Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

हरियाणा: कोविड की दूसरी लहर में सैकड़ों आशा कार्यकर्ता हुईं पोज़िटिव;10 की मौत,लेकिन नहीं मिला मुआवज़ा

हरियाणा में कोविड से मरने वाली दस आशा कार्यकर्ताओं के परिवारों को केंद्र सरकार की घोषित बीमा राशि नहीं मिली है।
हरियाणा: कोविड की दूसरी लहर में सैकड़ों आशा कार्यकर्ता हुईं पोज़िटिव;10 की मौत,लेकिन नहीं मिला मुआवज़ा

हरियाणा के झज्जर ज़िले की 36 वर्षीय आशा कार्यकर्ता,सुमन की कोविड-19 पोज़िटिव पाये जाने के 30 दिन बाद मौत हो गयी। उनके पति,बिजेंदर कुमार के मुताबिक़,सुमन को 27 अप्रैल को पीजीआईएमएस,रोहतक लाया गया था, लेकिन ऑक्सीज़न की कमी के चलते उन्हें नहीं बचाया जा सका। सुमन हरियाणा के पुराने शहर रोहतक में महामारी से मरने वाली पहली आशा कार्यकर्ता थीं।

बिजेंदर ने न्यूज़क्लिक से बताया,"अपनी मौत से पहले वह बस यही कहती रही कि बच्चे पढ़कर अफ़सर बनें,ताकि जिस घोर ग़रीबी का सामना हमें करना पड़ा,उन्हें नहीं करना पड़े।"

एक महीने बाद परिवार अपना गुज़ारा करने के लिए हाथ-पांव मार रहा है। बिजेंदर फिलहाल बेरोज़गार है। उनके पास एक भैंस है और उसका दूध अपने पड़ोसियों को बेचते हैं। परिवार को अभी तक 50 लाख रुपये का वह बीमा नहीं मिला है,जो केंद्र सरकार ने उन स्वास्थ्य कर्मियों को देने का वादा किया था,जिनकी मृत्यु कोविड-19 जुड़ी ड्यूटी के दौरान हो जाती है।

कुमार ने बताया, "मैं झज्जर के ज़िला मजिस्ट्रेट के दफ़्तर गया और स्पष्ट रूप से कहा गया कि मेरा परिवार के पास पात्रता वाले काग़ज़ात नहीं है।"

कोविड की शिकार हो जाने वाली पंचकुला ज़िले की एक अन्य आशा कार्यकर्ता,कविता के परिवार को भी बीमा का लाभ नहीं मिल पाया है। उनके परिवार के लोग इस पर बोलना नहीं चाहते थे,लेकिन उनकी साथी और सहयोगी,सुरेखा जो सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (सीटू) की सदस्य भी हैं, उन्होंने कहा कि कविता कोविड परीक्षण में पॉज़िटिव निकली थीं और उन्हें अस्पताल में भर्ती करा दिया गया था,जहां दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गयी।

जहां सुमन और कविता की मौत से इस ज़िले की आशा कार्यकर्ताओं में दहशत पैदा हो गयी है,वहीं इन मौतों ने राज्य और केंद्र सरकारों के फ़्रंटलाइन कार्यकर्ताओं के साथ हो रहे बर्ताव की ख़ामियों को भी उजागर कर दिया है।

साबित करो कि मृतक कोविड पोज़िटिव थी

सुमन और कविता उन लाखों आशा कार्यकर्ताओं में शामिल थीं,जो ज़मीन पर देश की स्वास्थ्य प्रणाली की रीढ़ हैं, और सबसे आगे आकर कोविड-19 की लड़ाई लड़ रही हैं।

सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (CITU) के मुताबिक़,हरियाणा में सैकड़ों आशा कार्यकर्ता कोविड परीक्षण में पोज़िटिव पायी गयी हैं और उनमें से 10 की इस महामारी की दूसरी लहर के दौरान मौत हो गयी है। इन परिवारों में से किसी को भी केंद्र की तरफ़ से पिछले साल घोषित बीमा राशि नहीं मिली है। हाल ही में सरकार ने कोविड मामलों में बढ़ोत्तरी को देखते हुए फ़्रंटलाइन कर्मचारियों के लिए इस बीमा योजना को और छह महीने के लिए बढ़ा दिया है।

सीटू हरियाणा के सचिव,जय भगवान बताते हैं,“ड्यूटी पर मरने वाली आशा कार्यकर्ताओं के परिवारों को बीमा मुआवज़ा नहीं मिला है। उनकी हालत वाक़ई ख़राब है। नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं है, लेकिन काम के घंटे बढ़ा दिये गये हैं। ऊपर से उनकी मौत के बाद भी उनके परिवारों को कोई राशि नहीं दी जाती है।”

सुमन और कविता,दोनों के मामलों में बीमा के लिए उनके आवेदनों को इसलिए ख़ारिज कर दिया गया है,क्योंकि उनके परिवार यह साबित करने में असमर्थ हैं कि वे दोनों कोविड पॉज़िटिव थीं। स्वास्थ्य कर्मियों के शोक संतप्त परिवार बीमा योजना का फ़ायदा उठाने के लिए अस्पतालों को आवश्यक दस्तावेज़ जमा कराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

कविता के मामले में उनकी सहयोगी,सुरेखा ने बताया कि डॉक्टर कोविड मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं दे रहे हैं। सुरेखा ने न्यूज़क्लिक से बताया,“डॉक्टर कह रहे हैं कि उन्हें कोविड तो था,लेकिन उनकी मौत कोविड से नहीं,बल्कि मुख्य रूप से दिल का दौरा पड़ने से हुई थी। हालांकि,उनका ऑक्सीज़न स्तर 50 तक गिर गया था और वह सांस लेने के लिए हांफ़ रही थी और एक दिन बाद दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गयी।

बीमा योजना के तहत अस्पताल के अधिकारियों को यह प्रमाणित करना होता है कि कर्मचारी की मौत कोविड-19 से हुई है और उसके बाद ही मृतक का परिवार बीमा का लाभ उठा सकता है।

सुरेखा कहती हैं,"एक भी परिवार को बीमा नहीं मिला है।अस्पताल उनकी मृत्यु के पीछे के प्राथमिक कारण के रूप में कोविड को बताते हुए प्रमाणपत्रों का मसौदा तैयार करने से इन्कार कर रहे हैं।”

मास्क और सैनिटाइज़र तक नहीं

कोविड से मरने वाली आशा कार्यकर्ता,सुमन के पति बिजेंदर कुमार ने कहा कि उनकी पत्नी को मास्क, दस्ताने,पीपीई किट,बल्कि यहां तक कि सैनिटाइज़र भी नहीं दिया गया था।

बिजेंदर आगे बताते हैं,“वह अपनी नाक और मुंह के चारों ओर दुपट्टा बांधती थी। मैंने बाज़ार से सैनिटाइज़र ख़रीदा था। उसे कोई सुरक्षा को लेकर किसी तरह का कोई साज़-ओ-सामान नहीं दिया गया था।”

सुमन को पूरी तरह टीके लग चुके थे,वह अपनी मौत से कुछ दिन पहले ही वह घर-घर जाकर स्क्रीनिंग करने और लक्षणों वाले परिवारों के नमूने लेने गयी थीं। उन्होंने लोगों को इस बीमारी को लेकर जागरूक करते हुए मास्क पहनने और हाथों को साफ़ रखने की अहमियत पर ज़ोर दिया था। वह साप्ताहिक रूप से दवायें बांटने के लिए कोविड पॉज़िटिव रोगियों के घरों का भी दौरा करती थीं।

बिजेंदर ने कहा कि भारत में कोविड को कहर बरपाते हुए एक साल से ज़्यादा का समय हो गया है,और अब भी कार्यकर्ताओं को सुरक्षा से जुड़े साज़ो-सामान(सेफ़्टी गियर) उपलब्ध नहीं कराये गये हैं। एक अन्य आशा कार्यकर्ता,अनीता कुमारी कहती हैं, "यह सरकार के लिए शर्म की बात है कि डेढ़ साल बाद भी आशा कार्यकर्ता बिना सेफ़्टी गियर के काम कर रही हैं और उन्हें हर तरह के काम बिना किसी मुआवज़े और छुट्टी के सौंपे जा रहे हैं।"

हाल ही में सीटू की छतरी तले आशा कार्यकर्ताओं की तरफ़ से बुलाये गये राष्ट्रव्यापी विरोध में हरियाणा भर से 19,000 से ज़्यादा आशा कार्यकर्ता शामिल हुई थीं। हर ज़िले में इन कार्यकर्ताओं ने अपना काम स्थगित कर दिया था और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों,उप-स्वास्थ्य केंद्रों और सीएमओ कार्यालयों के बाहर प्रदर्शन किया था।

इस विरोध में शामिल होने वाली अनीता बताती हैं कि इस विरोध का मक़सद पूरे भारत में आशा कार्यकर्ताओं की बदहाली की ओर ध्यान आकर्षित करना था।

अनीता ने कहा,“हर दिन हम किसी न किसी आशा कार्यकर्ता के पोज़िटिव होने की ख़बर सुनते हैं। उनके परिवार निजी इलाज का ख़र्चा भी नहीं उठा सकते। फिर भी, सरकार ने हमारे प्रति असंवेदनशील रवैया अपना रखा है।”

मुश्किल कार्यक्षेत्र

जब से टीकाकरण अभियान शुरू हुआ है,तब से ख़ास तौर पर ग्रामीण इलाक़ों में काम करने वाली आशा कार्यकर्ताओं के लिए संकट पैदा हो गया है। उनका कहना है कि गांव के लोग टीके लगाने में बुरी तरह हिचकिचाते हैं,जिससे इन कार्यकर्ताओं को काफ़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

रोहतक की एक अन्य आशा कार्यकर्ता,सुनीता ने कहा कि टीकाकरण अभियान के बाद से ये कार्यकर्ता टीकों की अहमियत को लेकर उनके बीच जागरूकता बढ़ा रही हैं। “हम ग्रामीणों से घर से बाहर निकलने और टीका लगवाने का आग्रह करते हैं,लेकिन वे हमें अजीब जवाब देते हुए कहते हैं कि हमें कोई दिक़्क़त नहीं हैं। हम टीका नहीं लगवाना चाहते।”

जहां भारत इस साल के आख़िर तक पूरी आबादी के टीकाकरण का लक्ष्य लेकर चल रहा है,वहीं आशा कार्यकर्ता और अन्य स्वास्थ्य कर्मी ज़मीनी स्तर पर इस काम को संभव बना रहे हैं।सुनीता कहती हैं, “हम घर-घर जाकर लोगों को बताते हैं कि टीकाकरण क्यों अहम है। ऊपर से हम उन्हें टीका लगवाने पर भी ज़ोर दे रहे हैं।”  

सुनीता ने कहा कि दिन में 10-10 घंटे काम करने के बाद ये आशा कार्यकर्ता अपने परिवार से भी नहीं मिल पाती हैं। वह कहती हैं,"हम ख़ुद को अलग-थलग इसलिए रखते हैं,क्योंकि हमें नहीं पता कि कई परिवारों के संपर्क में आने के बाद हमें संक्रमण है या नहीं।"  कुछ समय से बीमारी से जूझ रहे अपने भाई की मौत के बाद हुए उसके अंतिम संस्कार का शोक भी वह नहीं मना पायी हैं। वह कहती हैं,"मैं उस दिन भी काम कर रही थी। मैं छुट्टी नहीं ले सकी। मेरा काम मेरे भाई की ज़िंदगी जितना ही महत्वपूर्ण है।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Haryana: Hundreds of ASHAs Test Positive in 2nd Covid Wave; 10 Die But No Compensation Paid

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest