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OTT guidelines : कंटेंट रेगुलेशन के नाम पर और कितनी पाबंदी लगाएगी सरकार?

केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर का यह ताज़ा बयान एक बार फिर से कंटेंट रेगुलेशन के नाम पर पाबंदी की बहस को तेज़ कर रहा है।
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"आज़ादी दी थी क्रिएटिविटी के लिए, गाली गलौज, अश्लीलता के लिए नहीं, अगर एक सीमा को कोई पार करेगा तो क्रिएटिविटी के नाम पर गाली गलौज, असभ्यता स्वीकार नहीं होगी।"

केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर का यह ताज़ा बयान एक बार फिर से कंटेंट रेगुलेशन के नाम पर पाबंदी की बहस को तेज़ कर रहा है।

दरअसल, रविवार 19 मार्च को नागपुर में अनुराग ठाकुर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि ओटीटी पर आने वाली फिल्मों और वेब सीरीज़ के ख़िलाफ़ बहुत शिकायतें आ रही हैं और ये शिकायतें पिछले कुछ समय से और ज़्यादा बढ़ गयी हैं। ऐसे में अगर ज़रूरत पड़ी तो सरकार इन ओटीटी यानी ओवर द टॉप प्लेटफॉर्म्स के लिए सख़्त एक्शन लेगी।

अनुराग ठाकुर ने अपने बयान में यह भी बताया कि मौजूदा नियमों के अनुसार शिकायतों के बाद लगभग 90-92% बदलाव खुद प्रोड्यूसर्स और डायरेक्टर्स ही कर लेते हैं। उसके बाद भी अगर कुछ बदलाव की ज़रूरत होती है तो वह प्लेटफार्म या फिल्म से जुड़े असोसिएशन की ज़िम्मेदारी है। अगर किसी भी फिल्म, या वेब सीरीज़ के कंटेंट में बदलाव का मामला सरकार तक पहुँचता है तो मौजूदा नियमों के अनुसार सरकार एक्शन लेती है।

आगे पढ़ने से पहले, सुनिए अनुराग ठाकुर का वह बयान जिसमें उन्होंने ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई और कड़े नियमों की ओर इशारा किया है:

सूचना एवं प्रसारण मंत्री के बयान से यह साफ़ है कि मौजूदा समय में ओटीटी पर रिलीज़ करने से पहले, ज़रूरत पड़ने पर फिल्मों, वेब सीरीज़ या डॉक्यूमेंट्री आदि में बदलाव किये जाते हैं। साथ ही कंटेंट में किसी भी तरह के बदलाव करने के लिए सरकार को हस्तक्षेप करने का भी पूरा अधिकार है।

गौरतलब है कि 2021 में केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्म को कानून के दायरे में लाने के गाइडलाइन्स जारी की थीं। ये गाइडलाइन्स फेसबुक, ट्विटर, जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म और नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, हॉटस्टार जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर लागू होती हैं। इन आईटी गाइडलाइन्स के माध्यम से डिजिटल मीडिया को प्रिंट और टीवी के लेवल पर लाया गया।

क्या हैं ओटीटी के लिए गाइडलाइन्स?

हर ओटीटी प्लेटफार्म और डिजिटल न्‍यूज़ मीडिया को अपने बारे में विस्‍तृत जानकारी देनी होगी। हालाँकि रजिस्‍ट्रेशन अनिवार्य नहीं है।

दोनों को ग्रीवांस रीड्रेसल सिस्‍टम लागू करना होगा। अगर गलती पाई गई तो खुद से रेगुलेट करना होगा।

OTT प्‍लेटफॉर्म्‍स को सेल्‍फ रेगुलेशन बॉडी बनानी होगी जिसे सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज हेड करेंगे।

सेंसर बोर्ड की तरह OTT पर भी उम्र के हिसाब से सर्टिफिकेशन की व्‍यवस्‍था हो। एथिक्‍स कोड टीवी, सिनेमा जैसा ही रहेगा।

ध्यान देने वाली बात है कि इन नियमों के लागू होने के बाद से ओटीटी प्लेटफार्म को अपने कंटेंट को ख़ुद 5 केटेगरी में क्लासिफ़ाइ करना होगा। इनमें यूनिवर्सल (U), यूनिवर्सल एडल्ट 7 प्लस (U/A 7+), यूनिवर्सल एडल्ट 13 प्लस (U/A 13+) और यूनिवर्सल एडल्ट 16 प्लस (U/A 16+) के साथ एडल्ट (A) कैटेगरी शामिल है।

इसके अलावा, इन नियमों के अनुसार U/A 13+ या इससे ज़्यादा उम्र वाली केटेगरी के लिए कंटेंट में पैरेंटल लॉक का अनिवार्य ऑप्शन देना होगा। साथ ही एडल्ट या वयस्क केटेगरी के कंटेंट के लिए एज वेरिफिकेशन के लिए मशीनरी विकसित करनी होगी।

अब ऐसे में सवाल उठता है कि ओटीटी और ऑनलाइन कंटेंट के सेंसरशिप के लिए ज़रूरी गाइडलाइन्स, 3 स्तरीय शिकायत निवारण मशीनरी, और ओटीटी पर उम्र के हिसाब से कंटेंट क्लासिफिकेशन होने के बावजूद, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को नए और सख़्त नियम लाने की ज़रूरत क्यों है?

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