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धर्म या धंधा!: काशी विश्वनाथ मंदिर में सावन में पूजा के लिए नई रेट लिस्ट जारी, श्रद्धालुओं में गुस्सा

सावन के मद्देनजर काशी विश्वनाथ मंदिर में सुगम दर्शन और आरती की नई रेट लिस्ट जारी की गई है। दर को दोगुने से लेकर चार गुना तक बढ़ा दिया गया है।
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उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन के नाम पर मनमाना शुल्क बढ़ाए जाने से सूबे की सियासत गरमा गई है। समाजवादी पार्टी के मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शुल्क वृद्धि पर कड़ी निंदा करते हुए एक ट्वीट में कहा है, "बीजेपी ने धर्म को व्यापार बना लिया है...निंदनीय। भाजपा सरकार से आग्रह है कि बाबा विश्वनाथ के दर्शन पर शुल्क लगाकर गरीबों, सच्चे भक्तों व आम जनता के ‘दर्शन का अधिकार’ न छीने।" इस बीच, आम आदमी पार्टी (आप) ने शुल्क में बढ़ोतरी के फैसले का विरोध किया है और इसे वापस लेने की मांग उठाई है।

विश्वनाथ मंदिर के दर्शनार्थियों के लिए इस बार सावन का महीना बेहद खास होने वाला है, क्योंकि अबकी पूरे 58 दिनों (करीब दो माह) उसकी धूम रहेगी। हिन्दू पंचांग के अनुसार 04 जुलाई 2023 से सावन का महीना शुरू होगा और 31 अगस्त तक रहेगा। बताया जा रहा है कि ऐसा संयोग 19 साल बाद बना है। बनारस में सावन महीने के हर सोमवार को दर्शनार्थियों का भारी हुजूम उमड़ता है। दर्शन-पूजन के लिए भक्तों को इस बार आठ सोमवार मिलेंगे। लेकिन सावन में पूजन-दर्शन के लिए सुगम दर्शन के नाम पर धन वसूली की योजना बनाई गई है।

काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुनील कुमार वर्मा ने श्रद्धालुओं से वसूले जाने वाले शुल्क की नई सूची जारी की है, जिसका कड़ा विरोध हो रहा है।

नई सूची के मुताबिक, सुगम दर्शन का शुल्क 300 रुपये से बढ़ाकर 500 रुपये कर दिया गया है। मंगला आरती के लिए एक हजार, मध्याह्न भोग आरती, सप्तर्षि आरती, भोग आरती के लिए अब पांच-पांच सौ रुपये देने होंगे। किसी शास्त्री से रुद्राभिषेक कराने का शुल्क सात सौ रुपये कर दिया गया है। इस पूजा में अगर पांच शास्त्री शामिल होंगे तो फीस 2100 रुपये हो जाएगी। संन्यासी भोग के लिए 4500 रुपये शुल्क तय किया गया है।

सावन के हर सोमवार पर सुगम दर्शन के नाम पर भक्तों से 750 रुपये लिए जाएंगे, जबकि मंगला आरती की फीस दो हजार रुपये तय की गई है। पांच शास्त्री से रुद्राभिषेक के लिए 3000 रुपये और संन्यासी भोग के लिए 7500 रुपये देने होंगे।

कहां जाएंगे ग़रीब भक्त ?

विश्वनाथ मंदिर में पूजन-दर्शन के शुल्क में सर्वाधिक इजाफा श्रृंगार दर्शन के नाम किया गया है। इसके लिए शुल्क राशि 20 हजार रुपये तय की गई है। सावन के सोमवार के दिन पांच शास्त्री से रुद्राभिषेक कराने 30 हजार रुपये देने होंगे। हालांकि सामान्य दिनों में रुद्राभिषेक कराने पर 2100 रुपये देने पड़ेंगे। विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन की नई रेट लिस्ट पूरे सावन लागू रहेगी। इसके बाद नए सिरे से शुल्क का निर्धारण किया जाएगा।

नई रेट लिस्ट सावन माह में चार जुलाई से शुरू होकर 31 अगस्त 2023 तक प्रभावी रहेंगी।

क्यों हो रहा शुल्क वृद्धि का विरोध

काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट ने भीड़ को नियंत्रित करने के नाम पर दर्शन-पूजन शुल्क में जो बढ़ोतरी की है, उससे भक्तों में जबर्दस्त नाराजगी और भारी निराशा है। सभी विपक्षी दलों ने बीजेपी सरकार पर निशाना साधना शुरू कर दिया है। आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता मुकेश सिंह कहते हैं, "अगर ईश्वर सबके लिए बराबर हैं तो अमीरों-गरीबों में यह भेदभाव कैसा? मठ-मंदिर श्रद्धा और दान-पुण्य के पैसे से चला करते हैं। बीजेपी सरकार विश्वनाथ मंदिर को मुगलिया शासन की तरह ‘टैक्स’ से चलाने में जुटी है तो गरीब भक्त कहां जाएंगे?"

