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झारखंड: सुरक्षा किट की कमी, कम जांच दर और स्वास्थ्यकर्मियों की हड़ताल के बीच कोरोना से जंग

झारखंड समेत पूरे देश में जब स्वास्थ्यकर्मियों के ऊपर नीले आसमान से गुलाब की पंखुड़ियां बरसाई जा रही थी, उसी वक़्त राज्य के सबसे बड़े अस्पताल की ज़मीन पर कई आउटसोर्सिंग लैब टेक्नीशियन अपनी सुरक्षा और नियुक्तिपत्र की मांग को लेकर हड़ताल पर बैठे थे।
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'न हमें पता होता है न किसी मरीज़ को कि वो कोरोना संक्रमित हैं या नहीं। हम सैंकड़ो मरीज़ों के संपर्क में आते हैं। महामारी के इस दौर में संक्रमित होने का खतरा बना रहता है। हमें सुरक्षा उपकरण के नाम पर कोरोना के शुरुआती चरण में ही एन 95 मास्क दिया गया था और एक कपड़ा मास्क। मास्क की कमी के कारण उसी मास्क को धो-धो कर इस्तेमाल करना पड़ता हैं।' ये बात रांची स्थित राजेन्द्र आयुर्विज्ञान संस्थान(रिम्स) के सेंट्रल लैब के आउटसोर्सिंग लैब टेक्नीशियन मुकेश कुमार (बदला हुआ नाम) ने बताई।

रिम्स माइक्रोबायोलॉजी विभाग के एक लैब टेक्निशियन के कोरोना संक्रमित होने के बाद से तीन दिनों के लिए लैब सील कर दिया गया। लैब को सैनिटाइज करने के बाद सोमवार को फिर से कोरोना संदिग्धों के सैंपल की जांच प्रक्रिया शुरू की गई।

स्थानीय अखबारों के मुताबिक, रिम्स के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में अब सिर्फ कोरोना संदिग्धों के सैंपल की जांच ही होगी। सैम्पल कलेक्शन नहीं किया जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि रिम्स के 22 टेक्निशियंस हड़ताल पर हैं। ये रिम्स के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में भी कार्यरत हैं।

गौरतलब है कि इससे पहले भी झारखंड में स्वास्थ्यकर्मी संक्रमित मरीज़ के संपर्क में आने से वायरस की चपेट में आ चुके हैं। अप्रैल महीने में रांची सदर अस्पताल की चार नर्स और एक महिला गॉर्ड कोरोना संक्रमित पाई गयीं थी। बताया गया कि उक्त नर्सों ने जिस महिला का प्रसव कराया था वह कोरोना संक्रमित पाई गयी थी।

ज्ञात हो कि राज्य में चार कोविड-19 जांच सेन्टर बनाए गए हैं। जिसमे से सबसे ज्यादा जांच की क्षमता राजधानी के रिम्स की ही है। जानकार बता रहे हैं कि प्रदेश में जांच बहुत कम पैमाने पर हो रही है। राज्य को और जांच केंद्रों की ज़रूरत है ताकि जांच की रफ्तार को बढ़ाया जा सके।

ज़ाहिर सी बात है राज्य के जिस अस्पताल में सबसे ज्यादा जांच की जा रही थी वहीं टेक्नीशियनों के हड़ताल पर जाने और सैंपल कलेक्ट नहीं होने से राज्य में कोरोना जांच की रफ्तार पर खासा गहरा असर पड़ेगा। राज्य में 3 मई तक महज़ 14,734 सैंपल लिए गए हैं जिसमे से 14,046 सैम्पलों की जांच हुई है।

रिम्स माइक्रोबायोलॉजी लैब सील होने के मामले में माइक्रोबायोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. मनोज ने बताया कि विभाग के प्रयोगशाला में जिन नमूनों की जांच चल रही थी, वह पूरी की जाएगी लेकिन तीन दिनों तक कोई नया सैंपल यहां नहीं लिया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि ऐसा आइसीएमआर के दिशानिर्देशों के तहत ही किया गया है।

डॉ.मनोज ने आगे बताया कि 'विभाग के अन्य सभी लगभग तीन दर्जन डॉक्टरों एवं टेक्नीशियन्स की जांच की गई है और सभी कोरोना निगेटिव पाए गए हैं।'

बताया गया कि जितने दिन प्रयोगशाला को बंद रखा गया उस बीच लैब को सैनेटाइज़ करने का काम किया गया है।

इससे पहले लैब को कभी सैनेटाइज़ नहीं किया गया था। यह बात हमें कोविड सेन्टर में काम करने वाले एक स्वास्थ्यकर्मी ने बताई है।

अस्पताल प्रबंधन के रख रखाव को और बेहतर तरीके से समझने के लिए हमने माइक्रोबायोलॉजी लैब के टेक्नीशियन से बात की, उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, 'हमने कई बार स्वास्थ्यकर्मियों के सुरक्षा में की जा रही लापरवाही के बारे में प्रबंधन को बताया है लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ।'

लैब टेक्नीशियन के मुताबिक अभी तक एक बार भी कोविड सेन्टर को सैनिटाइज नहीं किया गया है। सफाई के नाम पर बस फेनॉइल से पोछा लगा दिया जाता है।

गौरतलब है कि रिम्स के माइक्रोबायोलॉजी लैब टेक्नीशियन के कोरोना संक्रमित होने के बाद से ही आउटसोर्सिंग स्वास्थ्यकर्मी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए थे।

हड़ताल के बारे में सनोज (बदला हुआ नाम) ने बताया कि, 'हम अपने नियुक्तिपत्र की मांग कर रहे हैं और हमें सात दिन ड्यूटी करने के बाद 14 दिन के लिए क्वारंटाइन किया जाए।'

वह आगे बताते हैं कि 'हम हाई रिस्क जोन में काम कर रहे हैं। सैंपल कलेक्शन से लेकर टेस्टिंग तक करते हैं। हमें संक्रमित होने का ज्यादा जोखिम होता है। हम लैब के बाद सीधा घर जाते हैं। परिवार के सदस्यों के संपर्क में आते हैं। ऐसे में हम अपने परिवार के लिए भी खतरे का सबब बने रहते हैं।'

सनोज अपनी मांगों को लेकर कहते हैं कि हमारे रुकने का कहीं इंतेज़ाम किया जाना चाहिए। हमें सही समय पर क्वारंटाइन किया जाए और जल्द से जल्द हमें नियुक्ति पत्र मिले। जब तक सरकार हमारे सुरक्षा के लिए वाजिब कदम नहीं उठाती है तब तक हम काम नहीं करेंगे।

जानकारी के मुताबिक माइक्रोबायोलॉजी लैब में तकरीबन 20 आउटसोर्सिंग लैब टेक्नीशियन काम करते हैं जिसमें से कलेक्शन टीम में 8 लैब टेक्नीशियन, शॉर्टिंग में 6 और टेस्टिंग में 6 तकनीशियन काम करते हैं।

ज़ाहिर सी बात है कि यदि टेक्नीशियन काम पर नहीं लौटते है तो अस्पताल का माइक्रोबायोलॉजी लैब के साथ ही साथ राज्य में कोरोना की जांच की रफ्तार भी प्रभावित होगी।

अभी तक झारखंड की आबादी के महज 0.04 फीसदी लोगों की ही कोरोना जांच हो सकी है। 90 फीसदी मामलों में जांच के आधार सिर्फ कांटेक्ट ट्रेसिंग और ट्रैवल हिस्ट्री ही रहे हैं।

झारखंड में चार अस्पतालों में कोरोना सैंपल की जांच की जा रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, रांची के रिम्स की 300 जांच की क्षमता है, एमजीएम जमशेदपुर की 150, पीएमसीएच धनबाद की 50 और यक्ष्मा आरोग्यशाला इटकी की 50 जांच की क्षमता है।

हालांकि यह भी बताया गया कि हाल के दिनों में जांच केंद्रों की क्षमताओं में पहले के मुकाबले थोड़ा इज़ाफ़ा हुआ है।

बताया गया है कि जितने दिन रिम्स में जांच प्रक्रिया बाधित रही उतने दिन सैंपल को जमशेदपुर के महात्मागांधी मेमोरियल अस्पताल में भेजा गया।

