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क्या यह पेगासस की आख़िरी उड़ान है ?

पेगासस प्रोजेक्ट ने इस बात को सरेआम कर दिया है कि तक़रीबन 50,000 जिन लोगों का डेटाबेस लीक हुआ है, उनमें लगभग 300 भारतीय हैं, इससे पता चलता है कि पेगासस का इस्तेमाल जिन फ़ोन नंबरों में घुसपैठ करने के लिए किया गया था, उनमें से कई नंबर प्रमुख पत्रकारों, मानवाधिकार के पक्ष में खड़े होने वाले कार्यकर्ताओं, नागरिक समाज के लोगों और दुनिया भर के वकीलों के थे।
क्या यह पेगासस की आख़िरी उड़ान है ?

पेगासस प्रोजेक्ट के इस ख़ुलासे के आसपास खड़े होते क़ानूनी सवालों का विश्लेषण करती इस श्रृंखला के पहले भाग में निपुण सक्सेना कुछ जटिल संवैधानिक सवालों को उजागर करने को लेकर इस स्पाइवेयर के सिलसिले में पेगासस डेवलपर एनएसओ समूह की संविदात्मक नीति की जांच-पड़ताल करते हैं, और सवाल करते हैं कि क्या इस तरह से नज़र रखने का अधिकार हो सकता है, जिसकी अनुमति वैसे तो सिर्फ़ असाधारण परिस्थितियों में होती है, देशों को जिस संप्रभु अधिकार के इस्तेमाल की अनुमति सिर्फ़ असाधारण परिस्थितियों में हासिल है, क्या उस अधिकार का इस्तेमाल किसी निजी विदेशी संस्था द्वारा अनुबंधित रूप से किया जा सकता है ?

ग्रीक पौराणिक कथाओं में ग़ैर-मामूली रूप से अद्भुत भविष्यद्रष्ट होने के जन्मजात कौशल की कहानी मिलती है। ऐसी ही कहानियों में पौराणिक सर्वशक्तिमान पंख वाले घोड़े पेगासस की कहानी भी है।

ग्रीक मिथकों के मुताबिक़, यह पेगासस ज़ीउस की सेवा में था, हालांकि उसकी यह सेवा कुछ समय के लिए ही थी। बेलेरोफ़ोन नामक एक महत्वाकांक्षी शख़्स के हाथों में ख़ुद एथेना ने पेगासस की शक्तियों का इस्तेमाल करने के लिए उसकी लगाम थमा दी थी, लेकिन बेलेरोफ़ोन इतना ज़्यादा महत्वाकांक्षी हो गया कि वह ख़ुद का हित साधने लगा और उसने पेगासस नामक उस घोड़े पर सवार होकर स्वर्ग की तरफ़ जाने की कोशिश की। यह देखकर ज़ीउस को बहुत ग़ुस्सा आया, जिस वजह से उसने बेलेरोफ़ोन के हाथ से लगाम लेकर बेलगाम कर दिया और फिर आकाश से ख़तरनाक तरीक़े से गिरते हुए वह स्थायी रूप से हमेशा के लिए अपंग हो गया।

यह पौराणिक कथा तक़रीबन एक हज़ार साल बाद हक़ीक़त बन गयी है। यह आधुनिक पेगासस विभिन्न देशों के संभावित उड़ान को थामने के पीछे का ऐसा कारण रहा है,जिसने कई बार अपनी शासन-व्यवस्था की संप्रभुता के लिए संभावित ख़तरों पर नज़र रखने के लिए इसी नाम के स्पाइवेयर लगे तकनीक का इस्तेमाल करने की कोशिश की।

पेगासस ने उन विवादों में से अपना वह अंश सरेआम कर दिया है, जिसे हाल ही में आम तौर पर पेगासस प्रोजेक्ट के रूप में जाना जाता रहा है। यह एक ऐसा प्रोजेक्ट है,जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई मीडिया घरानों ने मिलकर इज़रायली प्रौद्योगिकी कंपनी एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित और बेचे जाने वाले इस स्पाइवेयर के ज़रिये दुनिया भर के हज़ारों लोगों की जासूसी करने की जांच-पड़ताल शुरू कर दी थी।