उत्तर प्रदेश के विधान परिषद में कई मर्तबा विश्वनाथ मंदिर का मुद्दा उठाने वाले समाजवादी पार्टी के एमएलसी आशुतोष सिन्हा ने पूजा-अर्चना के नाम पर की गई शुल्क वृद्धि का कड़ा विरोध किया है। ‘न्यूज़क्लिक’ से बातचीत में वह कहते हैं, "बीजेपी ने विश्वनाथ जी को अमीरों का बाबा बना दिया है। उन्हें गरीबों से दूर किया जा रहा है। वीआईपी दर्शन सिर्फ बीजेपी के नेताओं और उद्योगपतियों, पूंजीपतियों और धनकुबेरों के लिए है। काशी विश्वनाथ मंदिर में सुविधाएं बढ़ाने और भ्रष्टाचार रोकने के लिए मैं कई बार सदन में मुद्दा उठा चुका हूं। बीजेपी सरकार ने तो धर्म का व्यवसाय ही शुरू कर दिया है। यह ऐसी सरकार है जो भगवान के प्रति लोगों की आस्था को भुनाना चाहती है। सदन में हमने हमेशा कहा है कि बनारस में धर्म का बाजारीकरण किया जा रहा है। दान में मिले धन का बंदरबांट किया जा रहा है। मंदिर में भ्रष्टाचार चरम पर है। अफसर गाड़ियों का फर्जी बिल लगाकर भुगतान ले रहे हैं। हमें लगता है कि केदारनाथ की कहानी बनारस में भी दुहराई जा सकती है। यहां भी सोना, पीतल हो सकता है। इस पर बनारसियों को सजग पहरेदारी करने की जरूरत है।"

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अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के वाराणसी महानगर अध्यक्ष राकेश जैन की अगुवाई में आयोजित एक आपात बैठक में काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन के नाम पर की गई शुल्क वृद्धि पर सख्त नाराजगी जताई गई। बैठक में मौजूद व्यापारी नेता राजू बाजोरिया, विनोद अग्रवाल, राजेश यादव, अशोक पाहुजा, दिनेश चौरसिया ने एक स्वर में कहा, "काशी विश्वनाथ धाम आस्था का प्रतीक है। पूजा-पाठ का शुल्क बढ़ाए जाने से आम आदमी की मुश्किलें बढ़ेगी। गरीब तबके के लोग बाबा विश्वनाथ से दूर हो जाएंगे। मंदिर प्रशासन के इस फैसले का व्यापार मंडल इसका पुरजोर विरोध करेगा। अमीर और गरीब में भेदभाव किया जाना गलत है। शुल्क वृद्धि तत्काल वापस ली जाए और भक्तों को मुफ्त में प्रसाद बांटने की व्यवस्था भी की जाए।"

पुराना है शुल्क वसूली का मुद्दा

विश्वनाथ मंदिर न्यास बोर्ड की बैठकों में कई मर्तबा यह मुद्दा उठाया जा चुका है कि उज्जैन के महाकाल मंदिर की तर्ज पर विश्वनाथ मंदिर में भी स्पर्श दर्शन के नाम पर श्रद्धालुओं से ज्यादा रकम वसूली जाए। इसी क्रम में कुछ महीने पहले काशी विश्वनाथ मंदिर में स्पर्श दर्शन के नाम पर बनारस की सरकार ने नायाब खेल खेला था। ट्रायल के तौर पर पहले खुद पर्ची काटी, फीस वसूली और मामले ने तूल पकड़ा तो निर्दोष लोगों के खिलाफ एनसीआर दर्ज करा दिया था।

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इस मामले में सबसे नाटकीय पहलू यह रहा कि मंदिर कार्यालय से पहले स्पर्श दर्शन की रसीद काटी गई और बाद में अफवाह फैलाने के नाम पर विधिवत चौक थाने में तहरीर दी गई, जिसमें नौ लोगों के खिलाफ नामजद किया गया। दावा किया गया कि दो मार्च 2023 को दर्शनार्थी अजय शर्मा ने निःशुल्क दर्शन के बाद पांच सौ रुपये की डोनेशन रसीद कटवाई, जिसमें हेल्प डेस्क कर्मचारी सुधांशु पाल से अनुचित दबाव बनाकर पर्ची पर स्पर्श दर्शन लिखवा लिया। बाद में उस रसीद को अपने सहयोगी आशीष धर (डायरेक्टर अप स्ट्रीम मीडिया सल्युशन) और एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार के साथ साझा कर दो कालम की न्यूज लिखवाई गई। मामले ने तूल पकड़ा तो प्रशासन और विश्वनाथ मंदिर प्रबंधन सफाई देने लगा कि स्पर्श दर्शन को लेकर किसी तरह का शुल्क नहीं लगाया गया है।

