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वन संरक्षण अधिनियम में संशोधनों के विरोध में भूमि अधिकार आंदोलन का राष्ट्रव्यापी प्रतिरोध का आह्वान

भूमि अधिकार आंदोलन (BAA) की बैठक में वन संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों को जनविरोधी बताते हुए चिंता जताई और सभी जन संगठनों से 30 जून को बतौर विरोध, काला दिवस मनाने का आह्वान किया।
Bhoomi Adhikar Andolan

"वन भूमि के आशातीत दोहन और वन संरक्षण अधिनियम में संशोधनों के विरोध में भूमि अधिकार आंदोलन ने राष्ट्रव्यापी प्रतिरोध का आह्वान किया। भूमि अधिकार आंदोलन 40 से भी ज्यादा जन संगठनों का एक सांझा मंच है जो देश के अलग-अलग राज्यों में केंद्र सरकार द्वारा बड़े स्तर पर भूमि और वन हड़पने के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ रहे हैं। भूमि अधिकार आंदोलन (BAA) की बैठक में वन संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों को जनविरोधी बताते हुए चिंता जताई और सभी जन संगठनों से 30 जून को बतौर विरोध, काला दिवस मनाने का आह्वान किया। कहा भूमि अधिकार आंदोलन इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सभी का ध्यान आकर्षित करते हुए, एक सामूहिक कार्यवाही की मांग करता हैं।"

अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के दिल्ली ऑफिस में आयोजित भूमि अधिकार आंदोलन की बैठक में वक्ताओं ने कहा कि, देश भर में वन भूमि का अंधाधुंध दोहन, पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर क्षति पहुंचा रहा है और परंपरागत समुदायों को विस्थापित होने पर मजबूर कर रहा है। वन संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन, इन समुदायों के अधिकारों की कब्र खोदने का काम कर रहे हैं। समय रहते अगर इस बारे में कुछ किया ना गया तो कड़ी मेहनत और संघर्ष के बाद हासिल किये गये वन अधिकार अधिनियम जैसे मज़बूत कानून को बेहद कमज़ोर बना दिया जाएगा।

संशोधनों को लेकर क्या है जन संगठनों की चिंताएं?

वन संरक्षण विधेयक 2023 में प्रस्तावित संशोधनों ने कई महत्वपूर्ण चिंताओं और विरोध की जरूरत को जन्म दिया है। BAA के अनुसार, इन संशोधनों के खिलाफ विरोध के कई कारण है जो मुख्य रूप से निम्न प्रकार है। 

1. वन क्षेत्रों को घटाना

प्रस्तावित संशोधन, वनों को पुनः जिस तरह से परिभाषित और उनकी समीक्षा करता है उसकी वजह से काफी बड़ा वन क्षेत्र, वन संरक्षण अधिनियम (FCA) की सुरक्षा छतरी से बाहर किया जा सकेगा। वन संरक्षण के प्रति की गई उपेक्षा के कारण वनों की कटाई बढ़ेगी और पर्यावरण एवं आजीविका के साथ-साथ जैव विविधता को भी भारी नुकसान होगा। इसके नतीजे यह होंगे कि पारंपरिक रूप से वनों पर निर्भर समुदायों को भुखमरी और विस्थापन का सामना करना पड़ेगा।

2. हाशिये पर मौजूद समुदायों के अधिकारों का उल्लंघन

प्रस्तावित संशोधन, वन अधिकार अधिनियम (FRA)- 2006 और भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम (LARR)- 2013 के प्रावधानों को नजरंदाज करता है, जिससे हाशिए पर मौजूद समुदायों के अधिकारों का सीधा उल्लंघन होता है। एफसीए, FRA के प्रावधानों को सीमित करता है, जिससे स्थानीय स्वशासित ग्राम सभा को प्राप्त अधिकारों के तहत दी जाने वाली अनुमति के बिना ही वन भूमि का डायवर्जन किया जा सकेगा। यह हाशिये के समुदायों के संवैधानिक अधिकारों को कमज़ोर करेगा और वन अधिकार कानून के तहत सदियों पुराने जिस ऐतिहासिक अन्याय को माना गया था, उसे बरकरार रखेगा।
   
3. सत्ता का केंद्रीकरण

इस संशोधन की वजह से केंद्र सरकार को अप्रतिम शक्तियां मिल जाएंगी, जिसकी मदद से वह किसी को भी भूमि आवंटित कर सकती है। शक्ति का यह केंद्रीकरण, मौजूदा ढांचों की जांच के तरीकों और उनके संतुलन को कमज़ोर बना देगा, जैसे वन सलाहकार समिति और केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समितियां। यह संशोधन, केंद्र के साथ स्थानीय शासन एवं वन-निवासी समुदायों की संवादात्मक प्रक्रिया के महत्व को नजरंदाज़ करता है और निर्णय लेने के अधिकार को और अधिक केंद्रीकृत कर देता है।    

4. अनावश्यक छूट और सही निरीक्षण की कमी

यह संशोधन, रणनीतिक परियोजनाओं, सुरक्षा-संबंधी बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक उपयोगिता की परियोजनाओं के लिए छूट के साथ-साथ इको-पर्यटन सुविधाओं, सिल्वीकल्चरल संचालन और चिड़ियाघर और सफारी के लिए प्रावधान पेश करते हैं। इस तरह की छूटें निजी संस्थाओं को पर्याप्त वन स्वीकृति के बिना ही वनों और वन संसाधनों पर नियंत्रण हासिल करने के अवसर पैदा करती हैं। इन पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों और नियामक निरीक्षण का आंकलन किये बिना ही यह वन के पर्यावास, वन्य प्रजातियों और वन पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए जोखिम पैदा करती हैं।

5. ग्राम सभाओं को शक्तिहीन बनाना

अंत में, यह प्रस्तावित संशोधन ग्राम सभा की शक्तियों को कमज़ोर करता है और केंद्र सरकार को शासन की शक्ति प्रदान करता है। स्थानीय स्तर पर किये जा रहे जैव विविधता संरक्षण को कम आंकते हुए, यह संवैधानिक प्रावधानों का खंडन करता है और वन अधिकारों और समुदायों के निर्णय लेने की क्षमता को बाधित करता है।

भूमि अधिकार आंदोलन से जुड़े  संगठन प्रतिनिधियों के अनुसार, इन्हीं सब चिंताओं के चलते वन संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों का कड़ा विरोध किया जाना जरूरी है। कहा हम इन संशोधनों को वापस लेने और वन संरक्षण अधिनियम को वनाधिकार अधिनियम (FRA-2006) के प्रावधानों के साथ लाने की मांग करते हैं। इससे वन अधिकारों को मान्यता मिलेगी और ग्राम सभाओं के निर्णय लेने का अधिकार सुनिश्चित किया जा सकेगा। किसी भी स्थानीय समुदाय की भागीदारी और सहमति के साथ ही पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता के संरक्षण को किसी भी तरह के वन संरक्षण और सरकारी ढांचे में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

भूमी अधिकार आंदोलन का हिंदी पोस्टर यहां देख सकते हैं:

उन्होंने कहा कि, भूमि अधिकार आंदोलन दृढ़तापूर्वक सभी जन-समर्थक संस्थाओं और व्यक्तियों से 30 जून 2023 को काला दिवस के रूप में मनाने का आग्रह करता है। कहा यह दिन वन भूमि की बेतहाशा निरंकुश लूट और वन संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित जनविरोधी संशोधनों के खिलाफ विरोध के एक शक्तिशाली प्रतिरोध के रूप में हमारे बयान का काम करेगा।    

उन्होंने आगे कहा कि अपने संवैधानिक अधिकारों को दृढ़तापूर्वक जताने के लिए, हम अपने सभी सदस्यों का, समर्थकों का और समान विचारधारा रखने वाले व्यक्तियों का ब्लॉक स्तर और राज्य स्तर पर प्रतिरोध प्रदर्शन करने के लिए अह्वान करते हैं। हम ऐसा मानते है कि हमारी सामूहिक कार्यवाही के द्वारा सत्ता में मौजूद लोगों को एक दृढ संदेश जायेगा कि हम हमारी मांगों और न्याय के लिए, पर्यावरणीय सुरक्षा और वन-निवासी समुदायों के अधिकारों के संरक्षण के लिए एकजुट होकर खड़े हैं।  

मुख्य रूप से इन बिंदुओं पर रहा फोकस

1. वन भूमि के दोहन की निंदा


BAA प्रतिनिधियों ने कहा कि वह सब वन संसाधनों के बढ़ते दोहन की कड़ी निंदा करते हैं। कहा वन संसाधनों का दोहन, न केवल पर्यावरण को हानि पहुंचाता है बल्कि वहां रह रहे पारंपरिक समुदायों को उनके पूर्वजों की भूमि से विस्थापित (बेदखल) करने का मार्ग भी प्रशस्त करता है।

2. प्रस्तावित संशोधनों की अस्वीकृति

दूसरा, हम वन संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों का पूर्ण विरोध करते है क्योंकि ये वनाधिकार अधिनियम (FRA) में दिए गए प्रावधानों को कमज़ोर करते हैं और वन-निवासी समुदायों के अधिकारों को क्षीण करते हैं।

वन-निवासी समुदायों के साथ एकजुटता का आह्वान

बैठक के वन-निवासी समुदायों के साथ एकजुटता का आह्वान करते हुए वक्ताओं ने कहा कि हम वन-निवासी समुदायों के अधिकार के लिए अपना अटूट समर्थन व्यक्त करते है और शपथ लेते हैं कि इन समुदायों के न्याय के लिए संघर्ष और दृढ संकल्प का साथ देंगे। कहा- हम सभी सदस्यों और समर्थकों से आग्रह करते है कि ब्लॉक स्तर और राज्य स्तर पर भारी संख्या में एकत्रित होकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन, जुलुस और जन सभाओं का आयोजन करें। महत्वपूर्ण यह भी कि ये सभी प्रक्रियाएं शंतिपूर्ण और क़ानूनी प्रक्रिया, सभी आवश्यक सुरक्षा नियमावली और क़ानूनी दिशानिर्देशों, का पालन करते हुए आयोजित हों।    

जंगलों का दोहन और वनधिकार अधिनियम को कमज़ोर करने की प्रक्रिया को नहीं करेंगे बर्दास्त 

BAA प्रतिनिधियों ने सभी जनसंगठनों से अपील करते हुए आह्वान किया कि आइए, चलिए 30 जून 2023 को एक साथ मिलकर अपनी आवाज़ बुलंद करें और शांतिपूर्ण तरीके से संदेश दें कि हम हमारे जंगलों का शोषण और वन अधिकार अधिनियम को कमज़ोर करने की प्रक्रिया को बर्दाश्त नहीं करेंगे। हाथों में हाथ मिलाते हुए और समर्थन में साथ खड़े होकर, हम अपने जंगलों और उनमें निवास करने वाले समुदायों जो वनों पर निर्भर हैं के लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।

इन जनसंगठनों की रही भागेदारी

भूमि अधिकार आन्दोलन की बैठक में  40 से ज्यादा जन संगठनों ने भागेदारी की है। इनमें मुख्य रूप से जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM), अखिल भारतीय किसान सभा (कैनिंग लेन), अखिल भारतीय किसान सभा (अजय भवन), ऑल इंडिया  किसान खेत मज़दूर संगठन, अखिल भारतीय किसान महासभा, ऑल इंडिया एग्रीकल्चर वर्कर्स यूनियन, ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल, भारत जन आंदोलन, भारतीय किसान यूनियन अराजनीतिक असली, बुंदेलखंड मजदूर किसान शक्ति संगठन, दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच, दिल्ली सॉलिडेरिटी ग्रुप,  गुजरात खेडुत समाज, हिमधारा कलेक्टिव, जन एकता जन अधिकार आंदोलन, जन संघर्ष समन्वय समिति, जनमुक्ति वाहिनी, ज़िंदाबाद संगठन, कष्टकरी संगठन, किसान मंच, किसान संघर्ष समिति, लोक मुक्ति संगठन, लोकसंघर्ष मोर्चा, लोक शक्ति अभियान, माइंस मिनरल्स एंड पीपल, नर्मदा बचाओ आंदोलन, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, संयुक्त किसान संघर्ष समिति, सर्व आदिवासी संगठन, आदिवासी अधिकार मंच, आदिवासी ऐक्या वेदिका, आदिवासी एकता परिषद, आदिवासी मुक्ति संगठन, सर्वहारा जन आंदोलन, शोषित जन आंदोलन, अधिकार मंच, कैमूर मुक्ति मोर्चा, बीजेएसए, जनमतु संगठन, झारखंड बचाओ आंदोलन, लोक संघर्ष मोर्चा, इंसाफ आदि संगठनों की सक्रिय भागेदारी रही।

साभार : सबरंग 

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