पेगासस प्रोजेक्ट के ख़ुलासे

पेगासस प्रोजेक्ट ने इस बात को सरेआम कर दिया है कि जिन तक़रीबन 50,000 लोगों का डेटाबेस लीक हुआ है, उनमें लगभग 300 भारतीय हैं, इससे पता चलता है कि पेगासस का इस्तेमाल जिन फ़ोन नंबरों में घुसपैठ करने के लिए किया गया था, उनमें से कई नंबर प्रमुख पत्रकारों, मानवाधिकार के पक्ष में खड़े होने वाले कार्यकर्ताओं, नागरिक समाज के लोगों और दुनिया भर के वकीलों के थे।

पेरिस स्थित एक मीडिया घराना, फॉरबिडन स्टोरीज़ ने 19 जुलाई को ख़बर दी थी कि उन्होंने डेटाबेस तक पहुंच बनायी है और ख़ुलासा किया है कि दुनिया भर के कम से कम 180 पत्रकारों की जासूसी उनकी सरकार पेगासस सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल करते हुए कर रही थी। बताया जा रहा है कि इस निगरानी के सिलसिले में अज़रबैजान, बहरीन, हंगरी, भारत, कज़ाकिस्तान, मैक्सिको, मोरक्को, रवांडा, सऊदी अरब, टोगो और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने पेगासस का इस्तेमाल किया है।

अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार एनजीओ एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब का कहना है कि पेगासस की इस घुसपैठ का स्तर बेहद परिष्कृत,लेकिन घातक है। इस निगरानी करने वाले टूल से माइक्रोफ़ोन, ऑडियो, वीडियो इंटरफ़ेस, कैमरा और फ़ोन के विभिन्न एप्लीकेशन में किसी भी तारीख़ों की सामग्रियों तक पहुंचा जा सकता है। एमनेस्टी इंटरनेशनल का यह दावा भी है कि इस स्पाइवेयर में फ़ोन के माइक्रोफ़ोन और कैमरे को संचालित करने और उन्हें दूर से ही एक्सेस करने की क्षमता है।

पेगासस नीति और संविदात्मक अंशों का विश्लेषण

दिलचस्प बात यह है कि एनएसओ ग्रुप ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट के 'गवर्नेंस' सेक्शन में टिप्पणी की है कि कंपनी आतंक और गंभीर अपराध को रोकने के एकमात्र मक़सद के लिए अपने उत्पादों को सिर्फ़ सरकारी ख़ुफ़िया और क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों को ही लाइसेंस देती है।

एनएसओ ग्रुप ने 30 जून, 2021 को जारी 2021 की अपनी पहली ‘ट्रांसपेरेंसी एंड रिस्पॉन्सिबिलिटी रिपोर्ट’ में ख़ुलासा किया है कि एनएसओ ग्रुप सिर्फ़ संप्रभु देशों और उनकी एजेंसियों को ही इस सॉफ़्टवेयर का लाइसेंस देता है, और कंपनी दावा करती है कि यह पेगासस को संचालित नहीं करती है। यहां यह बात दिलचस्प है कि राष्ट्र राज्यों को ये लाइसेंस इज़रायल के रक्षा मंत्रालय की उस डिफ़ेंस एक्सपोर्ट कंट्रोल एजेंसी (DECA) की देखरेख में वितरित किये जाते हैं, जो संभावित उम्मीदवार की व्यवहार्यता को लेकर एक और मूल्यांकन करता है।

इसके अलावा, कंपनी का दावा है कि वह पेगासस के इस्तेमाल के ज़रिये एकत्र किये गये डेटा को संग्रहीत नहीं करती है, और न ही अपने ग्राहकों की गतिविधियों पर इसकी कोई नज़र रहती है। इस कंपनी का यह भी कहना है कि पेगासस का काम विशिष्ट लोगों के फ़ोन नंबरों के ज़रिये उनके बारे में पता करने और उन पर नज़र रखने तक ही सीमित है और इसलिए कई मायनों में पेगासस पारंपरिक वायर-टैपिंग मॉडल का अनुसरण करता है।