ड्रेस कोड भी बना था मुद्दा

साल 2020 में काशी विश्वनाथ मंदिर में दक्षिण भारतीय मंदिरों की तर्ज़ पर स्पर्श दर्शन के लिए ड्रेस कोड लागू किए जाने का मामला उछला था। बनारस के लोगों ने जब इसका विरोध किया तो तत्कालीन धर्मार्थ कार्य राज्य मंत्री नीलकंठ तिवारी ने ट्वीट के जरिये सफाई देते हुए कहा कि मंदिर मे अभी कोई ड्रेस कोड नहीं लागू है और न लागू करने की योजना है। बाद में तत्कालीन मंडलायुक्त दीपक अग्रवाल ने भी एक वीडियो बयान जारी करके इसका खंडन किया था।

विश्वनाथ मंदिर क्यों जुट रही भीड़

काशी विश्वनाथ मंदिर शिव के प्राचीन मंदिरों में से एक है, जो कि गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। इस मंदिर में प्राचीन काल से शिव के ज्योतिर्लिंग स्वरूप की पूजा होती है। मंदिर में मुख्य देवता का लिंग विग्रह 60 सेंटीमीटर (24 इंच) लंबा और 90 सेंटीमीटर (35 इंच) परिधि में एक चांदी की वेदी में रखा गया है। मुख्य मंदिर चतुर्भुज है। मंदिर परिसर में काल भैरव, कार्तिकेय, अविमुक्तेश्वर, विष्णु, गणेश, शनि, शिव और पार्वती के छोटे-छोटे मंदिर हैं। मंदिर में एक छोटा कुआं है जिसे ज्ञानवापी कूप कहा जाता है और वह मुख्य मंदिर के उत्तर में स्थित है।

बताया जाता है कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार सन 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था। कालांतर में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने स्वर्ण पत्रों से मंदिर के शिखरों को सुसज्जित करवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई थी। मोदी सरकार ने अब इस मंदिर के स्वरूप को पूरी तरह बदल दिया है।

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का कुल क्षेत्रफल करीब पांच लाख वर्ग फीट है, जिसमें मंदिर का परिसर सिर्फ पांच फीसदी हिस्से में है। कॉरिडोर को बनाने के के लिए करीब 300 से अधिक मकानों को अधिग्रहित किया गया था। साथ ही काशी खण्डोक्त के 27 और 127 दूसरे मंदिरों को जमींदोज कर दिया गया था। प्रशासन ने दावा किया था कि कॉरिडोर के सभी मंदिरों का संरक्षण किया जा रहा है, जो मजाक बनकर रह गया है। मंदिर प्रशासन ने मंदिर में बिजनेस मॉडल विकसित करने के लिए ब्रिटेन की कंपनी ईवाई को ठेका दिया गया है। जिस मंदिर में विदेशियों का प्रवेश प्रतिबंधित था, उस मंदिर परिसर में बिजनेस मॉडल विकसित करने के लिए यह विदेशी कंपनी सुझाव देगी। यह कंपनी यह भी तय करेगी कि मंदिर परिसर में ठहरने से लेकर भोजन-पानी और पूजा-पाठ का शुल्क कितना होगा?

खास बात यह है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने जब से विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण किया है तभी से आम श्रद्धालुओं को मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने पर प्रतिबंध है। सिर्फ सुबह चार से पांच बजे तक और शाम को चार से पांच बजे तक ही स्पर्श दर्शन की अनुमति दी जा रही है। हालांकि आला अफसरों और वीवीआईपी के लिए तो विश्वनाथ मंदिर के दरवाजे हमेशा के लिए खुले रहते हैं। वीवीआईपी को दर्शन कराने के लिए श्रद्धालुओं को रोकने और उन्हें मंदिर के गर्भगृह में बैठाकर देर तक पूजा-अर्चना कराने का नया चलन तेज हुआ है। पहले की तरह आज भी आम श्रद्धालुओं को सड़कों पर लाइन लगानी पड़ रही है। घंटों लाइन में लगने के बाद इन्हें मंदिर के बाहर बने अरघे में जलार्पण करना पड़ रहा है। जब भी कोई वीवीआईपी आता है, मंदिर के गर्भगृह में कब्जा करके पूजा-पाठ शुरू कर दिया जाता है।

