संसद में तीनों दिल्ली नगर निगम के एकीकरण का प्रस्ताव, AAP ने कहा- भाजपा को हार का डर
कई दिनों से चल रही चर्चाओं के बीच शुक्रवार को केंद्र सरकार ने दिल्ली के तीन नगर निगमों का एकीकरण करने संबंधी दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक, 2020 को पेश कर दिया। हालाँकि विपक्षी दलों के सदस्यों ने इस विधेयक का विरोध किया। विपक्षी दलों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इस विधेयक को पेश करना इस सदन के विधायी दायरे में नहीं आता है। साथ ही सरकार के इस कदम को विपक्ष ने संविधान की भावना के खिलाफ और लोकतंत्र के खिलाफ बताया। वहीं सत्ताधारी दल ने इसे एक बेहद जरुरी सुधार बताया।
अगर हम इन संशोधन की बात करें तो पहले जो अटकलें बड़े-बड़े सुधार की लग रहीं थीं लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मोटे तौर पर इस संशोधन के द्वारा तीनो निगमों का एकीकरण ही होना है परन्तु इससे क्या दिल्ली नगर निगम की बदहाली सुधरेगी? ये अभी भी यक्ष प्रश्न बना हुआ है। दिल्ली में सत्ताधारी दल आम आदमी पार्टी ने इसे केवल राजनीतिक लाभ के लिए चुनाव टालने की रणनीति बताया है। वहीं कांग्रेस ने भी इसका विरोध किया और इसे संविधान के खिलाफ बताया है। जबकि वाम दल सीपीआई(एम) और भाकपा माले ने भी इसका विरोध किया।
एक बार देखते है केंद्र सरकार ने इस संशोधन को प्रस्तुत करते हुए क्या कहा-
विकेंद्रीकृत दस सालो में नगर निगम अपेक्षा पूरा करने में रही असफल: केंद्र सरकार
माना जा रहा है कि केंद्र सरकार ने तीनों निगमों के एकीकरण के बाद अस्तित्व में आने वाले दिल्ली नगर निगम से दिल्ली सरकार को पूरी तरह से अलग करने का निर्णय लिया है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को लोकसभा में पेश दिल्ली नगर निगम अधिनियम-1957 में संशोधन करने संबंधी दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक-2022 में दिल्ली सरकार यानी सरकार के स्थान पर केंद्र सरकार कर दिया गया। संसद के दोनों सदनों में यह विधेयक पास होने के बाद दिल्ली नगर निगम के कामकाज से दिल्ली सरकार का कोई वास्ता नहीं रहेगा।
लोकसभा में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने उक्त विधेयक पेश किया। गृह राज्य मंत्री राय ने कहा कि वह स्पष्ट करना चाहते हैं कि विधेयक को पेश करना कहीं से भी भारत के संविधान की मूल भावना का उल्लंघन नहीं है और ना ही यह संघीय ढांचे के खिलाफ है।
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 239 (क) (क) के तहत दिल्ली से जुड़े इस कानून में संशोधन करने में सदन सक्षम है।
राय ने कहा कि दिल्ली में तीन समवर्ती नगर निगमों के सृजन का मुख्य उद्देश्य जनता को प्रभावी नागरिक सेवाएं उपलब्ध कराना था लेकिन पिछले 10 वर्षों का अनुभव यह दर्शाता है कि ऐसा नहीं हुआ। इसलिये यह विधेयक लाया गया है।
केंद्र और दिल्ली के नगर निगम पर काबिज बीजेपी का सबसे बड़ा तर्क यही है कि तीनों नगर निगम के विकेंद्रीकृत करने से जो अपेक्षा थी उसे वो पूरा करने में असफल रही है। बल्कि दबे स्वर में कई नेता यह भी मानते हैं कि पिछले एक दशक में निगम की बदहाली और आर्थिक तंगी और बढ़ी है।
हालाँकि इन नगर निगम का बँटवारा भी इसीलिए हुआ था कि नगर निगम बदहाल थी और उस समय भी नगर निगम में बीजेपी ही काबिज थी। अब विपक्ष सवाल कर रहा है एकीकृत में भी बीजेपी का शासन था तब भी ये सुधार नहीं कर सकी तो अब ऐसा क्या बदलेगा?
