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GROUND REPORT: बनारस में बाढ़ के बाद डायरिया और डेंगू का क़हर 

नट बस्ती की विम्मल कहती हैं, "हम कूड़ा-कचरा बीनकर परिवार चलाते हैं। उल्टी-दस्त की बीमारी ने हमें बर्बाद कर दिया। बच्चों का इलाज कराने के लिए हमें अपनी और बच्चियों की पैजनी बेचनी पड़ी। बड़ी मुश्किल से बेटियों की नाक के लिए सोने की कील बनवाई थी। इलाज के पैसे के लिए उसे भी बंधक रखना पड़ा।"
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विम्मल यह कहते हुए रोने लगती हैं कि "पिछले तीन दिन से उनके सभी बच्चे उल्टी-दस्त से बीमार हैं। जैबुन, सोनम तो चारपाई से उठकर बैठने की स्थिति में नहीं हैं। बेटा नासिर इतना लस्त-पस्त हो गया है कि सांस लेने के लिए उसे संघर्ष करना पड़ रहा है।"

बनारस के अराजी चंद्रावती गांव में घुसते ही गुमसुम और बेहाल बच्चों की रोती-बिलखती उनकी मांओं की आवाज़ें सुनाई देती हैं। साफ पानी के लिए अपने बच्चों को गोद में लिए बदहवास भटकते उनके मां-बाप इधर-उधर दिखते हैं। बनारस से करीब 26.3 किलोमीटर दूर है अराजी चंद्रावती गांव, जहां ज्यादातर नट और राजभर समुदाय के लोग रहते हैं। गांव में प्रवेश करते ही काबीना मंत्री और चंदौली के सांसद महेंद्रनाथ पांडेय की उपलब्धियां गिनाने वाला एक शिलापट दिखता है, जो जमींदोज हो गया है। नट बस्ती के बच्चे इस शिलापट पर खड़े होकर गांव से आते-जाते लोगों को निहारते रहते हैं। समूची बस्ती कबाड़ बीनने के धंधा करती है। जो लोग कचरे से कबाड़ बीनने में सक्षम नहीं हैं वो और उनके बच्चे लाचारी में भीख मांगते हैं। चकरोड पर बनी पतली सड़कों से होते हुए इस गांव में पहुंचने पर ज्यादातर लोगों के मकान पक्के दिखते हैं, लेकिन किसी पर प्लास्टर नहीं है। हर घर के पास शौचालय है, लेकिन पिट गहरा न होने के कारण बारिश के दिनों में ओवरफ्लो होने लगता है। अराजी चंद्रावती की नट बस्ती की आबादी करीब 350 है। इस बस्ती की सिर्फ औरतों को ही नहीं, साफ पानी के लिए बच्चों को भी बड़ी जंग लड़नी पड़ती है।

"अराजी चंद्रावती की नट बस्ती में तीन-चार सरकारी हैंडपंप हैं, जिनमें गंदा पानी आता है। यही पानी नट बस्ती के लोगों के लिए काल बन गया है। जो कोई सरकारी हैंडपंपों का पानी पीता है, उसे कुछ ही घंटों में उल्टी-दस्त होने लगी है। जिन लोगों ने अपने निजी हैंडपंप लगवा रखें हैं उनके हैंडल को सीकड़ बांधकर ताला लगा दिया गया है। कोई चाहे तब भी उन हैंडपंपों से पानी नहीं निकाल सकता है। कई बार तो पानी के लिए लोगों को गिड़गिड़ाना पड़ता है।  जिनके घरों के सामने सरकारी हैंडपंप लगे हैं, वो भी पानी नहीं निकालने देते। आखिर हम किसके यहां गुहार लगाएं?  खुद की और अपने बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए आखिर कहां से साफ पानी लाएं।" यह बताते हुए विम्मल फिर सुबकने लग जाती है।

