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EXCLUSIVE: मोदी सरकार ने मिर्ज़ापुर के किसानों पर डाल दी अकाल की काली छाया!

मिर्ज़ापुर में किसानों के दुखों की वजह है “नमामि गंगे” पेयजल परियोजना। मोदी सरकार ने खेतों का पानी छीनकर उसे नलों के जरिए गांवों में पहुंचाने की योजना बनाई है। नतीजा, रेगिस्तान में बदलते खेत और सूखी नहरें तबाही की पटकथा लिख रही हैं।
EXCLUSIVE: मोदी सरकार ने मिर्ज़ापुर के किसानों पर डाल दी अकाल की काली छाया!
मुश्किल में मिर्जापुर के आदिवासी किसान

मिर्ज़ापुर में आदिवासियों-किसानों की बात करना, दुखों का राग छेड़ना है। यहां जिन इलाकों में पहले आंखों में लहलहाते खेतों, हंसते-गाते लोगों, हरियाली और खुशहाली के चित्र बसते थे, अब वहां सिर्फ सहमे-घबराए लोगों और जुल्म-जबर का नक्शा खींचते हैं। इस बदलाव की कहानी ज्यादा पुरानी तो नहीं, मगर है बेहद दर्दनाक। मिर्ज़ापुर के लोगों को पानी पिलाने के नाम पर करीब दो सौ गांवों के लाखों लोगों पर मुसीबत का पहाड़ तोड़ा जा रहा है। यह वो किसान हैं जो सिंचाई के लिए बनाए गए आधा दर्जन बांधों की तलहटी में आज़ादी के बाद से ही खेती किसानी कर रहे थे और अब उन्हें खदेड़ दिया गया है। मस्ती और भाईचारे के बीच रहने वाले इन किसानों के घरों से अब कोहराम की आवाजें आ रही हैं। कोई यह बताने वाला नहीं है कि उनके खेतों की सिंचाई कैसे होगी?

सिरसी बांध की तलहटी में जुटे आदिवासी

मड़िहान क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता अशोक उपाध्याय कहते हैं, “भाजपा सरकार ने मिर्ज़ापुर के किसानों को एक अंधी गली में ला खड़ा किया है। जिन किसानों की जगह-जमीन बांधों में चली गई, उनके पट्टे निरस्त कर दिए गए हैं। धमकाया जा रहा है कि बांधों की खाली जमीन पर खेती करने पर रपट दर्ज कराई जाएगी और जेल भी भेजा जाएगा। यह पेट भरने और जीवन चलाने का मसला है। यह भले ही राजनीतिक समस्या नहीं है, पर मिर्ज़ापुर के आदिवासियों के साथ फरेब का भावनात्मक चक्रव्यूह जरूर है, जिसके चलते लाखों लोग पलायन के लिए मजबूर हो सकते हैं। यह वही योजना है जिसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए 22 नवंबर 2020 को शिलान्यास किया था।”

भविष्य की चिंता में डूबी महिलाएं

कालाहांडी की राह पर मिर्ज़ापुर?

बांधों के पानी के सहारे मिर्ज़ापुर और सोनभद्र के “हर गांव के हर घर” में नलों के सहारे चलाई जाने वाली ग्रामीण पेयजल योजना करीब 5544 करोड़ की है। इसमें 2342.42 करोड़ से 1606 गांवों में मिर्ज़ापुर और 3112 करोड़ से सोनभद्र के 1389 गांवों में 41 लाख 41 हजार 438 लोगों के लिए स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति की जानी है। इस योजना से मिर्ज़ापुर के 21 लाख 88 हजार 125 लोगों को लाभान्वित करने का मसौदा तैयार किया गया है।

इस जिले में लाखों आदिवासी हैं, जिनकी आजीविका चिरौंजी, तेंदू, महुआ आदि वन उपज से चलती थी। बाद में आदिवासियों ने अपने पारंपरिक कार्यों के अलावा खेती-किसानी का गुर सीख लिया। ये आदिवावासी अपने खेतों के सिंचाई के लिए बांधों पर निर्भर हैं। कुछ आदिवासी नहरों के पानी से फसल उगाते हैं तो करीब दो सौ गांवों के लोग बांधों के डूब क्षेत्र में खेती से अपनी आजीविका चलाते हैं।

आदिवासियों की जिंदगी में बदलाव तब आया जब तत्कालीन मुख्यमंत्री संपूर्णानंद के समय पूर्वांचल के कद्दावर नेता पं. कमलापति त्रिपाठी की पहल पर मिर्ज़ापुर और सोनभद्र में नदियों को बांधकर बड़े-बड़े जलाशय बनाए गए। इन जलाशयों से खुशहाली की गंगा निकली तो यूपी के दोनों जिलों में आदिवासियों के भूखे पेट भरने लगे। मस्ती और भाईचारे के गीत गूंजने लगे। भाजपा सरकार ने जब से ग्रामीण पेयजल योजना शुरू की है तब से कोहराम की आवाजें आ रही हैं। मनमाने ढंग से तैयार की गई विकास की यह योजना अब आदिवासियों की तबाही और उनके दुखों का राग बनती जा रही है।

केंद्र सरकार की नमामि गंगे परियोजना के अधीन राज्य पेयजल एवं स्वच्छता मिशन के तहत ग्रामीण पेयजल योजना शुरू की गई है। इस योजना को लेकर अब बखेड़ा शुरू हो गया है। किसानों ने दो सवालों पर भाजपा सरकार को घेरा है। पहला, अगर बांधों का पानी पीने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा तो खेतों की सिंचाई कैसे होगी?  दूसरा, पिछले सात दशक से नदियों पर बने बांधों की तलहटी में सिंचाई विभाग से पट्टा लेकर खेती करने वाले आदिवासियों-किसानों के पेट कैसे भरेंगे? इनके भूख के सवाल पर सरकार चुप है और नौकरशाही भी।

किसानों से बातचीत

मिर्ज़ापुर के अहरौरा में भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के बैनर तले मंडल अध्यक्ष प्रह्लाद सिंह की अगुवाई में कई दिनों तक आंदोलन-प्रदर्शन किया गया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। आदिवासी-किसान गुस्से में हैं और आक्रोश का टाइमबम धड़क रहा है। सिरसी बांध के किनारे बसे बनकी गांव के लाल बहादुर कोल इस बात से आहत हैं कि सरकार ने उनके पुरखों की जमीन ले ली और बदले में पहाड़ पर बसा दिया। कहते हैं, “खेती की जमीन की जगह पत्थर दे दिया। अब तो पलायन के अलावा कोई चारा ही नहीं बचा है। भीख मांगने की नौबत आ गई है। सिरसी बांध के तलहटी की जमीनें हमें पट्टे पर मिली थीं। भाजपा सरकार ने उनके सभी पट्टे निरस्त कर दिए हैं। सरकारी कारिंदे हमें आए दिन धमका रहे हैं कि अगर पहले की तरह बांधों की तलहटी में खेती की तो रपट दर्ज होगी और जेल भी जाना पड़ेगा। अब तक धान की नर्सरी नहीं डाली जा सकी है। सब्जियां भी नहीं उगा पा रहे हैं। सरकार हमारी वो जमीन छोड़ दे जो बांधों में चली गई है। भूखों मरने से अच्छा है कि हम जेल में रहेंगे। भले ही मर जाएंगे, लेकिन अपने हक-हुकूक के लिए धरना देंगे, आंदोलन करेंगे और जेल भरेंगे।”

मिर्ज़ापुर में ग्रामीण पेयजल योजना के तहत 784 किलोमीटर पाइप लाइन बिछाई जानी है। साथ ही साथ ही 48 सीडब्ल्यूआर बनाए जाएंगे। जलापूर्ति के लिए 5672 डिस्टिव्यूशन प्वाइंट बनाए जाएंगे। इसी स्कीम में नौ इंटक बेल बनाने की योजना है। इसके अलावा 58 रॉ वाटर निस्तारण प्लांट लगाए जाएंगे।

खेतों की हरियाली मिटने का संकट

भभक रहे पहाड़ के किसान

मिर्ज़ापुर में भाकियू के जिलाध्यक्ष सिद्धनाथ सिंह कहते हैं, “ग्रामीण पेयजल योजना तो अच्छी है, लेकिन इसका स्याह पक्ष यह है कि किसान बर्बाद हो जाएंगे। खेती के पानी का इस्तेमाल अब पीने के काम में लाया जाएगा। खासतौर पर वो बांध जिनके पानी से मिर्ज़ापुर और प्रयागराज के किसानों के घरों में खुशहाली आती है। ये हैं जरगो, अहरौरा, सिरसी, ढकवा, मेजा और डोगिया जलाशय। जमालपुर, अहरौरा, राजगढ़, मड़िहान, पटेहरा, लालगंज और हलिया जैसे जंगली इलाके में इन बांधों की बदौलत वनवासियों के पेट भरते हैं। ददरी उर्फ मेजा बांध का पानी प्रयागराज के किसानों के घरों में खुशहाली लाता है।

दीपनगर कस्बे के चिकित्सक डॉ. संजय सिंह कहते हैं, “बांधों के पानी से मिर्ज़ापुर जिले के किसान धान, गेहूं, मटर, अरहर, चना, उर्द, मूंग, मक्का और बाजरे की खेती करते हैं। गोभी, बैगन, टमाटर, गाजर, मूली, मिर्च आदि सब्जियों की खेती के लिए बांधों का पानी ही प्रयोग में लाया जाता है। पत्थर से पानी तो निकला है नहीं। ऐसे में फिर कहां से पानी लाएंगे जिले के किसान?”

सिरसी बांध का मोहक दृश्य

मिर्ज़ापुर जिले का भूगोल समझाते हुए डॉ. संजय कहते हैं, “सिरसी बांध को देखिए। इस बांध से सैकड़ों गांवों की सिंचाई होती है। इसी बांध के किनारे बसे हैं सिरसी, सरसवा, घोरी, पड़रिया कला, पड़रिया कला खुर्द, रामपुर, बभनी, शेरुआ, गढ़वा और बनकी समेत करीब सोलह गांव। इन गांवों की आबादी 50 हजार से ज्यादा है। यहां अधिसंख्य आदिवासी और दलित रहते हैं। यह वो लोग हैं जिनकी जमीनें लेकर सरकार ने सिरसी बांध बनवाया था। साल 1951 में सरकार ने आदिवासियों को इस शर्त पर विस्थापित किया था कि जब बांध का पानी नीचे चला जाएगा तो वो वहां खेती कर सकेंगे। इसके लिए सिंचाई विभाग सभी आदिवासियों को पांच साल के लिए जमीनों के पट्टे आवंटित करता रहा है। ये सभी पट्टे अब निरस्त कर दिए गए हैं। डूब क्षेत्र में खेती करने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई है। मिर्ज़ापुर और सोनभद्र के सभी बांधों की तलहटियों के किनारे बसे आदिवासियों को चेतावनी भरी चिट्ठियां भेजी गई हैं। ऐसे में लाखों आदिवासियों के सामने भरण-पोषण का संकट खड़ा हो गया है। ग्रामीण पेयजल योजना बनाने से पहले नौकरशाही आदिवासियों के पेट का इलाज करना ही भूल गई। अब वो कहां जाएंगे। अब तो वे भूख से मर जाएंगे या फिर उनके बच्चे भीख मांगेंगे।”

पेयजल पाइप बिछाने में जुटे श्रमिक

पेचीदा हुई पेयजल योजना

मिर्ज़ापुर के सिरसी जलाशय के किनारे बसे बनकी गांव की प्रधान सरिता पटेल ने सिंचाई विभाग द्वारा जारी उस नोटिस दिखाया, जिसमें साफ-साफ इस बात का उल्लेख किया गया है कि बांध में खेती करने पर किसानों को जेल होगी। सिरसी बांध प्रखंड के सहायक अभियंता (द्वितीय) की ओर से जारी किए गए सार्वजनिक नोटिस में कहा गया है कि सिरसी जलायश के डूब क्षेत्र में आने वाले गांवों में सिंचाई विभाग की भूमि के पांच वर्षीय पट्टे की अवधि 31 मार्च 2021 को खत्म हो गई है। शासन के निर्देशानुसार अगली अवधि तक पट्टे का आवंटन स्थगित कर दिया गया है। डूब क्षेत्र में जो किसान खेती-किसानी अथवा अन्य कोई भी कार्य करेंगे, उनके खिलाफ पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई जाएगी।

सरिता के पति दीपक पटेल कहते हैं, “सरकार ने किसानों के साथ बड़ा छल किया है। जिन लोगों को बांध के डूब क्षेत्र में खेती-किसानी से खदेड़ा जा रहा है, कोई उनका कुसूर तो बताए? यहां खेती-किसानी करने वाले ज्यादातर आदिवासी हैं। वनों में जीवन यापन करने वाले आदिवासियों ने दशकों तक मेहनत करने के बाद खेती का तजुर्बा सीखा है। सरकार डूब क्षेत्र से अब आदिवासियों को खदेड़ रही है। ये आदिवासी अब कहां जाएंगे और क्या खाएगे?  दबंगों और जमींदारों ने चकबंदी विभाग के अफसरों और कर्मचारियों के साथ मिलकर राजस्व और सिंचाई विभाग की बेशकीमती जमीनों को हथिया ली है। जमीनों के रकबे में भी भारी घालमेल किया गया है। साल 2014 में हुई चकबंदी के बाद भी यह स्पष्ट ही नहीं हो पा रहा है कि कौन सी जमीन किस विभाग की है? नौकरशाही की लापरवाही का ठीकरा किसानों के माथे फोड़ने और डूब क्षेत्र से खदेड़े जाने की बात किसी के गले से नीचे नहीं उतर रही है।”

दीपक बताते हैं, “नमामि गंगे पेयजल योजना से आदिवासियों की जिंदगी का पेच उलझ गया है। आठ मई 2021 को मड़िहान इलाके के रामपुर रेक्सा गांव में स्थित गणेश मंदिर पर आदिवासियों और किसानों की पंचायत हुई तो सूबे के ऊर्जा राज्यमंत्री रमाशंकर पटेल यह कहकर चले गए कि डूब क्षेत्र में खेती कीजिए। पुलिस किसी को परेशान नहीं करेगी। आदिवासी किसान जब डूब क्षेत्र में खेती करने गए तो इलाकाई पतरौल (सिंचाई विभाग का कर्मचारी) ने लोगों को यह कहकर धमकाना शुरू कर दिया कि अगर किसी ने वहां हल चलाया तो थाने में रपट दर्ज कराई जाएगी। सरकार की यह कैसी स्कीम है जो किसानों को उनके ही खेत से बेदखल कर दे और आदिवासियों के खेतों का पानी छीन ले? जब खेत-खलिहान ही नहीं रहेंगे तो क्या सिर्फ पानी पीकर ही जिंदा रहेंगे लोग। यह तो घोर नाइंसाफी है। सरकार ने बेरोजगारी की ऐसी पटकथा लिख दी है जिसका रास्ता तबाही की ओर जाता है।”

जनप्रतिनिधियों की बोलती बंद

मिर्ज़ापुर की संसद हैं अपना दल की सुप्रीमो एवं केंद्रीय राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल। सिरसी बांध मड़िहान इलाके में आता है, जहां के विधायक रमाशंकर पटेल यूपी के ऊर्जा राज्यमंत्री हैं। मिर्ज़ापुर के आदिवासी और किसान दोनों नेताओं की देहरी पर दस्तक दे रहे हैं, लेकिन इन जनप्रतिनिधियों की बोलती बंद है। शासन स्तर पर इस गंभीर समस्या का हल निकालने के लिए कोई भी जनप्रतिनिधि गंभीर नहीं दिख रहा है। नतीजा, डूब क्षेत्र में खेती-किसानी करने वाले आदिवासियों में आक्रोश पनप रहा है। सिरसी बांध के किनारे बसे बनकी गांव के लाल बहादुर विश्वकर्मा कहते हैं, “पहले रात की अजोरिया में भी हमारी तिल की फसल सूख जाया करती थी। हमने खेती-किसानी सीखी तो सरकार हमारे पीछे पड़ गई। अगर हम बर्बाद हुए तो यूपी में भाजपा की सत्ता भी नहीं रहेगी। आगामी विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा होगा। हम सभी देश भर के नेताओं और अफसरों को चिट्ठियां भेजने जा रहे हैं। सरकार ने हमारी बात नहीं मानी तो तहसील, थाना और कचहरी घरेंगे। जरुरत पड़ी तो जेल भी जाएंगे। मरेंगे या मारे जाएंगे, पर डूब की जमीन नहीं छोड़ेंगे।”

बनकी गांव के गांव के पूर्व प्रधान लक्ष्मीकांत मिश्र हमें उस स्थान पर ले गए, जहां गांव भर के लोग उदास और खाली हाथ बैठे थे। किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वो सरकारी फरमान को कैसे बेअसर करें। बरगद के पेड़ के नीचे उदास बैठे चेखुरी, परसोत्तम, तौलन, चीनी, बैजनाथ, लालता, दुलारे, विजय शंकर, सुरेंद्र, महेंद्र, छोटे, राजू, रामजतन, शंकर, मटुक, सुरेश, कैलाश, संते, जीते, लाला, रमेश, खिलाड़ी, सीताराम, रमेश, सुक्खू और लाल बहादुर समेत तमाम महिलाओं ने एक स्वर में कहा, “पतरौल ने हमें धान की नर्सरी नहीं डालने दी। हम कुछ दिन और इंतजार करेंगे। फिर सरकार चाहे जेल भेजे या मार डाले, पहले की तरह डूब क्षेत्र में खेती-किसान जरूर करेंगे। हम पहले से ही रोजी-रोटी के लिए मोहताज थे और अब सरकार ने हमारे मुंह का निवाला भी छीन लिया।”

यह कहानी सिर्फ बनकी गांव की नहीं, मिर्ज़ापुर और सोनभद्र के सैकड़ों गांवों की है। मिर्ज़ापुर जिले के करीब दो सौ से अधिक गांवों के लाखों आदिवासियों-किसानों को डूब क्षेत्र में खेती करने से रोक दिया गया है। इस जिले के करीब 21 लाख किसानों के सामने विकट समस्या है। इन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि जब सरकार बांधों का पानी ही नहीं देगी तो आखिर खेती कैसे होगी? पड़िया खुर्द गांव के प्रधान राजेश पटेल और रामपुर के रामधनी यादव ने कहा, “हम किसानी नहीं करेंगे तो फिर क्या करेंगे? हम पहले से ही गरीबी से जूझ रहे थे। बांधों के डूब क्षेत्र में खेती का अधिकार छीना गया तो हम भाजपा अथवा उसके समर्थित अपना दल की विदायी कर देंगे।” आदिवासी रमेश धरकार ने यहां तक कहा, “हमारे घरों में आकर देखिए, बच्चों के पेट खाली हैं। बस किसी तरह नमक-रोटी खाकर जिंदा हैं। हमारी हालत तो कीड़ों-मकोड़ों से बदतर है। बांधों का पानी और डूब में खेतों का पट्टा नहीं मिला तो हम शहरों में पलायन करने को विवश हो जाएंगे। तब हमारे सामने शहरों में भी पेट पालने की चुनौतियां बेहद कष्टकारी होंगी।”

आदिवासियों-किसानों की डगर कठिन

मिर्ज़ापुर जिले के जिन बांधों के पानी का इस्तेमाल खेती के बजाय पीने के लिए किया जाना है उनमें सबसे विशाल सिरसी जलाशय है। बकहर नदी को बांधकर बनाए गए सिरसी बांध के जल संग्रहण की क्षमता करीब 2,06,550 हजार घन मीटर है। गरई नदी पर बने अहरौरा बांध में 58,300 हजार घन मीटर, जरगो नदी के जरगो बांध में 1,42,920 हजार घन मीटर और पहती नदी पर बने ढेकवा जलाशय में 6,020 हजार घन मीटर पानी एकत्र होता है। गरई नदी पर बने डोगिया जलाशय के पानी का इस्तेमाल भी अब पीने के लिए किया जाएगा। इस बांध में 23,300 हजार घन फीट पानी का संग्रहण होता है। इन जलाशयों से जमालपुर, अहरौरा, राजगढ़, मड़िहान, पटेहरा, लालगंज, हलिया प्रखंड के किसान अपनी फसलों की सिंचाई करते हैं। मिर्ज़ापुर से मेलन नदी भी निकलती है। इस नदी पर बने मेजा बांध की क्षमता 3,02,810 हजार घन मीटर की है। इसके पानी से प्रयागराज के किसान अपनी फसलों की सिंचाई करते हैं।

मिर्ज़ापुर के पत्रकार संजय दुबे कहते हैं, “बांधों के भरोसे बनी पेयजल योजना ग्रामीणों के लिए जी का जंजाल साबित हो सकती है। जिस साल बारिश नहीं होगी, तब क्या होगा? फिर तो किसानों के खेत तो सूखेंगे ही, लोगों को पीने का पानी भी मयस्सर नहीं होगा।”

मिर्ज़ापुर के मड़िहान इलाके के पूर्व विधायक ललितेशपति त्रिपाठी कहते हैं, “आदिवासियों को खदेड़ने का फरमान “अंधेर नगरी चौपट राजा” की कहानी चरितार्थ कर रही है। डूब क्षेत्र में इन्हें खेती करने से रोका गया तो आदिवासी पलायन करने के लिए विवश होंगे। मिर्ज़ापुर की खुशहाली, फिर बदहाली में बदल जाएगी। ऐसे में लूटमार की घटनाओं में इजाफा होने से इनकार नहीं किया जा सकता। डूब क्षेत्र में खेती-किसानी करने वाले आदिवासियों की मुश्किलें तो अभी से बढ़ गई हैं। योजना बनाने से पहले भाजपा सरकार ने आखिर यह क्यों नहीं सोचा कि यूपी के सबसे पिछड़े इलाके के लोग क्या खाएंगे और कैसे जिंदा रहेंगे?“

मिर्ज़ापुर जिले के राजगढ़, पटेहरा, छानबे, सीखड़, नरायनपुर, जमालपुर और मझवां प्रखंड पहले से ही रेड जोन में हैं। इन गांवों में बोरिंग से पानी निकलाने पर प्रतिबंध है। मिर्ज़ापुर सदर, पहाड़ी और लालगंज में भी स्थिति क्रिटिकल है। धनरौल, जगरो, अदवा, सिरसी आदि बांधों के सहारे आजीविका चलाने वाले करीब दो सौ गांवों के लोग कहां जाएंगे? इस सवाल का जवाब अभी ढूंढा जाना बाकी है।

पत्रकार विजेंद्र दुबे कहते हैं, “ लहुरिया दह इलाके में जाकर देखिए। पिछले तीस सालों में सरकारें जहां पीने के पानी का इंतजाम नहीं कर सकीं, वहां राज्य सरकार की ग्रामीण पेयजल योजना क्या असर दिखा पाएगी?”

मिर्ज़ापुर जिले की 809 ग्राम पंचायतों में 1606 राजस्व गांव हैं। जिले के अधिसंख्य किसान खेतों की सिंचाई के लिए बांधों पर ही निर्भर रहते हैं। बारिश न होने से नहरों में पानी नहीं छोड़ा जा रहा है। खेती-किसानी सब ठप है। पटेहरा ब्लाक क्षेत्र के पिंटू विश्वकर्मा, राममनी यादव, प्रेम शंकर निषाद, संतोष तिवारी, हौसिला प्रसाद मिश्र कहते हैं, “जब बांधों से पानी बिल्कुल नहीं आएगा तो नहरें रेगिस्तान बन जाएंगी। फिर किसानों और आदिवासियों का पलायन आखिर सरकार कैसे रोक पाएगी?”

ग्रामीण पेयजल योजना की पाइप लाइन बिछाने के लिए की गई खुदाई

एजेंसियों के काम से भी लोग खुश नहीं

स्टेट वार सेनिटेशन मिशन के तहत 13 एजेंसिंयां मिलकर ग्रामीण पेयजल योजना पर काम कर रही हैं। हैदराबाद की कंपनी जीवीपीआर के अलावा नागार्जुन कंस्ट्रक्शन, मेधा, टाटा इलेक्टो स्टील आदि कंपनियों के पास अलग-अलग कार्यों की जिम्मेदारी है। मिर्ज़ापुर में ग्रामीण पेयजल योजना के तहत अभी सिर्फ मड़िहान क्षेत्र में काम हो रहा है। हलिया इलाके में टंकी का निर्माण कार्य चल शुरू हो गया है। पटेहरा और पहाड़ी ब्लाक में पानी सप्लाई के लिए प्लास्टिक की पाइप लाइनें डाली जा रही हैं। कलवारी से सिरसी मार्ग पर पाइप लाइन बिछाने का काम चल रहा है। अब तक सिर्फ 14 किमी पाइप लाइन बिछाई जा सकी है। पटेहरा ब्लाक में खुदाई चल रही है। पहड़िया कला गांव में पाइप बिछाने का काम चल रहा है, लेकिन गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। घटिया कार्य और घोर लापरवाही के चलते कार्यदायी एजेंसियों से इलाके के लोग खुश नहीं हैं।

