Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

राष्ट्रीय संग्रहालय शिफ़्ट होगा: फिर क्या होगा विरासत का हिस्सा रही इमारत का? 

दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय के वर्तमान भवन की नींव देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रखी थी। यहां 2,10,000 कलाकृतियां रखी हुई हैं जो हमारी पांच हज़ार साल पुरानी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं। 
National Museum

देश की राजधानी नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय क्या टूट जाएगा? इमारत जो ख़ुद एक विरासत का हिस्सा है उसका क्या होगा? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि सितंबर के आख़िर में ख़बर आई कि सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के तहत नेशनल म्यूज़ियम को इस साल के आख़िर तक खाली करने की संभावना है।

इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के मुताबिक रिसर्च करने वालों के लिए इस साल के आख़िर तक नेशनल म्यूज़ियम बंद हो जाएगा जबकि मार्च 2024 में हो सकता है इसे डेमोलिश कर दिया जाए। 

वहीं दूसरी तरफ ख़ुद प्रधानमंत्री ने एक ऐलान किया कि जल्द ही दिल्ली में दुनिया का सबसे बड़ा म्यूजियम 'युगे युगीन भारत' बनने जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के मुताबिक यह म्यूजियम नॉर्थ और साउथ ब्लॉक में बनाया जाएगा। जो 2025 तक बनकर तैयार होगा। ये भी बताया जा रहा है कि नेशनल म्यूज़ियम की कलाकृतियों को नए बनने वाले म्यूज़ियम 'युगे युगीन भारत' में रखा जा सकता है। 

imageजवाहरलाल नेहरू, नेशनल म्यूज़ियम की पहली डायरेक्टर के साथ। फ़ोटो साभार : X/@Jairam_Ramesh

राष्ट्रीय संग्रहालय का इतिहास

-यहां 2,10,000 कलाकृतियां रखी हुई हैं जो हमारी पांच हज़ार साल पुरानी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं। 

-15 अगस्त 1949 के दिन राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली के दरबार हॉल में राष्ट्रीय संग्रहालय स्थापित किया गया था। 

- सबसे पहले इन कलाकृतियों को बर्लिंगटन हाउस ( Burlington House), लंदन में प्रदर्शित किया गया था। 

- राष्ट्रीय संग्रहालय के वर्तमान भवन की नींव देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रखी थी। 

- 18 दिसंबर 1960 को तत्कालीन उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा राष्ट्रीय संग्रहालय के पहले चरण का औपचारिक उद्घाटन किया था। 

- जबकि भवन का दूसरा चरण 1989 में पूरा हुआ था। 

- मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो इस अधूरे परिसर के अंतिम भाग का निर्माण 2017 में किया जाना था। 

नेशनल म्यूज़ियम की इमारत टूट रही है या नहीं ये तस्वीर भले ही साफ ना हो पर शिफ़्ट हो रहा है ये तो तय है। क़रीब 60 साल पुरानी इमारत का आगे चलकर क्या होगा इसपर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं। 

कांग्रेस नेता और सांसद शशि थरूर ने इसे 'बर्बरता' करार दिया जबकि उनसे पहले जयराम रमेश ने कहा कि एक और ऐतिहासिक इमारत का अस्तित्व व्यवस्थित ढंग से इतिहास मिटाने के अभियान के तहत ख़त्म हो जाएगा। 

''यह बर्बरता है''

शशि थरूर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा '' अपार वास्तुशिल्प महत्व की एक ऐतिहासिक इमारत को ध्वस्त किया जाना है और कुकी-कटर (cookie-cutter) सरकार की एक इमारत से इसे बदला जाना है। इस बीच कम से कम दो साल के लिए कोई संग्रहालय नहीं होगा, यह बर्बरता है विशुद्ध और साफ'' । 