जो चीज़ पेगासस को बेहद असरदार बनाती है, वह है सोशल मीडिया मैसेजिंग एप्लिकेशन से इस्तेमाल होने वाले उनके एन्क्रिप्शन एल्गोरिदम का उल्लंघन किये बिना विभिन्न एप्लीकेशन में घुसपैठ करने की इसकी वह क्षमता, जो इसके लिए "डार्क मोड" में जाने वाले लोगों का पता लगाने और उनका शिकार करने को संभव भी बना देती है। चूंकि यह कंपनी सिर्फ़ लाइसेंस जारी करती है, लिहाज़ा उन लोगों के चुनाव करने का विशेषाधिकार पूरी तरह से सरकार के पास होता है,जिनका ख़ास तौर पर जासूसी करना होता है। इसका दावा है कि सही मायने में यह इसके पास उन कार्रवाई की जाने वाली जानकारी के संज्ञान को लेकर कोई जानकारी नहीं होती, जिसके चलते किसी ख़ास विषय को "संभावित आतंकवादी ख़तरा" के रूप में चिह्नित किया जाता है।

कंपनी का यह भी कहना है कि यह उन मामलों की संख्या को सीमित करके अपने उत्पाद के ग़लत इस्तेमाल को रोकने के लिए प्रभावी क़दम उठाती है, जिनमें इसका उपयोग किया जा सकता है, इससे बड़े पैमाने पर निगरानी के जोखिम भी कम रह जाता है। हालांकि, इसने निम्नलिखित शब्दों में अपने उत्पाद पेगासस के संभावित जोखिम के रूप में चिह्नित किया है :

उन लोगों और समूहों के ख़िलाफ़ हमारे उत्पादों का संभावित दुरुपयोग हो सकता है, जो शांतिपूर्ण तरीक़े से मानवाधिकारों को बढ़ावा देने या उनकी रक्षा करने का कार्य("मानवाधिकार रक्षक") करते हैं । इनमें शामिल हैं- (i) पत्रकार; (ii) नागरिक समाज संगठनों के सदस्य; (iii) वकील; और (iv) राजनीतिक दल, उम्मीदवार और उनके समर्थक।

यहां इस बात का ज़िक़्र करना ग़ैर-मुनासिब नहीं होगा कि सॉफ़्टवेयर पेगासस के इस इस्तेमाल के नियम और शर्तें केवल संविदात्मक (Contractual) हैं, और इसके उल्लंघन के नतीजे उन मानवाधिकारों, किसी भी सरकारी संविदात्मक उपाय के तहत किये जाने वाले उस निवारण पर स्थायी विनाशकारी प्रभाव डाल सकते हैं, जो कि ग़लत करने वाले उस राष्ट्र राज्य के ख़िलाफ़ एनएसओ समूह को हासिल हो सकता है, जिसमें संविदा का ख़ात्मा, उन्हें ब्लैक सूची में डालने या तयशुदा हर्जाना के रूप में होगा।

इस पेगासस नीति में मौजूद प्रत्यक्ष टकराहट से पैदा होने वाली एक और स्पष्ट विसंगति है और क्लाइंट बनने वाली सरकार को लेकर एक पूर्व-शर्त यह है कि वह एक विशिष्ट व्यक्ति पर निगरानी करने की ज़रूरत की मांग करते हुए साक्ष्य के साथ अनुरोध करे। यह राज्य/ग्राहक और एनएसओ समूह के बीच की एक संविदात्मक शर्त है:

“2. विभिन्न क़ानून से निर्धारित सीमा तक इस उत्पाद का इस्तेमाल करने वाला यह सिस्टम इस्तेमाल को लेकर एक निगरानी प्रक्रिया या प्रोटोकॉल तैयार करेगा और उसका सख़्ती से पालन करेगा। ऐसी प्रक्रिया उत्पाद के उपयोगकर्ता को प्रदान की गयी प्रशिक्षण सामग्री में निर्धारित विवरण का पालन करेगी और इसमें कम से कम निम्नलिखित के सिलसिले में प्रावधान शामिल होंगे:

साक्ष्य से सत्यापित वैध निगरानी अनुरोध; संदिग्ध अपराध; निगरानी अवधि और नवीनीकरण; धारण करने की नीति; स्थानीय क़ानूनों के मुताबिक़ विधिवत अधिकृत स्वतंत्र निरीक्षण प्राधिकरण द्वारा लिखित रूप में स्वीकृति दी जानी चाहिए।" (इस पर ख़ास तौर  पर ज़ोर दिया गया है)

जिस बात का कोई जवाब नहीं है,वह है- एक स्पष्ट टकराहट, जबकि एक ओर जहां कंपनी का कहना है कि इस बात से कंपनी का कोई लेना-देना नहीं है कि निगरानी का विषय क्या है, व्यक्ति की पहचान कैसे की जाती है, किसी विशिष्ट व्यक्ति को चिन्हित करने से पहले किस सामग्री पर भरोसा किया गया था, और सबसे अहम बात तो यह है कि यह एक ऐसा कार्य था या नहीं,जिसे स्थानीय क़ानूनों के तहत विधिवत रूप से अधिकृत किया गया हो, फिर भी यह ग्राहक बनने वाले देश के लिए साक्ष्य से सत्यापित निगरानी के अनुरोध के प्रस्तुत करने को अनिवार्य बनाता है।

अगर ऐसा है, तो "निशाने पर रखे जाने वाली निगरानी" के कामयाब होने के दावे को लेकर यह स्थापित करना होगा कि सरकार के पास उन सभी लोगों के ख़िलाफ़ सबूत से सत्यापित कार्रवाई योग्य और विश्वसनीय जानकारी है, जिनका नाम लिया गया है। यह भी आकलन करना होगा कि जिन लोगों के नाम दिये गये हैं,उनके ख़िलाफ़ इस तरह के विश्वसनीय सबूत किसी अपराध या आतंकवाद से जुड़े अपराध की रोकथाम के सिलसिले में लिये गये थे। कंपनी को इस आरोप का भी जवाब देना होगा कि क्या कार्रवाई योग्य उस जानकारी के साथ-साथ साक्ष्य से सत्यापित उस निगरानी को लेकर इस तरह के अनुरोध का आधार बना या नहीं,जिसका वास्तव में कंपनी की तरफ़ से स्वतंत्र रूप से मूल्यांकन किया गया था और जिसका सत्यापन किया गया था, जो उसके बाद इस तरह के अनुरोध की अनुमति देने को लेकर आगे बढ़ा था।

इस सवाल का अहम संवैधानिक आधार भी हैं। अगर एनएसओ समूह ऐसा मंच नहीं है, जो सिर्फ़ उत्पाद लाइसेंस मुहैया कराता है, बल्कि स्वतंत्र रूप से उस सामग्री का मूल्यांकन भी करता है, जिसके आधार पर ग्राहक बनी सरकार निगरानी के लिए अपने अनुरोध को उसके सामने रखती है, और अपनी स्वतंत्र व्यक्तिपरक राय के आधार पर निगरानी को लेकर इस तरह के अनुरोध करने के लिए आगे बढ़ती है, ऐसे में इसका मतलब तो यही होगा कि ताक़तवर सरकार उस विदेशी कॉर्पोरेट इकाई के साथ एक 'सह-निगरानी गतिविधि' में संलग्न है, जो इस पर नियंत्रण रखे रहता है कि किस-किस पर निगरानी रखी जानी चाहिए।

इस प्रावधान में संवैधानिक तबाही के सभी उपाय होते हैं और यह किसी राष्ट्र की संप्रभुता को बनाये रखने वाले उस मूल उद्देश्य के ख़िलाफ़ जाता है, जिसके आधार पर निगरानी करने की मांग की जाती है।

विभिन्न देशों में पेगासस के इस्तेमाल के ज़रिये घुसपैठ की घटनाओं पर न्यायिक प्रतिक्रिया

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार घोषणा के अनुच्छेद 12 के समान ही अंतर्राष्ट्रीय नागरिक और राजनीतिक अधिकार अनुबंध का अनुच्छेद 17 साफ़ तौर पर बताता है कि किसी व्यक्ति की निजता, परिवार, या घर, या अन्य सम्बन्धित संचार के सिलसिले में "मनमाने ढंग से हस्तक्षेप" नहीं किया जा सकता। इस सिद्धांत को यूरोपीय मानवाधिकार आयोग के चार्टर के अनुच्छेद 8 में भी इसी तरह के शब्दों के साथ रखा गया है।

बिग ब्रदर वॉच बनाम यूनाइटेड किंगडम  के मामले(2018) के अपने ऐतिहासिक फ़ैसले में यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय (ECHR) ने निगरानी के सिलसिले में कहा था कि निगरानी की सामने आती परिष्कृत तकनीकों के लिहाज़ से यह ज़रूरी है ख़ास तौर पर इसके इस्तेमाल को लेकर उपलब्ध तकनीक के लगातार अधिक परिष्कृत होते जाने के लिहाज़ से गुप्त निगरानी उपायों पर स्पष्ट, विस्तृत नियम हों। नागरिकों को उन परिस्थितियों के बारे में पर्याप्त संकेत देने के लिए घरेलू क़ानून को पर्याप्त रूप से स्पष्ट होना चाहिए और जिन स्थितियों पर सार्वजनिक अधिकारियों को ऐसे किसी भी उपाय का सहारा लेने का अधिकार है,उसे भी स्पष्ट होना चाहिए।

ईसीएचआर के ये ख़ास तत्व न्यायिक फ़ैसलों की एक लंबे समय के तजुर्बे की बुनियाद पर विकसित हुए हैं। अगर यही सच है, तो यह मानते हुए कि पेगासस निगरानी के व्यक्तिगत अनुरोधों पर ज़्यादा नियंत्रण रखता है और उसका निरीक्षण करता है, जैसा कि इसकी अपनी संविदात्मक शर्तों से भी पता चलता है,ऐसे में क्या पेगासस की सेवाओं का फ़ायादा उठाने वाले सभी देशों के लिए एक अनिवार्य अंतर्राष्ट्रीय दायित्व के तहत उन नियमों और शर्तों को निर्धारित करना अहम नहीं था, जिसके तहत पेगासस के साथ मिलकर इस तरह की निगरानी की जाती है ?

ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां एमनेस्टी इंटरनेशनल का एनएसओ ग्रुप के साथ टकराहट हुई है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 2020 में तेल अवीव में ज़िला न्यायालय के सामने एनएसओ के ख़िलाफ़ एक मुकदमा दायर किया था, जिसमें अन्य देशों को पेगासस निर्यात करने के सिलसिले में इज़रायली रक्षा मंत्रालय से इस सुरक्षा निर्यात लाइसेंस को रद्द करने की प्रार्थना की गयी थी। उस मुकदमे में यह आरोप लगाया गया था कि पेगासस के ज़रिये एमनेस्टी इंटरनेशनल के एक कर्मचारी की जासूसी की जा रही थी।

ग्लोबल जस्टिस क्लिनिक के समर्थन से दायर किया गया उस मुकदमे को तेल अवीव ज़िला न्यायालय ने 13 जुलाई, 2020 को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया था कि इसका पर्याप्त अनुपालन किया गया था और यह स्थापित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं थी कि एनएसओ वास्तव में इस तरह की किसी निगरानी में संलग्न था। अदालत ने आगे यह भी कहा था कि एमनेस्टी इंटरनेशनल "इस दावे को साबित करने में विफल रहा है कि किसी मानवाधिकार कार्यकर्ता को उसके सेल फ़ोन को हैक करने की कोशिश करते हुए ट्रैक करने का प्रयास किया गया था" या फिर यह कि पेगासस का इस्तेमाल करके एनएसओ ने उसे हैक किया था।

कैलिफ़ोर्निया के उत्तरी ज़िले के यूएस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के सामने पेश हुई दूसरी और एक गंभीर क़ानूनी लड़ाई में पेगासस का इस्तेमाल करके अपने ग्राहकों की गोपनीयता की रक्षा को लेकर अपने एन्क्रिप्शन सिस्टम में घुसपैठ करने के लिए एनएसओ के ख़िलाफ़ व्हाट्सएप और फेसबुक ने एक प्रस्ताव लाया था। उस मुकदमें में दावा किया गया था कि एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित इस स्पाइवेयर का इस्तेमाल अप्रैल और मई 2019 के बीच उन 1,400 मोबाइल उपकरणों को संक्रमित करने के लिए किया गया था, ताकि निशाने पर रहे व्हाट्सएप उपयोगकर्ताओं के समूह में हुई बातचीत पर नज़र रखी जा सके। व्हाट्सएप ने ख़ास तौर पर मज़बूती से अपनी बात को रखते हुए कहा था कि पेगासस के इस्तेमाल किये गये तकनीक से उपयोगकर्ताओं के मोबाइल उपकरणों पर आये कॉल, संदेश और स्थानों की जानकारी तक पहुंच बनाने और उस पर नियंत्रण पाने के लिए दूर से से ही उनके एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन को नाकाम कर दिया  गया था।