बीजेपी डरी हुई है : सिसोदिया
शुक्रवार को दिल्ली की विधानसभा में उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि अरविंद केजरीवाल की सरकार से भाजपा इतनी ‘डरी’ हुई है कि प्रधानमंत्री ‘‘एमसीडी के कामकाज में रुचि ले रहे हैं।’’ उन्होंने दिल्ली के तीनों नगर निगम को मिलाने के लिए लोकसभा में पेश विधेयक को ‘‘लोकतंत्र के लिए खतरा’ करार दिया। सिसोदिया ने यह बात विधानसभा में दिल्ली के नगर निकायों को एकीकृत करने के केंद्र के कदम पर हुई चर्चा का उत्तर देते हुए कही।
उन्होंने कहा, ‘‘देश के प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) को यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच भारत की स्थिति के बारे में सोचना चाहिए लेकिन उनकी सभी चिंता एमसीडी (दिल्ली नगर निगम) के चुनाव को लेकर है। केंद्र की भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री दिल्ली के लोगों की आवाज से डरते हैं।’’ सिसोदिया द्वारा विधानसभा में दिए भाषण को उद्धृत करते हुए जारी बयान में कहा गया, ‘‘देश के इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री का स्तर इतना नीचे आ गया है कि वह नगर निकाय चुनाव में रुचि ले रहे हैं। प्रधानमंत्री, अरविंद केजरीवाल से इतने भयभीत हैं कि देश चलाने के बजाय एमसीडी चलाने के स्तर पर आ गए हैं।’’
इसके जवाब में दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामवीर सिह बिधूड़ी ने कहा कि दिल्ली के विकास के लिए तीनों नगर निकायों को एकीकृत करना जरूरी था।
यह विधेयक संघीय ढांचे पर प्रहार: कांग्रेस
कांग्रेस के गौरव गोगोई ने लोकसभा में कहा कि यह विधेयक संघीय ढांचे पर प्रहार करता है। उन्होंने कहा कि इसे सदन में लाने से पहले केंद्र ने राजनीतिक दलों और अन्य हितधारकों से कोई विचार-विमर्श नहीं किया। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार अपनी विफलताओं को छिपाने के प्रयास में जल्दबाजी में यह विधेयक लाई है।
दिल्ली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी ने कहा के अधिकार पर हमला है। इन तीनो के एकीकरण से नगर निगम समस्यांओ का हल नहीं होगा। क्योंकि निगम की आमदनी और खर्चे में 30% का अंतर है। जबतक इसकी भरपाई नहीं होगी तब तक निगम का आर्थिक संकट दूर नहीं होगा। इस विधेयक में इसपर कोई चर्चा नहीं की गई है।
वहीं, कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा कि हम इस विधेयक को पेश किये जाने का इसलिये विरोध करते हैं क्योंकि यह इस सदन की विधायी दक्षता एवं दायरे से बाहर का विषय है।
उन्होंने कहा कि नगर पालिका से जुड़ा विषय राज्य सरकार के पास है और इस बारे में अगर किसी की विधायी दक्षता है, तो वह दिल्ली विधानसभा के पास है.. इस सदन के पास नहीं।
तिवारी ने कहा कि यह संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है।
संसद से अपील है कि वो एमसीडी संशोधन विधेयक को पारित न करे: वाम दल
इस विधेयक को लेकर वाम दल सीपीआई(एम) और सीपीआई ने भी विरोध किया। जबकि एक अन्य वाम दल भाकपा माले ने एक बयाना जारी कर इसकी खामी को उजागर किया और संसद से पास नहीं करने का अपील भी किया। माले की दिल्ली राज्य कमिटी ने संसद में पेश किए गए एमसीडी अधिनियम में संशोधन के विधेयक का कड़ा विरोध किया।
इस विधेयक में कई अन्य महत्वपूर्ण परिवर्तनों के साथ दिल्ली में तीन नगर निगमों का विलय करने का प्रस्ताव है। विधेयक में एमसीडी के चुनावों को तब तक स्थगित करने का भी प्रस्ताव है जब तक कि परिसीमन नहीं किया जाता है। इस बीच निगम का काम एक कार्यपालक के हाथों में रखा जाएगा जिसे केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। संशोधित विधेयक में वार्डों की संख्या 272 से घटाकर 250 करने का प्रस्ताव है।
विधेयक में मौजूदा एमसीडी अधिनियम में 'सरकार' के सभी संदर्भों को 'केंद्र सरकार' के लिए बदलने का भी प्रस्ताव है। इसमें एमसीडी अधिनियम की धारा 3ए में संशोधन करना भी शामिल है जिसमें अधिनियम में कोई भी बदलाव लाने से पहले केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली सरकार से परामर्श करने का प्रावधान है।
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माले ने अपने बयाना में यह भी दावा किया कि इस अधिनियम के पारित होने के बाद, केंद्र की भाजपा सरकार एमसीडी के संचालन में सभी शक्तियों को ग्रहण कर लेगी। इससे एमसीडी चलाने में केंद्र सरकार के हाथों में सत्ता का और भी अधिक केंद्रीकरण हो जाएगा।
माले के राज्य सचिव रवि ने अपने बयाना में यह भी कहा कि इस विधेयक को बिल्कुल अलोकतांत्रिक तरीके से पेश किया गया है। जिस दिन राज्य चुनाव आयोग ने एमसीडी चुनावों की तारीखों की घोषणा करने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की घोषणा की थी, मोदी सरकार ने राज्य चुनाव आयोग से एमसीडी चुनाव को स्थगित करने के लिए कहा। विधेयक को दिल्ली सरकार, चुने हुए विधायकों, राजनीतिक दलों और दिल्ली की जनता के साथ परामर्श के बिना संसद में पेश किया गया है।
भाकपा-(माले) ने मांग की है कि एमसीडी अधिनियम में संशोधन के विधेयक को स्थगित रखा जाए और सभी सम्बंधित पक्षों के साथ व्यापक विचार-विमर्श किए जाने तक इसे पारित नहीं किया जाए।
बसपा के रीतेश पांडे ने कहा कि हमने इस विधेयक को पेश किये जाने का विरोध किया था और कहा है कि यह संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है।
उन्होंने संविधान के संबंधित अनुच्छेद का उल्लेख करते हुए कहा कि एक तरफ नगर निगम का चुनाव नहीं कराया गया, दूसरी ओर तीनों नगर निगमों के एकीकरण का विधेयक लेकर आएं हैं, जो संवैधानिक रूप से गलत है। यह दिल्ली विधानसभा के अधिकार क्षेत्र का विषय है।
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि वर्ष 2011 में दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र की विधानसभा द्वारा दिल्ली नगर निगम संशोधन अधिनियम 2011 द्वारा उक्त अधिनियम को संशोधित किया गया था जिससे उक्त निगम का तीन पृथक निगमों में विभाजन हो गया।
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