विम्मल की मुश्किल यह है कि पहले इसकी बड़ी बेटी जैबुन को उल्टी-दस्त की शिकायत हुई। उसे लेकर अस्पताल भागे। जैबुन का इलाज चल ही रहा था कि छोटी बेटी सोनम भी डायरिया की चपेट में आ गई। इसे अस्पताल लेकर गए तभी बेटा नासिर बीमार हो गया। तीनों की हालत सुधरी तो विम्मल का डेढ़ वर्षीय नाती बाबू उल्टी-दश्त की चपेट में आ गया। नट बस्ती की विम्मल कहती हैं, "हम कूड़ा-कचरा बीनकर परिवार चलाते हैं। उल्टी-दस्त की बीमारी ने हमें बर्बाद कर दिया। बच्चों का इलाज कराने के लिए हमें अपनी और बच्चियों की पैजनी बेचनी पड़ी। बड़ी मुश्किल से बेटियों की नाक के लिए सोने की कील बनवाया था। इलाज के पैसे के लिए उसे भी बंधक रखना पड़ा।"

सीकड़ लगे ताले में बंधे हैं हैंडपंप 

सरकारी नलों से निकल रहे गंदे पानी से उपजे डायरिया ने उसे विम्मल जैसी कई गरीब औरतों को कर्जदार बना दिया है। उसके पति सटरू का हाल यह है कि उसका सारा समय अराजी चंद्रावती गांव से चौबेपुर के उस अस्पताल में आने-जाने में जाया हो रहा है, जहां उसके बच्चों का इलाज चल रहा है। इन दिनों न तो खेती का काम है, न कहीं कोई मजूरी मिल रही है। दूषित पानी ने इनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा कर दिया है। विम्मल कहती हैं, "हमारे घर के ठीक सामने पड़ोसी मुन्नीलाल ने निजी हैंडपंप लगवा रखा है, लेकिन उसमें ताला डाल रखा है। बंसू के घर लगे हैंडपंप में भी ताला लगा है। मिन्नत करने पर भी वो पीने के लिए पानी नहीं दे रहे हैं। सरकार भी हमारी परेशानियां नहीं सुन रही है। साफ पानी हमारे नसीब में नहीं है। जो पानी है भी उसमें से कीड़े निकल रहे हैं। गंदे पानी को उबालकर बच्चों को पिलाना पड़ रहा है और खुद भी पीना पड़ रहा है।"

मुश्किल भरी यह कहानी सिर्फ विम्मल और सटरू नट की नहीं है। 32 वर्षीय बादशाह के छह बच्चे हैं जो गंदा पानी पीकर बीमार हैं। सलमान, सुल्तान, समीर और बेटी छोटी डायरिया से पीड़ित हैं। इनका इलाज कराने में सालों की सारी कमाई डूब गई। बादशाह की पत्नी गुड़िया बताती है, "हमें अपने जेवर ही नहीं, मजूरी में मिले चावल और गेहूं तक बेचने पड़ गए। बच्चों की हालत बिगड़ी तो उन्हें लेकर चौबेपुर के एक नर्सिंग होम में गए, लेकिन वहां हमारे बीमार बच्चों को अंदर ही नहीं घुसने दिया गया। हमें बोला गया कि तुम लोगों के लिए यह अस्पताल नहीं है। बीमार बच्चों को लेकर जिस-जिस अस्पताल में गए, हर जगह हमें मायूसी ही मिली। चौबेपुर के डा.अरविंद भले आदमी निकले जो उन्होंने हमारी मुश्किलों को समझा और बच्चों का इलाज किया। शायद हम नसीब वाले थे कि सभी बच्चे जिंदा बच गए, जिन्हें बचाने की हम उम्मीद खो चुके थे।"

बादशाह के छह बच्चे हैं। वह कहते हैं, "डायरिया फैलने के बाद गांव में पहुंची डाक्टरों की टीम ने ओआरएस घोल के पैकेट बांटे हैं। समूची नट बस्ती वही घोल बच्चों को पिला रही है। हमें कुछ लाल-पीली गोलियां दी गई हैं, जो पेट में मड़ोर उठने पर बीमार बच्चों को खिलाने लगते हैं। नासूर जस का तस है। पानी की निकासी का पुख्ता इंतजाम न होने के कारण हैंडपंपों से कीड़ों का निकलना जारी है।" चंद्रावती नट बस्ती की एक महिला अपने दो साल के बेटे जानी को लेकर अस्पताल पहुंची, वे वहीं दहाड़ मारकर रोनी लगीं। न्यूजक्लिक से कहा, " हैंडपंप का पानी पीकर उसका बेटा पिछले सात दिनों से बीमार है। यही हाल बेटी का भी है। समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें?" 