हमने एमजीएम के स्वास्थ्यकर्मियों से भी बात की, दिलीप (बदला हुआ नाम) ने बताया कि, 'मैं पिछले दो महीने से बिना किसी छुट्टी के काम कर रहा हूँ। 15 दिन के लिए मेरी शिफ्ट कोविड सेन्टर के आइसोलेशन वार्ड में लगाई गयी थी। उसके बाद मेरी ड्यूटी अस्पताल के ब्लड बैंक डिपार्टमेंट में लगाई गयी है। अपनी सुरक्षा के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि जब तक आइसोलेशन वार्ड में था तब तक सुरक्षा उपकरण तो मिले, लेकिन जब से ब्लड बैंक डिपार्टमेंट में आया हूँ तब से सुरक्षा के नाम पर बस मास्क दिया गया है।'

हालांकि उन्होंने बताया, 'हर किसी को हर बार एन95 मास्क नहीं मिलता। यदि एक मिल गया तो ज़रूरी नहीं कि हर बार मिल जाए।'

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि, 'ब्लड बैंक डिपार्टमेंट में काम करते हुए डर लगता है। हम दिन भर में कई मरीज़ों के संपर्क में आते हैं। ब्लड कलेक्शन का भी काम करते हैं। ऐसे में हमें भी पीपीई किट मिलना चाहिए लेकिन नहीं मिलता है। फिलहाल तो हमारे यहां एक भी पोसिटिव केस नहीं है मगर डर तो बना ही रहता है।'

महात्मा गांधी मेमोरियल अस्पताल सिर्फ जमशेदपुर का ही नहीं बल्कि पूरे कोल्हान का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है।

एमजीएम जमशेदपुर के एक और स्वास्थ्यकर्मी ने बताया कि, 'कोविड सेन्टर में अप्रैल महीने के पहले या दूसरे हफ्ते में एक बार किसी तरह का छिड़काव किया गया था उसके बाद से अभी तक सही तरीके से वार्ड या अस्पताल के किसी भी एरिया को सैनिटाइज़ नहीं किया गया है। साफ-सफाई के नाम पर महज़ दिन भर दो वक़्त पोछा लगा दिया जाता है। अस्पताल प्रबंधन लापरवाही बरत रही है और इसकी वजह यह है कि यहां अभी तक कोई पॉजिटिव केस नहीं आया है।'

उन्होंने यह भी बताया कि, 'हमें अप्रैल के शुरुआती हफ्ते में मास्क दिया गया था। वह मास्क भी एक से दो बार धोने पर ख़राब हो जाता है। आलम यह है कि जो वन टाइम यूज़ मास्क है उसे भी हम तीन से चार दिनों तक इस्तेमाल करते हैं।'

जिस वक़्त पर कोविड-19 नामक महामारी से पार पाने की कवायद लगाई जानी चाहिए, वहीं झारखंड सरकार स्वास्थ्यकर्मियों को ही बेहतर सुरक्षा उपकरण मुहैया कराने में विफल नज़र आ रही है। प्रदेश में अपनी सुरक्षा के लिए स्वास्थ्यकर्मियों को ही हड़ताल करना पड़ रहा है।

ऐसा ही एक वाकया धनबाद के पाटलिपुत्र मेडिकल कॉलेज में भी देखा गया। अप्रैल महीने के तीसरे हफ्ते में अस्पताल की नर्सों ने सुरक्षा उपकरण न मिलने पर कार्य बहिष्कार कर दिया था। रिम्स की तरह ही यहां भी नर्स पीपीई और मास्क की मांग कर रहे थे।

गौरतलब है कि राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक इंटरव्यू में कहा कि, आज हम मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी से नहीं घबरा रहे। उन्होंने यह भी कहा, हमारी कोशिश है ज्यादा से ज्यादा संक्रमितों की पहचान हो पाए ताकि हम उन्हें समूह से अलग कर उचित व्यवस्था करें और उनका सही उपचार करें।

लेकिन झारखंड के जांच केंद्र, वेंटिलेटर, आईसीयू, डॉक्टरों व नर्सों की संख्या कुछ और ही कहानी बयां करती है।

राज्य में कुल 24 ज़िलें हैं, जिसमें से अब तक 21 जिलों में जांच को लेकर कोई बंदोबस्त नहीं है। झारखंड के देवघर, गढ़वा, गिरिडीह, सिमडेगा, बोकारो, हज़ारीबाग़ और कोडरमा ऐसे ज़िलें हैं जहां से कोविड-19 के पाजिटिव मरीज़ मिले हैं, लेकिन इन जिलों में भी जांच संबंधित कोई व्यवस्था नहीं है।

बात करें राज्य की रिकवरी रेट की तो इसमें भी झारखंड अपने कई पड़ोसी राज्य से पीछे हैं। जहां बिहार की रिकवरी रेट 25.33, ओडिशा का 34.68, छत्तीसगढ़ का 62.06 वहीं झारखंड की रिकवरी रेट 22.13 है। राष्ट्रीय दर की तुलना में यह 5.64 फीसदी कम है।

क़रीब साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले राज्य में डॉक्टरों की आधे से ज्यादा पद खाली हैं। सरकारी डॉक्टरों, नर्सों, टेक्नीशियन की भारी किल्लत है। प्रदेश में 3,378 चिकित्सक पद हैं लेकिन इसमें फिलहाल 1,524 ही डॉक्टर सेवा दे रहे हैं। वहीं राजधानी के रिम्स की बात करें तो अस्पताल की क्षमता 2,400 नर्सों की बताई जाती है, जबकि महज़ 450 से भी कम नर्स काम कर रही हैं।

हालांकि रिम्स में नर्सों की संख्या को लेकर रिम्स निदेशक डॉ. डीके सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया कि अस्पताल में 450 से भी कम नर्स हैं।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों की माने तो कोविड-19 में वेंटिलेटर और आईसीयू सेवा बेहद ज़रूरी है। लेकिन खनिज पदार्थों से लबरेज़ झारखंड स्वास्थ्य सुविधाओ के मामले में समृद्धि से वंचित दिखाई पड़ता है।

राज्य के किसी भी जिला अस्पताल में वेंटिलेटर की व्यवस्था नहीं है। झारखंड के सरकारी और गैर-सरकारी अस्पतालों को मिलाकर मात्र 350 ही वेंटिलेटर बताए जा रहे हैं।

इन आंकड़ों को देखते हुए यदि हम थोड़ा गणित लगाए तो पता चलता है कि झारखंड में लगभग 73 हजार लोगों पर मात्र एक ही वेंटिलेटर है। वहीं प्रदेश में आईसीयू की सुविधा सिर्फ 14 जिलों के अस्पतालों में ही है।

बताते चलें कि, साल 2018 में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, स्पेशलिस्ट डॉक्टरों और तकनीकी सुविधाओं की कमी की वजह से हर महीने करीब 8,000 मरीज़ दूसरे राज्यों में इलाज के लिए रेफर किये जाते हैं।

 इस पूरे प्रकरण में हमने झारखंड के स्वास्थ्य सचिव नितिन मैदान कुलकर्णी से कुछ सवाल किये हैं।

हमने उनसे पूछा राज्य में स्वास्थ्यकर्मियों को सुरक्षा उपकरणों को लेकर हड़ताल करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति क्यों उत्पन्न हो रही है? जवाब में उन्होंने बताया, 'हमें स्वास्थ्य कर्मचारियों के हड़ताल के बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं है। हालांकि, शुरुआती दिनों में एन-95 और पीपीई की कमी के बारे कुछ शिकायत ज़रूर की गयी थी। वर्तमान में सभी जिलों और मेडिकल कॉलेजों में पर्याप्त मात्रा में पीपीई और एन-95 मास्क हैं।'

उन्होंने आगे बताया कि 'राज्य के पास 27,647 पीपीई और 5,171 एन-95 मास्क का स्टॉक भी है।'

राज्य में जांच केंद्रों की संख्या को बढ़ाए जाने की बात पर उन्होंने कहा कि, 'प्रदेश में परीक्षण क्षमता को बढ़ाने के लिए पलामू, हजारीबाग और दुमका में तीन नए मेडिकल कॉलेजों में प्रयोगशालाओं की स्थापना की प्रक्रिया चल रही है।'

हमने उनसे यह भी पूछा कि स्वास्थ्यकर्मियों के सुरक्षा को लेकर क्यों लापरवाही बरत रही है सरकार? स्वास्थ सचिव मदन कुलकर्णी ने बताया कि, 'राज्य सरकार सभी स्वास्थ्यकर्मी की सुरक्षा का बेहद ख़याल रख रही है। अभी तक हमें स्वास्थ्यकर्मियों के सुरक्षा में चूक की खबर नहीं मिली है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कोविड-19 में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से काम करने वाले सभी स्वास्थ्य कर्मचारियों का बीमा  "प्रधानमंत्री गरीब कल्याण बीमा योजना” के तहत किया जाता है।'

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