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मनमानी से आहत हैं महंत

काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत पंडित राजेंद्र तिवारी कहते हैं, " जिस समय काशी विश्वनाथ कारिडोर का उद्घाटन हो रहा था तभी हमने कहा था कि बीजेपी सरकार ने आस्था के सबसे बड़े केंद्र को मॉल बना दिया है। यहां सिर्फ धनाड्य लोग ही बाबा का दर्शन कर पाएंगे। मंदिर परिसर में खोले गए नए रेस्टोरेंट में श्रद्धालुओं को मनमाने दाम पर व्यंजन बेचे जा रहे हैं। मंदिर के बाहर 50 रुपये में बिकने वाला मैंगो जूस 250 रुपये में बेचा जा रहा है। मंदिर की दुकानों में खान-पान के सामानों का दाम फाइव स्टार होटलों से भी ज्यादा है। इसे बाबा के भक्तों के साथ लूट नहीं तो क्या कहेंगे? मंदिर प्रशासन ने कमाई करने के लिए रेस्टोरेंट का ठेका करोड़ों में उठाया है। पूजा की थाली बेचने का अधिकार एक व्यक्ति के हवाले कर दिया गया है, जबकि पहले ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी।"

वह कहते हैं, "पीएम नरेंद्र मोदी ने विश्वनाथ मंदिर को एक बड़े व्यावसायिक केंद्र के रूप में बदल दिया है। आस्था के केंद्र को आमदनी का जरिया बनाया जाना ठीक नहीं है। जब से कारिडोर बना है तब से गोदौलिया से लगायत मैदागिन तक का सारा व्यापार खत्म हो गया। सिर्फ खाने-पीने का सामन बेचने और फूल-माला वाले ही खुश हैं। व्यापारी रो रहे हैं। मंदिर में जितना चढ़ावा चढ़ रहा है उससे कई गुना ज्यादा सरकार को जीएसटी का नुकसान हो रहा है। डबल इंजन की सरकार सिर्फ झूठी वाहवाही लूट रही है।"

पंडित राजेंद्र यह भी कहते हैं, "विश्वनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना के नाम पर की गई शुल्क वृद्धि गरीब भक्तों को बाबा से दूर करने की साजिश है। आम दर्शनार्थी घंटों धूप में लाइन में खड़े रहते हैं। कई बार पहरुये उन्हें लाइन से बाहर कर देते हैं। कितना अजीब बात है कि भक्त अब बाबा का दूर से भी दर्शन नहीं कर पा रहे हैं। सिर्फ अमीर और शासन-प्रशासन द्वारा पोषित वीआईपी लोग उन तक पहुंच पा रहे हैं। बीजेपी के लोग बाबा विश्वनाथ को अपने निर्देशानुसार चलाने का प्रयास कर रहे हैं। बाबा तो बाबा है, जिस दिन उनकी भृकुटी टेढ़ी होगी, उस दिन मनमानी करने वाले वीआईपी का हाल क्या होगा, कल्पना करना मुश्किल है।"

शुल्क वृद्धि जायज: जीतेंद्रानंद

आरएसएस से जुड़े स्वामी जीतेंद्र उर्फ जितेंद्रानंद सरस्वती 25 जून 2023 को विश्वनाथ मंदिर के शुल्क में बढ़ोतरी को जरूरी बताते हुए उसका विरोध करने वालों की आलोचना करते हैं। वह अखिल भारतीय संत समाज के महामंत्री भी हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्वीट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ने स्वामी जीतेंद्रानंद ने कहा है, "सावन और विशेष पर्वों पर काशी विश्वनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं का दबाव ज्यादा होता है। मंदिर न्यास ने जो शुल्क बढ़ाया है, वह नया नहीं है। ऐसा पहले भी किया जाता था और भक्तों को स्वीकार्य होता था। सावन में भीड़ बढ़ेगी उसके अनुरूप तगड़े इंतजाम भी करने होंगे। पूजा-पाठ के शुल्क में बढ़ोतरी के विरोध का आधार न तो तर्कसंगत है और न ही सैद्धांतिक। सावन के दिनों में विश्वनाथ मंदिर में जो लोग दर्शन करने आएंगे वो शुल्क अदा करेंगे तो सुविधाएं पाएंगे। लाइन में लगकर दर्शन-पूजन करने वालों से पहले भी कोई शुल्क नहीं लिया जाता था और अब भी मुफ्त दर्शन की व्यवस्था है। किसी के साथ जोर-जबर्दस्ती करने का सवाल ही नहीं उठता है।"

