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हरियाणा: आशा वर्कर्स ने अपनी लंबित मांगों को लेकर किया विधान सभा कूच!

प्रदर्शन में शामिल कार्यकर्ताओं ने कहा आज की तारीख में आशाओं के जिम्मे जितना काम है, उसमें से तो कई ऐसे हैं जिनका कोई भुगतान भी नहीं है, जो यह दर्शाता है कि आज भी हमारे देश में महिला श्रमिकों को दोयम दर्जे का मानते हुए बेगारी का मजदूर समझा जाता है। वे कहते हैं इनको मिलने वाला मानदेय नहीं अपमानदेय है।
haryana aasha worker

मंगलवार 27 दिसंबर को हरियाणा की हजारों आशा वर्कर पहुंची विधान सभा कूच को पहुंची थी।  प्रदेश भर से आशा वर्कर्स अपनी वर्षों पुरानी मांगों  के साथ चंडीगढ़ की तरफ बढ़ रही थी, तभी पुलिस द्वारा पंचकूला-चंडीगढ़ बॉर्डर पर हैवी बैरीगेटिंग कर उन्हें रोकेने का प्रयास हुआ और मौके पर तनाव का माहौल रहा। 

अपनी मांगों को  लेकर प्रदेश भर की हजारों आशा वर्कर्स ने पंचकुला के 2 सेक्टर से चंडीगढ़ की ओर प्रदर्शन शुरू किया। हाउसिंग बोर्ड चौंक पर पुलिस और वर्कर्स के बीच काफी धक्का मुक्की हुई।  इसके बाद देर शाम तक हजारों आश वर्कर वही डटी रही और अपना धरना जारी रखा लेकिन शाम सात बजे सरकार को चेतावनी के साथ अपना धरना स्थगित कर वापस लौटी।  
इस प्रदर्शन मे शामिल आशा वर्कर की मांग है कि उन्हें पक्का कर्मचारी बनाया जाए।  रिटायरमेंट बेनिफिट सहित सभी सामाजिक सुरक्षा लाभ देने  और इसके साथ ही 26000 न्यूनतम वेतन हो तथा बेगार प्रथा बंद हो।  
  
ये विधानसभा मार्च  का आह्वान केन्द्रीय मज़दूर संगठन सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीआईटीयू) से जुड़ी आशा वर्कर्स यूनियन हरियाणा ने किया था। इससे पहले भी इनके नेतृत्व आशा वर्कर ने कई विजय आंदोलन भी किए है और लगातार प्रदेश और देशभर आशा वर्कर के सवाल पर संघर्ष करती रही है। 

प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए एवं यूनियन की राज्य अध्यक्ष सुरेखा ने कहा कि, "आशा वर्कर्स पिछले 17 साल से स्वास्थ्य विभाग की सेवा कर रही हैं। स्वास्थ्य विभाग की तमाम योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करने स्वास्थ्य विभाग एवं आम जनता के बीच महत्वपूर्ण कड़ी का काम कर रही है। शिशुओं किशोरों एवं गर्भवती महिलाओं को स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाएं देने वाली इन वर्कर्स को सरकार स्वयंसेवी कहकर 17 साल से वेतन देने एवं पक्का कर्मचारी बनाये जाने से मना कर रही है। जब आशा वर्कर से काम लिए जा रहे हैं तो उनके साथ पक्के कर्मचारियों से भी सख्त रवैया अपनाया जा रहा है। 17 फरवरी 2022 को हड़ताल किए जाने के खिलाफ भी सरकार ने आशा वर्कर्स पर एस्मा लागू किया था जिसकी हमने घोर निंदा एवं जबरदस्त प्रतिकार किया था। हम सरकार के वर्कर्स विरोधी रवैया की घोर निंदा करते हुए मांग करते हैं कि सभी वर्कर्स को पक्का कर्मचारी बनाया जाए। 26000 न्यूनतम वेतन दिया जाए। रिटायरमेंट बेनिफिट सहित सभी सामाजिक सुरक्षा लाभ दिए जाएं।"

आशा वर्कर्स देश मे प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा की रीढ़ हैं। ये राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के तहत पहले उल्लेख किया गया था कि आशा कम्युनिटी हेल्थ वॉलंटियर्स हैं जो सरकार की स्वास्थ्य प्रणाली और समुदाय के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करती हैं। एनएचआरएम का विस्तार बाद में 2013 में शहरी क्षेत्रों को कवर करने के लिए किया गया था। वर्तमान में देश में क़रीब 10 लाख आशा कार्यकर्ता हैं।

वर्तमान देशभर में सरकार इतना महत्वपूर्ण काम करने वाली आशाओं को कर्मचारी मानने को ही तैयार नहीं है ।उनकी  मासिक आय न्यूनतम मजदूरी से कम है। वर्तमान मे हरियाणा में 20,000 से अधिक आशाएं हैं, जो देश के अन्य हिस्सों की तरह, सामुदायिक स्वास्थ्य स्वयंसेवक हैं, जो स्वास्थ्य प्रणाली और समुदाय के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम कर रही हैं। एनएचएम के तहत, वे केंद्र द्वारा सूचीबद्ध 60 से अधिक गतिविधियों के लिए कार्य-आधारित प्रोत्साहन के हकदार हैं। इसके अलावा, आशा को नियमित गतिविधियों के एक सेट के लिए केंद्र के लिए 2,000 रुपये का प्रोत्साहन मिल रहा है। प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहनों के अलावा, राज्यों को आशा के लिए मासिक भुगतान तय करने की भी अनुमति है। हरियाणा में यह राशि 4,000 रुपये है।


यूनियन की महासचिव सुनीता ने वर्कर्स को संबोधित करते हुए कहा कि, "विभाग आशा वर्कर्स पर लगातार  ऑनलाइन काम करने,  घर घर जाकर आयुष्मान भारत के कार्ड बनाने और केवाईसी करने,  एनसीडी ( नॉन कयुनिकेबल डिजीज) का काम ऑनलाइन करने का दबाव बना रही है। जबकि  पिछले 3 साल से आयुष्मान  भारत के कार्ड आशा वर्कर्स द्वारा बनवाए जा रहें हैं जिसकी प्रोत्साहन राशियों का भुगतान  विभाग द्वारा आज तक नहीं किया गया है। विभाग द्वारा लगातार वर्कर्स पर नए-नए ऑनलाइन काम का दबाव बनाया रहा है। एक तरफ विभाग द्वारा वर्कर्स पर लगातार नए-नए काम थोपे जा रहे हैं और दूसरी तरफ आशा वर्कर को वेतन देना तो दूर की बात है उन कामों के लिए प्रोत्साहन राशियां भी तय नहीं की जा रही हैं।"

संगठन नेताओं ने कहा कि पंचायत चुनाव में जनप्रतिनिधि चुनी गई आशा वर्करों को हटाए जाने के विरोध में माननीय हाईकोर्ट में अपील की थी कि  आशा वर्कर स्वयंसेवी हैं और चुनाव आयोग द्वारा इन्हें चुनाव  लड़ने या पद पर बने रहने संबंधी कोई दिशा निर्देश नहीं दिए गए हैं। अतः विभाग अपनी मर्जी से वर्कर्स को न तो चुनाव लड़ने से रोक सकता है और ना ही उन्हें पद मुक्त कर सकता है। अपील के बाद माननीय कोर्ट ने विभाग द्वारा जारी किए गए पत्र पर स्टे दिया है परंतु अधिकारी तानाशाही करते हुए माननीय हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना कर रहे हैं और आशा वर्कर को पद से हटाने के प्रयास जारी हैं। विभाग और सरकार के इस रुख के खिलाफ आशा वर्कर्स में जबरदस्त रोष है। 


 
यूनियन के नेताओं ने कहा कि बहुत कठिन परिस्थितियों में असम्भव कार्यों को सम्भव बना रही, आशा कर्मियों की बात कोई सुनने वाला नहीं। इनकी सेवायें अनवरत वर्षों से इन्हीं बदतर और अमानवीय परिस्थितियों में जारी हैं,  चाहे 12 डिग्री तापमान हो या 44 हो, दिन हो या रात हो, महामारी हो या मौसमी बीमारियों का प्रकोप, असाध्य क्षय रोग हो या और कुछ और। सब आशा ही को करना है। सरकार के पास इनके लिए काम की योजना है पर बेहतर जीवन की कोई योजना नहीं है। लेकिन हाँ ज़गह-ज़गह प्रभारी और बी सी पी एम नाम के दरोगा जरूर बैठा दिये हैं, जो धमकाने, गला दबा कर बेगार करवाने और जो भी मिले उसका एक बड़ा हिस्सा छीन लेने के काम में बाखूबी लगे हुये हैं।

देशभर में आशा वर्कर की हालत इससे बेहतर नहीं है। हर जगह लगभग इसी बदहाल स्थति में काम करने को मज़बूर हैं। ट्रेड यूनियन नेताओं ने कई बार इसको लेकर चिंता जाहिर की है परंतु सरकारों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है। प्रदर्शन में शामिल कार्यकर्ताओं ने कहा आज की तारीख में आशाओं के जिम्मे जितना काम है, उसमें से तो कई ऐसे हैं जिनका कोई भुगतान भी नहीं है, जो यह दर्शाता है कि आज भी हमारे देश में महिला श्रमिकों को दोयम दर्जे का मानते हुए बेगारी का मजदूर समझा जाता है। वे कहते हैं इनको मिलने वाला मानदेय नहीं अपमानदेय है। कितने अफ़सोस की बात है कि दिन रात काम करने वाली ये महिला श्रमिक तो हमारे देश के श्रम कानूनों के दायरे में भी नहीं आतीं और वो इसलिए क्योंकि सरकार इन्हें श्रमिक मानती ही नहीं। उसकी नजर में तो ये महज सेवक हैं यानी इन्हें तो जनता की सेवा करनी है और उस सेवा के बदले बस जो मिले उसे ले लो।

सीटू के राज्य महासचिव जय भगवान ने वर्कर्स को संबोधित करते हुए कहा कि, "सरकार लगातार जन विरोधी एवं मजदूर विरोधी फैसले ले रही है। 29 श्रम कानूनों को खत्म करके सरकार 4 लेबर कोड लेकर आई है जिनके माध्यम से  यूनियन बनाने, हड़ताल करने के अधिकार पर हमला कर रही है। जो किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।" 

उन्होंने आगे कहा, "सरकार नई स्वास्थ्य नीति, डिजिटल हेल्थ मिशन के नाम पर और आयुष्मान भारत कार्ड योजना के नाम पर जनता के टैक्स के पैसे को बड़े-बड़े प्राइवेट चैन हॉस्पिटल को सौंपने का काम कर रही है। जबकि सार्वजनिक स्वास्थ्य के ढांचे में सुधार के कोई भी प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। शिक्षा एवं स्वास्थ्य इंसान की बुनियादी जरूरतें हैं जिन को पूरा करने का दायित्व लोकतंत्र में सरकारों के जिम्मे आता है। लेकिन सरकार अपनी तमाम कल्याणकारी योजनाओं से हाथ पीछे खींच रही है और हायर एंड फायर की नीति अपनाकर लोगों के रोजगार सुरक्षा पर भी हमला कर रही है। इसे किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। इसके खिलाफ हरियाणा प्रदेश की जनता आने वाले समय में और भी अधिक जुझारू संघर्षों को अंजाम देगी।

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