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बौद्धिक संपदा, ज्ञान पर एकाधिकार और रेंट इकॉनमी

नवउदारवाद ने रिवार्ड्स/ईनाम का निजीकरण कर दिया है लेकिन पेटेंट प्रणाली के जोखिमों का समाजीकरण कर दिया है।
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फ़ोटो साभार : Left Word

बीसवीं सदी में सार्वजनिक धन से पोषित विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों का उदय हुआ था, जबकि प्रौद्योगिकी का विकास बड़े निगमों की अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं में केंद्रित था। खुद के दम आविष्कारक करने वाले वैज्ञानिकों जिनमें एडिसन, सीमेंस, वेस्टिंगहाउस, ग्राहम बेल शामिल थे, का युग उन्नीसवीं सदी के साथ समाप्त हो गया था। 1, बीसवीं सदी उद्योग-आधारित अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं का युग रहा, जहां इन बड़े निगमों ने भविष्य के लिए प्रौद्योगिकियों को तैयार करने में प्रमुख वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों को एक साथ इकट्ठा किया था। यह वह चरण था जब पूंजी अभी भी उत्पादन के विस्तार में लगी थी। यद्यपि वित्तीय पूंजी पहले से ही उत्पादक पूंजी पर हावी थी, फिर भी प्रमुख पूंजीवादी देशों के पास अभी भी एक मजबूत विनिर्माण का आधार मौजूद था। विकास के इस चरण में, विज्ञान को एक सार्वजनिक वस्तु के रूप में माना जाता था और इसका विकास बड़े पैमाने पर विश्वविद्यालय प्रणाली या सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित अनुसंधान संस्थानों में केंद्रित था। प्रौद्योगिकी के विकास में बड़े पैमाने पर निजी उद्यम शामिल थे और उसे निजी वस्तु माना जाता था। विज्ञान को नए ज्ञान का उत्पादन करना था, जिसका इस्तेमाल बाद में प्रौद्योगिकी द्वारा कलाकृतियों का उत्पादन करने में किया जा सकता था। 2, नवाचार की भूमिका विचारों को कलाकृतियों में बदलना था। कलाकृतियों में सन्निहित उपयोगी विचारों को सुरक्षा देने के लिए बौद्धिक संपदा-पेटेंट और अन्य अधिकारों की प्रणाली की शुरुआत हुई। शुरुआत से, पेटेंट का एक सार्वजनिक उद्देश्य भी था - एक निश्चित अवधि तक राज्य द्वारा इज़ारेदारी/एकाधिकार की इजाजत देना और अंत में सार्वजनिक उद्देश्य के इस्तेमाल सुनिश्चित करना था: सीमित अवधि का एकाधिकार का मतलब बदले में पूर्ण सार्वजनिक हिस्सेदारी होती थी। 

कई सदियों से चली आ रही इस प्रणाली में बदलाव, ज्ञान के उत्पादन में दो बड़े बदलावों के परिणामस्वरूप हुआ। पहला उस तरीके से संबंधित है, जिसमें नव-उदारवादी व्यवस्था के तहत, ज्ञान उत्पादन की विश्वविद्यालय प्रणाली को लाभ कमाने वाले वाणिज्यिक उद्यम में बदल दिया गया है। 3, दूसरे, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बीच अंतर काफी हद तक धुंधला हो गया है और दोनों ही पहले की तुलना में अधिक बारीकी से एक साथ जुड़ गए हैं। उदाहरण के लिए, आनुवंशिकी में प्रगति से लगभग बिना किसी रोक-टॉक के एक कलाकृति तैयार की जा सकती है- वह एक दवा, एक निदान उपकरण या एक बीज - को भी जन्म दे सकती है जिसका पेटेंट और व्यापार दोनों किया जा सकता है। इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार के क्षेत्र में नवाचारों का मामला भी ऐसा ही है। परिणामस्वरूप, विज्ञान के कई विषय और विश्वविद्यालयों में अनुसंधान परिणाम, उत्पादन प्रणालियों के करीब से संचालित होते हैं। व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए सीधे ज्ञान पैदा करने वाली प्रणाली में विश्वविद्यालय प्रणाली का बदलाव अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं के विनाश के साथ हुआ है जो बीसवीं शताब्दी के औद्योगिक परिदृश्य का एक हिस्सा थे। वित्तीय पूंजी विश्वविद्यालय विज्ञान को न केवल अनुसंधान एवं विकास में 'निवेश' के माध्यम से, बल्कि 'ज्ञान' की खरीद के माध्यम से भी नियंत्रित करती है। इसका एकाधिकार विश्वविद्यालय अनुसंधान द्वारा उत्पादित पेटेंट खरीदने के माध्यम से प्रयोग किया जाता है। बदले में एकाधिकार वित्तीय पूंजी, औद्योगिक पूंजी पर हावी हो जाती है। 

बीसवीं सदी के अंत में वित्तीय पूंजी और उत्पादक पूंजी के टूटने का पता चला। आज, वैश्विक पूंजी असंबद्ध वित्तीय पूंजी के रूप में कहीं अधिक काम करती है, जो एक छोर पर उत्पादन को नियंत्रित करती है और दूसरे छोर पर प्रौद्योगिकी और बाजारों पर नियंत्रण रखती है। इस चरण में, जहां पूंजी तेजी से सट्टेबाजी और किराए पर निर्भर रहती है, वहां उत्पादक या भौतिक पूंजी-संयंत्र और मशीनरी से पूंजी के रूप में ज्ञान का एक स्पष्ट अलगाव भी होता है। जैसे कि फॉक्सकॉन/हॉन हाई प्रिसिजन इंडस्ट्रीज, एप्पल के उत्पादों का निर्माण करती है, लेकिन उक्त कंपनियाँ बिक्री से होने वाले मुनाफे में बड़ी हिस्सेदारी का दावा नहीं कर सकती है, क्योंकि एप्पल के पास बौद्धिक ज्ञान और संपत्ति के अधिकार हैं। मोटे तौर पर, एप्पल को आईफोन की बिक्री से 31 फीसदी मुनाफा मिलता है, जबकि फॉक्सकॉन को दो फीसदी से भी कम मुनाफा मिलता है।

ज्ञान-पेटेंट, कॉपीराइट, औद्योगिक डिजाइन इत्यादि पर अपनी इजारेदारी का इस्तेमाल करके, पूंजी को किराये की मांग में बदलना, पूंजी के वर्तमान चरण की विशेषता है। इसके साथ, उन्नत पूंजीवादी देश तेजी से किराएवाली और 'सेवा' अर्थव्यवस्था बन गए हैं। संक्षेप में, वे वैश्विक वित्तीय संरचना, उत्पादन के लिए जरूरी नए ज्ञान और खुदरा और वैश्विक ब्रांडों के माध्यम से वितरण को नियंत्रित करने के आधार पर दुनिया पर हावी हैं।

यहां तक कि जब विश्वविद्यालयों पर पूंजी का कब्ज़ा हो जाता है और उन्हें यूनिवर्सिटी इंक में बदल दिया जाता है, तब भी वे जो नया ज्ञान पैदा करती हैं, उसे तब भी सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित किया जाता है। यह उन्नत पूंजीवादी देशों और भारत जैसे देशों का बड़ा सच है। वैज्ञानिक अनुसंधान की दिशा, निजी पूंजी से तय होती है, जो किसी भी सफल परिणाम पर कब्ज़ा जमा लेती है, और फिर भी विज्ञान में यह बदलाव निजी वित्त पोषण से नहीं आया है। मौलिक अनुसंधान की लागत अधिक है और इसके कुछ ही अनुसंधान नतीजों से प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ने में तत्काल मदद मिल सकती है। यह वह जगह है जहां राज्य यानि हुकूमत, चाहे इलेक्ट्रॉनिक्स में हो या आनुवंशिकी में, लागत का खर्च उठाती है जबकि पेटेंट निजी पूंजी को सौंप दिए जाते हैं। नव-उदारवादी व्यवस्था की एक सबसे बड़ी पहचान यह है कि इसमें जोखिम का समाजीकरण हो जाता है और रिवार्ड्स/इनामों का निजीकरण कर दिया जाता है।

यह समझ कि विज्ञान को एक खुले और सहयोगात्मक तौर-तरीकों की जरूरत है, ने कॉमन्स आंदोलन को जन्म दिया था। अजीब चालाकी के साथ, पूंजीवाद सीमित सामान्य क्षेत्रों जिसमें वायुमंडल और झील, नदियोंयां और महासागर जैसे बड़े जल निकाय शामिल हैं, को अनंत के रूप में देखता है, और इनमें कचरा डंप करने के अधिकार की मांग करता है। फिर भी यह उस ज्ञान को, जिसे बिना किसी नुकसान के अनंत बार कॉपी किया जा सकता है, सीमित मानता है और उस पर एकाधिकार की मांग करता है!

