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छत्तीसगढ़ की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता-सहायिकाओं को नहीं मिलती न्यूनतम मज़दूरी

आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने अपनी समस्याओं को लेकर 7 से 11 जुलाई तक अपने-अपने संभाग में एक-एक दिन और राजधानी रायपुर में पांचों दिन पुनः धरना देने का निर्णय लिया है।
Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ जुझारू आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका कल्याण संघ एवं आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका यूनियन की साझा मंच ने मिलकर छत्तीसगढ़ की समस्त आंगनवाड़ी बहनों की ज्वलंत समस्याओं को केंद्र में रखकर 7 से 11 जुलाई तक अपने-अपने संभाग में एक-एक दिन और राजधानी रायपुर में पांचों दिन पुनः धरना देने का निर्णय लिया है।

पुनः इसलिए क्योंकि हाल ही में 9 व 10 जून को प्रदेश की एक लाख से अधिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका और मिनी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने भूपेश बघेल सरकार की नाक के नीचे रायपुर में धरना दिया था।

ये महिलाएं अपने-अपने घरों में छोटे-छोटे बच्चों और पूरे परिवार को छोड़कर राजधानी की सड़कों पर खुले आसमान के नीचे भीषण गर्मी में भूखी-प्यासी पूरी रात बैठी रहीं। लेकिन भूपेश सरकार का दिल नहीं पसीजा।

जिला जशपुर आंगनवाड़ी खटंगा की कार्यकर्ता और यूनियन की जिलाध्यक्ष लीलावती चैहान बताती हैं कि हम सब यूं ही नहीं बैठे थे, बल्कि हमारे पास मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की लिखित चिट्ठी है। जिसमें उन्होंने राज्य सरकार का मानदेय बढ़ाने की बात कही थी।

यह तो दो दिन की बात है, इससे पहले वर्ष 2018 में 50 दिन तक प्रदेश की सारी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका हड़ताल पर बैठी थीं और रमन सिंह सरकार को मजबूरन पंडाल पर आकर मानदेय बढ़ाने की घोषणा करनी पड़ी थी। परंतु उनका आश्वासन केवल जुमला बन कर रह गया। हम लोगों का मानदेय नहीं बढ़ाया गया।

अगर सरकार हमारी सुनती तो बहनों को रातभर इस भीषण गर्मी में सड़क पर क्यों बिताना पड़ता। उस समय सबसे ज्यादा दिक्कत तो शौचालय की रही। जमीन तप रही थी, पैदल चल नहीं पा रहे थे, ऑटो में बैठकर सुलभ शौचालय में बार-बार पैसे देकर फारिग होने जा रहे थे। भूपेश सरकार को तब भी शर्म नहीं आई। लेकिन हमलोग जुझारू महिलाएं है, घबराते नहीं, चाहे रात में शराबी तंग करे, मच्छर काटे, भूख-प्यास सब सह लेंगे, परंतु अपनी मांगों को सरकार से मनवाकर रहेंगे।  

आंदोलनकारी महिलाएं (फाइल फोटो)

दरअसल छत्तीसगढ़ राज्य का मानदेय सबसे कम है। उन्हें केंद्र सरकार की आईसीडीएस योजना के तहत साढ़े 4 हजार रुपये मानदेय और राज्य सरकार की ओर से कार्यकर्ता को दो हजार एवं सहायिका को केवल एक हजार प्रतिमाह मानदेय दिया जाता हैं। जबकि मध्यप्रदेश में साढ़े 10 हजार, हरियाणा में 12 हजार 800, पंजाब में 12 हजार 500, तमिलनाडु में 12 हजार 500, आंध्र प्रदेष में 12 हजार 500, तेलंगाना में 13 हजार, केरल में 13 हजार 500, मानदेय आंगनवाड़ी बहनों को मिलता है। हालांकि यह मानदेय सरकारों ने अपने मन से नहीं बढ़ाया, इसके लिए बहनों को लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी।

लीलावती का कहना है कि एक देश, एक काम फिर भी सरकार की ओर से दिये जाने वाले मानदेय में एकरूपता क्यों नहीं! हमारे साथ यह भेदभाव क्यों! इसके अलावा उन राज्यों में अवकाश प्राप्त होने के बाद आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को एकमुश्त लाखों रुपये दिए जाते हैं। पंजाब में तीन लाख रुपये कार्यकर्ताओं को और दो लाख रुपये सहायिकाओं को, हरियाणा मेू डेढ़ लाख रुपये कार्यकर्ताओं को और एक लाख रुपये सहायिकाओं को,  कर्नाटक में दो लाख और एक लाख, केरल में भी दो लाख कार्यकर्ताओं को और एक लाख सहायिकाओं को रिटायरमेंट बेनिफिट दिया जाता है। केरल सरकार तो एक कदम आगे बढ़कर इन्हें पेंशन भी देने लगी है।