जयराम रमेश ने उठाए सवाल

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी X पर कुछ पुरानी तस्वीरों के साथ एक लंबा पोस्ट लिखा '' फिर एक और आलीशान इमारत, जो पारंपरिकता के साथ आधुनिकता को जोड़ती है, इस साल के अंत तक गायब हो जाएगी, राष्ट्रीय संग्रहालय जिसे जीबी देओलालिकर ( G.B.Deolalikar) ने डिजाइन किया था और जिसका 1960 में उद्घाटन किया गया था उसे ध्वस्त किया जा रहा है।''

वे आगे लिखते हैं '' राष्ट्र न केवल एक आलीशान संरचना खो देता है बल्कि अपने हाल के इतिहास का एक टुकड़ा भी खो देता है जो प्रधानमंत्री के एक व्यवस्थित ढंग से इतिहास के अभियान का लक्ष्य है, इसमें दो लाख से ज़्यादा अनमोल चीजें हैं और उस बात की कोई गारंटी नहीं है कि यह राष्ट्रीय ख़ज़ाना दूसरे स्थान पर ले जाए जाने से सर्वाइव कर पाएगा''

जयराम रमेश ने अपने ट्वीट में नेशनल म्यूज़ियम की पहली डायरेक्टर Grace Morley और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की तस्वीर भी शेयर की और लिखा ''नेशनल म्यूजियम का शानदार इतिहास रहा है''। 

हस्ताक्षर अभियान 

नेशनल म्यूज़ियम की इमारत देश की विरासत का हिस्सा है जिसे बचाने के लिए एक हस्ताक्षर अभियान भी चलाया जा रहा है जिसमें

देश के नागरिकों, छात्रों, शिक्षाविद हिस्सा ले रहे हैं। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने भी लोगों से इस हस्ताक्षर अभियान में शामिल होने की अपील की है।

स्पेशल वॉक का आयोजन 

इन तमाम हलचल के बीच कुछ इतिहास प्रेमी भी एक कोशिश करते हुए दिखाई दे रहे हैं। 'कारवां' ( Karwaan) नाम का एक ग्रुप जो वक़्त-वक़्त पर हेरिटेज वॉक करवाता है, वह भी कोशिश कर रहा है कि जब तक नेशनल म्यूज़ियम खुला है ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को पुरानी इमारत में वॉक करवाता रहे। हमने इस ग्रुप से जुड़ी एक युवा से बात की जो नेशनल म्यूज़ियम के ख़ास वॉक के बारे में बताती हैं '' जब टीम कारवां को पता चला कि नेशनल म्यूज़ियम को डेमोलिश किया जा सकता है, और अब हम यहां ज़्यादा समय तक नहीं आ पाएंगे तो हमने ये सोचा एक छात्र और भारत के नागरिक होने के नाते हमारी ये जिम्मेदारी होती है कि हम आख़िर वक़्त तक लोगों को म्यूज़ियम के बारे में जागरूक करें क्योंकि जब से ये न्यूज़ आई थी कि म्यूज़ियम डेमोलिश हो रहा है, या शिफ़्ट हो रहा है हमें ये नहीं पता कि कलाकृतियां कहां शिफ़्ट हो रही हैं, हम छात्र हैं हमें ये भी नहीं पता कि अगर हमें आगे कलाकृतियों को देखकर स्टडी करनी है, समझना है तो हम उसको कैसे समझ पाएंगे क्योंकि गूगल से इमेज देखना हमारे लिए काफी नहीं है।'' 

वे आगे बताती हैं कि ''हमने वॉक की एक सीरीज शुरू की है जहां पर हम लोगों को एकेडमिक हिस्ट्री के परिपेक्ष्य में चीजों को समझाने की कोशिश करते हैं, तो ये वॉक एक ट्रिब्यूट है जहां पर हम अपनी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने के लिए एक कोशिश कर रहे हैं''। 

''विदेशों में पूरे इलाके को संरक्षित किया जाता है और यहां बिल्डिंग तोड़ने की बात सुनने में आ रही है''