नट बस्ती के चांद मोहम्मद के पुत्र लाल मोहम्मद को भी डायरिया की शिकायत है। महेंद्र नट को सांस की बीमारी है। बब्बू नट की बेटी आलिया, आशिया और पत्नी नसीबुन भी डायरिया की जद में है। सब के सब हैंडपंप का गंदा पानी पीकर चारपाई पकड़े हुए हैं। कलेक्टर नट की तीन वर्षीया बेटी पारो की हालत ज्यादा चिंताजनक है। इनकी पत्नी मुनिया ने न्यूजक्लिक से कहा, "हम रोटी-नमक के लिए मोहताज हो गए हैं। बीमार बेटी को इलाज के लिए अपने मायके भेजना पड़ा।"  पास खड़ी मुनिया की सास मालती ने कहा, " हुजूर, कुछ खाने का इंतजाम करा दीजिए। हमारे घर में घुसकर देख लीजिए। अन्न का एक दाना नहीं है। उधार लेकर किसी तरह से बच्चों को चावल उबालकर खिला रहे हैं। बच्चों का पेट नहीं भर पा रहा है। दोनों वक्त का भोजन तो हमारे नसीब में है ही नहीं।"

दूसरी बीमारी आ गई तब क्या होगा?

25 वर्षीय पिंटू भी अपना दुखड़ा सुनाते-सुनाते रोने लगा, "पिछले कई दिनों से हमारी पत्नी ममका डायरिया से लड़ रही थी। दवाइयों से ज्यादा आराम नहीं है। डॉक्टरों ने कुछ जांच करने की बात कही है, लेकिन अभी तक कुछ हुआ नहीं। हालत ज्यादा बिगड़ गई तो लाचारी में ममता को इलाज के लिए मायके भेजना पड़ा।"  पिंटू कहता है, " हमारे पास काम नहीं, पैसा नहीं। मजूरी के लिए भटक रहे हैं। कूड़ा-कचरा बीनकर बस किसी तरह जिंदा रहा जा सकता है, पेट नहीं भरा जा सकता है।"  मजूरी करने वाले मुनव्वर नट को इस बात का संतोष है कि उसकी सात महीने की बेटी सुनैना डायरिया से बीमार हुई, पर इलाज के बाद वो ठीक हो गई। मुनव्वर को इस बात की चिंता है कि कोई दूसरी बीमारी आई तब क्या होगा?

अराजी चंद्रावती गांव की नट बस्ती के लोग जिस समय न्यूजक्लिक को अपना दुखड़ा सुना रहे थे, तभी एक ओर से औरतों के रोने-पीटने का शोर उठा। दरअसल, गुरु नट की छह साल की बेटी को उल्टी-दस्त हुई और वह अचानक बेसुध हो गई। घर वालों को समझ में ही नहीं आया कि आखिर यह कैसी बीमारी है? बस्ती के लोगों ने मदद की और उसे लेकर पास के कस्बे चौबेपुर भागे। यहां कोई भी घर ऐसा नहीं है, जहां कोई बीमार न हो। डायरिया ने समूची बस्ती को अपनी चपेट में ले लिया है। दरअसल, बस्ती के पास एक पोखरेनुमा गड्ढा है, जिसमें डायरिया के कीड़े पनपते हैं और मच्छर भी। नट बस्ती के हसरू कहते हैं, " हैंडपंप की डीप बोरिंग न होने की वजह से इसी गड्ढे का गंदा पानी नलों से निकलता है और लोग बीमार होते हैं। इस बस्ती के लिए डायरिया कुछ दिनों की कहानी नहीं है। यह बीमारी यहां हर साल दस्तक देती है और किसी न किसी की जान लेने के बाद ही जाती है। सालों से चल रहा है यह सिलसिला। ज़्यादातर बच्चे बरसात और बाढ़ के बाद आमतौर पर होने वाली उन्हीं संक्रामक बीमारियों से ग्रस्त हैं। बीते सालों में इस बस्ती के कई बच्चों की डायरिया से मौत हो चुकी है।"

