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कर्नाटक : सीटू ने राज्यपाल से कारख़ाना अधिनियम में हुए संशोधनों को रद्द करने का आग्रह किया

नए संशोधन में कार्य के घंटे को 9 से बढ़ा कर 12 कर दिए गए हैं और महिलाओं के देर रात तक काम करने के प्रतिबंध को हटा दिया गया है।
Factory workers
सांकेतिक तस्वीर, साभार : Flickr

सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के महासचिव तपन कुमार सेन ने कर्नाटक के राज्यपाल वजूभाई वाला को पत्र लिख कर आग्रह किया है कि कर्नाटक विधानसभा द्वारा पारित कारखाना अधिनियम को स्वीकृति प्रदान न किया जाए।

यदि पारित हो जाता है, तो इससे नए संशोधन कारखाना अधिनियम 1948 के छह खंडों में परिवर्तन होगा। नए प्रावधान कारखानों के अंदर और बाहर के जीवन को काफी हद तक बदल देंगे।

काम के घंटे संशोधित कर के अधिकतम 12 घंटे प्रति दिन और 48 घंटे प्रति सप्ताह कर दिए गए हैं। कामगारों से बिना ब्रेक के 6 घंटे तक काम कराया जा सकता है।

मौलिक क़ानून में महिलाओं के लिए कारखाने में शाम 7 बजे से सुबह 6 बजे तक काम करने का निषेध है पर नए संशोधन में इन घंटों में काम करने की अनुमति दी गई है।

सेन के पत्र में कई कारण दिए गए हैं। इसमें बिल को पास न करने की वजह बताई गई है। पत्र में यह कहा गया है कि कारखानों को शहर के बाहरी इलाके में स्थानांतरित करने की वर्तमान प्रवृत्ति के कारण श्रमिकों के लिए यात्रा का समय 1-2 घंटे प्रति दिन हो गया है।

12 घंटे काम करने का मतलब है कि कामगारों को प्रतिदिन 16 घंटे घर से बाहर रहना होगा। पत्र में आगे कहा गया है कि रात की पाली में काम करना महिलाओं को कारखानों में काम करने के लिए हतोत्साहित कर सकता है।

काम के घंटों के बारे में, पत्र में कहा गया है, "लाभ हासिल करने का स्थापित आर्थिक विचार सीधे काम के घंटों से जुड़ा हुआ है। काम के घंटे/काम के दिन के विस्तार से पूर्ण रूप से अधिक लाभ हासिल होता है। हालांकि बोनस भुगतान अधिनियम 1973 के माध्यम से लाभ/अधिशेष बंटवारे की अवधारणा को कुछ हद तक बोनस की अवधारणा में प्रतिपादित किया गया है, इसने भी बोनस के भुगतान पर न्यूनतम बोनस की दर 8.33% और अधिकतम 20% की सीमा निर्धारित की है। इसके अलावा, ज्यादातर मामलों में, यह 8.33% या अनुसूचित रोजगार का अधिसूचित वैधानिक न्यूनतम मजदूरी है, इनमें जो भी अधिक हो। इसलिए काम के घंटे/दिन का यह विस्तार और कार्य दिवस का विस्तार केवल नियोक्ता को कार्य दिवस के काम के घंटों में वृद्धि से उत्पन्न अधिक लाभ को कानूनी रूप से हड़पने में सक्षम बनाने का एक प्रयास है।"

प्रतिभा आर पहले गारमेंट में काम करती थीं लेकिन अब ट्रेड यूनियन लीडर हैं। वह कहती हैं कि कारखाने के मालिक गारमेंट सेक्टर में महिलाओं के लिए रात की पाली की अनुमति नहीं देंगे।

उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "गारमेंट क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं का आईटी क्षेत्र की महिलाओं के समान सोशलाइजेशन नहीं होता है। वे रात की पाली में काम करने के लिए सहमत नहीं होंगी। इसके अलावा, कानून के अनुसार कारखाने के मालिकों को परिवहन सुविधाओं की व्यवस्था करने की आवश्यकता है। कारखाना के मालिक कर्मचारियों पर एक अतिरिक्त रुपया भी निवेश करना पसंद नहीं करते हैं, इसलिए वे कभी भी ये सुविधाएं प्रदान नहीं करेंगे।"

बता दें कि 52 वर्षीय प्रतिभा विजयपुर स्थित अक्कमामहादेवी महिला विश्वविद्यालय से पीएचडी भी कर रही हैं और वह कर्नाटक में परिधान क्षेत्र पर शोध कर रही हैं।

कारखानों में काम के घंटे बढ़ाने के बारे में उन्होंने कहा, "युवा कर्मचारी अपना पसीना और मेहनत दे रहे हैं और देश व अर्थव्यवस्था का निर्माण कर रहे हैं। उन्हें अब पूरी तरह से कारखाने के मालिकों को सौंप दिया गया है। गारमेंट क्षेत्र में, समय बदला जा सकता है।" यह अनियमित होता है हमेशा तय नहीं होता। 12 घंटे के कार्य दिवसों के प्रावधान से कर्मचारियों का ओवरटाइम (ओटी) भुगतान समाप्त हो जाएगा। वे अधिक समय तक काम करेंगे लेकिन उस अनुपात में आय नहीं होगी। महिला कर्मचारियों के लिए (गारमेंट क्षेत्र में), जीवन बहुत कठिन हो जाएगा क्योंकि वे अपने काम और पारिवारिक जीवन की योजना नहीं बना सकते।"

भाजपा नेतृत्व वाली कर्नाटक की सरकार ने कोरोना महामारी के समय पहले भी काम के प्रतिदिन 10 घंटे और प्रति सप्ताह 60 घंटे किया था। इसका यूनियन और कर्मचारियों ने विरोध किया था।

सेन के पत्र में कुछ आंकड़े दिए गए है। इन आंकड़ों के हवाले कहा गया है कि यह निर्णय मजदूर विरोधी है। इसमें कहा गया है, "उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (फैक्ट्री डिवीजन) 2019-20 के अनुसार, कर्नाटक में नेट वैल्यू एडिशन (एनवीए) में मजदूरी का हिस्सा 15.04% है, जबकि राष्ट्रीय औसत 18.87% है और मुनाफे का हिस्सा है। एनवीए में नियोक्ता 46.11% है, जबकि राष्ट्रीय औसत 38.71% है। ये संशोधन मजदूरी के हिस्से को और कम करेंगे और मुनाफे के हिस्से को बढ़ाएंगे। यह नियोक्ता वर्ग की ओर झुकी हुई मूल्य वृद्धि की पुनर्वितरण प्रक्रिया की ओर जाता है। यह प्रवृत्ति मजदूरी के घटते हिस्से से केवल कर्मचारियों की क्रय शक्ति कम होगी और राज्य की अर्थव्यवस्था में मंदी और इससे होने वाली मंदी में योगदान होगा।"

कर्नाटक सीटू की महासचिव मीनाक्षी सुंदरम कहती हैं कि सभी ट्रेड यूनियन 23 मार्च को विरोध करने पर सहमत हैं।

उन्होंने कहा, "नए संशोधन मालिकों को अधिक लचीलापन देंगे। वे कारखाने को चार दिनों तक 24 घंटे (दो पारियों में) चला सकते हैं और इसे तीन दिनों के लिए बंद कर सकते हैं। वे ओवरटाइम के भुगतान पर बचत करेंगे और श्रम बल से अधिक काम लेने के क्रम में लागत को कम करेंगे। इन संशोधनों से श्रमिकों को नुकसान होगा, और इसीलिए हम विरोध करेंगे। इसमें सभी ट्रेड यूनियन भाग लेंगे। यहां तक कि बीएमएस नेताओं ने भी विरोध में शामिल होने में अपनी रुचि दिखाई है।"

हालांकि ये बिल कर्नाटक विधानसभा के दोनों सदनों में पारित हो चुका है और राज्यपाल की मंज़ूरी मिलनी अभी बाक़ी है।

अंग्रेजी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

Karnataka: CITU Urges Governor to Reject Amendment to Factories Act

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