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कर्नाटक: बेंगलुरु में निगम कर्मचारियों का अंतहीन शोषण जारी

राज्य सफ़ाई कर्मचारी आयोग के अनुसार, बीबीएमपी में 54,512 में से केवल 10,755 निगम कर्मचारी स्थायी हैं।
Bengaluru
बेंगलुरु में पौरकर्मी का विरोध परदर्शन, फोटो क्रेडिट: ऐक्टू

 

कर्नाटक में निगम कर्मचारी, जिन्हें 'पौराकर्मी' के नाम से भी जाना जाता है, खुद के बहिष्करण के कभी न खत्म होने वाले जंजाल में फसे हुए हैं। उनका भुगतान यानि वेतन लंबित पड़ा है तथा सामाजिक सुरक्षा, स्थायी रोजगार और श्रम के प्रति सम्मान और हक़ की अधूरी मांगों की सूची के साथ, निगम कर्मचारी राज्य सरकार के शोषण के ख़िलाफ़ आंदोलन तो कर रहे हैं लेकिन इस लड़ाई में वे अकेले खड़े हैं।

ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (AICCTU) से संबद्ध बीबीएमपी (BBMP) पौराकर्मिका संघ ने बृहत बेंगलुरु महानगर पालिके (BBMP) के प्रमुख तुषार गिरिनाथ को एक पत्र के माध्यम से प्रस्तुत किया है। इस पत्र को 21 दिसंबर को स्वीपर, ड्रेन क्लीनर, ड्राइवर, कूड़ा लोडर ने बीबीएमपी को दिया था, जिसमें अनुरोध किया गया था कि वे निगम कर्मचारियों की भर्ती में मौजूदा ठेकेदारी प्रथा को खत्म करें और समय पर वेतन का पूरा भुगतान करें। 

19 दिसंबर को यूनियन/संघ ने राज्य के उप-श्रम आयुक्त को पिछले पांच महीनों से ऑटो चालकों, लोडरों और सहायकों को कोई वेतन नहीं मिलने की शिकायत भी की है। 

नवंबर में ऐक्टू ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर सभी ठेका कर्मियों को स्थायी करने के आश्वासन को पूरा करने की मांग की, जिस पर आज तक ध्यान नहीं दिया गया है।  पौरकार्मिकों की मांगों को उठाने के लिए एक सम्मेलन भी किया गया था, जिसमें सरकार से श्रमिकों से किए गए वादों को पूरा करने को कहा गया था।

एक दर्दनाक स्थिति

राज्य सरकार द्वारा कर्मचारियों के बहिष्कार के बावजूद, निगम कर्मचारी लगातार अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं। कचरा इकट्ठा करने से लेकर भूमिगत जल निकासी, सफाई और कचरा लोडिंग-अनलोडिंग तक का सारा काम बखूबी कर रहे हैं। इस गैर-सम्झौतापरस्त निगम की ड्यूटि में दर्द बेंतहा है।

बोम्मनहल्ली क्षेत्र में कूड़ा उठाने वाले 49 वर्षीय वेंकट नरसप्पा लगातार अपने तय इलाकों से सूखा और गीला कचरा उठाते हैं। लेकिन वे उनकी शिकायत है कि सरकार पौरकार्मिकों के अस्तित्व की उपेक्षा करती है। 

तस्वीर: वेंकट नरसप्पा, गारबेज लोडर। फोटो क्रेडिट: सौरव कुमार

नरसप्पा ने न्यूज़क्लिक को बताया: "मैं 17 साल से अनियमित वेतन और असुरक्षित कामकाजी हालात में कचरा इकट्ठा/उठा रहा हूं। हर महीने 30 दिन काम करने पर मैं 14,000 रुपए कमाता हूं। यदि मैं एक दिन की छुट्टी कर लूं तो मुझे 600 रुपए दिहाड़ी का नुकसान होता है। पौरकार्मिक का जीवन अनिश्चित है”

राज्य की सड़कों को साफ रखने के उनके अथक प्रयासों के बावजूद ठेके वाला काम नरसप्पा और उनके जैसे हजारों लोगों/श्रमिकों के भविष्य के लिए असुरक्षित काम बन गया है।

मदीवाला बाजार की सड़कों पर झाड़ू लगाने वाली निर्मला भी खुद को अनिश्चित भविष्य का सामना करती हुई पाती हैं। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया, "दशकों से, मैं शहर के विभिन्न हिस्सों में ठोस कचरे का प्रबंधन कर रही हूँ, लेकिन मेरा काम स्थायी नहीं है और यह हमारी वित्तीय सुरक्षा के लिए ख़तरा है।"

निर्मला के अनुसार, उनकी मासिक कमाई 14,000 रुपए है जबकि एक स्थायी कर्मचारी को  40,000 रुपए मिलते हैं। वे, वेतन की इस असमानता को खत्म करने की मांग करती है। पौरकार्मिकों ने काम करने की परिस्थितियों के मामले में अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया है।

बोम्मनहल्ली में एनजीआर लेआउट के पास कार्यरत एक स्ट्रीट स्वीपर नारायणप्पा ने दावा किया कि पिछले कुछ वर्षों में निगम कर्मचारियों की काम करने की स्थिति काफी बिगड़ गई है। इसका एक उदाहरण तो यह है कि बीबीएमपी ने कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से उन्हें कोई नई वर्दी नहीं दी है।

तस्वीर: पौरकर्मिकों की फटी वर्दी। फोटो क्रेडिट: ऐक्टू

कुछ महीने पहले पौरकर्मीकाओं को फटे-पुराने कपड़ों में काम करते देखा गया था और जब इसका खुलासा हुआ तो बीबीएमपी को बैकफुट पर जाना पड़ा और तब जाकर उसने नई वर्दी देने का आश्वासन दिया।  

पौरकर्मिकों के चल रहे संघर्ष के बीच, एम शिवन्ना, अध्यक्ष, कर्नाटक राज्य सफाई कर्मचारी, हजारों श्रमिकों के लिए एक प्रमुख आवाज रहे हैं, लेकिन वे भी ठेका कार्य प्रणाली को समाप्त करने में सफल नहीं हो सके।

असफल वादे

उनकी यूनियन का कहना है कि कर्नाटक सरकार ने कई मौकों पर सिविक फ्रंटलाइन वर्कफोर्स को धोखा दिया है, चाहे वह भर्ती की ठेका प्रणाली को समाप्त करना हो या सभी श्रमिकों को स्थायी कर्मचारी बनाना हो।

बीबीएमपी पौरकर्मिका संघ के सदस्य रत्ना ने न्यूज़क्लिक को बताया: "राज्य सरकार ने जुलाई 2022 के विरोध के बाद, 11,000 श्रमिकों को स्थायी नौकरी देने का आश्वासन दिया था, लेकिन अब वे केवल 3,000 श्रमिकों को स्थायी करने का दावा कर रही है। यह घोर विश्वासघात है।”

राज्य सरकार ने 1996, 2014 और 2019 में तीन मौकों पर स्थायी आधार पर श्रमिकों की भर्ती की घोषणा की थी।

राज्य सफाई कर्मचारी आयोग के अनुसार, 54,512 में से केवल 10,755 निगम कर्मचारी स्थायी हैं, बाकी किसी भी सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य लाभ से कवर नहीं हैं।

आयोग के अनुसार, निगम श्रमिकों को स्थायी श्रमिकों, प्रत्यक्ष भुगतान श्रमिकों, संविदात्मक श्रमिकों, आउटसोर्स श्रमिकों और दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

"लंबे समय तक विश्वासघात" झेलने के बाद, लगभग 40,000 पौराकर्मी 1 जुलाई 2022 को अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए। इसने सरकार को बैकफुट पर धकेल दिया और काम के नियमितीकरण, सामाजिक और स्वास्थ्य लाभ आदि की मांगों पर बातचीत हुई। सरकार ने लिखित में दिया कि सभी पौराकार्मिकों को स्थायी करने और अपशिष्ट प्रबंधन में ठेका श्रम प्रणाली को समाप्त करने का आश्वासन दिया, श्रमिकों का आरोप है कि हड़ताल समाप्त होने के बाद, राज्य सरकार ने इस मुद्दे पर कोई कार्रवाई नहीं करके हजारों श्रमिकों के साथ "विश्वासघात" किया है। 

बीबीएमपी पौराकर्मिकरा संगठन की अध्यक्ष निर्मला एम॰ के अनुसार, उत्पीड़ित दलित समुदाय से संबंधित कई पौराकार्मिक शहर को साफ रखने के लिए कचरा संग्रह और प्रबंधन के जाति-आधारित व्यवसाय में लगे हुए हैं। लेकिन, बदले में, उन्हें केवल भेद्यता, शोषणकारी स्थितियां और कोई न्यूनतम मजदूरी नहीं मिली है।

सुविधा केबिन। फोटो क्रेडिट: सौरव कुमार

यूनियन/संघ ने कहा कि राज्य सरकार का विश्वासघात मजदूरी, निरंतर ठेकेदारी प्रथा, आदि से परे है। बीबीएमपी ने शहर भर में पौराकर्मिकों के लिए सुविधा केबिन स्थापित करने का वादा किया था, लेकिन बड़े पैमाने पर यह पूरा नहीं हुआ है।

नारायणप्पा के अनुसार, एनजीआर लेआउट में सुविधा केबिन निष्क्रिय पड़ा है और सरकार और निगम के "आधे-अधूरे दावों" के पीछे की सच्चाई को उजागर करता है।

बीबीएमपी के संयुक्त आयुक्त बोम्मनहल्ली जोन मुनिराज के पास पहुंचने पर उन्होंने कहा कि सुविधा केबिन के कामकाज की जांच की जानी चाहिए।

वर्ष 2020 में विधायक और सरकार में मंत्री सी. एन. अश्वथनारायण द्वारा मल्लेश्वरम में पहले केबिन का उद्घाटन किया गया था। तब से इनमें से कुछ ही कथित तौर पर काम कर रहे हैं।

लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

Karnataka: The Unending Exclusion of Civic Workers in Bengaluru

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