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मणिपुर को पूर्वोत्तर में विकसित राज्य के रूप में देखा जाता था - उग्रवादी समूहों ने सब बर्बाद कर दिया

मणिपुर संकट पर पेश कर रहे हैं कुकी क्रिश्चियन चर्च के एक प्रमुख बुजुर्ग से बातचीत।
manipur violence
फाइल फ़ोटो। PTI

4 मई को, मणिपुर में जातीय हिंसा भड़कने के अगले दिन, एक भीड़ ने इंफाल में मौजूद रेस्टोरेशन थियोलॉजी कॉलेज (आरटीसी) की इमारत में आग लगा दी और तोड़फोड़ की। कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. सतखोकाई चोंगलोई अपने परिवार, चर्च के बुजुर्गों और छात्रों के साथ उस इमारत से भाग गए थे, जिसे उन्होंने दो दशकों से अपना घर बनाया हुआ था। कुकी क्रिश्चियन चर्च मणिपुर से संबद्ध वह चर्च है, जिसके वे कार्यकारी सचिव हैं, को भी जला दिया गया है। एस॰ चोंगलोई कुकी जनजाति की शीर्ष संस्था कुकी आईएनपीआई और ओर्गनाइजेशन फॉर ह्यूमन राइट दोनों कुकी संगठन के महासचिव भी हैं। हाल ही में दिल्ली की यात्रा के दौरान उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात की। पेश हैं संपादित अंश:

प्रज्ञा सिंह: आपकी जानकारी के मुताबिक 3 मई से अब तक मणिपुर में कितनी चर्चों पर हमले हुए हैं?

सतखोकाई चोंगलोई: मेरे पास संख्याओं के दो सेट हैं। एक के मुताबिक संख्या 253 है, और दूसरा कहता है 3 मई से 15 जून तक 273 चर्च और चर्च क्वार्टर जला दिए गए या उन पर हमला किया गया है।

पीएस: उनमें से एक आपकी थी?

एससी: मेरे बाइबिल कॉलेज [रेस्टोरेशन थियोलॉजी कॉलेज] उसके आवास और चर्च को 4 मई को पूरी तरह से जला दिया गया था। हमारे ठीक पीछे एक पुलिस कॉम्प्लेक्स है, बगल में मणिपुर राइफल्स कॉम्प्लेक्स है, और मुख्यमंत्री का घर इतना करीब है कि वे भीड़ को सुन सकते थे और आग लगते देख सकते थे। लेकिन किसी ने इसकी परवाह नहीं की और न ही कुछ किया और दोपहर में इसे खुलेआम जला दिया गया।

पीएस: क्या आपने मदद मांगने के लिए कॉल किया था?

एससी: हमने कई बार फोन किया, यहां तक कि जब वे इमारत को जला रहे थे, तब भी कोई नहीं आया। इंफाल में, पुलिस आमतौर पर किसी भी समस्या के मामले में 30 मिनट के भीतर पहुंच जाती है। हमने सोचा था कि अब भी ऐसा होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.' अर्धसैनिक बल, कमांडो और पुलिस वहां मौजूद थी, लेकिन भीड़ स्वतंत्र रूप से घूम रही थी और वही कर रही थी जो वे करना चाहते थे।

डॉ सतखोकाई चोंगलोई | फ़ोटो : प्रज्ञा सिंह

पीएस: आप वहां कितने समय से रह रहे हैं?

एससी: 2003 से, मैं कॉलेज का प्रिंसिपल बना था, जिसमें लगभग 20 परिवार और 90 छात्र परिवार रहते थे।

पीएस: जब आगजनी हुई तब आप कहाँ थे?

