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दिल्ली दंगे : अदलात ने एक बार फिर पुलिस जांच पर उठाए सवाल, अलग मामलों को एक ही प्राथमिकी में मिला देने को लेकर की खिंचाई

अदालत ने कहा कि पिछले साल फरवरी में दर्ज की गई इस प्राथमिकी की जांच के बारे में कुछ भी रिकार्ड में नहीं है। मामले में आरोप लगाया गया था कि शिव विहार इलाके में दंगे के दौरान आगजनी की गई थी और मदीना मस्जिद को अपवित्र किया गया था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने पुलिस उपायुक्त (डीसीपी), उत्तर-पूर्वी को मामले में 25 मार्च तक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।
दिल्ली दंगे

नयी दिल्ली: उत्तर-पूर्वी दिल्ली में पिछले साल हुए दंगों के दौरान एक व्यक्ति का मकान कथित तौर पर जला दिये जाने के बारे में उसकी शिकायत को एक अन्य मामले से बेमतलब का जोड़ दिये जाने और इसी विषय में बाद में उसे गिरफ्तार कर लेने को लेकर यहां की एक अदालत ने बुधवार को पुलिस की खिंचाई की।

पुलिस ने उसे शिकायतकर्ता और आरोपी, दोनों ही बना दिया था।

अदालत ने यह भी कहा कि पिछले साल फरवरी में दर्ज की गई इस प्राथमिकी की जांच के बारे में कुछ भी रिकार्ड में नहीं है। मामले में आरोप लगाया गया था कि शिव विहार इलाके में दंगे के दौरान आगजनी की गई थी और मदीना मस्जिद को अपवित्र किया गया था।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने पुलिस उपायुक्त (डीसीपी), उत्तर-पूर्वी को मामले में 25 मार्च तक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।

अदालत ने एक फरवरी के एक मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश के खिलाफ सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

दरअसल, हाजी हाशिम अली नाम के व्यक्ति ने शिकायत की थी कि दंगाइयों ने उसके मकान को आग के हवाले कर दिया। उसकी इस शिकायत को नरेश चंद नाम के व्यक्ति की शिकायत से पुलिस ने जोड़ दिया था।

पुलिस ने एक साझा प्राथमिकी दर्ज की और बाद में मामले में अली को गिरफ्तार कर लिया था। अली इस विषय में जमानत पर जेल से बाहर है।

यह मामला करावल नगर थाने में दर्ज किया गया था।

अदालत ने थाना प्रभारी को मस्जिद से जुड़े विषय की जांच की फाइल और मामले की डायरी के साथ उसके समक्ष उपस्थित रहने को कहा है।
यह कोई पहला मौका नहीं जब दिल्ली पुलिस को आदलत में फटकार खानी पड़ी हो।  उमर खलिद ,देवांगन ,नताश सहित कई ने मामलों में अदलात ने पुलिस जाँच के तरीके पर सवाल किए।  पुलिस जाँच में लापरवाही के वजह से ही दंगे के एक साल बीत जाने के बाद भी पुलिस किसी भी आरोपी पर आरोप सिद्ध करने में असफल रही है बल्कि पुलिस ने कथिततौर पर जिन्हे आरोपी बनाया उन्हें भी अब लगातर ज़मानत मिल रही है।  इसलिए दिल्ली पुलिस को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे है।  

गत वर्ष फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कुछ इलाकों में हुई सांप्रदायिक हिंसा में कम से कम 53 लोग मारे गए थे और सैकड़ो लोगो गंभीर रूप से घायल हुए थे। जबकि करोड़ो रूपए की संपत्ति को नुकसान हुआ था। इस दौरना पुलिस के रैवेय को लेकर भी गंभीर सवाल उठे कई लोगो ने तो यह भी आरोप लगाए की इस दंगे में पुलिस भी एक पक्षकार बनकर काम कर रही थी।   

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)

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