इस वॉक में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली के बाहर से भी कई लोग पहुंचे, पुणे से आए निखिल कहते हैं- '' मैं जितनी भी किताबें पढ़ता था हिस्ट्री कोर्स की उसमें जो फोटोग्राफ रहते थे, हर टॉपिक के उनमें से ज़्यादातर हम यहां देख सकते हैं पर्सनली जो की बहुत बड़ी बात है, जो पुरानी तस्वीरें होती थी वो ब्लैक एंड व्हाइट होती थीं, कुछ रंगीन होती थी जो की बहुत ही कम होती थीं और जिन्हें हम यहां देख सकते हैं, मैंने बहुत सी किताबें पढ़ीं जिसकी बहुत सी कलाकृतियां यहां हैं।''

वे संग्रहालय को शिफ़्ट करने पर कहते हैं कि '' मैं नहीं चाहता कि ये कहीं और शिफ़्ट किया जाए, मुझे नहीं पता इनका क्या प्लान है, मैं हिस्ट्री को पिछले 20 साल से पढ़ रहा हूं, स्टडी कर रहा हूं, मुझे पता है एक-एक कलाकृति बेशकीमती है, दो लाख से ज़्यादा कलाकृतियां यहां है, वो कह रहे हैं कि शिफ़्ट करेंगे पर उसका क्या प्लान है? फर्नीचर कोई ना है जिसे शिफ़्ट कर लेंगे, किसी भी देश में हेरिटेज बिल्डिंग को तोड़ते नहीं हैं, कई यूरोपियन कंट्री में हम देखने जाते हैं चार सौ, पांच सौ साल पुराने रूम हैं, राइटर्स के, थिंकर्स के कमरों को संरक्षित किया जाता है, स्ट्रीट तक को संरक्षित किया जा जाता है, पूरे इलाके को संरक्षित किया जाता है और यहां तो पूरी बिल्डिंग के तोड़ने की बात सुनने में आ रही है, कुछ कलाकृतियां बहुत ही छोटी हैं, उनका साइज़ अंगूठे जितना है''। 

imageनर्तकी और पशु लघु मूर्तियां, क़रीब 2700-2000 ई.पू, मोहनजोदड़ो

''अगर वो कुछ करना चाहते हैं तो वो कर देते हैं उनको फ़र्क़ नहीं पड़ता''

इतिहास प्रेमियों की ये चिंता वाजिब है, वॉक पर आए एक कपल से हमने बात की और नेशनल म्यूज़ियम को शिफ़्ट या तोड़ने की ख़बरों पर वे क्या सोचते हैं जानना चाहा। वे कहते हैं कि '' हमने सिर्फ सुना है।  हो सकता है ये सिर्फ एक अफवाह हो, या शायद भविष्य में ऐसा हो सकता है।  वो सब कुछ ही चेंज करना चाह रहे हैं, हो सकता है वो अपना अलग ही इतिहास बना रहे हों। नया सेंट्रल विस्टा बना लेकिन संसद की पुरानी बिल्डिंग की अपनी हिस्ट्री थी, भले ही वो औपनिवेशिक काल की थी लेकिन उसकी अपनी हिस्ट्री थी, उसकी बहुत सी चीजें ऐसी थी जो हमारे लिए अहमियत रखती थी''।

वे आगे कहते हैं कि ''लेकिन अगर तोड़ने की बात आती है तो हम क्या ही कर सकते हैं इस सरकार को 10 साल होने को जा रहे हैं, अगर वो कुछ करना चाहते हैं तो वो कर देते हैं उनको फर्क नहीं पड़ता कि आप प्रोटेस्ट कर रहे हो या कुछ और कर रहे हो, ज़्यादा से ज़्यादा हम ये कर सकते हैं कि हम अपनी हिस्ट्री देखने आ रहे हैं, क्योंकि मैं जो सोच रहा हूं इनमें (कलाकृतियों) से भी कुछ चीजें छांट कर अपने हिसाब से रखेंगे, या फिर वो फैक्ट्स को भी मैनुपुलेट कर देंगे जो उनके बयानों से आता है, इसलिए हम आए कि कुछ चीजें हमें पता होनी चाहिए, बजाए उनके माध्यम से या उनके बयानों से उनके राजनीतिक भाषणों से हमें पता चले''। 