एससी: हमने 4 मई को अपने छात्रों के स्नातक समारोह की योजना बनाई थी, लेकिन इसकी पिछली रात, उन्होंने इंफाल में चर्चों सहित हमारे आसपास के इलाकों को जलाना शुरू कर दिया और कुकियों को चुन-चुनकर मारना शुरू कर दिया था। हमने जब आगजनी की घटनाएं  देखी तो महसूस किया कि हम समारोह नहीं कर पाएंगे। हमने छात्रों से घर लौटने के लिए कहा, लेकिन हालात ऐसे थे कि नहीं जा सके।

दोपहर के समय मैंने सोचा कि हमें उस इमारत से चले जाना चाहिए। मैंने अपने [चर्च] बुजुर्ग से कहा, 'भाई, हम कहीं सुरक्षित स्थान पर क्यों नहीं चले जाते?' हमारे पास पांच मिनट की दूरी पर एक अस्पताल और नर्सिंग संस्थान था जो उचित रूप से घिरा हुआ परिसर था। मेरे बुजुर्ग ने एक मिनट तक सोचा और कहा, 'चलो चलते हैं'। मैं तुरंत चिल्लाया: 'भाइयों! हमें अभी अस्पताल परिसर में जाने की जरूरत है—सभी को वहां जाना होगा!' सभी ने परिवारों को कारों में बैठाया या कुछ पैदल निकल पड़े। हमें विश्वास नहीं था कि वे सब कुछ जला देंगे, क्योंकि हम केवल जूते और पहने हुए कपड़े लेकर गए थे। लेकिन 30 मिनट से भी कम समय के भीतर, एक भीड़ आई और सब कुछ जला दिया।

पीएस: तो आप अंतिम पल में भाग निकले?

एससी: हां, नहीं तो हम सभी मारे जाते।

पीएस: क्या आपको वहां से हटने की चेतावनी दी गई थी? आपने क्या निर्णय लिया?

एससी: नहीं, मेरा मानना है कि भगवान और मेरे अंतर्ज्ञान ने मुझसे कहा कि हमें चले जाना चाहिए। कॉलेज के बहुत करीब ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर का पुराना कार्यालय है। वह जल रहा था, इसलिए हमने तुरंत वहां से हटने का फैसला किया।'

पीएस: क्या आप अपना घर जलने के बाद वापस लौटे?

एससी: सेना मुझे 5 मई को वहां ले गई थी। वह पूरी तरह से नष्ट हो गया था।

पीएस: क्या आप जानते हैं कि हमलावर कौन थे?

एससी: मैंने हमलावरों को नहीं देखा, लेकिन मेरी समझ यह है कि [हिंसा के लिए] तैयार लोग अरामबाई तेंगगोल और मैतेई लीपुन [आतंकवादी मैतेई समूह] से थे। उन्होंने काली शर्ट पहनी हुई थी और टुकड़ियों में स्वतंत्र रूप से घूम रहे थे। हमने टीवी पर देखा कि वे हमले के लिए कितने तैयार होकर आए होकर थे...

पीएस: 3 मई से पहले, क्या आने वाले समय के बारे में कोई चेतावनियाँ दी गई थीं?

एससी: हमें विश्वास नहीं था कि ऐसी हिंसा होगी। मुख्यमंत्री पहाड़ी लोगों को 'पोपी-रोपणकर्ता', यानि 'प्रवासी' आदि के रूप में संदर्भित करते रहे हैं, यदि उन्हें आप्रवासन के बारे में संदेह है, तो उन्हें सबको वापस भेजने का अधिकार है। मैंने म्यांमार से आने वाले अप्रवासियों को नहीं देखा है।

पीएस: क्या आप कभी म्यांमार के अप्रवासियों से मिले हैं?

एससी: मैं कई म्यांमार अप्रवासियों से मिल चुका हूं, क्योंकि बहुत पहले, (भारत-म्यांमार सीमा) को लेकर कोई विभाजन नहीं था। आज़ादी के बाद, हमारे मित्र, परिवार और लोग [कुकी-ज़ो समुदाय] सीमा के दोनों ओर रहते थे। 

कभी-कभी, गांवों के बीच में बाड़ लगा दी जाती थी, जिससे दोनों तरफ के लोग भारतीय या बर्मी बन जाते थे। यहां तक कि मेरे कुछ चाचा भी वहां [म्यांमार में] रहते हैं, लेकिन मणिपुर नहीं आना चाहते हैं। क्यों? क्योंकि, उदाहरण के लिए, वे लुंगी पहनते हैं और हम पैंट पहनते हैं, और वे कहते हैं, 'ओह-यह असुविधाजनक है, मैं नहीं आना चाहता!' [हंसते हैं] कई मतभेद हैं, इसलिए वे नहीं आना चाहते हैं। लेकिन 1970 या 1980 के दशक तक जब कोई सीमा स्तंभ या बाड़ नहीं लगाए गए थे तो हम स्वतंत्र रूप से कहीं भी चले जाते थे।

पीएस: क्या पोपी की खेती करने वालों और घुसपैठियों के बारे में टिप्पणी 3 मई से पहले की गई थी?