अराजी चंद्रावती के बीचो-बीच एक कुआं भी है, लेकिन उसके पानी से सिर्फ नहा सकते हैं, पी नहीं सकते। इस कुएं का पानी पीने पर जान जा सकती है। हसरू नट बताते हैं, " गांव के बाहर बगीचे में एक कुआं है। वहां पानी तो है, लेकिन वहां जाने की कोई हिम्मत नहीं जुटाता। बस्ती की औरतें बताती हैं कि कालांतर में कई लोग वहां पानी लेने गए तो कुएं में गिरकर मर गए।"  पास खड़े बादशाह नट ने बात जोड़ते हुए कहा, " वह कुआं नहीं, भूतों का डेरा है। वहां जाने से हर कोई डरता है। हम लोग अपने बच्चों को उस कुएं के आसपास कभी फटकने नहीं देते।"

अराजी चंद्रावती के लोगों को नखड़ू नट से भी ज्यादा शिकायत है। एक सरकारी हैंडपंप इनके घर के सामने लगा है। औरतें पानी भरने जाती हैं तो नखड़ू और उनका परिवार झगड़ा करना शुरू कर देता है। नखड़ू की पत्नी रेशमा से बात हुई तो उसने आरोप लगाने वालों को ही कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया। रेशमा ने कहा, " पानी तो सभी को चाहिए, लेकिन हैंडपंप खराब होता है तो मरम्मत के लिए कोई पैसा नहीं देता। पानी लेने के लिए औरतों को मनाही नहीं है, लेकिन हम नहीं चाहते कि आदमी हमारे घर आएं। जो आते हैं वो दारू पीकर आते हैं। बवंडर मचाते हैं और झगड़ा करते हैं। घर की औरतों पर छींटाकशी करते हैं। बताइए कि हमारी मुश्किल कौन सुनेगा? " 

नट बस्ती में पसरा है सन्नाटा 

नट बस्ती की मांओं के पथरीले चेहरों पर गहरी उदासी चिपकी हुई है। बस्ती की हर झोपड़ी में सन्नाटा पसरा है। अपनी खाली रसोई के सामने चमकीली साड़ी पहने बिट्टन उस पूरे माहौल के विरोधाभास को खुद में समेटे हुए खामोश बैठी थीं। वह कहती है, " सिर्फ पानी का संकट नहीं। घर में चारपाई डालने के लिए जगह नहीं है। गंदे पानी की निकासी का कोई इंतजाम नहीं है। समूची नट बस्ती खुली नालियों, गंदे पानी के खुले तालाबों, कूड़े और गोबर के ढेरों से भरी हुई है। तीन-चार बार डाक्टर आए, दवा देकर चले गए।" अराजी चंद्रावती गांव की बदनसीबी यह है कि मजूरी और कूड़ा-कचरा बीनकर जिंदगी गुजारने वाले लोगों की जिंदगी कूड़ा बन गई है। बस्ती में भीषण गंदगी है। जल-निकासी का कोई इंतजाम नहीं है। बारिश के दिनों में आने-जाने का रास्ता कीचड़ से भर जाता है। 

अराजी चंद्रावती से सटा है श्रीकंठपुर गांव। आसपास के गांवों में पेयजल की सप्लाई के लिए यहां ओवरहेड टैंक बना है। इसी से पानी की सप्लाई नट बस्ती में होनी थी। लाइन भी बिछाई गई है, लेकिन सिर्फ नाम के लिए। ठेकेदार पैसा बटोरकर चले गए। कुछ महीने पहले दो-चार लोगों को टंकी का पानी मिल भी जाया करता था। पाइप क्रेक होने की वजह से पेयजल आपूर्ति पूरी तरह ठप है। पाइप लाइनें तहां-तहां टूटी पड़ी हैं। नट बस्ती में टंकी का पानी पहुंचा ही नहीं है।

