Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

बच्चों और महिलाओं को कैसे मिले पोषण: देश में आंगनवाड़ी के 1.93 लाख पद खाली

आंगनवाड़ी देश में पोषण प्रदान करने के मामले में महत्वपूर्ण स्थान रखता हैं। इतनी बड़ी संख्या में पद खाली पड़े होने और सभी स्वीकृत आंगनवाड़ी केंद्रों का संचालन न होने का सीधा प्रभाव बच्चों और महिलाओं को मिलने वाले पोषण पर पड़ रहा है।
बच्चों और महिलाओं को कैसे मिले पोषण: देश में आंगनवाड़ी के 1.93 लाख पद खाली
फोटो साभार- सोशल मीडिया

राज्यसभा में एक सवाल का उत्तर देते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी ने बताया कि देश में आंगनवाड़ी में विभिन्न स्तरों पर 1.93 लाख पद रिक्त पड़े हैं, जिनमे से1.29 लाख पदअकेले पांच राज्योंउत्तर प्रदेश में 50,670, पश्चिम बंगाल में 33,439, महाराष्ट्र में 19,478, तमिलनाडु में 15,720 और बिहार में 9,828 पद खाली हैं।

आंगनवाड़ी देश में पोषण प्रदान करने के मामले में महत्वपूर्ण स्थान रखता हैं। इतनी बड़ी संख्या में पद खाली पड़े होने और सभी स्वीकृत आंगनवाड़ी केंद्रों का संचालन न होने का सीधा प्रभाव बच्चों और महिलाओं को मिलने वाले पोषण पर पड़ रहा है।

केंद्रीय मंत्री ने पोषण से सम्बंधित एक दूसरे सवाल का जबाब देते हुए संसद में बताया कि देश में माह से वर्ष के बीच9.27 लाख बच्चे अत्यधिक कुपोषण का शिकार हैंजिनमें से सबसे अधिक लाख बच्चे अकेले उत्तर प्रदेश से हैं।

स्रोत- राज्यसभा प्रश्न संख्या-1272

उत्तर प्रदेश आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों और सहायिकाओं के खाली पदों के बारे में आंगनवाड़ी फेडरेशन की उत्तर प्रदेश की अध्यक्ष वीना गुप्ता बताती हैं कि अकेले यूपी में करीब लाख से अधिक पद खाली हैंवो आगे बताती है कि अचानक निदेशक ने एक पूर्व में निरस्त आदेश का हवाला देकर 62 वर्ष पूर्ण कर रही वर्कर और हेल्पर का मानदेय रोककर सेवा से अलग करने का आदेशसुना दिया। उत्तर प्रदेश में 2011 से कोई नयी नियुक्ति नहीं हुई हैऔर लगभग 10 प्रतिशत केंद्र बिलकुल खाली हैंउनका कहना है कि 62 वर्ष के वर्कर्स को हटाने से लगभग 25 फीसदी केंद्र और खाली हो जायेंगे ये वर्कर्स इस वक्त कोविड-19 की निगरानीसर्वेटीकाकरणऔर पोषाहार वितरण में लगी हैं इनके हटाने से ये दोनों ही काम बुरी तरह से प्रभावित होनेऔर लाखों बच्चों और महिलाओंकि ज़िन्दगी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

वर्तमान में देश में करीब 14 लाख आंगनवाड़ी केंद्र स्वीकृत हैं जिनमे से अभी वर्तमान में 13.87 लाख ही संचालित हैंयानी कि देश में आंगनवाड़ी के स्वीकृत केंद्रों में से 12,265 केंद्र संचालित ही नहीं हैं। आंगनवाड़ी के विभिन्न कार्यक्रमों को संचालित करने के लिए पूरे देश में 27.41 लाख कर्मचारी और आंगनवाड़ी कार्यकत्री और सहायिका हैंजिनमें 7,075 CDPO (बाल विकास परियोजना अधिकारी), सुपरवाइजर के 51,312 पदइसके आलावा 14 लाख कार्यकत्रियों, 12.83 लाख सहायिकाओं के पद स्वीकृत हैं।

