राजनीतिक रंग देकर अपनी मनमानी कर रहा है।

ट्रैक्टर रैली के माध्यम से यह भी मांग की गयी कि- बिहार के किसानों को समुचित कृषि कार्य के लिए यहां  की सभी नदियों का पानी बचाया जाए, ज़ल्द से ज़ल्द सुव्यवस्थित सिंचाई व्यवस्था लागू हो, कॉर्पोरेट कंपनियों की भांति किसानों की भी क़र्ज़ माफ़ी हो, एमएसपी कानून बनाया जाए व मंडी-व्यवस्था फिर से बहाल की जाए, आंदोलनकारी किसानों पर थोपे गए सभी मुक़दमे हटाये जाएं तथा खाद पर 100% सब्सिडी दी जाए इत्यादि।

बनारपुर-चौसा के कई ग्रामीणों तथा किसानों से पूछे जाने पर कि पिछले दिनों बक्सर के स्थानीय सांसद और मोदी सरकार के मंत्री का विरोध क्यों किया गया , तो सबों ने नाराज़गी भरे अंदाज़ में यही कहा कि- जब पॉवर  प्लांट कंपनी की मनमानी से त्रस्त किसान चौसा से लेकर पटना तक जाकर धरना दिए तो माननीय सांसद और विधायक कहां थे, क्या इनके कानों में हमारी बात नहीं जा रही थी। उलटे चौसा थर्मल पॉवर प्लांट की लड़ाई को स्वार्थ सिद्धि के लिए इसका राजनीतिकरण करने में सभी होड़ मचाए  हुए हैं। कई किसानों ने यह भी आरोप लगाया कि- बक्सर के सांसद-मंत्री और चौसा थाना प्रभारी का प्लांट में ठेका चल रहा है। इसीलिए सांसद जी मौन हैं और कंपनी वफादारी में चौसा थाना प्रभारी व प्रशासन के लोग किसानों पर हमलावर बने हुए हैं।

चौसा पावर प्लांट निर्माण का ठेका लेनेवाली कंपनी एसजेवीएन तथा प्रशासन के खिलाफ किसानों की नाराज़गी के कारणों का एक सबूत यह भी दिखा कि प्लांट परिसर से दूर सड़क पर पिछले कई दिनों से ‘प्रभावित किसान खेतिहर मजदूर मोर्चा’ के बैनर तले दिए जा रहे धरना स्थल पर पिछले 10 जनवरी को पुलिस ने हमला बोल दिया। उस दिन पुलिस घेरेबंदी में किसानों की फसल लगी ज़मीन पर जबरन नापी की जा रही थी। जिससे किसान काफी आक्रोशित होकर विरोध कर रहे थे। 9 किसानों को पुलिस ने जबरन धरना स्थल से उठा लिया और थाना ले गयी। जिसके खिलाफ गुस्साए किसानों ने चौसा गोला को घंटों जाम कर दिया। फलतः देर शाम सबों को छोड़ना पड़ा। उसके बाद से उक्त धरना स्थल पर पुलिस ने किसी किसान को बैठने नहीं दिया। आज भी उस इलाके में पुलिस के जवान पहरा देते हुए दिख जायेंगे। इन दिनों आंदोलनकारी किसानों का धरना स्थल बनारपुर का पंचायत भवन परिसर बना हुआ है। जहां वे प्रतिदिन देर रात तक बैठते हैं।

सनद रहे कि 9 मार्च 2019 को देश के प्रधान मंत्री ने चौसा पावर प्लांट इकाई का वीडियो कांफ्रेंसिंग से ऑन लाईन उद्घाटन किया था। 10440 करोड़ की लागत से बननेवाले इस प्लांट में 1320 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य घोषित है। जिसके लिए बक्सर जिला के चौसा प्रखंड स्थित बनारपुर समेत इसके आस पास के 7 मौजा गांवों की 1065 एकड़ ज़मीन अधिगृहित की गयी है। ये सारा इलाका गंगा नदी से सटे कर्मनाशा नदी के किनारे बसा हुआ है। उक्त दोनों नदियों से पावर प्लांट को पानी सप्लाई होना है। प्लांट निर्माण कंपनी का दावा है कि सभी रैयत किसानों की अधिगृहित ज़मीन का समुचित मुआवज़ा भुगतान किया जा चुका है। जबकि किसानों का आरोप है कि सभी की कंपनी का ये दावा सरासर झूठ है। क्योंकि कई किसानों के मुआवज़ा भुगतान में काफी अनियमितता की गयी है। दूसरे, अभी जो पावर प्लांट के लिए रेलवे लाइन और पानी सप्लाई के लिए जबरन किसानों कि फसल लगी ज़मीनों पर प्रशासन के बल पर क़ब्ज़ा किया जा रहा है। किसानों की मांग है कि अभी जो ज़मीनें अधिगृहित की जा रहीं हैं, उनका मुआवज़ा आज के बाज़ार रेट के अनुसार हो, जिसे देने से कंपनी सीधा इन्कार कर रही है। इसलिए सभी किसान एकजुट होकर जब इसका विरोध कर रहें हैं तो कंपनी वाले पुलिस-प्रशासन के जरिये धौंस-धमकी व लालच दिखाकर फूट पैदा करने में लगे हुए हैं।

चौसा-बनारपुर किसानों के आंदोलन के समर्थन में सक्रिय रहनेवाले भाकपा माले व किसान महासभा के बक्सर जिला नेता जगनारायण शर्मा ने बताया कि यह आंदोलन अन्दर ही अन्दर दो धारा में बंट चुका है। जिसमें से एक छोटे किसान रैयतों का समूह (अधिकांश ऊंची जातियों से) जो भाजपा का समर्थक आधार है, पॉवर  प्लांट निर्माण का राजनीतिक श्रेय मोदी जी को देते हुए किसानों के मुआवज़ा भुगतान में हो रही गड़बड़ी के लिए सीधे तौर से बिहार की सरकार को दोषी बता रहा है। दूसरा और बड़ा किसान समूह (अधिकांश पिछड़ी जातियों से) भाजपा के बक्सर संसद व केन्द्रीय मंत्री की भूमिका को कंपनीपरस्त और आंदोलन किसानों का विरोधी मानता है। यही वजह है कि जब वे आंदोलनकारी किसानों से मिलने आये तो उन्हें हूट करके लौटा दिया गया। हालंकि किसानों पर हुए पुलिस दमन के विरोध में कई भाजपा के आला नेता धरना पर बैठकर बिहार की सरकार को कोसने का काम किया।

वहीं, भाकपा माले व इससे जुड़े अखिल भारतीय किसान महासभा तथा माले के डुमराव विधायक अजित कुशवाहा ने संयुक्त जांच टीम ले

जाकर पुलिस ज़ुल्म और पॉवर  प्लांट कंपनी की मनमानी के शिकार किसानों व उनके परिजनों से मुलाकत की। जिसकी जांच रिपोर्ट जारी करते हुए पुलिस के दमनात्मक रवैये और केंद्र सरकार की किसान विरोधी कृत्यों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया। जिसके माध्यम से  आंदोलनकारी किसानों पर थोपे गए सभी मुकदमों की अविलंब वापसी, दमन-कांड के दोषी पुलिस पर कड़ी कारवाई करने तथा वर्तमान के बाज़ार रेट पर किसानों को मुआवजा देने की मांग उठायी गयी।

फिलहाल चौसा-बनारपुर के किसान पीछे हटने को ज़रा भी तैयार नहीं दिख रहें हैं और थर्मल पॉवर प्लांट निर्माण कंपनी की मनमानी के खिलाफ उनका आंदोलन अभी भी जारी है। अपनी दृढ़ता का नमूना 26 जनवरी को भी दिखला दिया कि प्रशासन द्वारा अनुमति नहीं दिए जाने के बावजूद उन्होंने अपनी ‘किसान ट्रैक्टर-रैली’ निकाली।

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