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मोदी दौर में बैंकों ने 660 हज़ार करोड़ कर्ज का नामोनिशान मिटा दिया

मोदी सरकार के बीते पाँच सालों के दौरान बैंकों ने 660 हज़ार करोड़ रूपये राइट ऑफ़ कर दिया। यह कुल NPA के तक़रीबन 50 फीसदी से ज्यादा है।
banking sector

एनपीए की वजह से हुई यस बैंक की बदहाली पूरे बैंकिंग सेक्टर के कर्ज के हालात पर बात करने के तरफ भी इशारा करती है। रिज़र्व बैंक के आंकड़ें बताते हैं कि मार्च 2013 में कुल NPA 205 हज़ार करोड़ था। मार्च 2019 में यह बढ़कर 1,173 हज़ार करोड़ हो गया। लेकिन बैंकों ने एक और खेल खेला। बैंकों ने एनपीए में शामिल कुछ कर्ज को राइट ऑफ कर दिया। अब आप पूछेंगे कि राइट ऑफ करना खेल कैसे है ?

तो इसका जवाब जानने से पहले हम एक लाइन में एनपीए और राइट ऑफ में थोड़ा अंतर समझ लेते हैं। एनपीए (NPA) का अर्थ होता है Non-Performing Asset यानी बैंक द्वारा दिए गया वह कर्ज जिसके मिलने की उम्मीद कम होती है मतलब डूबत ऋण। लेकिन बैंक अपने खाते में इस कर्ज को दर्शाता है। खाते में दर्ज इस कर्ज को जब खाते से ही खारिज यानी हटा दिया जाता है तब इसे राइट ऑफ करना कहते हैं। यानी बैलेंस शीट से कर्ज का नामोनिशान मिटा दिया जाता है। कहने का मतलब है कि बैंक का कर्ज डूब भी गया और यह बात किसी को बताई भी नहीं गयी।

इस लिहाज से मार्च 2019 में 237 हज़ार करोड़ राइट ऑफ़ कर दिए गए। मोदी सरकार के बीते पाँच सालों के दौरान बैंकों ने 660 हज़ार करोड़ रुपये राइट ऑफ़ कर दिया। यह पूरी राशि कुल NPA के तक़रीबन 50 फीसदी से ज्यादा है। इसे नीचे दिखाया गया है

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जरा ठहरकर सोचिए कि बैंक अपने खाते से इन पैसों को काट क्यों देते है। बैंक के शीर्ष अधिकारीयों पर बड़े लोगों का दबाव होता है। नेताओं से लेकर पूंजीपतियों तक साम दाम दंड की नीति अपनकार शीर्ष अधिकारियों से अपने कर्ज को खाते से हटवाने का दबाव डालते हैं। इससे बैंक की बदहाल होती स्थिति अच्छी दिखनी लगती है। समझिये टूटे- फूटे कमरे पर अच्छी खासी पेंटिंग हो जाती है। लेकिन इसका बोझ अंत में आम आदमी को सहना पड़ता है।

बैंक के साथ हुए धोखाधड़ी के मामले

इस दौरान बैंक के साथ हुए धोखाधड़ी के मामलों में भी बहुत इज़ाफा हुआ है। धोखाधड़ी यानी बैंकों के साथ फर्जीवाड़ा करना। धोखा देने वाले कई तरह के हथकंडे अपनाकर बैंक से पैसे वसूल लेना और फिर उसे वापस नहीं लौटना। जैसे फर्जी की कंपनी बनाकर उसे चलाने के लिए कर्ज ले लेना। एक लाख रुपये से अधिक के धोखाधड़ी के मामले वित्त वर्ष साल 2012-2013 में 4306 थे, वित्त वर्ष साल 2018- 19 में यह बढ़कर 6,801 हो गए।

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धोखाधड़ी के मामले में डूबा पैसा

मोदी कार्यकाल में धोखाधड़ी में डूबी धन राशि बहुत तेजी से बढ़ी है। जैसा की नीचे दिखाया गया हैं, 2018 -19 की वार्षिक रिपोर्ट के तहत 2013 में यह राशि 10.2 हजार करोड़ थी, जो मार्च 2018 में बढ़ कर 71.5 हजार करोड़ हो गयी।

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चुनावी रैली में मोदी जी द्वारा दिए गए भाषणों को याद करिये। वह तेज़ आवाज़ कहते थे कि 'न खाऊंगा न खाने दूंगा', लेकिन आँकड़े देखकर ऐसा लगता है कि मोदी जी की सरकार ने जमकर खाया है और जमकर दूसरों को खिलाया है।

इसलिए मोदी सरकार और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति छोड़कर असल मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए। बैंकों से बाहर जाने वाले कर्ज अगर बैंकों की कमाई के रूप में फिर से लौटकर नहीं आए तो बैंकों के जरिये चलनी वाली भारतीय अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जायेगी।

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