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ग्राउंड रिपोर्ट: 'ना आना इस देश मेरी लाडो' कहावत को चरितार्थ कर रहा बिहार

('सशक्त बेटियां समृद्ध बिहार' नारों के बीच बिहार में गर्भपात, बालविवाह और जिस्मफरोशी की वजह से कम हो रही हैं बेटियां)
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सुपौल के त्रिवेणीगंज प्रखंड में बाल विवाह को गैर लाभकारी संस्था ग्राम विकास परिषद ने रुकवाया था

"मेरे गांव में एक सरकारी नर्स के द्वारा प्राइवेट क्लीनिक चल रहा है। जहां अधिकांश मरीज महिलाएं होती हैं। किसी सामान्य डॉक्टर से ज्यादा रुपया कमा रही हैं। वह महिला जिस जाति से ताल्लुक रखती हैं उसकी संख्या उस क्षेत्र में ज्यादा है। सबको पता हैं कि यहां महिलाओं के प्रसव कराने के साथ-साथ लगभग हर बीमारी का इलाज किया जाता है। केस नहीं संभलने पर शहर के प्राइवेट क्लिनिक में रेफर कर देती है। अब तो इन लोगो ने गाँव के मृतप्राय पड़े पुस्तकालय पर ही कब्ज़ा जमा लिया है। जहाँ तक PC-PNDT एक्ट का सवाल है तो यह अपनी जगह सही है पर अधिकांश आरोपियों को सज़ा नहीं मिल पाती। उन्हें कई स्तरों से बचाने के प्रयास किये जाते हैं। छोटे शहरों में धरल्ले से यह काम किया जाता है।" यह बात बिहार के बेगूसराय जिले के वनद्वार के अनमोल पाठक ने फोन पर बताई।  

मुजफ्फरपुर के स्थानीय पत्रकार संदीप सिंह बताते हैं कि, "मुजफ्फरपुर स्थित जूरन छपरा मोहल्ला में छोटी-छोटी गलियों में बने डॉक्टरों, दवा-दुकानों और जांच घरों के साइनबोर्ड काफी संख्या में मिलती हैं। यह गली चिकित्सकीय व्यवसाय की गलत प्रैक्टिस के लिए भी बदनाम है। कुछ बड़े डॉक्टर और सेंटर को छोड़ दिया जाए तो लगभग हर सेंटर में लिंग परीक्षण भी होता है और गर्भपात भी कराया जाता है।"

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 की रिपोर्ट के मुताबिक

राजधानी पटना के बाद बिहार का दूसरा बड़ा शहर मुजफ्फरपुर में नवजात शिशुओं का लिंगानुपात 685 पर पहुंच गया है, जो संभवतः देश में सबसे कम है। मुजफ्फरपुर के अलावा पूर्वी चंपारण, सारण, बक्सर भोजपुर, औरंगाबाद गया,अरवल, शेखपुरा, भागलपुर, समस्तीपुर,कटिहार, लखीसराय नवादा, अररिया, सुपौल मधुबनी और दरभंगा जैसे 18 जिलों में नवजात शिशुओं का लिंगानुपात बहुत कम हैं। 11 जिले की स्थिति संतोषजनक और 8 जिले की स्थिति बेहतर हैं। एक आंकड़े के मुताबिक बिहार में प्रत्येक साल 52000 बेटियां गर्भ में मार दी जाती हैं।

कोसी अंचल में तो सालों भर दी जाती है बेटियों की बलि!

बिहार महिलाओं के लिए कितना सुरक्षित? इस सवाल का सच और भयानक जवाब आपको कोसी क्षेत्र देता है। कोसी अंचल में तो सालों भर बेटी की बलि दी जाती है। गर्भपात करके, तस्करी करके या कम उम्र में शादी करके। यूं समझिए कोसी में एक मशहूर कहावत है कि बेटी के जन्म में धरती सवा हाथ भीतर चली जाती है और बेटे के जन्म में सवा हाथ ऊपर।

मधेपुरा जिले के श्रीनगर थाना क्षेत्र के पुरैनी वार्ड नंबर 11 निवासी जहांगीर आलम बताते हैं कि, "हमारी भतीजी लगभग 16 साल की होगी, इसी साल के फरवरी महीने में उसके लिए बगल वाला जिला सुपौल से रिश्ता आया। रिश्ता लाने वाला अपना ही गांव का था, नाम नहीं बताऊंगा। अजीब तब लगा, जब पता चला कि लड़का उत्तर प्रदेश का है और लड़की के बदले हम लोगों को ₹2 लाख रूपया भी मिलेगा। हमने रिश्ता मना कर दिया। लगभग एक सप्ताह के बाद हमने बगल वाले थाने में शिकायत भी की किस बात की। फिर लगभग 15 दिन के सुपौल के जदिया थाना क्षेत्र के मुहर्रमपुर बघेली के 8 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था। यहां ऐसी घटनाएं आम हैं।"

