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चुनावी वर्ष में क़िस्म क़िस्म के बाबा, संविधान को ख़तरा बनते इनके संदेश

साधु-संत और बाबा पहले भी प्रवचन और कथा कहा करते थे. कोई जरूरी नहीं कि हर कौन उन कथाओं या प्रवचनों से सहमत रहता था. पर उनके प्रवचनों में सीधे-सीधे दलीय राजनीति नहीं होती थी. पर आज के अनेक बाबा और महराज अपने आपको सरकार ही नहीं कहते, वे खुलेआम संवैधानिक लोकतंत्र की जगह कथित
'हिन्दू राष्ट्र' बनाने का आह्वान कर रहे हैं.. ऐसे बाबाओं के मंसूबों और उनकी कथित धार्मिकता में छुपी संकीर्ण राजनीति का तथ्यों और उदाहरणों के साथ विश्लेषण कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार Urmilesh.

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