उधर खुद को काशी विश्वनाथ का सेवक बताने वाले नियमित दर्शनार्थी वैभव कुमार त्रिपाठी न्यूज़क्लिक से कहते हैं, "बीजेपी सरकार धर्म का व्यापार कर रही है और गरीब भक्तों को बाबा से दूर करने की कोशिश में जुटी है। इसने तो ‘बाबा विश्वनाथ’ को ‘विश्वनाथ साव’ बना दिया है। बीजेपी सरकार का एजेंडा सिर्फ मंदिर और हिन्दुत्व है। गरीब और समान्य दर्शनार्थियों को अब तक न कुछ मिला है, न मिलेगा। सत्ता पर काबिज होने के लिए डबल इंजन की सरकार धर्म का राजनीति करना चाहती है। हजारों नेमी दर्शनार्थियों ने अब मंदिर जाना छोड़ दिया है। अब कुछ ही लोग वहां जा पाते हैं। भक्तों की इच्छा ही नहीं होती और सत्तारूढ़ दल के नेताओं को शुल्क वृद्धि से कोई फर्क नहीं पड़ता। मंदिर में लूट मची है और अमीरों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि है कि उनसे कितना पैसा वसूला जा रहा है और दान के पैसे का इस्तेमाल कहां हो रहा है? "

विश्वनाथ मंदिर में शुल्क वृद्धि को जायज बताने वाले स्वामी जीतेंद्रानंद पर तल्ख टिप्पणी करते हुए वैभव कहते हैं, "सिर्फ गेरुआ पहन लेने से कोई संत नहीं हो जाता। एजेंडा चलाना उनका धर्म है। जिस समय गंगा नदी में गंगा विलास क्रूज उतारा गया था उस समय वो पहले वाह-वाह कर रहे थे और बाद में उन्होंने विरोध शुरू कर दिया। काशी विश्वनाथ न्यास के पास पैसे में कोई कमी नहीं है। बाजारीकरण के शोर के बीच स्थानीय नागरिक अब शहर के दूसरे शिवालयों की ओर मुड़ गए हैं। सड़कों पर लगने वाली कतारें सरकारी दावों की पोल खोलती नजर आ रही हैं। नई व्यवस्था से मंदिर मंदिर में नियमित दर्शन करने वाले लोग खुद को खोया हुआ महसूस कर रहे हैं।"

पंडित वैभव यह भी कहते हैं, "हर कोई जानता है कि धर्म का मूल स्वभाव सेवा है। परिसर को धर्मशाला मुक्त करके होटल युक्त कर दिया। अन्नक्षेत्र की जगह फ़ूड कोर्ट बना दिया गया है। मंदिर का सेवा भाव खत्म हो गया है। पहले अमीर-गरीब एक साथ खाना खाते थे। अब अमीर फ़ूड कोर्ट में बैठकर खाना खाएंगे, और गरीब भक्त ललचाते हुए देखेंगे। मंदिर में समानता का सिद्धांत खत्म हो गया। यह धर्म और आस्था की विचारधारा पर चोट है। हमारे धर्म में अमीरी-गरीबी के लिए भेदभाव नहीं था। मंदिर में पूजा और भक्ति के लिए दाम बढ़ाने की आखिर क्या जरूरत है? मंदिर में लाखों-करोड़ों का चंदा आ रहा है तो श्रद्धालुओं को मुफ्त में मुफ्त प्रसाद बांटना चाहिए। सुलभ दर्शन व स्पर्श दर्शन का बहाने भक्तों से वसूली अनुचित है।"

"शुल्क देने के बाद भी सुगम दर्शन कराने वाला ब्राह्मण भी अलग से दक्षिणा मांगता है। वैसे भी मान्यता है कि दक्षिणा देने के बाद ही कोई पूजा फलीभूत होती है। अचरज की बात यह है कि शुल्क वसूली के मामले में बनारस जो प्रबुदध मौन हैं। हमें लगता है कि कुछ सरकार से डरे हुए हैं और कुछ लोगों अपने निहित स्वार्थ हैं। विश्वनाथ मंदिर में दर्शन पर टैक्स लगेगा और बनारस के लोग मौन रहेंगे, यह किसी ने नहीं सोचा था। कितनी अचरज की बात है कि वीआईपी के लिए विश्वनाथ मंदिर में बारहो महीने और चौबीसो घंटे प्रवेश की इजाजत है और आम भक्तों को घंटों लाइन लगानी पड़ रही है।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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