पहाड़ी प्रखंड के जिन इलाकों में पाइप लाइनें डाली जा रही हैं, वहां पेटी ठेकेदार खोदी गई सड़कों की मरम्मत ठीक से नहीं कर रहे हैं। जहां-तहां गड्ढे खोदकर आगे निकल जा रहे हैं। इस बात की पुष्टि मिर्ज़ापुर के पत्रकार पवन जायवाल भी करते हैं। वह कहते हैं, “ पेयजल योजना में  कार्यदायी एजेंसियों के कामकाज से ग्रामीण असंतुष्ट हैं। पाइप लाइन बिछाने में ये एजेंसियां घोर लापरवाही का परिचय दे रही हैं। 10 जुलाई को हलिया ब्लाका के हथेड़ा मुहसर बस्ती में दुर्घटना होने से लवलेश और सोनू नामक दो आदिवासी गंभीर रूप से घायल हो गए। कार्यदायी एजेंसी ने पत्थर तोड़ने के लिए ब्लास्टिंग का समय दोपहर बारह बजे  तय किया था, लेकिन ब्लास्टिंग शाम चार बजे शुरू की गई। ब्लास्टिंग के पत्थर शंभू कोल के घर पर जा गिरे, जिससे उनके दोनों लड़के गंभीर रूप से चोटिल हो गए। हलिया सीएचसी में दोनों का इलाज चल रहा है। लापरवाही यूं ही जारी रही तो यह योजना न जाने कितनों का जान लेकर रहेगी।”

पवन यह भी बताते हैं कि मिर्ज़ापुर के जरगो और अहरौरा बांध में वाणसागर परियोजना का पानी छोड़ने की बात तय हुई थी, लेकिन बाद में बात आई-गई हो गई। दोनों बांधों से करीब 190 गांवों में फसलों की सिंचाई होती है, लेकिन ग्रामीण पेयजल योजना के शुरू होने के बाद किसानों को सूखे की मार झेलनी पड़ सकती है। लगता है कि वातानुकूलित कमरों में बैठकर योजना बनाने वाले आला अफसर किसानों के हितों की बात सिरे से भूल गए।”

नमामि गंगे योजना के पर्यवेक्षण के लिए लिए शासन से नियुक्त अपर जिलाधिकारी अमरेंद्र कुमार वर्मा के मुताबिक, “सरकार ने 2024 तक हर गांव के हर घर तक पानी पहुंचाने की योजना बनाई है। योजना काफी बढ़िया है। दस साल तक इसकी देख-रेख कार्यदायी एजेंसियां करेंगी। बाद में इन्हें ग्राम पंचायतों के हवाले कर दिया जाएगा। पेयजल लाइनों को बिछाने की गुणवत्ता पर नजर रखी जा रही है। केंद्र सरकार से वित्त पोषित इस योजना में तब तक कोई फेरबदल संभव नहीं है, जब तक नई दिल्ली से कोई नया निर्णय नहीं होता।”

मिर्ज़ापुर के साहित्यकार भोलानाथ कुशवाहा कहते हैं, “आदिवासियों और किसानों से बांधों के पानी और डूब क्षेत्र में खेती का अधिकार छीन लेना खुद में विकट समस्या है। सरकार की दोषपूर्ण नीतियों के चलते मिर्ज़ापुर और सोनभद्र के लाखों लोग बेवजह तबाही के रास्ते की ओर मोड़ दिए गए हैं। सरकार और नौकरशाही के दुष्चक्र में घिरे लोग बेहद गुस्से में हैं। केंद्र सरकार की ढुलमुल नीति और भ्रष्ट व्यवस्था ने किसानों को अंधेरे सुरंग में ढकेल दिया है। इस अंचल की संस्कृति को बनाने में जिन लोगों का बड़ा योगदान रहा है उनमें एक हैं खेतिहर किसान और दूसरे लघु उद्यमी। मिर्ज़ापुर के आदिवासियों के घरों से निकलने वाली लोकधुनें अब दर्द से भरी हैं। पहले यही धुनें उनकी उदासी छांट देती थीं और उमंगों से भर देती थीं। दुनिया जानती है कि मिर्जापुरी गीतों की रुह उनकी धुन होती है, उसके शब्द नहीं। दुखों की मार झेल रहे मिर्ज़ापुर के आदिवासी और किसान अब सिर्फ अपनी दर्द भरी कहानियां सुना रहे हैं।”

सभी फोटो: विजय विनीत

(लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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