इस कपल की बात में कितना दम है ये दिल्ली में बनने जा रहे दुनिया के सबसे बड़े म्यूज़ियम 'युगे युगीन भारत' के लॉन्च किए गए वर्चुअल वॉक थ्रू पर नज़र डालने से पता चल जाता है। इतिहास की बेसिक समझ रखने वाला इस बात को समझ सकता है कि इस वर्चुअल वॉक थ्रू में बहुत ही होशियारी के साथ मुगल इतिहास को ग़ायब कर दिया गया है। 

''कोई चीज़ पहले से ही है तो उसे तोड़ने की क्या ज़रूरत है? जो बहुत बढ़िया अपनी जगह पर है''

इस वॉक को करवा रहीं प्रोफेसर सुदेशना गुहा ( Prof. Sudeshna Guha ) से भी हमने बात की।  प्रोफेसर गुहा कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के म्यूज़ियम में काम कर चुकी हैं साथ ही वहां इतिहास भी पढ़ा चुकी हैं। वे कई किताबें भी लिख चुकी हैं, वे कहती हैं कि ''इसको तोड़ने की तो कोई ज़रूरत नहीं है, इस बिल्डिंग के जो आप कलर देख रहे हो, ईंटें देख रहे हो, इसका ऊपरी गुंबद भी जो है वो आस-पास की इमारतों की तरह ही है, इसे तोड़ने की तो कोई आवश्यकता नहीं है, और किसी चीज़ को तोड़ने पर बहुत बड़ी लागत लगती है, तो आप किसी ऐसी चीज़ को क्यों तोड़ रहे हो जिस पर इतनी बड़ी लागत आने वाली है इसको और बेहतर बनाया जा सकता था, इस म्यूज़ियम को ज़रूरत थी संग्रह के ऊपर रिसर्च की वो ज़्यादा चाहिए, हमने अभी नहीं दो साल पहले ही सुना था कि तोड़ा जा सकता है और उस वक़्त ही हमारी प्रतिक्रिया थी कि कोई चीज़ पहले से ही है तो उसे तोड़ने की क्या ज़रूरत है? जो बहुत बढ़िया अपनी जगह पर है''।

''इनके पास कोई प्लान नहीं है कैसे इन चीजों को हैंडल किया जाता है''

वे कलाकृतियों को शिफ़्ट करने को लेकर बेहद चिंता जाहिर करते हुए कहती हैं कि '' जब ये सब यहां से लेकर जाएंगे वो बहुत महत्वपूर्ण है, इन कलाकृतियों के खोने का डर है, क्योंकि किसी भी सभ्य दुनिया में और मैं यहां सभ्य शब्द का इस्तेमाल करूंगी, जब किसी म्यूज़ियम को दूसरी जगह शिफ़्ट करना होता है उसके लिए कम से कम पांच साल की प्लानिंग की ज़रूरत होती है। लेकिन यहां के डेटाबेस में जो यहां के रिजर्व कलेक्शन हैं उनकी स्टोरेज की लोकेशन नहीं है, तो यहां से जब कलाकृतियां कहीं और जाएंगी तो बस या फिर ट्रक में तो उससे नुकसान होने का ख़तरा है, और ये loss of information होगा जो कि कलेक्शन मैनेजमेंट की सबसे महत्वपूर्ण बात है जो पूरी तरह से नज़रअंदाज़ की जा रही है, इनके पास कोई प्लान नहीं है कैसे इन चीजों को हैंडल किया जाता है, ये ऑब्जेक्ट बहुत पुराने हैं, और यूनिक हैं तो हो सकता है हम उन्हें खो दें''। 