चंद्रावती ग्राम सभा के प्रधान युधिष्ठिर निषाद कहते हैं, "नट बस्ती में एकता नहीं है, इसलिए लोगों ने अपने निजी नलों को ताले में जकड़ रखा है। हम उनके साथ जोर-जबर्दस्ती नहीं कर सकते। निजी नल से किसी को पीने के लिए पानी देने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। हमने गांव में मुआयना किया है। सरकारी हैंडपंपों की डीप बोरिंग कराने की योजना बना रहे हैं। हमारी कोशिश होगी कि भविष्य में इस गांव में दोबारा डायरिया न फैले। समूची नट बस्ती भले ही उल्टी-दस्त की बीमारी का रोना रो रही है, लेकिन डायरिया से सिर्फ दो घरों में ही फैला है। बाकी लोगों को दूसरी बीमारिया हैं।" नट बस्ती के लोग बताते हैं कि जब से यहां डायरिया का प्रकोप फैला है, तब से चिकित्सकों की टीम रोजाना दौरा कर रही है। अराजी चंद्रावती गांव के नालियों की सफाई भले ही नहीं हो पाई है, लेकिन कुओं में ब्लीचिंग पाउडर डाला जा चुका है। स्वास्थ्य विभाग की टीम घर-घर जाकर ओआरएस घोल के पैकेट और क्लोरिन की गोलियां बांट रही है।

चौबेपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सक डा.कुंवर अमित सिंह, डा.प्रदीप जायसवाल, डा.प्रतिमा गुप्ता कई बार इस गांव का दौरा कर चुके हैं। इन डाक्टरों का कहना है कि सरकारी अस्पताल में अधिकतर बच्चे तभी आते हैं जब उनकी हालत गंभीर हो जाती है। अस्पताल में संसाधन कम हैं, लेकिन मरीज बहुत हैं। अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि ज़रूरी दवाइयों की कोई कमी नहीं, लेकिन लोग सरकारी दवाइयों पर भरोसा ही नहीं करते और चाहते हैं कि उन्हें बाहर से ही दवाइयां मंगाकर दी जाएं, जो कि संभव नहीं है। दूसरी तरफ, नट बस्ती के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर दवाओं और अन्य सुविधाओं के न होने का भी आरोप लगा रहे हैं।

आंसुओं में लिपटा है बाढ़ का दर्द

डायरिया से सिर्फ चंद्रावती गांव की नट बस्ती ही पीड़ित नहीं है। बनारस में जब से बाढ़ उतरी है, गंगा, वरुणा और चंद्रावती नदियों के किराने बसे तमाम गांवों में उल्टी-दस्त, बुखार और डेंगू ने कहर बरपाना शुरू कर दिया है। डायरिया, डेंगू, मलेलिया, वायरल बुखार के प्रकोप के हाथों हर साल अपने बच्चे खो रही बनारस की मांओं के लिए हर नया आंकड़ा हमेशा से एक ताज़ा निजी ज़ख्म रहा है। बाढ़ प्रभावित इलाकों में औरतों से बात करके यही लगता है जैसे उनके आंसुओं में लिपटा हुआ बनारस का दुख, सितंबर महीने के धूप-छांव के साथ अवसाद बनकर पूरे इलाक़े में फैल रहा है।

रजवाड़ी गांव के आरटीआई एक्टिविस्ट संजय सिंह कहते हैं, " बाढ़ हर साल आती है और जब उतरती है तो जानलेवा बीमारियां बांट जाती है। ऐसा नहीं है कि इन बीमारियों से बच्चे इसी साल बीमार हो रहे हैं और मर रहे हैं बल्कि ऐसा पिछले कई सालों से होता आ रहा है। बावजूद इसके,  बारिश के संवेदनशील महीनों के लिए कुछ ख़ास इंतज़ाम नहीं हैं। स्वास्थ्य महकमे के अफसर बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं, लेकिन आंचलिक इलाकों में रहने वाले लोगों को चिकित्सा सुविधाएं मयस्सर नहीं होती हैं। नजीता, लोग अपने बीमार बच्चों को लेकर इधर-उधर घूम रहे हैं।"

