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"एनकाउंटर इंसाफ़ नहीं पुलिस द्वारा की गई लिंचिंग है"

हैदराबाद प्रकरण ये बताता है कि इंसाफ़ मिलने में होने वाली देरी के कारण अब एनकाउंटर को इंसाफ़ समझा जा रहा है। इसी तरह उन्नाव प्रकरण इस सच को उजागर करता है कि वास्तव में अब पुलिस एक रेप पीड़िता की सुरक्षा तक नहीं कर पा रही है। लखनऊ से कानूनविद, बुद्धिजीवी और समाजसेवियों की राय.
hyderabad encounter
Image courtesy:Scroll

हैदराबाद एनकाउंटर पर जनता द्वारा खुशी मनाना इस बात का प्रमाण है कि समाज का विश्वास न्याय व्यवस्था पर कमज़ोर हुआ है। क़ानून के जानकर मानते हैं कि इंसाफ़ मिलने में होने वाली देरी के कारण अब एनकाउंटर को इंसाफ समझा जा रहा है। उन्नाव प्रकरण के बाद पुलिस की कार्यप्रणाली की समझ रखने वाले कहते हैं कि राजनीतिक दबाव में काम करने के कारण पुलिस का इक़बाल कम होता जा रहा है। अब पुलिस एक रेप पीड़िता की सुरक्षा तक नहीं कर पा रही है।
 
जस्टिस इम्तियाज़ मुर्तुज़ा (रिटायर्ड ) कहते हैं कि सबसे पहले सरकारों को न्याय व्यवस्था में सुधार करना चाहिए है। क्योंकि अगर समाज एनकाउंटर को इंसाफ़ समझ रहा है, तो इसका अर्थ यह है कि उसका विश्वास न्याय व्यवस्था पर या तो ख़त्म हो चुका है या कमज़ोर पड़ा है।

हाईकोर्ट के न्यायधीश रह चुके जस्टिस इम्तियाज़ मुर्तुज़ा कहते हैं कि नए क़ानूनों के साथ नई अदालते भी बनना चाहिए और न्यायिक अधिकारियों की नियुक्तियां भी होनी चाहिए। जिससे लोगों को समय पर इंसाफ़ मिले और उनका विश्वास न्याय व्यवस्था पर बना रहे।

जस्टिस इम्तियाज़ मुर्तुज़ा कहते हैं कि हैदराबाद प्रणाली में कई ऐसे बिंदु हैं जो पुलिस के बयान पर संदेह पैदा करते हैं। लेकिन सबसे पहले यह बात होनी चाहिए कि अदालत में सुनवाई हुए बिना अभियुक्तों को क्यों  मार दिया गया, पुलिस का काम सज़ा देना नहीं है। सज़ा सुबूतों और गवाहों के आधार पर तय करना अदालत का काम है। अगर प्रचलन नहीं रुका तो धीरे-धीरे हमारी लोकतान्त्रिक प्रणाली कमज़ोर हो जायेगी।

क़ानून के अन्य जानकर भी मानते हैं कि किसी अभियुक्त को मार देने से पीड़ित के साथ इंसाफ नहीं होता है। अधिवक्ता शुभम त्रिपाठी कहते हैं कि जब हमारा क़ानून आतंकवादी अजमल कसाब जिसको रंगे हाथों पकड़ा गया था, उस तक को सुनवाई का मौक़ा देता है, तो अन्य आरोपियों को मिलना चाहिए।

वह कहते हैं कि यह विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को कमज़ोर करना होगा अगर पुलिस किसी व्यक्ति को अभियुक्त बनाये और फिर स्वयं ही उसकी सज़ा तय करे। हैदराबाद पुलिस के बयान पर संदेह का इज़हार करते हुए वह कहते हैं कि अगर अभियुक्त भागने की कोशिश कर रहे थे, इसका अर्थ है उनको घटना स्थल पर कड़ी सुरक्षा में नहीं लाया गया था, जो कि पुलिस की लापरवाही को दिखता है। इसके अलावा अगर वह भाग रहे थे तो उनको हाथ या पैर पर गोली मारकर रोकने की कोशिश करनी चाहिए थी। सीधे चारों अभियुक्तों को मार देने से लगता है, पुलिस क़ानूनी का पालन न कर के, सिर्फ़ अपनी कमियों को छिपाने और प्रशंसा के लिए काम कर रही थी।

अधिवक्ता मानते हैं कि पुलिस ने आत्मरक्षा में चारों अभियुक्तों को मारा है और जनता समझ रही है कि पीड़िता को इंसाफ मिला गया है। प्रसिद्ध अधिवक्ता मोहम्मद हैदर कहते हैं की पीड़िता को इंसाफ दिलाना पुलिस का नहीं बल्कि अदालत का काम था। उनके अनुसार बिना अदालत में गए यह नहीं कहा जा सकता है की पीड़िता को इंसाफ़ मिल गया।

मोहम्मद हैदर भी मानते हैं की न्याय व्यवस्था में सुधार लाने की ज़रूरत है, वरना लोग इसी तरह पुलिस एनकाउंटर को इंसाफ समझते रहेंगे। मोहम्मद हैदर ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका की जा रही है, जिसमें यह मांग की गई है कि रेप के मामलों को सत्र-ज़िला न्यायालय से सुप्रीम कोर्ट तक की सुनवाई की समय सीमा तय की जाये। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट से सज़ा तय होने के बाद रेप के मामलों में  दया-याचिका नहीं स्वीकार की जानी चाहिए।

उधर, उन्नाव पीड़िता की मृत्यु के बाद से उत्तर प्रदेश की पुलिस भी सवालों के घरे में हैं। एस आर दारापुरी, आई पी एस (रिटायर्ड ) कहते हैं कि राजनितिक पार्टियों के दबाव में काम करते-करते पुलिस का  इक़बाल ख़त्म हो गया है। उत्तर प्रदेश पुलिस इतना कमज़ोर हो चुकी है कि वह अब वह एक रेप पीड़िता को सुरक्षा तक नहीं दे सकती है। एस आर दारापुरी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में क़ानून का राज्य ख़त्म हो गया है और प्रदेश में  प्रतिदिन 6 रेप केस और 21 हत्याओं के मामले दर्ज हो रहे हैं।

पुलिस की कार्यप्रणाली की समझ रखने वाले  एस आर दारापुरी हैदराबाद एनकाउंटर के प्रश्न पर कहते हैं कि इस मामले में तेलंगाना पुलिस पर आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो पुलिस अपनी हिरासत में बंद अभियुक्तों को नहीं संभाल सकती है वह जनता की रक्षा कैसे करेगी। उन्होंने कहा कि उनको पुलिस के बयान पर संदेह है क्योंकि घटना स्थल पर 4 अभियुक्तों के साथ 10 पुलिसकर्मी थे-फिर अभियुक्त भागने की कोशिश कैसे कर सकते हैं। एस आर दारापुरी कहते हैं कि इस समय की सबसे बड़ी ज़रूरत है पुलिस सुधार जिसको सरकार नज़रअन्दाज़ कर रही है।

महिला संगठनों ने भी हैदराबाद एनकाउंटर और उन्नाव प्रकरण पर सवाल उठाए हैं। अखिल भारतीय  जनवादी महिला समिति की सुभाषिनी अली ने बताया कि उनकी संस्था ने हैदराबाद एनकाउंटर को लेकर अदालत में याचिका की है। उन्होंने कहा कि तेलंगाना पुलिस द्वारा अभियुक्तों का एनकाउंटर करने से पीड़िता को इंसाफ नहीं मिला है। एनकाउंटर इंसाफ़ नहीं पुलिस द्वारा की गई लिंचिंग है। सुभाषनी अली कहती हैं कि इंसाफ की एक प्रणाली है जिसका हर प्रकरण में पालन होना चाहिए।वह मानती हैं कि उन्नाव प्रकरण उत्तर प्रदेश की ख़राब क़ानून व्यवस्था का उदाहरण है।

महिला आंदोलनों में सक्रिय रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं कि एनकाउंटर समस्या का हल नहीं है और न इंसाफ़ है। साझी दुनिया की सचिव डॉ. रूपरेखा वर्मा कहती हैं कि तेलंगाना पुलिस ने पीड़िता के परिवार को पहले परेशान किया और अब अभियुक्तों को मार के अपनी प्रशंसा करना चाहती है। इससे इंसाफ़ नहीं हुआ है हैदराबाद एनकाउंटर की न्यायिक जांच होना चाहिए। लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति भी रहीं डॉ. वर्मा कहती हैं कि उन्नाव प्रकरण उत्तर प्रदेश पुलिस की लापरवाही बयान करता है कि पुलिस एक रेप पीड़िता को सुरक्षा भी नहीं दे सकी और अंतः उसकी मृत्यु हो गई।

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