इनमें से CDPO के 2,191 पदजोकि कुल स्वीकृत पदों का 31 प्रतिशत हैसुपरवाइजर के करीब 17 हजार जोकि कुल स्वीकृत पदों का 33 प्रतिशतकार्यकत्रियों के 71 हजार से अधिक पद और सहायिकाओं के एक लाख से अधिक पद खाली पड़े हुए हैं।

देश में पोषण और आंगनवाड़ी पर खर्चे करने पर भी सरकार पीछे

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के 2020-21 केएनुअल प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन प्लान(APIP) के अनुसार आंगनवाड़ी पर होने वाला खर्चा SNP- Supplementary Nutrition Programme और आंगनवाड़ी सामान्य सेवाओं मदों के अंतर्गत केंद्र एवं राज्य सरकार दोनों के द्वारा वहन किया जाता हैंइन दोनों मदों के लिए उत्तर पूर्व के राज्यों और हिमालयी राज्यों को केंद्रीय और राज्य अंश क्रमश 90:10 और केंद्र शासित प्रदेशों को 100 प्रतिशत केंद्रीय सहायता मिलती हैं और बाकी सभी राज्यों को आंगनवाड़ी सामान्य सेवाओं के लिए केंद्रीय और राज्य अंश के तहत क्रमश 60:40 हैं और सुपलेमेंटरी नुट्रिशन प्रोग्राम के लिए क्रमश 50:50 केंद्रीय व् राज्य अंश होता हैं।

दिनांक 23 जुलाई 2021 को लोकसभा में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अतारांकित प्रश्न संख्या915 के उत्तर में वर्ष 2018-19 से 2020-21 तक पिछले तीन वर्षों में SNP-Supplementary Nutrition Programme और आंगनवाड़ी सामान्य सेवाओं में राज्यों को स्वीकृत कि गयी धनराशि और जारी की गई धनराशि का विवरण पेश कियाजिसमें उन्होंने बताया कि इन तीन वर्षों में सभी राज्यों को 54,505 करोड़ रूपये कि धनराशि स्वीकृत की गयी थी जिसमे से केंद्र द्वारा 48,044 करोड़ रूपये की राशि ही जारी की गयी हैंयानी मानकों के आधार पर तय धनराशि से 6,460 करोड़ रूपये कम जारी किये गए हैं।

2020-21 में कोरोना ने देश में त्राहिमाम मचाया हुआ थाजिसके कारण सभी आंगनवाड़ी केंद्र थे जिसका सीधा प्रभाव पोषण पर पड़ा हैंऐसे में केंद्र सरकार को कोई ऐसा रास्ता निकलने की जरूरत थी की अधिकांश लोगो को सही रूप से पोषण मिल सकेपरन्तु इस और ध्यान देने की वजाए केंद्र ने राज्यों को तय मानकों में निर्धारित राशि से 4,100 करोड़ कम जारी किये हैं और यदि हम राज्यों द्वारा उपयोग की गयी धनराशि का विवरण देखते है तो पाते है कि 2018-19 में राज्यों द्वारा 565 करोड़ और 2019-20 में 1,596 करोड़ रूपये उपयोग ही नहीं किये गए हैंवर्ष 2020-21 के उपयोग की गयी धनराशि के आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं |

ऐसे में जब केंद्र सरकार ही अपने द्वारा तय की राशि राज्यों को पूरी नहीं देगा तो राज्य आंगनवाड़ी योजना में अपने सीमित संसाधनों के साथ अपने खर्चे के हिस्से के अलावा कैसे केंद्र का भी हिस्सा कैसे देंगे |

