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चिंता: गंगा में खनन से भू-जल स्तर लगातार जा रहा नीचे!

“गंगा में खनन से उसकी घाटी गहरी होती जा रही है। जिससे ज़मीन में पानी का स्तर गिरता जा रहा है। दस साल पहले 10-12 फुट पर पानी मिल जाया करता था लेकिन अब 25-30 फुट पर मिलता है।”
Ganga river

उत्तराखंड में गंगा में खनन पर हाई कोर्ट ने रोक लगा रखी है लेकिन चोरी-छिपे खनन लगातार जारी है। ये आरोप है आश्रम मातृ सदन का, जो लंबे वक़्त से पर्यावरण और गंगा की अविरलता तथा निर्मलता के लिए आवाज़ उठाता रहा है। आश्रम मातृ सदन के मुताबिक़ इस खनन की वजह है गंगा किनारे लगे स्टोन क्रशर। जब तक ये क्रशर हटाये नहीं जाते चोरी-छिपे ये खनन जारी रहेगा। हरिद्वार ज़िले में अभी भी 113 स्टोन क्रशर हैं। आश्रम का आरोप है कि गंगा में यह खनन सिर्फ हरिद्वार ज़िले या उत्तराखंड में ही नहीं हो रहा है बल्कि नरौरा, उन्नाव, प्रयागराज, वाराणसी, बलिया, पटना, मुंगेर तक हर जगह हो रहा है।

आश्रम मातृ सदन ने गंगा में बालू खनन के ख़िलाफ़ उत्तराखंड हाई कोर्ट में याचिका भी दायर की हुई है। उनका कहना है कि पाबंदी के बावजूद बालू खनन जारी है। आश्रम का दावा है कि यह खनन हरिद्वार में रायवाला से भोगपुर के बीच किया जा रहा है, जिससे गंगा नदी के अस्तित्व को ही खतरा पैदा हो गया है।

मातृ सदन का कहना है कि गंगा को बचाने के लिए केंद्र सरकार ने नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) बोर्ड गठित किया है। एनएमसीजी की ओर से राज्य सरकार को बार-बार आदेश दिये गये कि यहां खनन कार्य नहीं किया जाए। बावजूद इसके खनन कार्य जारी है। मातृ सदन की बात पर कोर्ट ने भी अवैध खनन पर रोक लगाने के आदेश दिये। लेकिन आरोप है कि बावजूद इसके खनन नहीं रुक रहा। अभी पिछले अक्टूबर में ही बालू खनन करते कई जेसीबी और वाहन जब्त किये गए।

28 नवंबर को मातृ सदन ने अवैध खनन की शिकायत ज़िलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक समेत 12 उच्च अधिकारियों, संबंधित विभागों को की, जिसका संज्ञान लेते हुए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और लखनऊ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम को जांच करने का निर्देश दिया है। मातृ सदन का आरोप है कि प्रशासन स्टोन क्रशर पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। शिकायतों पर वह छापेमारी और कार्रवाई भी तब करता है जब खनन कार्य में लगे जेसीबी और वाहनों को सुरक्षित क्षेत्र से बाहर निकाल दिया जाता है।

अगर आप हरिद्वार जाएं तो हरि की पैड़ी से मुश्किल से चार किलो मीटर दूर जगजीतपुर में ही खनन देखने को मिल जाएगा। यहां रात तीन बजे ही स्थानीय लोग अपनी बुग्गी लेकर नदी में उतर जाते हैं और सुबह होने तक दो-तीन बुग्गी बालू निकाल लेते हैं। ये बालू स्थानीय बाज़ार में हज़ार से पंद्रह सौ रुपये प्रति बुग्गी के हिसाब से बिकता है। रात में इसलिए निकालते हैं कि कोई देखे नहीं। देखने पर लोग मना करते हैं। मना करने पर मानना इनकी मजबूरी हो जाती है। क्योंकि ये जानते हैं कि न मानने पर लोग पुलिस बुला लेंगे और फिर इन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है। स्थानीय लोग तो इन्हें नहीं मना करते लेकिन पर्यावरण और गंगा प्रेमी इन्हें जरूर भगा देते हैं। इनमें से कुछ तो इतने ढीठ होते हैं कि वहां से हटकर कहीं दूसरी जगह जाकर बालू निकालने लगते हैं।

जगजीतपुर में एक पुल बना हुआ है। पुल से आगे गंगा तीन हिस्सों में बंट जाती है। एक हिस्से के सामने मातृ सदन है। उस हिस्से से कोई बालू नहीं निकालता लेकिन बाकी दोनों हिस्सों मे मौका मिलते ही बालू निकालना शुरू कर देते हैं। मातृ सदन से ये जगह नहीं दिखती है। एक स्थानीय युवक ने तो पुल को ही अपना आवास बना लिया है। अवैध खनन करने वाले कहते हैं कि यह खनन नहीं, यह तो जीने का संघर्ष है। मेहनत करते हैं हज़ार-दो हज़ार रुपया कमा लेते हैं। इसी से घर चलता है।

मातृ सदन के प्रमुख स्वामी शिवानंद भी इन स्थानीय लोगों को इसी नरिये से देखते हैं। वे कहते हैं, "इनका कहना सही है। ये तो बुग्गी, दो बुग्गी बालू निकालते हैं। असली खनन तो इस स्थान से चार-पांच किलो मीटर आगे वहां होता है जहां स्टोन क्रशर लगे हैं। वहां बुग्गी से नहीं बल्कि सीधे ट्रकों से बालू निकाला जाता है। बालू निकालने के क्रम में ये इतनी खुदाई कर देते हैं कि गंगा का पाट भी चौड़ा होने लगता है। किनारे से बालू निकालने के कारण किनारे की ज़मीन बाद में गिरकर गंगा में समाहित हो जाती है। गंगा के बीच में बने टापू भी ये खनन करने वाले खोद डालते हैं। इसका बहुत गंभीर परिणाम होता है। यह गंगा की पूरी पारिस्थिकी को ही प्रभावित करता है।"

शिवानंद कहते हैं कि "ये पहाड़ और गंगा में पड़े पत्थर ही हैं जो गंगा के आवेग को कम करते हैं। गंगा की धारा जब इन पत्थरों से टकराती है तो उसका वेग कम हो जाता है। खनन माफिया द्वारा पत्थर निकाले जाने के बाद गंगा का वेग रोकने वाला कुछ और नहीं रह जाता। मिट्टी गंगा का वेग नहीं रोक पाती। बल्कि गंगा की धारा मिट्टी को बहा ले जाती है। इन पत्थरों के साथ मिट्टी जब रहती है तभी गंगा का वेग रुक पाता है। इस मिट्टी पर ही तरह-तरह के पेड़ और वनस्पतियां उगी हुई हैं। जब पत्थर हटते हैं तो मिट्टी भी बह जाती है और पेड़ और वनस्पतियां भी नष्ट हो जाती हैं। इस तरह पत्थर निकालने से टापू नहीं बचते, उन पर उगे पेड़ और वनस्पतियां नष्ट हो जाती हैं और साथ ही गंगा में रहने वाले जीव-जंतुओं का जीवन भी खतरे में पड़ जाता है। बालू निकालने से दूसरा बड़ा नुकसान यह होता है कि गंगा की घाटी गहरी होती जाती है। इससे भू जल का स्तर गिरता जाता है। यह बालू निकालने का ही असर है जहां पानी 10-12 फीट नीचे मिल जाता था अब 30-40 फुट नीचे जाकर मिलता है।"

जिमापोता गांव के रहने वाले विनोद कश्यप भी शिवानंद की बात का समर्थन करते हैं। इनका गांव हरि की पैड़ी से से 10-11 किलोमीटर दूर है। इनका कहना है कि "स्टोन क्रशर वाले, किसानों का खेत खरीद लेते हैं। वे वहां 20-30 फुट गहरी खुदाई करते हैं। उसका असर यह होता है कि उसमें पशु और जंगली जानवर गिरकर मर जाते हैं। फिर कहने को तो वे अपने खेत में खुदाई करते हैं लेकिन उससे उनके बगल वाले खेत भी प्रभावित होते हैं। उनके खेत में अगर गड्ढा बन जाता है तो अगल-बगल वाले खेत भी कटकर उनके गड्ढे में गिरने लगते हैं।"

कश्यप बताते हैं कि "गंगा में खनन से उसकी घाटी गहरी होती जा रही है। जिससे ज़मीन में पानी का स्तर गिरता जा रहा है। दस साल पहले 10-12 फुट पर पानी मिल जाया करता था लेकिन अब 25-30 फुट पर मिलता है। फरवरी-मार्च में तो यह पानी और भी नीचे चला जाता है। जाड़े में बर्फ पिघलना बंद हो जाती है। तब गंगा में बहुत ही कम पानी रहता है। तब पानी 40 फुट की खुदाई पर जाकर मिल पाता है। इस समस्या के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए क्षेत्र के लोगों ने भारतीय किसान मज़दूर उत्थान यूनियन बनाई है। इस संगठन से हज़ारों लोग जुड़े हुए हैं।" विनोद कश्यप इस संगठन के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष हैं।

गंगा, उत्तराखंड के हरिद्वार ज़िले से निकलकर उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है। लेकिन वहां भी खनन से उसे मुक्ति नहीं मिलती। उत्तर प्रदेश में यह बिजनौर ज़िले में प्रवेश करती है। उससे लगे बुलंदशहर ज़िले के नरौरा, अहार, रामघाट और कर्णवास में तो इसका जमकर दोहन होता है। खनन माफियाओं को यहां न नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ( एनजीटी) की परवाह है न नमामि गंगा योजना की। उन्हें प्रशासन का भी बिल्कुल भी डर नहीं है। शाम होते ही इन घाटों पर वे खुदाई के काम में जुट जाते हैं। खुदाई पूरी रात चलती है। लेकिन सुबह होते ही खुदाई रोक दी जाती है। यहां घाटों तक जलधारा लाने, मलबा हटाने और गंगा की सफाई के नाम पर अवैध खनन किया जा रहा है। खनन के कारण गंगा की तलहटी में जगह-जगह 20 से 25 फुट तक के गड्ढे हो गए हैं। इन गड्ढों के कारण कई जगह गंगा की धारा भी बदल गई है। जबकि कई दूसरी जगहों पर जलधारा बदलने का खतरा भी बढ़ गया है। इससे गंगा के किनारे बसे गांवों पर भी संकट बढ़ गया है। सूरज ढलते ही ट्रैक्टर, डंपर और जेसीबी मशीनें गंगा किनारे जा धमकती हैं और पौ फटने तक खुदाई-ढुलाई होती रहती है। एक ट्रक बालू 22 से 25 हज़ार रुपये में बेची जाती है। ज़िले में बालू खनन का करीब 200 करोड़ रुपये का कारोबार है जो कि पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत से चलाया जाता है।

उन्नाव ज़िले में परियर घाट के पास भी गंगा में अवैध खुदाई जारी है। यहां गंगा में ड्रेजिंग के जरिए अवैध खुदाई की जा रही है। पिछले जून महीने में ही क्षेत्र के एसडीएम और खनन अधिकारी ने छापा मारकर छह ड्रेजिंग मशीनों को जब्त किया था। अवैध खुदाई के कारण गंगा में जगह-जगह 25-30 फुट गहरे गड्ढे हो गये हैं। परियर में लोग आस्था की डुबकी लगाने आते हैं। ऐसे में कई लोगों की इन गड्ढों में डूबकर मौत भी हो चुकी है।

महिला पहलवानों के मामलों में आरोपों से घिरे बीजेपी के सांसद बृजभूषण पर भी बालू के अवैध खनन में शामिल होने का आरोप लगा है। इन पर आरोप है कि इन्होंने गोंडा ज़िले में गंगा सहित आसपास की दूसरी नदियों से भी अवैध ढंग से बालू निकलवाया है। इस मामले में अलग-अलग विभागों से भी नोटिस जारी हुए हैं। आरोपों की जांच केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, स्वच्छ गंगा मिशन आदि कर रहे हैं। बालू खनन से जुड़े होने के शक में ज़िले में 700 ट्रकों पर रोक भी लगा दी गई थी।

प्रयागराज में तो खनन माफिया ने पिछले साल गंगा की धारा को ही रोक दिया था। संगम के पास गंगा का पाट करीब ढाई किलो मीटर चौड़ा है। लेकिन गर्मी में सिमटकर ये कुछ सौ मीटर ही रह जाता है। प्रयागराज शहर से करीब 20 किलो मीटर दूर झूंसी इलाके में एक गांव है छिवैया। इस गांव के पास गंगा की कई छोटी-छोटी धाराएं बहती हैं जिनमें गंगा की एक धारा बिलकुल गांव से सटकर बहती है और इसके बाहरी इलाके में सुमेरपुर घाट है। इस धारा के चलते बालू खनन में दिक्कत आ रही थी। लेकिन खनन माफियाओं ने इसका भी तोड़ निकाल लिया। यहां इन्होंने गंगा की धारा को ही रोक दिया। उन्होंने गंगा में ही सड़क बना दी। उस सड़क के जरिए उनके ट्रक, डंपर और ट्रैक्टर गंगा में उतरने लगे और बालू खुदाई करने लगे। सड़क किनारे इन्होंने वाच टॉवर भी बना लिये थे ताकि देखा जा सके कि कोई इसमें व्यवधान न डाल पाए। पिछले साल ही वाराणसी में भी गंगा से बालू निकालने की खबर आई थी। इसका संज्ञान लेते हुए एनजीटी ने पूरे मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाई थी। गंगा में वाटर चैनल बनाने के मकसद से अस्सी घाट से लेकर राजघाट के बीच सिंचाई विभाग की ओर से नहर का निर्माण कराया गया। इस पर करीब 12 करोड़ रुपये खर्च किये गये। तर्क दिया गया कि गंगा में पानी के दबाव को कम करने और घाटों को बचाने के लिए यह नहर बनाई गई है। लेकिन आरोप लगने लगा कि इसमें गंगा में अवैध बालू की खुदाई हो रही है। रोज़ हज़ारों ट्रैक्टर बालू निकालने की शिकायतें हुईं। अवैध खनन के लिए पोकलेन जैसी मशीन के उपयोग का आरोप भी लगा। एनजीटी ने इसी की जांच के आदेश दिये थे।

उत्तर प्रदेश का आखिरी ज़िला है बलिया। यहां भी गंगा में अवैध खनन होता है। ज़िले के नरही थाना क्षेत्र के कोट अंजोरपुर से लेकर कोटवां नरायनपुर तक रोज़ बालू निकाला जाता है। पिछले साल पलिया खास गांव के पास बालू से लदे दो ट्रैक्टर की ट्रालियां गंगा की छाड़न में डूब गईं। बड़ी मशक्कत के बाद इन्हें निकाला जा सका था। यहां बालू के साथ ही अवैध ढंग से गंगा की रेती से मिट्टी भी निकाली जा रही है। मिट्टी निकाले जाने के कारण सोहांव गांव में गंगा की रेती में बड़े-बड़े गड्ढे बन गए हैं। ये मिट्टी भरौली में बने नए पुल से बिहार भेजी जाती है। बताते हैं कि इस खनन में पांच सौ से अधिक ट्रैक्टर लगे हुए हैं।

यूपी के बाद गंगा बिहार में प्रवेश कर जाती है। गंगा के एक तरफ बलिया है तो दूसरी तरफ बिहार का बक्सर और आरा ज़िला। इसके बाद पटना आता है। इन जगहों पर भी जहां-जहां मौका मिलता है बालू की खुदाई होती रहती है। अभी पिछले साल ही पटना में जेपी सेतु के पास बालू निकालने गई एक नौका दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। नाव पर कुल 13 लोग सवार थे। जिसमें से आठ तो बच गए लेकिन पांच लोगों का कई दिनों तक पता नहीं चल पाया। राहत टीम ने भी बड़ी कोशिश की लेकिन उनके शव तक उसे नहीं मिल पाये। इसी साल भागलपुर के गोपालपुर थाना क्षेत्र के करारी तिनटंगा गंगा जहाज घाट से अवैध रूप से बालू खनन करते हुए तीन लोग पकड़े गए। इनके कब्जे से भारी मात्रा में बालू (8सीएफटी) बरामद की गई। इसी तरह मुंगेर ज़िले में भी गंगा के किसी भी घाट से बालू निकालने पर रोक है। लेकिन यहां तो सरकारी कार्य में प्रयोग हेतु ही गंगा से बालू निकाली गई। बाकी कार्यों के लिए क्या कहना। दो साल पहले डीएम कार्यालय से सटे ज़िला सूचना एवं जल संपर्क कार्यालय का मरम्मत कार्य कराया जा रहा था। कार्यालय परिसर में पेभर्स ब्लॉक (ज़मीन पर ईंट सोलिंग) बिछाया जाना था। इस कार्य के लिए भी प्रतिबंधित गंगा बालू का प्रयोग किया गया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार निजी हैं।)

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