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वित्त अधिनियम के तहत ईपीएफओ फंड का ट्रांसफर मुश्किल; ठेका श्रमिकों के लिए बिहार मॉडल अपनाया जाए 

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने ईपीएफओ के अधीन रखे गए 100 करोड़ के 'बेदावा' फंड को वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष में हस्तांतरित करने पर अपनी आपत्ति जताई है।
EPFO

कोलकाता: कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) से संबंधित दो हालिया घटनाओं ने एक हलचल मचा दी है और केंद्रीय ट्रेड यूनियनें इन दोनों घटनाओं में अलग-अलग क्षमताओं के साथ शामिल हैं। पहली घटना, ईपीएफओ के केंद्रीय न्यासी बोर्ड (सीबीटी) की 12 मार्च को बैठक के लिए तय किए गए एक एजेंडा से संबंधित है। यह एजेंडा सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत आने वाले वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष में संगठन की हिरासत में बेदावा कोष से 100 करोड़ रुपये हस्तांतरित करने का था। दूसरा घटनाक्रम केंद्रीय श्रमिक संगठनों की केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री भूपेंद्र यादव के समक्ष सभी संविदाकर्मियों को ईपीएफओ के दायरे में लाने की मांग है। इस मांग के समर्थन में, श्रमिक संगठनों ने बिहार सरकार द्वारा पहले ही शुरू की जा चुकी एक पहल का हवाला दिया और श्रम मंत्री से आग्रह किया कि वे बिहार मॉडल का अवलोकन-अध्ययन करें, जिसे सभी राज्य सरकारों द्वारा अपनाया है। 

100 करोड़ रुपये के हस्तांतरण पर विचार के लिए वह एजेंडा आइटम अंततः आधिकारिक प्रस्ताव पर चर्चा के रूप में नहीं लिया गया था क्योंकि 2021-22 के लिए ईपीएफओ की ब्याज दर को 8.5 फीसदी से घटाकर 8.1 फीसदी करने को लेकर चर्चा में ही अधिक समय बीत गया। ट्रेड यूनियनों का प्रतिनिधित्व करने वाले न्यासियों ने ब्याज दर में इस कटौती का जमकर विरोध किया। लेकिन ट्रेड यूनियनों ने कई चिंताओं का हवाला देते हुए मंत्री को 100 करोड़ रुपये के प्रस्तावित हस्तांतरण के बारे में अपनी आपत्तियों से अवगत करा दिया है। 

भारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष और ट्रस्टी, हिरणमय पंड्या ने न्यूज़क्लिक को बताया कि ट्रेड यूनियन इस राशि को ‘बेदावा’ करार देने के खिलाफ हैं; वे इसे 'अनियोजित' कहना पसंद करेंगे। इस प्रकार, वे 100 करोड़ रुपये के हस्तांतरण के खिलाफ नहीं थे, लेकिन किसका पैसा स्थानांतरित किया जाएगा और तब क्या होगा अगर कुछ खाताधारकों या उनके कानूनी उत्तराधिकारियों ने समर्थन दस्तावेजों के साथ अपने दावे दर्ज कराते हैं? इसके अलावा, क्या कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम 1952 हस्तांतरण की अनुमति देता है? 

हालांकि हस्तांतरण का प्रावधान वित्त अधिनियम 2015 के तहत किया गया था, पर यह पहली बार है कि सीबीटी बैठक के एजेंडे पर एक हस्तांतरण प्रस्ताव लाया गया है। पंड्या ने संकेत दिया कि वे अपने कानूनी सलाहकारों से इस मामले की जांच करवा सकते हैं। 

वित्त अधिनियम 2015 में हस्तांतरण प्रावधान की वैधता के बारे में पूछे जाने पर ईपीएफओ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने न्यूजक्लिक को बताया कि वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष की परिकल्पना पूल के रूप में की गई थी और ईपीएफओ द्वारा रखे गए धन के हस्तांतरण के लिए 1952 के ईपीएफओ अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं होने पर भी संसद इस तरह के हस्तांतरण के आवश्यक होने पर प्रावधान में संशोधन कर सकती है, इसलिए, अधिकारी मानते हैं कि यह कोई बड़ी बाधा नहीं हो सकती। 

ट्रेड यूनियनों की आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए, उन व्यक्तियों की पहचान करने के लिए एक कड़ा प्रयास किया जाना चाहिए जिनके धन-कोष में इस हस्तांतरित राशि को शामिल किया जाएगा; इसमें यह भी शामिल होगा कि हस्तांतरण के बाद दर्ज किए गए दावों का कैसे निबटारा किया जाएगा। इस संबंध में, श्रम मंत्रालय वित्त अधिनियम 2015 के तहत दायित्व से मुक्त होने के लिए कानूनी तरीके खोजेगा। एक बार इस मुद्दे को सुलझाने के बाद, विवादास्पद धन के एक हिस्से का मौजूदा ईपीएफओ सदस्यों को राहत प्रदान करने में उपयोग किया जा सकता है। 

केंद्रीय श्रम मंत्री के समक्ष गए प्रतिनिधिमंडल में शामिल यूनाइटेड ट्रेड्स यूनियन कांग्रेस (यूटीयूसी-रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी की एक शाखा) ने अन्य ट्रेड यूनियनों के समर्थन के साथ मांग की कि खराब भुगतान के शिकार ठेके श्रमिकों के लिए बेहद जरूरी सामाजिक सुरक्षा उपाय के रूप में उन्हें ईपीएफओ के दायरे में एक लाया जाए। इसके पहले यूटीयूसी ने इस मामले को केंद्रीय मंत्री के समक्ष उठाया था, जिसके बाद ट्रेड यूनियनों का यह प्रतिनिधित्व उनसे मिलकर अपनी बात रखी। केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने देखा कि आज, सरकार एक मॉडल नियोक्ता होने की बजाए नियमित रूप से बड़ी संख्या में ठेके पर और बाहरी स्रोतों से श्रमिकों को शामिल कर रही है और उनके लिए सामाजिक सुरक्षा कवर को सरकार की योजना में कोई जगह नहीं मिली है। बीएमएस ने भी इसी तरह की मांग की है। 

दिलचस्प बात यह है कि केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव को भेजे गए प्रतिवेदन में यूटीयूसी के महासचिव अशोक घोष ने बिहार का उदाहरण दिया है, जहां राज्य सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में होमगार्ड, जेल, आशा और आंगनवाड़ी इकाइयों, शिक्षा (पैरा शिक्षक सहित) और स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में कार्यरत संविदाकर्मियों को पीएफ कवर प्रदान किया है। इससे उन श्रमिकों की संख्या तीन लाख से बढ़कर सात लाख से अधिक हो गई है, जिन्हें इस तरह की सामाजिक सुरक्षा हासिल हुई है। प्रतिवेदन में कहा गया है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे संभव कर दिखाया है। लिहाजा, उनके इस मॉडल को अन्य राज्य सरकारें दोहरा सकती हैं। 

पिछले कई वर्षों की जमीनी हकीकत बताते हुए घोष ने न्यूजक्लिक को बताया कि राज्य सरकारें और उनकी एजेंसियां ठेके पर काम करने वाले कामगारों को नौकरियों के लिए आकर्षित कर रही हैं, जिसके लिए पहले नियमित कामगारों की भर्ती की जाती थी और इस तरह उन्हें सबसे महत्त्वपूर्ण पीएफ सहित वैधानिक लाभ मिलता था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिखाया है कि यह संभव है और इस मॉडल को अन्य राज्य सरकारें दोहरा सकती हैं।

घोष ने पिछले कई वर्षों की जमीनी हकीकत बताते हुए न्यूजक्लिक को बताया कि राज्य सरकारें और उनकी एजेंसियां ठेके पर काम करने वाले कामगारों को नौकरियों के लिए आकर्षित कर रही हैं, जिसके लिए पहले नियमित कामगारों की भर्ती की जाती थी और इस तरह उन्हें सबसे महत्त्वपूर्ण पीएफ सहित कई वैधानिक लाभ मिलते थे। 

यदि बिहार मॉडल अन्य राज्य सरकारों द्वारा अपनाया जाता है, तो एक करोड़ से अधिक अतिरिक्त कर्मचारी ईपीएफओ की छतरी के नीचे आएंगे, जो आज 12 लाख करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि का प्रबंधन करता है। ईपीएफओ सदस्यों के रूप में, उनकी नौकरियां हर तरह से "औपचारिक" होंगी। यह प्रक्रिया राज्य सरकारों और उनकी एजेंसियों द्वारा अनुबंधित श्रमिकों की पहचान करने के लिए अनिवार्य टास्क फोर्स की स्थापना के साथ शुरू होनी चाहिए। 

यूनियनों के प्रतिनिधिमंडल ने इस क्षेत्र में काफी समय से लंबित रहे सुधारों को भी तेज करने का आह्वान किया। इसने कर्मचारी राज्य बीमा योजना (ईएसआई) का हवाला दिया और कहा कि पात्रता के संबंध में, ईपीएफओ अधिनियम प्रतिबंधात्मक है जबकि ईएसआई योजना के तहत व्यापक कवरेज है। ईएसआई के तहत, जिसमें नियोक्ताओं और कर्मचारियों दोनों का योगदान होता है, ऐसे 10 या उससे अधिक कर्मचारी वाले सभी गैर-मौसमी कारखानों को कवर किया गया है। इसके दायरे में आने वाले सामान्य कर्मचारियों के लिए मासिक वेतन 21,000 रुपये और विकलांग लोगों के लिए 25,000 रुपये से अधिक नहीं होना चाहिए। लेकिन, ईपीएफओ के तहत, कर्मचारियों और नियोक्ताओं दोनों से योगदान कटौती की सीमा 15,000 रुपये निर्धारित की गई है और वे ही प्रतिष्ठान इसके दायरे में आते हैं, जिनके पास 20 या इसके अधिक कर्मचारी काम करते हैं। इस प्रकार, बड़ी संख्या में कर्मचारी अपने आप सामाजिक सुरक्षा कवर से बाहर हो जाते हैं। इस भेदभाव को ध्यान में रखते हुए, यूटीयूसी ने मांग की है कि वेतन सीमा और कवरेज के संबंध में ईएसआई प्रावधान ईपीएफ तक बढ़ाया जाए।

यूटीयूसी ने 26 मार्च, 2015 को केंद्रीय श्रम मंत्रालय का ध्यान जीएसआर 226 (ई) पर आकर्षित किया है, जिसने कर्मचारी पेंशन योजना 1995 के पैरा 9 में संशोधन किया था और ‘वास्तविक सेवा' को 'अंशदायी सेवा' के साथ बदल दिया था। इसके चलते कर्मचारियों को मिलने वाले लाभ पहले कम हो गए थे। इससे पहले, एक सदस्य जिसने दो साल की गैर-अंशदायी अवधि के साथ 11 साल की वास्तविक सेवा प्रदान की थी, वह पेंशन का हकदार था क्योंकि उसकी सेवा अवधि 11 साल थी। पेंशन की मात्रा ‘09 वर्ष' के अंशदान पर पहुंच गई थी। लेकिन,26 मार्च,2015 की अधिसूचना के प्रभाव में आने के बाद, "गैर-योगदान अवधि के किसी भी चरण वाले सदस्य" पेंशन लाभ से बाहर कर दिए गए थे। अंशदायी सेवा की अवधारणा ने हजारों योग्य कर्मचारियों को कर्मचारी पेंशन योजना-1951 के तहत मिलने वाले वैध लाभों से वंचित कर दिया है। शिष्टमंडल ने मंत्री के समक्ष यह तर्क दिया है। 

घोष ने आरोप लगाया कि अभी भी देश भर में ऐसे कई प्रतिष्ठान हैं जो अपने कर्मचारियों को पीएफ लाभ नहीं दे रहे हैं। ईपीएफओ की प्रवर्तन शाखा को इस कदाचार की जांच करने और चूककर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मजबूत किया जाना चाहिए। 

वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष की मूलरेखा

यह प्रस्ताव तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा 2015-16 के केंद्रीय बजट में पेश किया गया था और इसलिए केंद्र द्वारा जीएसआर 322 (ई) दिनांक 18 मार्च, 2016 को वित्त अधिनियम, 2015/20 की धारा 2015 के आधार पर नियमों को अधिसूचित किया गया था। इसका उद्देश्य पीपीएफ, ईपीएफओ और डाकघरों की कई योजनाओं के साथ/उसके तहत पड़े ‘बेदावा’ फंडों को स्थानांतरित करके एक पूल बनाना था। 

अधिनियम में प्रत्येक वर्ष 1 मार्च से पहले निर्दिष्ट राशि के धन हस्तांतरण का प्रावधान किया गया है और यह निर्धारित किया गया है कि हस्तांतरण से पहले, 60 दिनों की अवधि के भीतर ‘बेदावा’ धन के प्रत्येक खाताधारक से दो बार संपर्क करने का प्रयास किया जाना चाहिए। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय इस कोष का संचालन करने के लिए नामित प्राधिकरण था, जिसका उपयोग वरिष्ठ नागरिकों, स्वास्थ्य देखभाल, स्वास्थ्य बीमा और बुजुर्ग नागरिकों के सामान्य कल्याण की वित्तीय सुरक्षा के लिए किया जाना था। इन योजनाओं में वृद्धावस्था के घर, वरिष्ठ नागरिकों की दिन-प्रतिदिन देखभाल और ‘उम्र बढ़ने से संबंधित अनुसंधान' शामिल थे। 

यह एक सक्रिय प्रावधान प्रतीत नहीं होता है। यह देखा गया है कि 2022-23 के लिए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की अनुदान मांगों (मांग संख्या 93) से, 2021-22 वर्ष के लिए वास्तविक व्यय (आइटम 22 / 22.01) 26.5 करोड़ रुपये था। बाद के वर्षों, यहां तक कि 2022-23 के लिए कोई आवंटन नहीं किया गया था, और संलग्न नोट से भी इस पर कोई रोशनी नहीं पड़ती है। 

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

EPFO Fund Transfer Under Finance Act Unlikely; Trade Unions Demand Bihar Model for Contractual Workers

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