केंद्र सरकार द्वारा जारी की गयी धनराशि का विवरण राज्यवार अध्ययन करने से ज्ञात होता हैं कि मानकों के अनुसार जारी धनराशि में कम दिए जाने में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर हैंउत्तर प्रदेश को तय मानकों से 1941.58 करोड़ रूपये कम दिए गए हैइसी प्रकार बिहार को 600 करोड़कर्नाटक को 475 करोड़असम को 317.2 करोड़पश्चिम बंगाल को 287 करोड़ और राजस्थान को 280 करोड़ रूपये केंद्र सरकार द्वारा कम जारी किये गए हैंकेंद्र द्वारा मानकों से कम राशि दिए जाने की यह स्थिति सभी राज्यों के लिए ऐसी ही हैं। जिन राज्यों का यहां जिक्र किया गया हैं ये वो राज्य है जिनमें बड़ी संख्या में कुपोषित बच्चे और एनिमिक महिलाएं हैंउनके पोषण से सम्बंधित खर्चों में कमी होने का ख़ामियाजा बच्चे और महिलाएं लगातार भुगत रहे हैं।

ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ़ आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स (AIFAWH) की राष्ट्रीय महासचिव एआर सिंधु कहती हैं कि मोदी सरकार ने ICDS के बजट में भारी कटौती की हैसके साथ ही एआर सिंधु कहती है कि सुप्रीम कोर्ट की लगातार दखल और आंगनवाड़ी की जनता में भारी मांग के चलते बंद तो नहीं कर पा रहे हैं लेकिन लगातर और वास्तविक खर्चों में कटौती कर रहे हैंजबकि कैग और संसदीय समिति की रिपोर्ट में और सरकार जब खुद कुपोषण और पूर्वं प्राथमिक स्कूली बच्चों की बात करती है तो हमेशा कहा जाता है कि आंगनवाड़ी मजबूत करना होगापरन्तु धरातल पर इसके लिए कोई कदम नहीं उठाये जा रहे हैं। खाली पदों पर बात करते हुए वे कहती हैं कि जिन आंगनवाड़ी केंद्रों पर पद खाली हैं उनकी जिम्मेदारी पास के केंद्रों के वर्कर्स को महज़ 50 रुपये प्रतिमाह के हिसाब से दे दी जाती हैं जिसके चलते वर्कर्स के ऊपर अतिरिक्त भार पड़ता हैंपरन्तु सरकार के द्वारा कोई भर्ती नहीं की जा रही हैंजिसके चलते लाभार्थियों को ठीक से लाभ नहीं पहुँच पा रहा है।

आंगनवाड़ी केंद्रों की संख्या ज़रूरत से काफ़ी कम

आंगनवाड़ी कि पहुँच से बड़ी संख्या में बच्चे बाहर हैंराज्यसभा में एक सवाल के उत्तर में केंद्रीय मंत्री ने बताया कि 31 मार्च2021 तक आंगनवाड़ी सेवाओं के तहत8.31 करोड़ लाभार्थियों को संपूरक पोषण दिया गया हैं जिसमे से6.75 करोड़ बच्चे लाभार्थी हैं और गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं कि संख्या1.57 करोड़ हैं जबकि 2011 कि जनगणना के अनुसार देश में0 से6 वर्ष के बीच16.45 करोड़ बच्चेथे जिसमें से ग्रामीण क्षेत्रों में 12.13 करोड़ थे और बाकी 4.32 करोड़ शहरों में हैंइस विषय पर एआर सिंधु कहती है कि वर्तमान में आंगनवाड़ी के अंतर्गत केवल 50 प्रतिशत लाभार्थी ही शामिल हैंदेश में वर्तमान में करीब 16 करोड़ बच्चे वर्ष कि आयु से कम के हैंऔर वही सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में आंगनवाड़ी के अंतर्गत 6.75 करोड़ बच्चे ही शामिल हैंइससे हम इस बात का अंदाजा लगा सकते है कि वर्तमान में जो 14 लाख स्वीकृत आंगनवाड़ी केंद्र हैं और वह जरूरत से काफी कम हैंकेंद्र सरकार को वर्तमान बच्चों कि संख्या एवं गृभवती और स्तनपान करवाने वाली महिलाओं कि संख्या को ध्यान में रख कर केंद्रों कि संख्या और कर्मचारियों कि संख्या में वृद्धि करनी चाहिए |

आंगनवाड़ी के अंतर्गत शामिल सेवाएं

आंगनवाड़ी सेवा स्कीम के अंतर्गत लाभार्थी वर्ष तक कि आयु के बच्चेगर्भवती महिलाएं और स्तनपान करवाने वाली माताएं शामिल कि जाती हैं जिनको सेवा पैकेजके रूप में

  • अनुपूरक पोषण (SNP)
  • पूर्व विद्यालयी गैर औपचारिक शिक्षा
  • पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा
  • टीकाकरण
  • स्वास्थ्य जाँच और रेफरल सेवाएं

परन्तु इन सब कार्यों के आलावा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं से पंचायत विभागचुनाव आयोगस्वास्थ्य विभाग और अनेकों संस्थानों और विभागों द्वारा अनेक कार्यों और सर्वेक्षण के लिए कार्यकत्रियों और सहायिकाओं को शामिल किया जाता हैं।

कोरोना महामारी के दौरान कोविड के प्रभाव को सीमित करने के लिए देशभर के सभी आंगनवाड़ी केंद्र बंद कर दिए गए थेपरन्तु लाभार्थियों को निरंतर पोषण सहयोग सुनिश्चित करने के लिए कार्यकत्रियों और साहिकाओं को महीने में दो बार घर-घर जाकर संपूरक पोषण वितरण करने के दिशानिर्देश थे।

न कोई न्यूनतम मज़दूरी और न ही कोई सामाजिक सुरक्षा

आंगनवाड़ी कार्यकत्री और सहायिका एक अवैतनिक कार्यकर्त्ता हैं जिनको सरकार कर्मचारी नहीं मानती हैं और यह न्यूनतम मजदूरी अधिनियम1948 के अंतर्गत भी नहीं आते हैंऔर सरकार द्वारा इनको बहुत ही कम धनराशि दी जाती हैं जिसको मानदेय कहा जाता है। केंद्र सरकार द्वारा मानदेय की राशि कार्यकत्री के लिए 4,500 रुपये, मिनी आंगनवाड़ी की कार्यकत्री के लिए 3,500 रुपये और सहायिका के लिए 2,250 रुपये मात्र है। केंद्र सरकार द्वारा इस तय राशि में कुछ राज्य अपनी तरफ से भी कुछ धनराशि मिलाकर देते हैं पर वह भी काफी कम होती है।

आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों और सहायिकाओं को सामाजिक सुरक्षा के नाम पर केवल प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY) और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY) के अंतर्गत 2-2 लाख रूपये का बीमा कवर दिया जाता हैं, यह बीमा PMJJBY के अंतर्गत 50 वर्ष तक और PMSBY के अंतर्गत 59 वर्ष तक की आयु तक ही दिया जाता है जबकि उनसे सेवाएं 65 वर्ष ली जाती हैं।

आपको यहां बता दे कि PMJJBY और PMSBY के अंतर्गत बीमा कोई भी आम नागरिक भी 330 रुपये और 12 रुपये देकर प्राप्त कर सकता हैं, इसके आलावा गंभीर बिमारी होने पर 20 हजार रुपये देने का प्रावधान हैं। इसके अलावा आंगनबाडी में कार्यकत्रियों और सहायिकाओं को भविष्य निधि (PF) और ग्रेचुटी का कोई लाभ भी नहीं मिलता है।

आंगनवाड़ी वर्कर्स द्वारा अपने को कर्मचारी मानने की मांग और न्यूनतम वेतन मिलने की मांग बहुत लम्बे समय से है, जिसको सरकार लगातर नजरअंदाज कर रही है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं जिन पर की देश के भविष्य के पोषण की जिम्मेदारी हैं उनके साथ सरकार की यह अनदेखी बहुत ही गलत है, जिसको तत्काल प्रभाव से दुरुस्त किये जाने की ज़रूरत है।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest