छत्तीसगढ़: स्वास्थ्य कर्मियों की हड़ताल से बघेल सरकार और आम लोगों की बढ़ी मुश्किलें !
छत्तीसगढ़ के 50 हज़ार से अधिक स्वास्थ्यकर्मी एक बार फिर अपनी मांगों को लेकर बीते मंगलवार 4 जुलाई से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं। ये हड़ताल वेतन विसंगति समेत उन्हीं 12 सूत्रीय मांगों को लेकर की जा रही है, जिसके लिए बजट से पहले इन स्वास्थ्य कर्मियों ने विशाल प्रदर्शन किया था। हालांकि तब भी सरकार ने चुप्पी साध रखी थी और अब भी सरकार इनके ज्ञापनों पर मौन ही है। ऐसे में इन सभी कर्मचारियों को अब पूरक बजट का ही सहारा है।
बता दें कि छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य कर्मियों की इस हड़ताल में प्रदेशभर के मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर सभी नियमित, अनियमित, संविदा नेशनल हेल्थ मिशन, जीवन दीप समिति के कर्मचारी शामिल हो रहे हैं। इससे अस्पतालों की इमरजेंसी सेवा, लैब व वार्डों की अन्य जरूरी सेवाओं में समस्या भी शुरू हो गई है। हालांकि इसका सारा ठिकरा कर्मचारी सरकार पर ही फोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि इस हड़ताल की सूचना सरकार को कई हफ्ते पहले ही दे दी गई थी, जिसके बाद ज्ञापन और पत्र के माध्यम से कई बार मांगों को सरकार के प्रतिनिधियों के समक्ष रखा भी गया, लेकिन इन सब के बावजूद सरकार उनकी मांगों को अनसुना करती रही।
क्या है पूरा मामला?
छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य कर्मचारी संघ के मुताबिक इस हड़ताल को 60 हजार से अधिक स्वास्थ्य कर्मियों ने समर्थन दिया है। वहीं नया रायपुर धरना स्थल पर हुए प्रदर्शन में पहले दिन के प्रदर्शन में लगभग 5,000 से अधिक स्वास्थ्य कर्मचारियों का जमावड़ा हुआ। इस बीच दिन भर कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर नारेबाजी करते रहे और सरकार को उसके वादों की याद भी दिलाते रहे।
संगठन के प्रांतीय महामंत्री आलोक मिश्रा ने इस हड़ताल के संबंध में न्यूज़क्लिक को बताया कि सरकार की ओर से अभी तक कोई सकारात्मक पहल नहीं नज़र आ रही, जबकि संगठन लगभग 21 दिन पहले ही इस हड़ताल की सूचना सरकार को दे चुका है। अब स्वास्थ्य कर्मियों को मजबूरी में इस हड़ताल की ओर बढ़ना पड़ रहा है, क्योंकि सरकार बीते लंबे समय से इन स्वास्थ्य कर्मियों की अनदेखी कर रही है। कई धरना प्रदर्शन और हड़ताल के बाद भी अभी तक इनके हाथ आश्वासन के अलावा और कुछ नहीं लगा, जिसके चलते अब इनका भी धैर्य समाप्त हो गया है। अब सबको मानसून सत्र से ही उम्मीद है।
आलोक मिश्रा का कहना है कि कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में स्वास्थ्य कर्मियों और अन्य विभागों में कार्यरत कर्मचारियों से कई वादे किए थे, लेकिन अब सरकार का कार्यकाल खत्म होने को है लेकिन अभी तक न वेतन विसंगतियां दूर हुईं और न ही संविदा कर्मचारियों को नियमित करने का वादा ही सरकार पूरा कर पाई। बीते चुनाव में हमारी समस्याओं को दूर करने के लिए बड़े-बड़े वादे किए गए, लेकिन जब बघेल सरकार सत्ता में आई तो वो सब वित्तीय संकट के नाम पर ठंडे बस्ते में चले गए। कई प्रदर्शन, ज्ञापन के जवाब में अब तक कर्मचारियों और अधिकारियों को केवल आश्वासन ही मिला है।
क्या हैं इन कर्मचारियों की प्रमुख मांगें?
* कर्मचारियों को केंद्रीय एवं राजस्थान, झारखंड के कर्मचारियों के समान गृह भाड़ा भत्ता (एचआरए) सातवें वेतनमान के आधार पर प्रदान किया जाए।
* जन घोषणा पत्र क्रियान्वयन हेतु राज्य के समस्त कर्मचारियों को क्रमश: 8, 16, 24 एवं 30 वर्ष के सेवावधि उपरांत चार स्तरीय क्रमोन्नत/समयमान वेतनमान प्रदान किया जाए।
* स्वास्थ्य कर्मचारियों की वेतन विसंगति के निराकरण हेतु सचिव स्वास्थ्य विभाग द्वारा वित्त विभाग को प्रेषित प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की जाए एवं स्वास्थ्य कर्मचारियों को पुलिस एवं मंत्रालय वित्त विभाग के कर्मचारियों के समान प्रतिवर्ष एक माह का अतिरिक्त वेतन प्रदान किया जाए।
* समस्त विभागों में कार्यरत दैनिक वेतनभोगी, कार्यभारित एवं संविदा कर्मचारियों को जन घोषणा पत्र में किए वादे के अनुरूप नियमित किया जाए।
* पांचवें एवं छठे वेतनमान के आधार पर देय चिकित्सा भत्ता, वाहन भत्ता, अनुसूचित क्षेत्र भत्ता सहित समस्त भत्तों को सातवें वेतनमान के आधार पर पुनरीक्षित किया जाए।
राज्य के स्वास्थ्य कर्मचारियों की मानें तो कोरोना काल के पहले से ये कर्मचारी नियमितीकरण की मांग के साथ ही वेतन विसंगति, इलाज की सुविधा, भत्ता समेत कई अन्य समस्याओं को लेकर सरकार से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन इसका निराकरण अभी तक नहीं हो सका है। कोरोना काल में इन कर्मचारियों की हड़ताल राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में कई दिन रही थी, बावजूद इसके सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। ऐसे में अब इनके पास विरोध के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा।
महासंघ के प्रदेश संयोजक अनिल शुक्ला ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में बताया कि जब से राज्य बना है यहां स्वास्थ्यकर्मी अपनी हक़ों की लड़ाई लड़ रहे हैं, फिर वो कांग्रेस की सरकार रही हो या बीजेपी की। बीते चुनाव में हमारी समस्याओं को दूर करने के लिए बड़े-बड़े वादे किए गए, लेकिन जब बघेल सरकार सत्ता में आई तो वो सब वित्तीय संकट के नाम पर ठंडे बस्ते में चले गए। कई प्रदर्शन, ज्ञापन के जवाब में अब तक कर्मचारियों और अधिकारियों को केवल आश्वासन ही मिला है।
हड़ताल में शामिल कई कर्मचारियों का कहना है कि सरकार हर बार वित्तीय समस्याओं का हवाला देकर उनकी मांगों को टालती रही है, लेकिन अब पानी सर से ऊपर उठ चुका है और इसकी वजह है कि सरकार का आश्वासन देते-देते पूरा कार्यकाल बीतने को है। ऐसे में अगर इस बजट में कोई समाधान नहीं हुआ, तो ये मामला अधर में लटका ही रह जाएगा और हज़ारों कर्मचारी तमाम समस्याओं से ग्रस्त ही रह जाएंगे। इसलिए आज ये हड़ताल जरूरी है, ताकि सरकार को इनकी मांगें और अपना घोषणा पत्र याद रहें।
गौरतलब है कि चुनावी वादे और घोषणा पत्र के आश्वासन पर राजनीतिक पार्टियां लोगों का वोट तो ले लेती हैं लेकिन सत्ता में आने के बाद उनके पास उन वादों को पूरा करने के लिए न कोई रोडमैप होता है और न ही बजट। ऐसे में आम जनता और कर्मचारियों के हाथ धोखे के अलावा कुछ खास नहीं लगता। मांगें लेकर जब लोग सड़कों पर उतरते हैं, जो नेता आश्वासन का नया पिटारा खोलते हैं और देखते ही देखते उनका कार्यकाल खत्म हो जाता है और जनता हाथ मलती रह जाती है।
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