नए ज्ञान का उत्पादन करने के लिए विभिन्न समुदायों और संसाधनों को एक साथ लाने की समाज में आज जैसी क्षमता पहले कभी नहीं देखी गई थी। यह सामाजिक, सार्वभौमिक श्रम है, और पूंजीवाद के तहत बौद्धिक संपदा के रूप में इसका निजीकरण, नए ज्ञान को पैदा करने और लोगों को लाभ पहुंचाने तथा सामूहिक विशाल शक्ति को आज़ाद करने के रास्ते में खड़ा है।

नॉलेज ऐज़ कॉमन्स से अनुमति से लिया गया: प्रबीर पुरकायस्थ द्वारा लिखित  नॉलेज एज  कॉमन्स विज्ञान टूवर्ड्स इंक्लूसिव साइंस एंड टेक्नोलोजी, पहली बार लेफ्टवर्ड, नई दिल्ली, 2023 द्वारा प्रकाशित पुस्तक है।

1 टेलीविजन के आविष्कारक फिलो टी. फ़ार्नस्वर्थ को अंतिम और एकमात्र आविष्कारक के रूप में वर्णित किया गया है। उन्होंने डेविड सरनॉफ़ की कॉर्पोरेट शक्ति और प्रसारण व्यवसाय की सबसे शक्तिशाली कंपनी आरसीए के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। यह डेविड बनाम गोलियथ की लड़ाई थी। इवान आई. श्वार्ट्ज, द लास्ट लोन इन्वेंटर: ए टेल ऑफ़ जीनियस, डीसिट, एंड द बर्थ ऑफ़ टेलीविज़न, हार्पर कॉलिन्स, 2002।

2 मैंने 'प्रौद्योगिकी में वैचारिक स्वतंत्रता की बहाली' निबंध में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बीच संबंधों पर अधिक विस्तार से चर्चा की है। इस पुस्तक के खंड II में अध्याय 5 को देखें।

3 'शैक्षणिक प्रशासक तेजी से छात्रों को उपभोक्ता और शिक्षा एवं अनुसंधान को उत्पाद के रूप में संदर्भित करते हैं। वे ब्रांडिंग और मार्केटिंग के बारे में बात करते हैं और अब रक्षा ठेकेदारों की तुलना में वाशिंगटन में लॉबिंग पर अधिक खर्च करते हैं। जेनिफ़र वाशबर्न, यूनिवर्सिटी, इंक.: द कॉरपोरेट करप्शन ऑफ़ हायर एजुकेशन, बेसिक बुक्स, 2005। बेह-डोले अधिनियम 1980 से पहले, सार्वजनिक धन से उत्पादित किसी भी आविष्कार या ज्ञान को किसी भी व्यक्ति या कंपनी द्वारा इस्तेमाल किए जाने के मामले में सार्वजनिक डोमेन में रहना पड़ता था। विश्वविद्यालयों का पेटेंट कराने में जो सबसे बड़ा फायदा था वह यह कि, उदाहरण के लिए यदि दवाका पेटेंट निजी क्षेत्र को बेचा जाता है तो पेटेंट के एवज़ में एकमुश्त भुगतान, या लगातार रॉयल्टी या दोनों का फायदा मिल सकता था। 'इस रिपोर्ट से पता चलता है कि एनआईएच फंडिंग ने 2010-2016 तक खाद्य एवं औषधि प्रशासन द्वारा अनुमोदित 210 नई दवाओं में से प्रत्येक से जुड़े प्रकाशित शोध में योगदान दिया।' एकातेरिना गालकिना क्लीरी, जेनिफर एम. बीयरलीन, नवलीन सुरजीत खानुजा, लॉरा एम. मैकनेमी, फ्रेड डी. लेडली, 'नई दवा स्वीकृतियों में एनआईएच फंडिंग का योगदान 2010-2016' नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की कार्यवाही, वॉल्यूइम। 115, 10, पीपी 2329-2334, 2018 देखे।

https://doi.org/10.1073/pnas.1715368115

4 वाशबर्न, यूनिवर्सिटी, इंक.

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Intellectual Property, Knowledge Monopoly and the Rent Economy

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