यूरोपियन यूनियन के सांसदों ने सीएए के खिलाफ तैयार किया प्रस्ताव
नई दिल्ली: नए नागरिकता कानून और प्रस्तावित नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ व्यापक विरोध और प्रतिरोध के चलते विदेशों में भी भारत की छवि को झटका लगाने लगा है, इस कड़ी में यूरोपियन संसद ने अगले सप्ताह एक ऐसे प्रस्ताव पर विचार-विमर्श करना तय किया है जो सीएए को एक ऐसा कानून मानता है जो "दुनिया में सबसे बड़ा राज्यविहीनता का संकट पैदा कर सकता है और बेइंतहा इंसानी परेशानियों और संकट का कारण बन सकता है"।
154 सांसदों द्वारा तैयार इस प्रस्ताव के मसौदे को भारत के नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 पर यूरोपीय संसद के प्रस्ताव के रूप में चर्चा के लिए अगले सप्ताह ब्रुसेल्स में संसद के पूर्ण सत्र के दौरान पेश किया जाना है।
इस प्रस्ताव में कहा गया कि सीएए "एक खतरनाक मिसाल कायम करने वाला कानून है और सरकार के हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे को बढ़ाने का काम करेगा" इसलिए यूरोपीय संघ भारत के साथ अपने संबंधों के संदर्भ में यह रेखांकित करता है कि "मानव अधिकारों की अविभाज्यता, नागरिक अधिकार, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार उसके मुख्य उद्देश्यों में से एक है। इस प्रस्ताव में ये भी कहा गया है कि "सीएए अपनी प्रकृति में स्पष्ट रूप से भेदभावपूर्ण है क्योंकि यह अन्य धार्मिक समूहों को दिए समान अधिकारों/प्रावधानों से मुसलमानों को वंचित करता है।"
अपने देशों में उत्पीड़न का सामना कर रहे विभिन्न अन्य भारतीय समुदायों को सूचीबद्ध करते हुए, ये प्रस्ताव कहता हैं कि इस कानून ने श्रीलंकाई तमिल, जो कि भारत में सबसे बड़ा शरणार्थी समूह हैं और पिछले 30 वर्षों से देश में रह रहा हैं, उन्हें सीएए के दायरे से बाहर कर दिया हैं।
“हालांकि सीएए बर्मा के उन रोहिंग्या मुसलमानों को भी बाहर कर देता है, जिन्हें एमनेस्टी इंटरनेशनल और संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया के सबसे अधिक सताए हुए अल्पसंख्यक बताया है; और सीएए पाकिस्तान में अहमदिया समूह की दुर्दशा, बांग्लादेश में बिहारी मुसलमानों और पाकिस्तान में हाज़रा मुसलमानों की भी उपेक्षा करता है, जो समूह अपने देशों में उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं।
रिपोर्टों के अनुसार, जिन 154 यूरोपीय सांसदों ने इस प्रस्ताव को तैयार किया हैं, वे 26 यूरोपीय संघ के देशों के एमईपी (यूरोपीय संसद के सदस्य) के प्रगतिशील फोरम एस.एंड.डी. समूह के हैं।
यह प्रस्ताव भारतीय संविधान का भी हवाला देता है, जिसकी 71 वीं वर्षगांठ 26 जनवरी को पूरे भारत में मनाई जा रही है और जो संविधान देश को एक "संप्रभु धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य" के रूप में घोषित करता है, जिसमें कहा गया है कि मापदंड के रुप में नागरिकता के लिए धर्म को शामिल करना "मौलिक रूप से असंवैधानिक है।"
ये प्रस्ताव सीएए को एक ऐसे कानून के रूप देखता है जो "मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय करार (आईसीसीपीआर) और नस्लीय भेदभाव के सभी स्वरुपों के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा तैयार नियमों को कायम रखने की भारत की प्रतिबद्धता को नजरअंदाज करता है क्योंकि भारत एक ऐसा राष्ट्र है जो उपरोक्त नस्लीय, जातीय या धार्मिक आधार पर भेदभाव पर रोक लगाने वाला सहयोगी राष्ट्र है।”
पूरे भारत में चल रहे विरोध प्रदर्शनों का संज्ञान लेते हुए इस प्रस्ताव ने अब तक सामने आई "27 मौतों, 175 लोगों के घायल होने और हजारों गिरफ्तारियों" को शामिल किया है। इसके साथ ही विशेष रूप से यह भी लिखा है कि शांतिपूर्ण विरोध को रोकने के लिए सार्वजनिक परिवहन सहित इंटरनेट शटडाउन, कर्फ्यू का बेज़ा इस्तेमाल किया है। उत्तर प्रदेश में पुलिस की बर्बरता का भी खास तौर पर जिक्र किया गया है।
जेएनयू हिंसा
यूरोपीय सांसदों द्वारा सीएए के खिलाफ प्रस्तावित प्रस्ताव में 5 जनवरी को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में हुई हिंसा का भी उल्लेख किया गया है। "छात्रों द्वारा सीएए और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने में सबसे आगे रहने वाले विश्वविधालय में छात्रों और शिक्षकों पर नकाबपोश भीड़ ने हमला किया था।"
इस प्रस्ताव में कहा गया है कि सीएए में मौजूद भेदभाव के चलते हिंसा भड़की है, इस हिंसा में पुलिस और सरकार समर्थित दोनों समूह जिम्मेदार हैं जिन्होंने भारत और इसके पड़ोसी देशों में मानवाधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन किया है, इस प्रस्ताव में भारत सरकार से आह्वान किया गया है कि वह सुनिश्चित करे कि उसके सुरक्षा बल कानून को लागू करने और हथियारों का इस्तेमाल करते वक़्त संयुक्त राष्ट्र के मूल सिद्धांतों पालन करे।
यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जितने लोग सीएए के विरोध प्रदर्शनों के दौरान मारे गए हैं वे विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी शासित उत्तर प्रदेश में हैं जहां कथित तौर पर लोगों की मौत पुलिस की गोलियों के कमर से ऊपर लगने से हुई है। इन अधिकांश लोगों के परिवारों को घटना के एक महीने बाद भी पोस्टमार्टम की रिपोर्ट नहीं मिली है।
सांसदों ने चिंता जताई है कि सीएए मूल रूप से प्रकृति में भेदभावपूर्ण है और भारतीय संसद में इसके पारित होने पर इसकी निंदा की है। उन्होंने इस तथ्य पर भी गहरा खेद व्यक्त किया है कि भारत ने अपनी "नागरिकता और शरणार्थी नीतियों" में धार्मिक मानदंडों को शामिल कर लिया है जो अपने आप में भेदभावपूर्ण है।
यूरोपियन यूनियन के सांसदों के इस शक्तिशाली समूह ने भारत सरकार से तुरंत आम जनता के विभिन्न वर्गों के साथ शांतिपूर्ण बातचीत करने और भारत के अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का उल्लंघन करने वाले भेदभावपूर्ण संशोधनों को निरस्त करने का आह्वान किया है।
प्रस्ताव में यह भी दोहराया गया है कि "शांतिपूर्ण सभा करने के अधिकार को राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय करार (आईसीसीपीआर) के अनुच्छेद 21 में सुनिश्चित किया गया है, जिसके लिए भारत भी एक पक्ष है।"
यूरोपियन यूनियन के सांसदों को यह उम्मीद है कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय जिसे सीएए पर 60 याचिकाएं हासिल हुई है वह “भारत के संविधान और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों के साथ-साथ कानून की अनुकूलता पर ध्यानपूर्वक विचार करेगा,” इस प्रस्ताव में कहा गया है कि कानून में संशोधन करना एक खतरनाक बात है क्योंकि जिस तरह से भारत में नागरिकता का निर्धारण किया जा रहा है और उसमें बदलाव किया जा रहा है, यह दुनिया में सबसे बड़े राज्यविहीनता का संकट पैदा करेगा और आम जनता के लिए बेइंतहा परेशानियों का कारण बनेगा।”
अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
EU Lawmakers’ Group Drafts Anti-CAA Motion, Fears ‘Largest Stateless Crisis in the World’
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