एससी: हां, 3 मई से पहले भी, यह कहा गया था कि सभी पहाड़ी लोग पोपी [मादक पदार्थ, हेरोइन का स्रोत] बोते हैं। सच तो यह है कि कुकी और नागा भी ऐसा करते हैं, लेकिन उनमें से हर कोई ऐसा नहीं करता।

पीएस: अब आप क्या करेंगे? मणिपुर लौटेंगे?

एससी: मुझे यकीन नहीं है क्योंकि हमारा कॉलेज अभी नहीं खुला है, लेकिन मैं वापस जाऊंगा। वह मेरी जगह है। 

पीएस: और इम्फाल जाएंगे?

एससी: नहीं, इंफाल नहीं जाऊंगा। हम चाहकर भी वहां नहीं जा सकते क्योंकि वहां हम मारे जाएंगे। अब कांगपोकपी [पहाड़ी जिला जहां कुकी अधिक संख्या में हैं] हमारा एकमात्र स्थान है, जहां हमारे चर्च ने आश्रय की पेशकश की है। हमें पुनर्निर्माण करना होगा और एक नया स्थान ढूंढना होगा क्योंकि इंफाल में चीजें बदल गई हैं। आज, कुकी कुकी कॉलोनियों में भी नहीं घुस सकते हैं यह देखने के लिए कि उनका सामान सुरक्षित है या नहीं।

पीएस: क्या आपके मैतेई मित्र 3 मई से आपके संपर्क में हैं?

एससी: हाँ कुछ मित्र संपर्क में हैं। लेकिन मैं उनसे बात करने में बहुत असहज था। हम [उनसे] बात नहीं करना चाहते, और वे [हमसे] बात नहीं करना चाहते हैं।

पीएस: लेकिन अगर आप बात नहीं करेंगे तो आपको पता नहीं चलेगा कि वे क्या सोच रहे  हैं। हो सकता है कि इतना कुछ होने के बाद भी वे आपसे संपर्क करने में झिझक रहे हों।

एससी: यह सच है। दो सप्ताह पहले, अस्पताल की हमारी पूर्व नर्सों में से एक ने मुझे फोन किया और मैंने उससे पूछा कि इस हिंसा में कितने लोग मारे गए। उसने कहा, 'नो कमेंट'।  दरअसल, मेरा सवाल बेवकूफी भरा था क्योंकि हम जानते हैं कि कितने लोग मरे हैं; वे [मेइतेई] ऐसा नहीं करते। हम इलाके में मौजूद लोगों और चश्मदीदों से संपर्क कर सकते हैं, लेकिन मेइतेई आतंकवादी समूह वास्तविक संख्या [3 मई से हताहतों की संख्या] छिपा रहे हैं।

पीएस: कुछ मैतेई भी बहुत कठिन स्थिति में फंस गए हैं।

एससी: यह सही है। हाल ही में, उन्होंने अपना असंतोष जताने के लिए लाशों को लेकर मुख्यमंत्री के बंगले तक मार्च किया था। दरअसल, इन सबके पीछे मुख्यमंत्री का हाथ हो सकता है। अगर उन्होंने सुरक्षाकर्मियों को पहले ही चीजें रोकने के लिए मजबूर कर दिया होता तो ऐसा कुछ नहीं होता।' जब गृह मंत्री अमित शाह तीन दिन के लिए मणिपुर आए थे तो ऐसी चीजें अपने आप बंद हो जानी चाहिए थीं, लेकिन 10 से ज्यादा गांवों पर हमला कर दिया गया। और प्रधानमंत्री चुप हैं, हिंसा के बारे में एक शब्द भी नहीं बोल रहे हैं। तो आप इस सरकार पर कैसे विश्वास कर सकते हैं? भले ही मुख्यमंत्री अप्रभावी या निष्क्रिय हो, गृह मंत्री और प्रधान मंत्री तो हैं ना!

पीएस: क्या आप इन हमलों को कुकी पहचान या ईसाई पहचान के विरुद्ध मानते हैं?

एससी: यह दोनों ही है। बगल की एक तंखुल [नागा] चर्च को बचा लिया गया, लेकिन उन्होंने मेरी चर्च को जला दिया। हालाँकि, यदि हिंसा सिर्फ ईसाई धर्म के कारण होती, तो वे घरों पर नहीं, बल्कि चर्चों पर हमला करते। यहां उन्होंने घर और चर्च दोनों जला दिए। फिर उन्होंने अपने समुदाय की चर्चों को भी नहीं छोड़ा। तो, कुछ धार्मिक हिंसा भी हुई, जैसे न्यू लाम्बुलाने [इम्फाल में इलाका] में, एक बड़ी चर्च को जला दिया गया, और अरामबाई तेंगगोल ने क्रॉस के बगल में अपना झंडा फहराया। बाद में, उन्होंने इसे हटा लिया, लेकिन उन्होंने इसे ऐसे फहराया जैसे कि यह उनकी जीत का जश्न है।

19वीं सदी के अंत में जब ईसाई धर्म मणिपुर में आया था, तो पहाड़ी लोग ईसाई बन गए थे, लेकिन घाटी में ऐसा नहीं हुआ। घाटी के लोगों ने हिंदू धर्म अपना लिया और अपने सनमही [पारंपरिक देवता] धर्म को अलग कर लिया था। अब [मेइतेई] उग्रवादी समूह हिंदू धर्म या ईसाई धर्म दोनों नहीं चाहते हैं।

पीएस: वे वापस लौटना चाहते हैं...

एससी: ...वे अपने धर्म, सनमहिज़्म में लौटना चाहते हैं, जो ईसाई धर्म या हिंदू धर्म नहीं है। मेरी समझ में, कुछ [मैतेई] पुजारियों ने औपचारिक रूप से हिंदू धर्म की निंदा की है और सनमहिज्म में लौट आए हैं।

पीएस: आपकी जानकारी के अनुसार, क्या कई हिंदू मैतेई सनमाही लौटना चाहते हैं?

एससी: देखिए, धर्म इतनी आसानी से नहीं बदला जा सकता है। लोग अपना धर्म बदलने के बारे में तभी सोचते हैं जब वे इसके बारे में पूरी तरह आश्वस्त हो जाएं। मणिपुर में हिंदुओं के लिए ईसाई धर्म या कोई अन्य धर्म अपनाना बहुत मुश्किल है। दूसरी ओर, यहां तक कि 10 लोग भी एकत्रित होकर एक चर्च का निर्माण कर सकते हैं...

पीएस: लेकिन संख्या/मंडलियाँ छोटी हैं?

एससी: हाँ छोटी हैं। 

पीएस: तो फिर आपको क्या लगता है इस हिंसा की जड़ में क्या है?

एससी: मुझे यकीन नहीं है। मैं अब भी विश्वास नहीं कर सकता कि ऐसी हिंसा हो सकती है क्योंकि हम सदियों से एक साथ रह रहे हैं। चूँकि सभी सुविधाएँ घाटी में केंद्रित हैं - अस्पताल, कार्यालय और विश्वविद्यालय - जो कोई भी काम करना चाहता है वह पहाड़ियों से घाटी चला जाता है। कुछ लोग जमीन खरीदते थे और घर बनाते थे, और हम सभी नागा, कुकी, पंगल, मैतेई साथ रहते थे...

मुझे नहीं पता कि मैंने ऐसा क्या किया कि वे मुझे कुकी के रूप में देखेंगे और हमें मारने आएँगे। 4 मई को, अस्पताल परिसर में, हम बुजुर्ग एक अजीब प्रस्ताव पर सहमत हुए, जिससे पता चलता है कि हम कितने निर्दोष थे! हमने सुना है कि वे उस रात हम पर हमला करेंगे, इसलिए हमने संकल्प लिया कि जब भी वे आएंगे, हम उनसे कहेंगे कि वे परिसर में आग लगाने से पहले हमारे परिवारों, बच्चों, माताओं और अन्य लोगों को बाहर चले जाने दें। [उक्त बातें हँसते हुए कही]

पीएस: आप हंस क्यों रहे हैं?

एससी: क्योंकि अगर हमलावर आते तो क्या हमें बोलने का समय मिलता?

पीएस: आपका मतलाब है कि हिंसा स्वतःस्फूर्त नहीं थी।

एससी: 3 मई को एटीएसयूएम रैली शांतिपूर्ण ढंग से समाप्त होने के तुरंत बाद, कुछ मैतेई उपद्रवियों ने चुराचांदपुर [जिला] में एंग्लो-कुकी युद्ध शताब्दी गेट को जला दिया था। कुकी इससे गुस्से में आ गए और उन्होंने जवाबी कार्रवाई की क्योंकि यह अंग्रेजों के खिलाफ उनके 100 वर्षों के युद्ध का प्रतिनिधित्व करता था। लेकिन झड़प वहीं, तुरंत हो गई थी। जिस बात ने मुझे चकित और स्तब्ध कर दिया, वह यह कि एक साथ, इंफाल के आसपास की तलहटी के सभी गाँव रात होने से पहले जला दिए गए थे। यह पूर्व नियोजित और योजनाबद्ध था। अन्यथा, जहां भी कुकी रहते हैं, वे अचानक उनके खिलाफ कैसे जुट सकते थे?

पीएस: आप एक अलग कुकी प्रशासनिक इलाके के बारे में क्या सोचते हैं?

एससी: मेरी समझ में, मैतेई लोग पहले ही अलग हो चुके हैं। क्या मैं घाटी लौट सकता हूँ? क्या मैं वापस जाकर अपने घर की मरम्मत करा सकता हूँ? मुझे ऐसा नहीं लगता।

पीएस: लोगों को एक साथ लाने के लिए अब तक कोई प्रयास नहीं किया गया है, तो हम कैसे कह सकते हैं कि वे एक साथ नहीं रह सकते हैं?

एससी: अगर कोई प्रयास हुआ भी तो उन लोगों की मानसिकता के बारे में सोचें जिन्होंने हम पर हमला किया। मुझे नहीं पता कि हम उनके साथ कैसे रह सकते हैं। 

पीएस: क्या आपको डर है?

एससी: असल में मैं डरता नहीं हूं, लेकिन जो हुआ उससे स्तब्ध हूं। एक राहत शिविर में मैतेई पुरुष से शादी करने वाली कुकी महिला की मौत हो गई। कुकी पुरुष से विवाह करने वाली एक मैतेई महिला की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई! 4 मई की रात को, मेइतेई [महिलाओं] ने इंफाल में दो युवा कुकी महिलाओं को एक भीड़ को सौंप दिया, जिन्होंने [परिवार का कहना है] यौन शोषण किया और उन्हें मार डाला। दोनों लड़कियां कांगपोकपी के एच खोपीबुंग गांव की थीं और 12 जून को उनके गांव पर भी हमला हुआ था। एक लड़की मुखिया की बेटी थी, दूसरी उसकी सहेली। दरअसल, वे बहुत कम हताहतों की संख्या बता रहे हैं, केवल वे ही संख्या बता रहे हैं जिन्हें वे छिपा नहीं सकते...

इस हिंसा के दौरान उन्होंने छोटे बच्चों को भी नहीं बख्शा। उन्हें कोई दया नहीं है। कभी-कभी, भीड़ इतनी बड़ी होती थी, जैसे 10,000 की संख्या में, कि सुरक्षा बल भी उन्हें रोक नहीं पाते थे, और भीड़ में महिलाएँ भी होती थीं। शायद वे (उग्रवादी समूह) थे, और उनके पीछे लुटेरे थे, जिन्होंने सब कुछ छीन लिया। इस हिंसा में मुझे नहीं पता कि लोगों ने पहले लूटपाट क्यों की, फिर जला दिया।' इम्फाल में हमें कहीं भी सुरक्षित महसूस नहीं हुआ। आख़िरकार, हमने सेना से संपर्क किया और उन्होंने सड़कें खोल दीं और 8 मई को हमें बाहर निकाला।

पीएस: क्या आपने 1993 में नागाओं के साथ संघर्ष के दौरान ऐसी घटनाओं को देखा था?

एससी: उस समय भी, यह असुरक्षा की भावना थी। ऐसी कुछ घटनाएं तब भी हुईं थीं।  पहाड़ियों में मेरा घर तब भी जलाया गया था - यह दूसरी बार है।

पीएस: लेकिन इसके बावजूद दोनों समुदाय एक साथ रहते हैं।

एससी: अब, पीढ़ियों के बाद- हम अभी भी उस दर्द को महसूस कर रहे हैं।

पीएस: आप कह रहे हैं कि भीड़ ने कुकियों की पहचान की और उन पर हमला किया। कैसे? आख़िरकार, स्थानीय लोग भीड़ के कुछ सदस्यों को पहचान लेंगे। क्या हमलावर कहीं और से आए थे?

एससी: उन्होंने नाम, पोशाक और भाषा के आधार पर और स्थानीय लोगों की मदद से लोगों की पहचान की। लेकिन उग्रवादी समूह ऐसे [हिंसक] काम करने के लिए युवाओं की भर्ती भी करते हैं। बाद में अगर आप कुछ बुरा नहीं भी करना चाहेंगे तो भी आपको मजबूर होना पड़ेगा क्योंकि आप इन समूहों से डरते हैं।

पीएस: सरकार की शांति समिति के बारे में आप क्या सोचते हैं—इसे अस्वीकार क्यों किया गया?

एससी: क्योंकि यह वास्तव में कोई शांति समिति नहीं है, यह केवल दिखावा है। नाम लिखने से पहले उन्होंने कुकियों से पूछा भी नहीं। लेकिन सबसे पहले, मुख्यमंत्री इन हत्याओं के सरगना हैं। और वे अब शांति के नेता है—वे दोनों कैसे हो सकते हैं? वे कहते हैं कि पांच शस्त्रागार लूटे गए, लेकिन मैं समझता हूं कि हथियार दिए गए थे। उनका कहना है कि कुछ इलाकों में (हमलावर) अत्याधुनिक हथियारों के साथ आए थे।

और भी मजेदार बातें हुईं है। एक घटना में, पाँच या छह गाँव [पहाड़ियों में] जला दिए गए, लेकिन चर्च नहीं जलाई गई। कई मैतेई [आतंकवादी] हमलावर चर्च में रुके, खाना बनाया, शराब पी और ढ़ोल बजाए। तभी कुछ कुकी लोग, स्वयंसेवक, आये और उन्हें मार डाला।

पीएस: आप इसे कैसे समझाएंगे? वे इतना निर्भीक व्यवहार क्यों कर रहे थे?

एससी: मैं यह नहीं समझ पाया। क्या यह उनके लिए यह एक पिकनिक थी? क्योंकि वे घाटी से आए थे, वे कुकी गांव में उन पहाड़ियों में थे जिन्हें उन्होंने जला दिया था, और राख कर दिया था। वे रात में खाते-पीते शोर कर रहे थे। यह पिकनिक पर जाने जैसा है, नहीं? मेरी राय में, अगर वे इसे युद्ध कहते हैं तो उन्हें दुश्मन से लड़ाई के बाद चले जाना चाहिए था।

पीएस: क्या आपको लगता है कि यह एक युद्ध है?

एससी: उन्होंने तो युद्ध की घोषणा कर दी है; यहां तक कि मुख्यमंत्री मैतेई लीपुन ने कुकियों के खिलाफ युद्ध की घोषणा की है। हमारे पास हमारे खिलाफ युद्ध की घोषणा करते हुए उनके वीडियो हैं।

पीएस: लेकिन कुकियों के पास भी हथियार हैं, है ना?

एससी: उनके पास हथियार हैं क्योंकि, पहाड़ियों में, कुकी अच्छे शिकारी हैं। हमने दोनों विश्व युद्ध लड़े हैं। इनमें से अधिकांश के पास लाइसेंसी बंदूकें हैं। अब, आप उम्मीद कर सकते हैं कि उन्होने कुछ और हथियार खरीदे होंगे। 

पीएस: तो क्या आपका मानना है कि चीजें बेहतर नहीं बल्कि बदतर होंगी?

एससी: मेरी समझ से यह और भी बुरा होगा। यदि वे हमला करना बंद कर दें, तो यह ठीक होगा क्योंकि हम उनके खिलाफ युद्ध नहीं कर रहे हैं। जब हम इंफाल में थे, हजारों कुकी शिविरों में शरण लिए हुए थे और मारे जा रहे थे। हम आश्चर्यचकित रह गये। वहां से निकाले जाने के समय भी उन पर गोली चलाई गई। मेरी समझ यह है कि यदि मैतेई बार-बार पहाड़ी इलाकों में जाएंगे तो और अधिक लोग मरेंगे।

पीएस: तो यह गृहयुद्ध की स्थिति जैसा है?

एससी: हाँ, बिल्कुल। मुझे दुख है क्योंकि मणिपुर को पूर्वोत्तर में एक विकसित स्थान माना जाता था। उदाहरण के लिए, हमने चिकित्सा शिक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। लेकिन उग्रवादी समूहों ने सब कुछ बिगाड़ दिया और कुकियों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा है।

पीएस: अलग प्रशासन के प्रस्तावित विचार के बारे में आप क्या सोचते हैं?

एससी: बंटवारा तो पहले ही हो चुका है। 

पीएस: क्या कुकी विधायक मदद कर सकते हैं?

एससी: हां, वे अभी एकजुट हैं और अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं।

पीएस: संयुक्त और अधिकतर भाजपा में हैं। क्या आपको लगता है कि पार्टी कुकी लोगों की मदद करने में रुचि रखती है?

एससी: हमने अब तक कुकी उग्रवादी समूहों के बारे में बात नहीं की है। उनकी केंद्र सरकार से बातचीत हुई, जिसने उनसे हालिया चुनाव में बीजेपी का समर्थन करने को कहा था। उग्रवादी समूहों ने लोगों को भाजपा विधायकों को वोट देने और उनका समर्थन करने के लिए मजबूर किया। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि भाजपा कुकियों के लिए कुछ करेगी। अब, उनकी जो आशा थी वह सच हो गई है - कुकियों को इंफाल घाटी से बाहर भेज दिया गया है, और उनके घर जला दिए गए हैं। शायद उन्हें यही "उम्मीद" थी। उग्रवादी समूह सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन से बंधे थे। 

पीएस: आपका मतलब है कि उनके पास हथियार थे?

एससी: उन्होंने लोगों को वोट देने पर मजबूर किया और यहां तक कि उन्हें धमकाया भी।

पीएस: राजनीतिक रूप से, भले ही आदिवासी विधायक विधानसभा में एकजुट हों, आप चुनावी रूप से मैतेई से अधिक मजबूत नहीं हैं। तो आप कौन सा राजनीतिक समाधान चाहते हैं?

एससी: 60 विधानसभा सीटों में से 10-10 कुकी और नागाओं से हैं। इसके बजाय, हमारे पास पहाड़ी लोगों के लिए कम से कम 30 और घाटी के लोगों के लिए 30 सीटें होनी चाहिए थीं; इसमें से कुकी के लिए 15 और नागाओं के लिए 15 सीट।

पीएस: जब हम इस तरह सीटें आवंटित करना शुरू करेंगे, तो हर कोई कहेगा कि वे भी अलग हैं और इस किस्म की समान मांगें उठाएंगे।

एससी: यदि वे हिल्स और वैली को 30-30 सीटें देते हैं, तो [प्रतिनिधित्व का] कुछ विभाजन संभव होगा। हमें एक ऐसी व्यवस्था की जरूरत है जिसमें पहाड़ियों को भी बराबर का हक मिले।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Manipur was Seen as Developed in Northeast—Militant Groups Spoiled it all’

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