जशपुर की ही बालछापर आंगनवाड़ी केंद्र की मनोरंजनी टपपो कहती हैं कि हम भले ही छत्तीसगढ़ में हो, लेकिन आंगनवाड़ी का काम तो एक जैसा है। सुबह साढ़े 9 से शाम साढ़े 3 बजे तक आंगनवाड़ी में काम करते हैं उसके बाद घर-घर जाकर गर्भवती, धात्री और एनिमिक किशोरी और महिलाओं को पोषण बांटते हैं उनकी रिपोर्ट लेते है उसे रजिस्टर पर दर्ज करते हैं। यानी पूरे दिन काम में लगे रहते हैं। इसके अलावा सरकार ने एक और जिम्मेदारी पोषण वाटिका की दे दी है। इसमें न बीज का पैसा, न खाद का पैसा देना बस सरकारी आदेश है कि सब्जी उगाना है और वही सब्जी से आंगनवाड़ी में पकाकर बच्चों को खिलाना है। जिस आंगनवाड़ी केंद्र के पास जमीन नहीं है, उन्हें बालू लाकर बोरी में सब्जी उगाने का निर्देश है। क्योंकि सरकार के पास सब्जी खरीदने के लिए पैसा नहीं है। यहां तक ईंधन का पैसा भी छह-आठ महीने तक नहीं मिलता है। यात्रा भत्ता तो लगभग बंद ही कर दिया है। इस महंगाई में साढ़े 6 हजार रुपये में कैसे काम चलाया जाए। संगीता महंत भी हां में हां मिलाती हुई कहती है कि 7 से 11 के आंदोलन में अगर भूपेश सरकार ने हमारी मांगे नहीं मानी, तो हमलोग अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे और जब तक मांगें पूरी नहीं होगी, तब तक हड़ताल पर रहेंगे।

आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष गजेंद्र झा कहते हैं, कि जब सरकार ने न्यूनतम मजदूरी तय कर दी है। इस सूरत में कम से कम आंगनवाड़ी कार्यकर्ता,सहायिका को तो कलेक्टर रेट दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कलेक्टर रेट में अकुशल कामगार को प्रतिदिन 306 रुपये, अर्द्धकुशल को 350, कुशल को 400 और अतिकुशल को 450 रुपये तय हैं। मेरे हिसाब से ये महिलाएं अतिकुशल कामगार हैं। यह बच्चों के साथ-साथ, माताओं और किशोरियों की देखभाल करती हैं। स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा की बुनियाद ही इनके हाथों से हो रही है। फिर इन्हें इतना कम मानदेय क्यों दिया जाता है। उन्होंने बताया कि 9 व 10 जून की हड़ताल तो सांकेतिक थी। जुलाई के पांच दिनों के आंदोलन में यह तय हो जाएगा कि इन बहनों को अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाना है या नहीं। क्योंकि बहनों ने केवल न्यूनतम मजदूरी मांगी है अधिकतम नहीं। इसके साथ ही अवकाश प्राप्त होने पर बहनों को एक मुश्त कम से कम पांच लाख रुपये दिए जाना चाहिए। जिससे उनका बुढ़ापा आसानी से बीते।

बहनों की मांगां में मिनी आंगनवाड़ी को पूर्ण आंगनवाड़ी बनाने तथा क्रेच कार्यकर्ताओं को आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के पद पर समाहित करने का भी है। इसके अलावा प्रदेश स्तर पर आंगनवाड़ी  कार्यकर्ता एवं सहायिकाओं के रिक्त पदों को भरने , पोषण ट्रेकर ऐप तथा अन्य कोई भी कार्य जिसमें मोबाइल, का प्रयोग होता है उसके लिए इंटरनेट का चार्ज दिये जाने, अन्यथा मोबाइल से कोई काम ही न लेने, रेडी टू ईट का परिवहन व्यय दिए जाने के साथ ही बहनों ने राज्य सरकार का मानदेय को भी ऑनलाईन करने की मांग रखी हैं।

सबसे जरूरी मांग यह है कि आज भी कई आंगनबाड़ियों में बहनें लकड़ी से खाना पकाती हैं, उन्हें इस जानलेवा धुएं से मुक्त कर उनके लिए गैस सिलेंडर की व्यवस्था की जाए और ईंधन का भुगतान तुरंत किया जाना चाहिए।

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