वे पूरी दुनिया में कलाकृतियों को जिस तरह से सहेजा जाता है और उनकी चिंता की जाती हैं उनकी बारिकियों को बताती हैं। वे बताती हैं कि इस तरह से कलाकृतियों को शिफ़्ट करने के काम को बहुत ही प्रोफेशनल तरीके से किया जाता है।  वे कहती हैं कि '' यहां बिना प्लानिंग के कैसे काम हो सकता जिसके लिए कम से कम दस साल की ज़रूरत है, आख़िरकार ये नेशनल कलेक्शन है, आप रिलोकेट नहीं कर सकते''।

वे बताती हैं कि ''रिलोकेशन के दौरान अगर दो से तीन स्टेप हुए तो आप जानकारी खो देंगे, और पहले से ही बहुत सी जानकारी खो दी गई है और मैं ये भी बता दूं की बहुत कम म्यूज़ियम हैं जहां उचित रिसर्च टीम हैं''। 

प्रोफेसर गुहा की बातें उस वक़्त जेहन में घूमने लगी जब हमने नेशनल म्यूज़ियम के ग्राउंड फ्लोर पर गैलरी के सामने के गलियारों में बड़े-बड़े लकड़ी के बाक्स देखें, वहां बैठे कुछ लोगों से हमने बात की तो पता चला कि वे लोग सामान पैक कर रहे हैं हालांकि कि वो क्या सामान है और उसे कहां ले जाया जा रहा वो उन्होंने नहीं बताया, लेकिन उनसे बात कर ये से साफ पता चल गया कि वे बहुत ही आम लोग हैं जो पैकिंग के काम में लगे हैं जबकि प्रोफेसर गुहा के मुताबिक अगर कलाकृतियों को रिलोकेट किया जा रहा है तो वो बहुत ही सधे हुए हाथों से होना चाहिए। 

imageशिफ्टिंग की तैयारी

इन तमाम सवालों के जवाब तलाशने के लिए हमने नेशनल म्यूज़ियम के डीजी (डायरेक्टर जनरल )  डॉ. बी आर मणि से बात करने की कोशिश की लेकिन उनके ऑफिस ने हमें संजीव कुमार सिंह (प्रभारी, प्रकाशन विभाग) से बात करने के लिए कहा, हमने उनसे बात की और उन्होंने एक बात साफ करते हुए कहा कि ''बंद तो होना है, माननीय प्रधानमंत्री ने ऐलान किया है कि 'मैं भारत को सबसे बड़ा संग्रहालय देने वाला हूं'।  'युगे युगीन भारत' उसका नाम होगा, वो राष्ट्रीय संग्रहालय में समा जाएगा या राष्ट्रीय संग्रहालय उसमें समा जाएगा ये पॉलिसी की बात है इसपर अभी कोई चर्चा नहीं है लेकिन राष्ट्रीय संग्रहालय का जो संकलन है जो पुरावशेष है निश्चित रूप से वहां प्रमुखता से रहेंगे। नाम रहेगा 'युगे युगीन' उसमें पता नहीं क्षेपक लगा रहेगा या कट जाएगा ये नहीं कहा जा सकता उसके विषय में कोई ख़ास चर्चा नहीं है''  

सवाल: इस इमारत का क्या होगा? 

जवाब : ये विषय जो है बहुत पहले ही जब सेंट्रल विस्टा की बात हुई थी हरदीप सिंह पुरी जी अर्बन डेवलपमेंट मिनिस्टर थे उन्होंने प्रेस वार्ता की थी तो उन्होंने इस बिल्डिंग के विषय में भी बताया था कि ये भी पार्ट ऑफ सेंट्रल विस्टा है तो हम लोगों को तो ज्ञात नहीं है कि इसका क्या करने वाले हैं, सरकार क्या करने वाली है लेकिन हम लोग यहां से खाली करेंगे ऐसा सरकार का निर्देश है। 

सवाल: शिफ़्ट करने में कितना वक़्त लगेगा? 

जवाब: ये पुरावशेष का मामला है, उसे वक़्त में तो बांध नहीं सकते हैं, लेकिन एक-एक पुरावशेष जो है यहां सभी भारत के इतिहास निर्माण के केंद्र बिंदु हैं तो निश्चित रूप से जितने भी प्रीकॉशन्स होते हैं वे लिए जाएंगे, समय की क्या बात होगी अभी कुछ कहना तो कठिन होगा। 

सवाल: शिफ़्ट का काम कैसे हो रहा है? 

जवाब: व्यावहारिक रूप से होगा, जितने भी मानक स्थापित हैं मैं नहीं समझता कि किसी मानक से समझौता किया जाएगा, और समय सीमा है तो उसी ढंग से उसकी तैयारी होगी अगर आपको सरकार ने कहा है और सरकार का ये पॉलिसी यानी नीतिगत निर्णय है तो निश्चित रूप से कार्यावन्यन के लिए नीतियां भी बनाई होगी, तो कार्यावन्यन के लिए जो नीतियां बनाई होगी उसमें इन बातों का ध्यान रखा होगा। 

सवाल: क्या अभी सभी गैलरी खुली हैं ? 

जवाब: सारी गैलरी खुली हैं, हम नोटिफाई कर देंगे जब बंद होगी, अभी कोई गैलरी बंद नहीं है, शिफ्टिंग की तैयारी शुरू कर दी है, आइडेंटिफाई कर रहे हैं कौन सी कैटेगरी में जाना चाहिए तो वो तो करेंगे ये तो होम वर्क है ही। 

सवाल:  कोई डेट है कब तक शिफ़्ट कर जाएंगे ? 

जवाब: अतिशीघ्र करेंगे,  आधिकारिक रूप यही है कि शिफ़्ट होना है। 

इन जवाबों के बाद भी लगभग सभी सवाल बाक़ी हैं। सवाल ये भी है कि नए प्रोजेक्ट के तहत नया म्यूज़ियम बनाया जा रहा है, लेकिन उस नए म्यूज़ियम में पुरानी इमारत से जुड़ी वो तमाम तारीख़ी घटनाएं कैसे जोड़ी जाएंगी जो इसका हिस्सा हैं, जैसा कि हमें बताया गया कि कुछ गैलरी का उद्घाटन दूसरे राष्ट्राध्यक्षों ने किया जो उस वक़्त के रिश्तों को मज़बूत करने की गवाह रही. हो सकता है नई इमारत पुरानी से भव्य हो लेकिन फिर इस पुरानी इमारत का क्या होगा जो अपने आप में हेरिटेज बिल्डिंग है जिसकी नींव ख़ुद देश के पहले प्रधानमंत्री ने रखी थी। 

राष्ट्रीय संग्रहालय की कुछ ख़ास कलाकृतियां 

imageसिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ी गैलरी में रखे गए बर्तन

imageभरत को छत्र पकड़े हुए दर्शाया गया है, टाइम-17वीं शताब्दी 

imageकंस के कारागृह से वासुदेव नवजात कृष्ण को अपने मित्र नंद के घर ले जाते हुए। जगह- गोलकुंडा, दक्कन, टाइम - क़रीब 1700 ई. 

imageकुबेर ( धन के देवता ) कुषाण। जगह- अहिच्छत्र, उत्तर प्रदेश, टाइम- दूसरी शताब्दी ई. ) 

image( तश्तरी, बहुमूल्य रत्नों और सोने की तार से जड़ित। जगह- उत्तरी भारत( मुगल)  टाइम- 18वीं शताब्दी ) 

image(कांस्य प्रतिमाएं।जगह- दायमाबाद ( महाराष्ट्र) टाइम- करीब 2000 ई.पू. ( हड़प्पा काल) 

image(नटराज। जगह- तमिलनाडु, टाइम- 12वीं शताब्दी ( चोल ) 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest