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अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ जंग लड़ रही है मोदी सरकार 

भाजपा आईएमएफ़ निर्देशित कठोर नीतियों को लागू करने के लिए टकराव को बढ़ावा दे रही है।
war against own people
Image Courtesy : The Conversation

13 दिसंबर को, संयुक्त राष्ट्र में मानव अधिकारों के उच्चायुक्त ने एक शक्तिशाली बयान जारी किया जिसमें उन्होंने भारत के नए नागरिकता क़ानून की कड़े शब्दों में आलोचना की है। उन्होंने अपने बयान में कहा कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 "मौलिक रूप से भेदभावपूर्ण" है जो भारत के पड़ोसी देशों से धार्मिक अल्पसंख्यकों को सताए जाने के मामले में नागरिकता देने में तेज़ी लाने की बात करता है। लेकिन उन अल्पसंख्यकों की सूची में, केवल हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई के नाम हैं। इसमें मुसलमानों का नाम नहीं है, इस तथ्य के बावजूद कि अफ़ग़ानिस्तान में (हज़ारा), और म्यांमार में (रोहिंग्या) तथा पाकिस्तान में (अहमदियों) मुसलमानों को भी सताया जाता है और इसके कई महत्वपूर्ण मामले सामने उभर कर आए हैं। यूएन ने कहा कि यह क़ानून न केवल वैश्विक स्तर पर हस्ताक्षर किए गए कान्वेंशन्स, संधियों और समझौतों के प्रति भारत के दायित्वों का उल्लंघन करता है, बल्कि यह ख़ुद के संविधान का भी उल्लंघन करता है।

भारत की सत्तारूढ़ पार्टी- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की संसद के निचले और ऊपरी दोनों सदनों के समक्ष इस विधेयक को रखा। वाम और कुछ क्षेत्रीय दलों से इसे विरोध का सामना करना पड़ा चूंकि निचले सदन (लोकसभा) में विपक्ष कमज़ोर था; ऊपरी सदन (राज्य सभा) में, बिल को 125 वोट मिले और विरोध में पड़े 105 वोटों के मामूली अंतर से पारित हो गया।

भाजपा सरकार ख़ास कर दो प्रमुख विश्वविद्यालयों - जामिया मिलिया इस्लामिया (नई दिल्ली) और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (अलीगढ़), जो दोनों ऐतिहासिक रूप से मुस्लिम विश्वविद्यालय हैं के विरोध प्रदर्शनों के ख़िलाफ़ काफ़ी क्रूर थी। पिछले कई महीनों से चले आ रहे छात्रों के विरोध प्रदर्शनों के ख़िलाफ़ पुलिस असाधारण रूप से हिंसक और निर्मम रही है, लेकिन इसका स्तर कुछ दूसरा ही था। जामिया में, पुलिस ने निहत्थे छात्रों की पिटाई की, उनका डॉर्मिटरी में पीछा किया और उन्हें निर्मम तरीक़े से पीटना जारी रखा और लाइब्रेरी में आंसू गैस के गोले भी छोड़े गए। पुलिसकर्मियों द्वारा बसों को जलाने, पत्रकारों के साथ मारपीट करने और पुलिस के तत्वधान में दंगे की स्थिति पैदा करने के वीडियो सबूत के तौर पर मौजूद हैं; अलीगढ़ में पुलिस द्वारा छात्रों की मोटरसाइकिलों को तोड़ने वाले वीडियो भी इसके सबूत है।

हमले के दौरान जामिया का दौरा करने पहुंची भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की नेता बृंदा करात ने कहा, "पुलिस की यह कार्रवाई अस्वीकार्य है। जामिया में पुलिस की उपस्थिति नहीं होनी चाहिए और हिंसा के ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जानी चाहिए।" दिल्ली पुलिस ने घोषणा की है कि वह हिंसा की "जांच करेगी", हालांकि पुलिस उपायुक्त एम.एस. रंधावा ने कहा कि पूरी हिंसा छात्रों की तरफ़ से हुई है, पुलिस इसमें शामिल नहीं थी। 16 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में चीफ़ जस्टिस एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंग पेश हुईं और उन्होंने कहा कि इस मामले को कोर्ट द्वारा उठाया जाना चाहिए क्योंकि देश भर में इस तरह की हिंसा मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन है।

लगता है कि सरकार तैयार बैठी थी, जहाँ भी विरोध प्रदर्शन सबसे अधिक वायरल रहे थे भाजपा सरकार ने तुरंत ही वहाँ इंटरनेट बंद कर दिया जैसा कि भारत के उत्तर-पूर्व में और देश के कुछ हिस्सों में हुआ। पिछले साल, भारत में अन्य सभी देशों के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा इंटरनेट शटडाउन रहा। कुल मिलाकर, इंटरनेट शटडाउन का 67 प्रतिशत अकेले भारत में हुआ है, पहले भी भारत में सभी शटडाउन का 63 प्रतिशत हिस्सा रहा है। जम्मू और कश्मीर में इंटरनेट अब 136 दिनों से बंद पड़ा है (4 अगस्त और 17 दिसंबर के बीच); इस बात का कोई संकेत नहीं है कि इसे जल्दी बहाल किया जाएगा। वास्तव में, जम्मू और कश्मीर की घुटन बेरोकटोक जारी है। कश्मीर चैंबर ऑफ़ कॉमर्स का कहना है कि इस अवधि में कश्मीरी कारोबार को 1.4 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ है।

कई राज्य सरकारों ने कहा है कि वे नए नागरिकता अधिनियम के प्रावधानों को लागू नहीं करेंगे, क्योंकि उनका तर्क है कि यह क़ानून असंवैधानिक है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय जल्द ही इस विधेयक पर सुनवाई शुरू करेगा। केरल में, वाम लोकतांत्रिक मोर्चे के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा, "हम केवल भारत के संविधान के आदर्शों के प्रति जवाबदेह हैं, न कि आरएसएस-भाजपा की कट्टरपंथी विचारधारा के प्रति।" (आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, एक फ़ासीवादी आंदोलन जो भाजपा के पीछे मुस्तैद है।)

वाम दलों ने 19 दिसंबर को देश भर में नागरिकता अधिनियम के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने का आह्वान किया है।

कठोर फ़ैसले

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ इस सप्ताह भारत में हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में छाई मंदी ने हमारे यहां आईएमएफ़ में कई को चकित कर दिया है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि लगातार छठी तिमाही में धीमी रही है। भाजपा सरकार द्वारा “मेक इन इंडिया” के बारे में मचाया गए सारे शोर को विनिर्माण और निम्न घरेलू खपत में मंदी ने ख़ामोश कर दिया है।

आश्चर्य की बात नहीं है कि आईएमएफ़ मोदी सरकार से अपने "ढांचागत सुधारों" को आगे बढ़ाने का आग्रह करता रहा है, जिसे शिष्ट भाषा में "श्रम ... बाज़ार सुधार" और "राजकोषीय समेकन" कहा जाता है। यहाँ श्रम बाज़ार में सुधार का मतलब है कि सरकार को श्रमिकों के लिए बनी सुरक्षा  और व्यवसायों के नियमन को हटा लेना चाहिए; बाद के राजकोषीय समेकन का मतलब है कि सरकार को सार्वजनिक ऋण को निम्न स्तर पर लाने के लिए ख़र्च में कटौती करनी चाहिए। इसका मतलब है कि बहुमत आबादी की कमाई की ताक़त का कम होना, और जनता के लिए सामाजिक कार्यक्रम बनाने के सरकारी ख़र्च को कम करना।

आईएमएफ़ के प्रस्ताव यानी कठोर वित्तिय एजेंडे को भारत में आगे बढ़ाने के लिए सरकार इन टकरावों का इस्तेमाल करना चाहती है।

यह ठीक वही एजेंडा है जिसके विरोध मैं छात्र और मज़दूर, किसान और नौजवान विरोध पर विरोध कर रहे है।

दिल्ली का  जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) जोकि एक फ्लैगशिप विश्वविद्यालय है। भाजपा सरकार ने वहाँ हॉस्टल फ़ीस में 150 प्रतिशत की वृद्धि कर दी है। यह भारी भरकम वृद्धि कम से कम आधे स्नातकोत्तर छात्रों को अपनी पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर कर देगी। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के साथ एकजुटता प्रकट करने के लिए देश भर में  #FeesMustFall के नाम से विरोध प्रदर्शन हुए, जिससे छात्रों को स्पष्ट हो गया आखिर जेएनयू में हो क्या रहा है। निहत्थे छात्रों के खिलाफ पुलिस की बार्बर हिंसा चौंकाने वाली थी। यह अपने आप में पुलिस और खुफिया एजेंसियों की ओर से एक क्रूर कृत्य था जब वे पूर्व छात्र नेता एजाज अहमद राठेर के जम्मू-कश्मीर स्थित सोपत में उनके घर गए और उनके परिवार को धमकी देते हुए कहा कि, "बंदूक से निकली गोली कभी किसी का पता नहीं पूछती है।"

सरकार की विभिन्न आर्थिक नीतियों के खिलाफ किसान और ट्रेड यूनियन संगठन लगातार प्रतिरोध कर रहे हैं। पिछले पांच महीनों में, प्याज की क़ीमत – जो खाद्य मुद्रास्फीति का एक बेहतर संकेतक है, के मुताबिक 253 प्रतिशत बढ़ गई है। घरेलू प्याज की क़ीमतों को लेकर बाज़ार में व्याप्त स्थानिक आंतरिक समस्याओं को निबटाने के बजाय, जोकि किसान संगठनों की मांग है, भाजपा सरकार ने प्याज के आयात के नियमों को ढीला कर दिया जोकि बड़े  व्यापारियों की मांग है।

भाजपा की नीति मजदूर वर्ग और किसान वर्ग को फायदा पहुंचाने के लिए नहीं बनी है। इन नीतियों को बड़े व्यवसायों को मुनाफा कमाने के लिए बनाया गया है। यह लगभग वैसा ही है जैसे कि भाजपा-आईएमएफ नारा दे रहे हों कि "अरबपतियों को बचाओ,"  जैसा कि ट्राईकॉन्टिनेन्टल इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल रिसर्च की दिल्ली कार्यालय की संयोजक सृजना बोड़ापाती लिखती हैं कि इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि किसान और ट्रेड यूनियन के महासंघों ने 8 जनवरी, 2020 को एक बड़ी आम हड़ताल की घोषणा की है। उम्मीद है कि उस दिन लाखों-करोड़ों मज़दूर और किसान सड़कों पर होंगे। उनकी मांगों का चार्टर भाजपा-आईएमएफ़ की कठोर नीतियों पर सीधा हमला है।

पहली गोली

भारत में तापमान बहुत अधिक है। भाजपा सरकार को लगता है कि उसे आर्थिक और सामाजिक नीति दोनों में ही मज़बूत दक्षिणपंथी एजेंडे को आगे बढ़ाने का जनादेश हासिल है। उसे इसके लिए आईएमएफ़ से (श्रम बाज़ार में सुधार और बैंक सुधार के संदर्भ में) और दुनिया भर के दक्षिणपंथी नेताओं/सहयोगियों से (इसकी नागरिकता और आव्रजन विरोधी नीतियों के संदर्भ में) समर्थन मिला है।

लेकिन सरकार को जनता के सख़्त प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है जो अब रुकने का नाम नहीं ले रहा है। जैसे ही जामिया में रात ढली, और आग भड़क उठी, तो भीम आर्मी के नेता - चंद्रशेखर आज़ाद – जो पास के उत्तर प्रदेश में एक सामाजिक आंदोलन चला रहे हैं- ने एक शक्तिशाली भाषण दिया। उन्होंने कहा कि मुस्लिम भारत का एक अभिन्न हिस्सा हैं, और अगर राष्ट्र मुस्लिम छात्रों पर गोली दागता है, तो "हम पहली गोली खाएँगे।" यह मूड है। यह कुछ ऐसा है जिस पर भाजपा और आरएसएस और आईएमएफ़ को विचार करने की आवश्यकता है।

विजय प्रसाद LeftWord Books के मुख्य संपादक हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं। यह लेख Globetrotter से लिया गया है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

India’s Government is Going to War Against its Own People

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