मोदी सरकार ने वन्य क़ानून को धता बता कर कोयला खनन की दी मंज़ूरी
नई दिल्ली: बड़े कॉरपोरेट की मदद करने के प्रायस में, जो हाल ही में वाणिज्यिक कोयला खनन के क्षेत्र में घुसे है, उन्हे नरेंद्र मोदी सरकार ने पर्यावरण क़ानून को धता बताकर दहनशील खनिज यानि कोयले के खनन की मंजूरी दे दी है वह भी बिना वन्य क़ानून की अंतिम मंजूरी के ऐसा किया है।
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) की वन सलाहकार समिति (एफएसी) ने नवंबर के आखिरी सप्ताह में हुई बैठक में कोयला पट्टे वाले क्षेत्रों के गैर-वन भागों में खनन गतिविधियां शुरू करने की इजाजत दे दी है, यह इजाजत वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत स्टेज I के बाद दी गई है।
पर्यावरण क़ानूनों के अनुसार, सरकार से अंतिम वन मंजूरी हासिल होने के बाद ही खनन कार्य शुरू किया जा सकता है। हालांकि, एफएसी ने फैसला किया है कि कुछ पट्टे वाले क्षेत्रों में जिनमें वन और गैर-वन भूमि दोनों शामिल हैं, कोयला खनन की गतिविधियां शुरू की जा सकती हैं, यहां तक कि तब भी जब चरण II की मंजूरी लंबित पड़ी है।
यह निर्णय केंद्रीय कोयला मंत्रालय के इशारे पर लिया गया जिसने पर्यावरण मंत्रालय और सीसी से अनुरोध किया था कि परियोजनाओं में गैर-वन क्षेत्रों में खनन परिचालन शुरू करने की अनुमति दे दी जाए, खासकर जहां परियोजना के लिए वन क्षेत्र और पर्यावरण मंजूरी के लिए स्टेज -1 की मंजूरी मिल गई है।
"बहुत विचार-विमर्श करने के बाद एफएसी ने पाया कि इस तरह के अनुरोध के लिए सहमत होने से दोषपूर्ण स्थिति पैदा हो सकती है और एक सामान्य सिद्धांत के रूप में इसे सहमति नहीं दी जा सकती है। केवल उन खास मामलों में इजाजत दी जा सकती है जिनमें वन भूमि/गैर-वन भूमि पहले से ही स्वीकृत खनन योजना वाले क्षेत्र के भीतर आती है, केवल गैर-वन क्षेत्र में खनन कार्य शुरू करने की अनुमति राज्य सरकार द्वारा स्टेज I अनुमोदन के बाद दी जा सकती है, “उपरोक्त कथन 25 नवंबर को हुई एफएसी की बैठक के मिनट से मिली जानकारी के अनुसार है।
हालांकि, एफएसी ने स्टेज I मंजूरी के बाद खनन शुरू करने के लिए कुछ नियम और शर्तें रखी हैं। खनन गतिविधियों को केवल तभी अनुमति दी जा सकती है जब स्टेज I में अनुमोदित सभी प्रतिपूरक लेवी को परियोजना के प्रस्तावक द्वारा जमा किया गया हो और पूरे पट्टा क्षेत्र के लिए पर्यावरण मंजूरी हासिल की गई हो। एफएसी ने यह भी स्पष्ट रूप से कहा है कि गैर-वन क्षेत्रों में खनन गतिविधियों की अनुमति देने से वन क्षेत्र में द्वितीय चरण की मंजूरी के संबंध में कोई दोष या भ्रम पैदा नहीं होना चाहिए।
“यह अच्छी बात है कि एफएसी ने इसमें दोष के प्रति चेतावनी दी है और इसे सामान्य सिद्धांत के रूप में स्वीकार नहीं किया है। हालाँकि, चरण-दर-चरण मंजूरी के बाद खनन के लिए अनुमति देने का केस-टू-केस का दृष्टिकोण एहतियाती दृष्टिकोण है जिसे चरण-वार अनुमोदन को सुरक्षित करने के अभ्यास से तैयार किया गया है। अंतिम अनुमोदन के बिना खनन की अनुमति देने का मतलब यह है कि चरण II अनुमोदन की स्थिति में, जैसे कि अतिरिक्त वन्यजीव अध्ययन या वन अधिकार अधिनियम का अनुपालन किए बिना केंद्र और राज्य सरकार दोनों के अंतिम अनुमोदन का कोई असर नहीं पड़ेगा। यह राज्य सरकार के अंतिम निर्णय को भी कमतर करता है जिसमें वन भूमि के डायवर्सन को वापस लेने या अनुमोदन देने की शक्ति है, ”दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की कांची कोहली ने उक्त बात बताई।
वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के अनुसार, संबंधित राज्य सरकार वन भूमि पर गैर-वन गतिविधी करने के लिए स्टेज I की मंजूरी देती है। स्टेज II का अनुमोदन केंद्र सरकार करती है, इस मंजूरी के बाद आवेदन फिर से राज्य सरकार के वापस आता है। वन डायवर्जन तभी लागू होता है जब राज्य सरकार वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा II के तहत आदेश जारी करती है। इसके बाद, कोयला खनन पट्टा क्षेत्र के गैर-वन भागों में कोयला खनन के लिए जमीन तोड़ने के लिए चरण I की मंजूरी काफी होगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि पर्यावरण संरक्षण के मामले में देश में खराब ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए परियोजना के प्रस्तावकों द्वारा इसका अनुपालन करना मुश्किल होगा, क्योंकि जमीनी स्तर पर कोई मजबूत निगरानी तंत्र मौजूद नहीं है। वन और गैर-वन क्षेत्रों के सटीक समन्वय का निर्धारण केवल स्थानीय प्रभागीय वन अधिकारी के अधिकार क्षेत्र में आता है, और माना जाता है कि वह भ्रष्टाचार की वजह से जमीन खोल देगा क्योंकि पिछले अवैध खनन के मामलों में ऐसा देखा गया है।
उन्होंने कहा,'' निगरानी तंत्र का न होना जंगल की मंजूरी को रोकने का विकल्प नहीं हो सकता है। वन मंजूरी के चरण की परवाह किए बिना सरकार को निगरानी करनी चाहिए। कोल इंडिया लिमिटेड के पूर्व चेयरमैन पार्थ सारथी भट्टाचार्य ने न्यूजक्लिक को बताया,'' कि वन विभाग की मंजूरी की वजह से मंजूरी को रोकना कोई ठीक बात नहीं है क्योंकि इस तरह की कार्रवाई विकास के आड़े आती है।''
बड़े कॉरपोरेट घरानों ने इस साल के शुरू में मोदी सरकार से वाणिज्यिक कोयला खनन के लिए 38 कोयला ब्लॉकों में लगी बोली से 19 को सफलतापूर्वक हासिल कर लिया। जून महीने में, केंद्र सरकार ने वाणिज्यिक कोयला खनन के लिए एक नीलामी में 41 कोयला ब्लॉक को सूचीबद्ध किया था। बाद में इस सूची का छत्तीसगढ़ सरकार ने विरोध और वह घटकर 38 रह गई, जिसमें छत्तीसगढ़ ने दावा किया था कि नीलामी के लिए सूचीबद्ध कुछ कोयला ब्लॉक घने जंगलों के भीतर आते हैं।
वन मंजूरी के संदर्भ में ऊपरी बदलाव इस वर्ष के दौरान मोदी सरकार द्वारा किए नीतियों में परिवर्तन और सुधारों की वजह से आए हैं और इन सुधारों में कोयला और बिजली क्षेत्र सबसे ऊपर रहे है, साथ ही लगभग 50 वर्षों के बाद निजी खिलाड़ियों यानि कॉर्पोरेट/पूँजीपतियों को वाणिज्यिक कोयला खनन क्षेत्र में प्रवेश दिया गया है।
अप्रैल 2020 में, केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने कोयले के आयात से अपने ईंधन इनपुट के लिए घरेलू कोयले पर स्विच करने के लिए थर्मल पावर प्लांट के लिए एक नीति विकसित की थी। मई में, थर्मल पावर प्लांट में कोयले का इस्तेमाल के साथ 34 प्रतिशत से कम राख रखने की जरूरत को धता बता दिया गया था। सरकार ने बिजली संयंत्रों में कोयले के इस्तेमाल से पहले कोयले को धोने की प्रक्रिया की आवश्यकता को भी धता बता दिया था।
नवंबर में, मोदी सरकार ने फिर से एक नीतिगत उपाय किया जिसके तहत थर्मल पावर प्लांटों को अपने पर्यावरणीय मंजूरी को बदले बिना कोयले के अपने स्रोतों को बदलने की अनुमति दे दी गई। ये नीतिगत उपाय पर्यावरणीय प्रभावों की निरी उपेक्षा करता हैं, जबकि पावर प्लांट के मालिक पहके से फ्लाई एश के संतोषजनक निपटारे (कोयले के जलने से उत्पन्न राख़) और निर्धारित संयंत्रों के भीतर बिजली संयंत्रों में उत्सर्जन के मानदंडों को बनाए रखने के मुद्दों से जूझ रहे हैं।
लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।
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