बिहार के सुपौल के पकड़ी गांव के श्याम साह (46 वर्ष) बताते हैं कि, "हमारे गांव के दलित और महादलित इलाके में 18-19 साल की बच्चियों की शादी पंजाब और हरियाणा के लड़कों के साथ हो रहीं हैं। वो भी मां और बाप के मरजी से। बस चंद रूपए के लिए यहां बेटियों को बेच दिया जाता हैं। कोसी तटबंध के भीतर के इलाके में इस तरह की घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं। खास कर बाढ़ के वक्त कोसी और सीमांचल इलाके में शादी और नौकरियों के नाम पर लड़की की खरीद फरोख्ती होती है। स्थानीय अपराधियों के संरक्षण में मानव तस्करी के नाम पर बहुत बड़ा खेल चलता हैं।"

नेशनल हेल्थ फैमिली रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में बाल विवाह के मामले में सुपौल का पहला स्थान है। आधे से अधिक यानी 56% लड़कियां की 18 वर्ष से कम उम्र में शादी हो जाती है। वहीं बिहार में 2017 में मानव तस्करी से जुड़े 121 मामले दर्ज हैं। यह आंकड़े 2018 में बढ़कर 179 हो गए। 2019 के आंकड़े एनसीआरबी की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं हैं। वहीं सुपौल में नवजात शिशुओं का लिंगानुपात 885 है।

2022 के फरवरी महीने में मानव तस्करी के आरोप में सुपौल के जदिया थाना क्षेत्र के मुहर्रमपुर बघेली के 8 लोगों को गिरफ्तार किया गया।

शायद अब इस जिंदगी में बेटी को नहीं देख पाएंगे

बिहार के सुपौल जिला के घोघररिया पंचायत के पिपरपति गांव के मोतिलाल अपने पिता के साथ गांव में रहते है। पत्नी मर चुकी है और दो बेटा दिल्ली में कमाता है। मोतीलाल बताता हैं कि, "एक लाख चालीस हजार खातिर सुनीता का बेच दलिए। उस समय कनिया भी जिंदा थी। उसने भी मना नहीं किया। घर की स्थिति बद से बद्तर थी। बेटा छोटा था और बाढ़ के डर से परिवार को छोड़कर पंजाब कैसे जाते। गरीबी से जान जाती तो बेटी को बेच दिए। शायद अब इस जिंदगी में बेटी को नहीं देख पाएंगे।"

बिहार के सुपौल जिला के घोघररिया पंचायत के पिपरपति गांव के मोतिलाल का घर, जिसने गरीबी की वजह से अपनी बेटी बेच दी।

गैर लाभकारी संस्था ग्राम विकास परिषद को 2008 की विनाशकारी कोसी बाढ़ त्रासदी के बाद मानव तस्करी, बाल श्रम और बाल विवाह के विरोध में किए अपने बेहतरीन कार्य के लिए जाना जाता है। इस संस्था की सदस्य हेमलता पांडे बताती हैं कि, "2017 और 2019 के बीच मैंने सुपौल के तटबंध के भीतर के इलाके में काम किया है। साथ ही लगभग 33 लोगों को गिरफ्तार करवाया हैं। जो नाबालिक लड़कियों को फुसला कर उत्तर प्रदेश और हरियाणा ले जा रहे थे। कई बार बीच शादी में बाल विवाह रुकवाया हैं। आंकड़े से इतर यहां ज़मीन पर जो हो रहा है वह और भी ज़्यादा खराब है।"

छोटे शहरों के अल्ट्रासाउंड सेंटरों में धड़ल्ले से लिंग परीक्षण

सुपौल जिला में आरटीआई एक्टिविस्ट के नाम से प्रसिद्ध ललन कुमार बताते हैं कि, "सरकार के तमाम प्रयासों और जागरूकता के बावजूद भी यहां के लोगों को बेटा पाने की हवस ने घेर लिया है। सुपौल और सहरसा जैसे गरीब जिलों में भी अल्ट्रासाउंड सेंटरों में धड़ल्ले से लिंग परीक्षण हो रहे हैं और अगर गर्भ में लड़की होने का पता चल गया तो भ्रूणहत्या भी हो रही है। सिर्फ 6-8 हजार रुपए के बीच में। अल्ट्रासाउंड सेंटरों की कोई निगरानी नहीं है, PC-PNDT एक्ट फाइल में धड़े हैं। इसके साथ ही सीमावर्ती इलाकों में महिलाओं, युवा लड़कियों और शिशुओं की मानव तस्करी का गोरखधंधा एक गंभीर समस्या के रूप में फैल रहा है।"

शिक्षित और समृद्ध परिवारों में कन्या भ्रूण हत्या

डीडी किसान पर प्रसारित हुई भ्रूण हत्या पर बनी सीरियल 'सौ बहनों की लाडली' धारावाहिक के प्रोड्यूसर 'आजाद' बताते हैं कि, "बिहार में भ्रूण हत्या की घटनाएं शहरी क्षेत्र के अलावा गांवों में अक्सर देखने को मिलता है। कन्या भ्रूण हत्या के कई धार्मिक आर्थिक सामाजिक और भावनात्मक कारण होते हैं। अशिक्षा, पुरुष प्रधान समाज की सोच, लड़कियों की सुरक्षा और संकीर्ण मानसिकता इसका मुख्य वजह है। कानून के माध्यम से हम इस पर रोक नहीं लगा सकते हैं। कानून तो ठोस होना ही चाहिए इसके बावजूद जागरूकता ही इस पाप को खत्म कर सकता हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि शिक्षित और समृद्ध परिवारों में कन्या भ्रूण हत्या होती हैं। सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ रिसर्च के मुताबिक 2011 में भी इस बात को बताया गया है। पहले लोगों को चार-पांच बेटा होता था, अब एक से दो। इसलिए भी शिक्षित और समृद्ध परिवारों में ये चलन अधिकांश मात्रा में बढ़ रहा है।"

डीडी किसान पर प्रसारित हुई भ्रूण हत्या पर बनी सीरियल 'सौ बहनों की लाडली' धारावाहिक बिहार पर आधारित है।

जब विश्व का सृजन नारियों से हुआ हैं तो लड़की गर्भ में मरने और भोग विलास के लिए बिकने को क्यों बाध्य है?  इस सवाल का जवाब भी हमारे समाज में व्याप्त रुढि़वादी परम्पराओं और कुरीतियों के साथ राज्य की गरीबी और बेरोजगारी के आंकड़े में झलक जाता है। बेटी को लक्ष्मी कहने वाली परम्परा में बेटियों को बेची जाती है। आज भी ग्रामीण इलाकों में बेटियों के हाथ में कलम देने की बजाय झाड़ू और चूल्हे का धूआँ दिया जाता है। पढ़े लिखे समाज में भी बेटे और बेटियों के बीच व्यवहार विभेदपूर्ण होता है। आज लड़कियों के इस हालत और दशा के लिए हमारा समाज और सरकार जिम्मेदार है।

इसके जड़ में मुख्य रूप से बिहार में मजबूती से खड़ा बेरोजगारी, बेकारी और गरीबी का आंकड़ा हैं। सरकार के नाकामी को दर्शाता यह आंकड़ा समाज में व्याप्त रुढि़वादी परम्पराओं और कुरीतियों को मजबूत करता है। तभी तो सुपौल जिला के घोघररिया पंचायत की सुनिता जैसी हजारों लड़कियां गरीबी और अज्ञानता की वजह से अंधेरे में जीने और बिकने को मजबूर हैं। बिहार के कई इलाकों में गरीबी इतनी ज्यादा हैं कि लोग लड़कियों की शादी में ज्यादा खर्च का बोझ नहीं उठा सकते तो दूर हरियाणा में अपनी लड़कियों की शादी कर देते हैं और गरीबी, कुपोषण और अशिक्षा की वजह से लड़कियां जन्म से पहले ही मार दी जाती है।

तत्कालीन मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दहेज प्रथा और बाल विवाह के विरोध में

दिल्ली और पंजाब जाकर कमाने वाला बिहार गरीबी और भूखमरी से मरने को इतना मजबूर हैं कि वो रुढि़वादी परम्पराओं और कुरीतियों के खिलाफ लड़ ही नहीं पा रहा हैं। इसलिए जिस इलाके में जितनी गरीबी हैं वहां लड़कियों की स्थिति उतनी ही बद से बदतर है। कानून के जोर से इस तरह के अपराध पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। समाज को सशक्त और समृद्ध बना कर ही संपूर्ण स्त्री सशक्तिकरण का सपना पूरा हो सकता है।

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