सात अन्य मानवाधिकार समूह और प्रेस फ़्रीडम ग्रुप के साथ मिलकर एमनेस्टी इंटरनेशनल ने उस मुकदमे का समर्थन करते हुए एक संक्षिप्त विवरण पेश किया था।

एनएसओ ने उस मुकदमे को यह तर्क देते हुए खारिज करने का एक प्रस्ताव दिया था कि चूंकि उसके ग्राहक संप्रभु देश हैं, इसलिए कैलिफ़ोर्निया के ज़िला न्यायालय के पास विदेशी संप्रभु प्रतिरक्षा अधिनियम ("किसी विदेशी राज्य- संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य देशों की अदालतों के अधिकार क्षेत्र से मुक्त होगा", अपवादों को छोड़कर) के तहत वैधानिक प्रतिबंध के कारण मुकदमा चलाने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था।

अदालत ने 16 जुलाई, 2020 के अपने आदेश के ज़रिये एनएसओ की उस दलील को ख़ारिज कर दिया था कि वादी के उपयोगकर्ताओं की निगरानी में उसकी सीमित भूमिका है। बल्कि अदालत ने तो यह भी माना था कि एनएसओ समूह ने अपने पेगासस स्पाइवेयर के संचालन में "कुछ भूमिका बनाये रखी", "भले ही यह भूमिका उसके ग्राहकों के निर्देश पर हो।" इससे साफ़ तर पर दिखता है कि प्रथम दृष्टया जांच में अदालत को विश्वास हो गया था कि एनएसओ समूह ने न सिर्फ़ अपने सॉफ़्टवेयर के विक्रेता के तौर पर कार्य किया था, बल्कि वास्तव में इस तरह की निगरानी के स्वरूप और तरीक़े पर भी कुछ हद तक नियंत्रण बनाये रखा।

इस चुनौती के दूसरे आधार पर अदालत ने माना कि महज़ इसलिए कि ग्राहक के तौर पर पेगासस के पास संप्रभु देश थे,वह संप्रभु प्रतिरक्षा का दावा नहीं कर सकता है। एनएसओ के पास न तो हैसियत आधारित प्रतिरक्षा थी और न ही विदेशी संप्रभु प्रतिरक्षा अधिनियम के दायरे में आने वाली आचरण आधारित प्रतिरक्षा थी।

कोर्ट ने एनएसओ समूह के इस तर्क को भी खारिज कर दिया था कि उसने तो अपने ग्राहकों को महज़ "तकनीकी मदद" दी थी। अदालत ने तो यह भी माना था कि एनएसओ समूह ने अपने पेगासस स्पाइवेयर के संचालन में कुछ भूमिका बनाये रखी थी, "भले ही यह भूमिका उसके ग्राहकों के निर्देश पर रही हो।"

आम लोगों के हित में इस समय ऐसा नया और अहम सवाल उभर आया है, जिसे अबतक संप्रभु होने के एकमात्र और अनन्य अधिकार क्षेत्र के दायरे में आने वाला सवाल माना जाता था। यह सवाल निगरानी के उस अधिकार को लेकर है, जिसकी अनुमित वैसे तो सिर्फ़ असाधारण परिस्थितियों में दी जाती है, और जो राज्य का संप्रभु अधिकार है, लेकिन क्या इस अधिकार का इस्तेमाल किसी ग़ैर-सरकारी एजेंसी, यानी विदेशी क्षेत्र में पंजीकृत किसी निकाय कॉर्पोरेट द्वारा अनुबंधित रूप से किया जा सकता है ?

भारत के लिहाज़ से इस सवाल और इसके जवाबों की जांच अगले भाग की जायेगी।

(निपुण सक्सेना भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक वकील हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।)

यह लेख मूल रूप से द लीफ़लेट में प्रकाशित हुआ था।

इस लेख को अंग्रेजी में इस लिंक के जरिय पढ़ा जा सकता है

Is it the Last Flight for Pegasus? [Part-I]

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