संजय सिंह यह भी कहते हैं, " बुखार और डायरिया के साथ-साथ स्वास्थ्य, सफाई और चिकित्सा के सालों से ध्वस्त पड़े ढांचे की तरफ मीडिया हर साल ध्यान आकर्षित करती है, लेकिन उल्टी-दस्त व बुखार पीड़ित बच्चों की अस्पतालों में कराहती सासें हुक्मरानों के दावों को तार-तार करती है। तमाम स्वास्थ्य जटिलताओं की वजह से होने वाली बच्चों की सालाना मौत का सिलसिला दशकों पुराना है। वाराणसी के अंचल इलाकों में भूमिगत पानी का स्तर सामान्य से ऊपर है, इसलिए ज्यादातर यहां के लोग पीने के लिए कम गहराई पर खुदे हुए हैंडपंप और नलों के पानी का इस्तेमाल करते हैं। घरों के चारों तरफ फैली गंदी नालियों और गड्ढ़ों का पानी अक्सर पास बने हुए पीने का पानी देने वाले नलों और हैंडपंपों के भूमिगत पानी में घुलकर, उसे प्रदूषित कर देता है। इस संक्रमित पानी को पीने से डायरिया फैलता है।"

बाढ़ उतरी तो बीमारी दे गई

वाराणसी के कबीरचौरा स्थित मंडलीय चिकित्सालय और पांडेयपुर के जिला अस्पताल के अलावा अन्य सरकारी अस्पतालों और निजी अस्पतालों में भी बड़ी संख्या में बच्चों के भर्ती होने की ख़बर है। स्वास्थ्य विभाग का एपिडेमिक सेल गांव-गांव लोगों के स्वास्थ्य की जांच कर रहा है तो साफ़ सुथरा रहने का सुझाव भी दे रहा है, लेकिन अस्पतालों में भर्ती होने वाले बच्चों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही है।

दरअसल, बनारस में हर साल जुलाई से सितंबर तक का महीना कई गांवों के लोगों के लिए मुसीबत भरा होता है। गंगा और वरुणा नदियों के उफान पर होने की वजह से लोगों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं। जब बाढ़ का पानी नीचे उतर जाता है तो यह समस्या तो कम हो जाती हैं, लेकिन लोगों के सामने घर में पहुंचने और अपने क्षेत्र में सुरक्षित रहने का बड़ा संकट होता है। गंदगी और कीचड़ से लोगों को दो-चार होना पड़ता है। गंगा नदी के किनारे घाटों का सिल्ट उठाने के लिए नगर निगम की भारी-भरकम फौज जुट जाती है, लेकिन इस बार इस काम में खास तेजी नहीं दिख रही है। रविदास घाट, नमो घाट, अस्सी घाट और मणिकर्णिका घाट पर रोजाना बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं। इन घाटों की सफाई का काम जब पूरा हुआ तभी गंगा फिर उफनाने लगी।

बनारस के अधिसंख्य घाटों पर बालू की सिल्ट जमी है। ज्यादा मुसीबत वरुणा पार के इलाके में हैं, क्योंकि यहां पर सिर्फ एक दो इलाके में साफ-सफाई के बाद नगर निगम ने अपनी जिम्मेदारियों की इतिश्री कर ली है। गंगा की बाढ़ के चलते इस बार करीब दस हजार से अधिक परिवारों को बड़ी मुसीबत झेलनी पड़ी है। बाढ़ जा चुकी है, लेकिन मुश्किलें जस की तस हैं। लोग अब संक्रामक बीमारी की परेशानियों से घिर गए हैं। बदबू, सड़ांध और मच्छरों के हमलों से लोगों का जीना दूभर हो गया है। हुकुलगंज के अमन कहते हैं, " शाम होते ही मच्छर और कीट-पतंगे हमला बोल देते हैं। डेंगू का खौफ बहुत ज्यादा है।"

वरुणा पार के अंदर वाले मोहल्ले गंदगी और परेशानियों से जूझ रहे हैं। जहां अब तक नगर निगम की टीम तो नहीं पहुंची। नगर आयुक्त प्रणय सिंह कहते हैं, "वरुणपार इलाके में वरुणा का पानी गंगा से ज्यादा मुसीबत पैदा करता है। इस नदी के तटीय इलाकों में बड़ी आबादी बस गई है। बड़े-बड़े मकान और आलीशान होटल भी बने हैं। वरुणा की तलहटी में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य जारी है। यही वजह है कि यह नदी गंगा से ज्यादा तबाही मचाती है।"

क्या कहते  हैं अफसर?

बनारस शहर में मलेरिया विभाग के कर्मचारी घरों में डेंगू के लारवा की जांच कर रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, अब तक डेंगू के करीब 42 मरीजों की शिनाख्त हुई है। ज्यादातर डेंगू रोगी में हुकुलगंज, मीरापुर बसही, टकटकपुर और लालपुर, श्रीनगर कॉलोनी, बीएलडब्ल्यू, खजुही सारनाथ, टकटकपुर, संकटमोचन, आशापुर, सुद्धीपुर, पहड़िया, आखिरी बाईपास, पांडेयपुर, डॉक्टर कॉलोनी में पाए गए हैं। जिला मलेरिया अधिकारी एससी पांडेय मीडिया को बताते हैं, "जिन-जिन इलाकों में डेंगू के मरीज सामने आए हैं, उस एरिया में नगर निगम और मलेरिया विभाग द्वारा एंटी लार्वा का छिड़काव कराया गया।  वरुणा नदी के तट पर बसे हुकुलगंज में डेंगू मरीजों सामने आने पर फॉगिंग कराई जा रही है। पानी की टंकियों, ड्रम आदि की जांच कराई जा रही है। जिन घरों में डेंगू के लारवा पाए जा रहे हैं उन्हें नोटिस दी गई हैं। संवेदनशील इलाकों में स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम द्वारा फॉगिंग व एंटी लार्वा का छिड़काव किया जा रहा है जिससे संक्रामक बीमरियों को नियंत्रित किया जा सके।''

जनमित्र न्यास और प्राथमिक स्वाथ्य केंद्र पिंडरा ने नेहिया के रौनाबारी मुसहर बस्ती में चाइल्ड एंड यू की मदद से मेडिकल कैंप का आयोजन किया। यहां उल्टी-दस्त,  और खांसी-बुखार के 110 मरीजों का उपचार किया गया। डा.सतोष कुमार सिंह, डा.जेके सिंह, डा.अनिल जैसवार के अलावा जनमित्र न्यास के मंगला प्रसाद, आनंद प्रकाश, गीता मौर्य आदि ने मुसहर समुदाय के लोगों को साफ-साफाई के लिए जागरूक किया। इसी तरह चित्रसेनपुर में सरकारी चिकित्सक डा.देवदत्त के नेतृत्व में चिकित्साकर्मियों ने बड़े पैमाने पर मलेरिया, डेंगू, टाइफाइड और कोविड की जांच की और दवाइयां भी बांटी गईं।

बनारस के नगर स्वास्थ्य अधिकार डा.एनपी सिंह कहते हैं, "संक्रामक के मद्देनजर संवेदनशील इलाकों में बड़े पैमाने पर साफ-सफाई का अभियान चलाया जा रहा है। डेंगू का खतरा ज्यादा है। लोगों को जागरूक करने के लिए स्वास्थ्य कर्मचारी घर-घर जा रहे हैं और लोगों को बता रहे हैं कि घरों के आसपास जल-जमाव न होने दें। छत और घर के अंदर बेकार डिब्बे, पात्र जिसमें गंदा पानी इकट्ठा हो सकता हो उसे खाली कर दें।  कूलर में पानी न रहने दें या हर दूसरे दिन पानी बदलते रहें। फ्रिज के पीछे प्लेट में पानी एकत्र न होने दें। गमलों, नारियल के खोल, या अनुपयोगी टायर, टंकी को जरूर से साफ करवाते रहें, एवं उनमें पानी एकत्र न होने दें। मच्छरदानी का प्रयोग जरूर करें और पूरी बांह के कपड़े पहनें।"

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