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यूपी के एमएलसी चुनाव में खुलेआम मारपीट और गुंडई, भाजपा ने खेला बाहुबलियों पर दांव !

भाजपा ने एमएलसी चुनाव में बाहुबलियों से अपने रिश्ते को उजागर किया है। इसके नेता एक तरफ अपराधियों के खिलाफ बुल्डोजर वाली सरकार होने का दावा करते हैं तो दूसरी ओर घोषित अपराधियों को अपनी पार्टी का अधिकृत प्रत्याशी भी बनाते हैं। भाजपा के दावे पर आखिर जनता कैसे भरोसा करेगी?
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उत्तर प्रदेश में स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन की 36 सीटों के लिए हो रहे चुनाव में अब मारपीट, गुंडागर्दी, पर्चा छीनने और फाड़ने की नई पटकथा लिखी जा रही है। यह पटकथा भी कुछ उसी तरह की है जैसी जिला पंचायत चुनाव में रची गई थी। हर हाल में एमएलसी चुनाव जीतने के लिए विपक्षी दलों के प्रत्याशियों की जबर्दस्त घेराबंदी की जा रही है, ताकि वो चुनाव मैदान छोड़कर भाग जाएं। आरोप है कि इस धतकरम में पुलिस भागीदार है तो दूसरी सरकारी मशीनरी भी। समाजवादी पार्टी ने इस बाबत मुख्य निर्वाचन अधिकारी के यहां लिखित शिकायत दर्ज कराई है। एटा और फर्रूखाबाद समेत कई वारदात का हवाला देते हुए कहा है कि एमएलसी चुनाव में मारपीट और बेईमानी की जा रही है। सपा के कई प्रत्याशियों के पर्चे गलत ढंग से खारिज कर दिए गए तो सत्ता के दबाव और आतंक के बीच उनके कुछ प्रत्याशियों को अपना पर्चा वापस लेकर भागना पड़ गया।

राजनीतिक लिहाज से खास अहमियत रखने वाला उत्तर प्रदेश एमएलसी चुनाव में एक बार फिर भाजपा और सपा के बीच सीधे मुकाबले के दूसरे दौर का गवाह बनने जा रहा है। आगामी नौ अप्रैल को यूपी विधान परिषद के स्थानीय प्रशासनिक क्षेत्र चुनाव में इन दोनों पार्टियों के बीच फिर जोर आजमाइश होगी। विधान परिषद के चुनाव में कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी ने उम्मीदवार नहीं खड़ा किया है, जिसके चलते सीधी लड़ाई भाजपा और सपा के बीच है। विधानसभा चुनाव में भी इन्हीं दलों के बीच सीधा मुकाबला हुआ था।

चर्चा में पूर्वांचल के बाहुबली

देश-दुनिया में इसलिए भी यूपी के एमएलसी चुनाव की चर्चा ज्यादा है, क्योंकि इस बार सत्तारूढ़ दल ने कई हिस्ट्रीशीटरों, माफियाओं और बाहुबलियों को मैदान में उतारा है। वाराणसी के सेंट्रल जेल में बंद माफिया बृजेश सिंह उर्फ अरुण सिंह (निवर्तमान एमएलसी) ने 24 मार्च 2022 को पत्नी अन्नपूर्णा सिंह के समर्थन में अपना पर्चा उठा लिया। उनकी पत्नी व पूर्व एमएलसी अन्नपूर्णा सिंह मैदान में डटी हुई हैं। बृजेश ने अपनी पत्नी के साथ पर्चा दाखिल किया था और इस जुगत में थे कि भाजपा उन्हें वाकओवर दे दे। सियासी गलियारों में सत्तारूढ़ दल पर जब तल्ख आरोप चस्पा होने लगे तब भाजपा ने अंतिम क्षण में बनारस के अकथा निवासी डॉ. सुदामा सिंह पटेल पर दांव खेला। हैरान करने वाली बात यह है कि उच्च सदन के लिए हो रहे इस चुनाव में भाजपा विधायक सौरभ श्रीवास्तव को छोड़कर कोई भी जनप्रतिनिधि डॉ. सुदामा के समर्थन में नहीं पहुंचा। वाराणसी स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन सीट का दायरा सिर्फ बनारस तक ही सीमित नहीं है। चंदौली और भदोही के जनप्रतिनिधि भी इस चुनाव में हिस्सा लेते हैं। तीनों जिलों में अधिसंख्य विधायक भाजपा के हैं।

बनारस में आखिरी क्षण में नामांकन करने पहुंचे भाजपा प्रत्याशी डॉ. सुदामा सिंह पटेल

बनारस स्थानीय प्राधिकारी सीट इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि यह पीएम नरेंद्र मोदी का गढ़ है। बनारस में अब भाजपा प्रत्याशी डा.सुदामा सिंह पटेल का मुकाबला मुख्य रूप बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह और सपा के उमेश कुमार यादव के बीच होगा। उमेश चौबेपुर इलाके के रैमला गांव के निवासी हैं। वाराणसी सीट पर अब तिकोनी लड़ाई हो गई है। एक तरफ भाजपा के निवर्तमान बाहुबली एमएलसी बृजेश सिंह का बाहुबल दांव पर लगा है तो दूसरी ओर भाजपा की प्रतिष्ठा। फ़िलहाल जेल में बंद बृजेश के परिवार के औपचारिक राजनीतिक चेहरे के तौर पर पहचाने जाने वाले उनके भतीजे सुशील सिंह लगातार चौथी बार चंदौली के सैयदराजा सीट से विधायक चुने गए हैं। वोटरों की नजरें इस बात पर टिकी हुई हैं कि सुशील सिंह अपने चाची के लिए वोट मांगेंगे या फिर भाजपा प्रत्याशी डा.सुदामा सिंह पटेल का प्रचार करते नजर आएंगे?

सत्ता में चाहे जो भी दल रहा हो, लेकिन बनारस स्थानीय प्राधिकारी सीट दशकों से कपसेठी हाउस यानी बृजेश सिंह और उनके परिवार के कब्जे में रही है। एक मर्तबा बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह तो दो बार इनके बड़े भाई उदयभान उर्फ चुलबुल सिंह एमएलसी रह चुके हैं। साल 2016 के चुनाव में बृजेश सिंह पहली मर्तबा चुनावी मैदान में उतरे थे। उस समय उन्होंने सपा की दमदार उम्मीदवार मीना सिंह को रिकॉर्ड मतों से हरा दिया था। इस बार भाजपा और सपा दोनों ने ही कपसेठी हाउस के खिलाफ अपने-अपने प्रत्याशी उतारे हैं।

बनारस में नामांकन करने पहुंची बाहुबली बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह

चंदौली के भाजपा विधायक सुशील सिंह की सगी चाची अन्नपूर्णा सिंह का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, लेकिन इनके पति बृजेश सिंह पर मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल ओफ़ ऑर्गनाइज्ड क्राइम ऐक्ट), टाडा (टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज एक्ट) और गैंगस्टर एक्ट के तहत हत्या, अपहरण, हत्या का प्रयास, हत्या की साजिश रचने से लेकर, दंगा-बवाल भड़काने, सरकारी कर्मचारी को इरादतन चोट पहुंचाने, झूठे सरकारी काग़ज़ात बनवाने, जबरन वसूली करने और धोखाधड़ी से ज़मीन हड़पने तक के मुक़दमे लग चुके हैं। कई मामलों में गवाहों के पलट जाने, गवाहों के बयानों में विरोधाभास होने और विरोधी पक्ष के वकीलों की कमज़ोर पैरवी की वजह से कई बड़े मुक़दमों में बृजेश बरी हो चुके हैं। साल 2016 में दिए गए अपने चुनावी शपथपत्र के अनुसार उन पर अब भी 11 मुक़दमे चल रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अन्नपूर्णा सिंह के पति बृजेश सिंह, पहले कोयले के धंधे में उतरे और फिर आज़मगढ़ से शराब का व्यापार शुरू किया। बलिया, भदोही, बनारस से लेकर झारखंड-छत्तीसगढ़ तक काम फैलाया। फिर ज़मीन, रियल एस्टेट में आने के बाद अब रेत का व्यापार भी चल रहा है। बृजेश सिंह के नाम वापस लेने के बाद सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर तेज हो गया है।

वाराणसी स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन क्षेत्र में वाराणसी के अलावा चंदौली व भदोही के 4949 मतदाता प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे। इस चुनाव में तीनों जिले के निर्वाचित ग्राम पंचायत, बीडीसी व जिला पंचायत सदस्य के अलावा नगर निगम, नगर पंचायत, पालिका परिषद के सदस्य व विधायक, सांसद व एमएलसी मतदान करते हैं। बनारस सीट के लिए 41 बूथों पर नौ अप्रैल को वोट डाले जाएंगे।

मिर्जापुर में निर्विरोध चुनाव जीतने के बाद डीएम से प्रमाण-पत्र लेते विनीत सिंह

विनीत के आगे सबने डाले हथियार

भाजपा ने मिर्जापुर-सोनभद्र स्थानीय निकाय निर्वाचन सीट पर इस बार बसपा के पूर्व एमएलसी और हिस्ट्रीशीटर विनीत सिंह उर्फ श्याम नारायण सिंह पर दांव लगाया तो चुनाव से पहले ही उन्होंने जीत दर्ज कर ली। इनके आगे कोई प्रत्याशी नहीं टिक पाया। चुनाव से पहले ही सभी प्रत्याशियों ने इनके आगे हथियार डाल दिए। बाहुबली विनीत के खिलाफ कई आपराधिक मामले लंबित हैं। वह वाराणसी जिले के चोलापुर थाने के रिकॉर्ड के मुताबिक हिस्ट्रीशीटर हैं।

सूबे में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद ही साल 2017 में विनीत सिंह भाजपा के करीब आए थे और साल 2019 के लोकसभा चुनाव के समय पार्टी का दामन थाम लिया था। विनीत सिंह एक समय माफिया से नेता बने बृजेश सिंह के कट्टर विरोधी माने जाते थे। साल 2010 में विनीत सिंह मिर्जापुर जिले से बसपा के टिकट पर एमएलसी चुने गए थे। अपहरण के मामले में रांची जेल में बंद रहने के दौरान उन्होंने चंदौली की सैयदराजा सीट से बसपा के टिकट पर साल 2017 में विधानसभा चुनाव लड़ा था। करीब 65000 वोट हासिल करने के बावजूद वह बाहुबली बृजेश सिंह के भतीजे सुशील सिंह से चुनाव हार गए थे। साल 2011 और साल 2016 में विनीत सिंह अपनी पत्नी को मिर्जापुर से जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाने में कामयाब रहे। साल 2021 में भाजपा के टिकट पर विनीत सिंह जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए थे।

धनंजय के करीबी को भाजपा का टिकट  

जौनपुर स्थानीय निकाय की विधान परिषद सीट पर भाजपा ने बसपा के एमएलसी बृजेश सिंह 'प्रियांशु' को मैदान में उतारा है जो बाहुबली नेता धनंजय सिंह के करीबी और राइट हैंड माने जाते हैं। बृजेश सिंह ने साल 2016 में बसपा के टिकट पर जीत दर्ज की थी, लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले बसपा छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था। हालांकि, अभी तक भाजपा में धनंजय सिंह की सीधे तौर पर इंट्री नहीं हो सकी है। जौनपुर जिले की मल्हानी विधानसभा सीट से धनंजय सिंह ने जेडीयू उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन सपा के लकी यादव से हार गए थे। मौजूदा समय में धनंजय सिंह की पत्नी जौनपुर की जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। अब वह अपने करीबी बृजेश सिंह को एमएलसी बनावाने में जुटे हैं।

विधान परिषद की प्रतापगढ़ सीट भी इस बार खासी चर्चा में है। इस सीट पर कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने अपने बेहद करीबी अक्षय प्रताप सिंह उर्फ गोपाल भैया को जनसत्ता पार्टी से चुनाव मैदान में उतारा है। फर्जी पते पर रिवॉल्वर का लाइसेंस लेने के आरोप में उन्हें सात साल की सजा हुई है। अक्षय प्रताप सिंह पर हत्या से लेकर अपहरण और मारपीट तक के केस लंबित हैं। बाहुबली नेताओं में गिने जाने वाले अक्षय प्रताप प्रतापगढ़ सीट से तीन बार एमएलसी रह चुके हैं। वह साल 2016 में सपा के टिकट पर निर्विरोध चुने गए थे। अक्षय प्रताप सिंह, राजा भैया के करीबी रिश्तेदार भी हैं। माना जा रहा था कि अक्षय प्रताप के जेल जाने के बाद राजा भैया की रीढ़ टूट सी गई है, लेकिन हुआ ऐसा नहीं। जिस आरोप में उन्हें सजा हुई थी, उस मामले में 24 मार्च को ऊपरी अदालत ने उन्हें जमानत दे दी है।

सुर्खियों में गाजीपुर सीट

एमएलसी की गाजीपुर सीट भी इस बार खासी चर्चा में है। भाजपा ने इस सीट पर मौजूदा एमएलसी विशाल सिंह चंचल को मैदान में उतारा है। इनकी पृष्ठभूमि आपराधिक नहीं है, लेकिन पूर्वांचल की सियासत में इनकी खूब तूती बोलती है। गाजीपुर से लगायत बनारस तक में इनका बड़ा कारोबार और कई व्यावसायिक माल हैं। सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर दावा करते हैं कि चंचल सिंह किसी बाहुबली से कम नहीं हैं। वह सीएम योगी आदित्यनाथ के बेहद करीबी हैं। हालांकि पूर्वांचल में चंचल सिंह की गिनती प्रभावशाली राजपूत नेताओं में होती है। इनकी ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सपा प्रत्याशी भोलानाथ शुक्ल जोर-शोर से मैदान में उतरे और पर्चा दाखिल करते ही वह चंचल के आगे बिछ गए। 23 मार्च को भोलानाथ ने अपना पर्चा उठा लिया और उनके साथ घूमने लगे। दिलचस्प बात यह है कि सुभासपा के मुखिया ओमप्रकाश राजभर और अंसारी बंधुओं ने मिलकर इन्हें मैदान में उतारा था। एक ओर भोलानाथ शुक्ल को चुनाव जिताने के लिए रणनीति बनाई जा रही थी तो दूसरी ओर, भाजपा का वशीकरण मंत्र चल रहा था। अंततः सत्तारूढ़ दल का मंत्र जादुई साबित हुआ।

गाजीपुर में एक और रोचक घटना हुई। सपा प्रत्याशी भोलानाथ शुक्ल के मैदान से हटने के बाद भाजपा ने निर्दल प्रत्याशी मदन यादव का पर्चा उठवाने के लिए योजना बनाई तो वह लापता हो गए। खौफजदा मदन को ढूंढने के लिए थाना पुलिस ने 23 मार्च की रात गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी के घर पर दो बार छापेमारी की। सांसद के भतीजे मुहम्मदाबाद के विधायक शोएब उर्फ मन्नू अंसारी के मुताबिक, "गाजीपुर पुलिस बिना सर्च वारंट के दो बार हमारे घर में घुसी और कोना-कोना खंगाल डाला। हम कानून व्यवस्था में यकीन रखते हैं। पुलिसिया उत्पीड़न के बावजूद हम चुप रहे। योजनाबद्ध ढंग से अब हमारे परिवार को सताया जा रहा है।"

सपा का यह भी आरोप है कि गाजीपुर में भाजपा निर्विरोध चुनाव कराना चाहती थी। सपा प्रत्याशी भोलानाथ शुक्ल के पर्चा वापस लेने के बाद निर्दल मदन यादव को पकड़ने के लिए पुलिस ने पूरी रात घेराबंदी की। सुहवल स्थित अधियारा गांव में मदन के घर 23 मार्च से ही पुलिस डटी हुई है। खबर है कि इनके रिश्तेदारों के यहां भी पुलिस ने दबिश दी थी। उन सभी ठिकानों पर मदन यादव को पुलिस ने ढूंढा, जहां उनके मिलने की संभावना थी। दरअसल, भाजपा यहां निर्विरोध चुनाव करना चाहती थी। समाजवादी पार्टी अब निर्दल मदन यादव पर ही दांव लगाना चाहती है, जिसके चलते मुकाबला काफी रोचक हो गया है।

सपा प्रत्याशियों की घेरेबंदी के दरम्यान जौनपुर में नया बखेड़ा खड़ा हो गया। एमएलसी की जौनपुर सीट पर भाजपा के बृजेश सिंह ‘प्रियांशु’ के मुकाबले समाजवादी पार्टी ने डॉ. मनोज कुमार यादव को मैदान में उतारा है। मछलीशहर निवासी डॉ. मनोज ग्राम प्रधान संघ के जिलाध्यक्ष हैं। जौनपुर में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष लाल बहादुर यादव ने “न्यूज़क्लिक” से कहा, "23 मार्च की रात मछलीशहर टाउनएरिया के अफसरों ने डॉ. मनोज कुमार यादव के अस्पताल के आगे एक बड़ा सा बुल्डोजर खड़ा कर दिया। आनन-फानन में एक नोटिस भी थमा दी। शासन के इशारे पर सपा प्रत्याशी और कार्यकर्ताओं को धमकाया जाने लगा। बात नहीं बनी तो अब सपा कार्यकर्ताओं और नेताओं को प्रचार करने से रोका जा रहा है। यह स्थित तब है जब प्रत्याशी ने अपने ऊपर प्रशासन द्वारा लगाए गए सभी आरोपों का जवाब दे चुके हैं। साथ सभी अभिलेख भी प्रशासन को सौंप दे दिए हैं। फिलहाल प्रशासन का बुल्डोजर सपा प्रत्याशी के आवास पर खड़ा है।"

एटा में एमएलसी उदयवीर सिंह के साथ मारपीट करते भाजपाई

मारपीट व उत्पीड़न के आरोप

यूपी के एमएलसी चुनावों में सपा का आरोप है कि उनके प्रत्याशियों को जगह-जगह नामांकन भरने से रोका गया और मारपीट भी की गई। कुछ प्रत्याशियों पर पुलिसिया दबाव बनाकर जबरिया उनके पर्चे उठवा लिए गए। इस बाबत सपा पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल ने लखनऊ में निर्वाचन आयोग में एक शिकायत सौंपी है और कर्रवाई की मांग की है। एटा के स्थानीय प्राधिकारी और एमएलसी चुनाव के उम्मीदवार उदयवीर सिंह धाकरे का आरोप लगाया है कि उनके और पार्टी के दूसरे प्रत्याशी राकेश यादव को भाजपा कार्यकर्ताओं ने नामांकन भरने से रोका और उनके साथ मारपीट की। उदयवीर मौजूदा समय में सपा के एमएससी हैं। धाकरे कहते हैं, "जब वह एटा से दूसरे सपा प्रत्याशी राकेश यादव के साथ अपना दूसरा पर्चा भरने गए तो भाजपा के एक कार्यकर्ता ने उनका पर्चा छीन लिया और भागने लगा। सपा कार्यकर्ताओं ने उसे पकड़ भी लिया,  लेकिन पुलिस ने उसे बाइज्जत छोड़ दिया। मीडिया ने इस समूची घटना का वीडियो बनाया और सोशल मीडिया पर उसे दिखाया भी। अगली सुबह एडीएम ने सभी प्रत्याशियों को पर्चों की समीक्षा के लिए बुलाया। उदयवीर सिंह धाकरे और राकेश यादव साथ-साथ नामांकन सेंटर पहुंचे। इनका आरोप है कि भाजपा प्रत्याशी आशीष यादव और मारहरा विधानसभा सीट से भाजपा विधायक वीरेंद्र लोधी ने अपने समर्थकों के साथ उन्हें रोकने की कोशिश की।

एमएलसी उदयवीर सिंह कहते हैं कि उन्हें भाजपाइयों से शिकायत बाद में, पहले तो एटा के डीएम-एसएसपी से है। वह सवाल दर सवाल खड़ा करते हैं, " ये कैसे संभव है कि कलक्ट्रेट में बड़ी तादाद में पुलिस फोर्स मौजूद रहे और कोई मुझ पर हमला बोल दे। पुलिस हाथ बांधकर समूची घटना देखती रहे। मेरे ऊपर तो प्रशासन की शह पर हमला किया गया। मैं चुनाव आयोग से शिकायत कर चुका हूं, पर न्याय मिलने की उम्मीद नहीं है। हम अदालत में न्याय मांगेंगे। पुलिस-प्रशासनिक अफसरों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराएंगे। हमें एटा पुलिस से न्याय की कतई उम्मीद नहीं है।"

एटा की तर्ज पर फ़र्रुख़ाबाद में भी सपा के एमएलसी प्रत्याशी हरीश कुमार यादव के साथ मारपीट की गई। हरीश के मुताबिक नामांकन केंद्र के बाहर भाजपा कार्यकर्ताओं की भीड़ ने उन्हें घेर लिया और उनके साथ धक्का-मुक्की और मारपीट की। घटना से जुड़े वीडियो में नज़र आ रहा है कि उन्हें दौड़ाकर घेरा जा रहा है। सपा प्रत्याशी हरीश कहते हैं, "मेरे हाथ में जो परचा था उसे फाड़ दिया गया। हम अपने अधिवक्ता के साथ जा रहे थे।  हमें क्या मालूम था कि मेरे अपहरण की योजना बनाई जा चुकी है। भाजपा प्रत्याशी के क़रीब सवा सौ आदमी लगे थे, जिन्होंने एकदम से अटैक किया। हमले के समय के वीडियो में भी है, जिसमें पुलिस को मूकदर्शक देखा जा सकता है। सौभाग्य था कि मेरे अपहरण की नाकाम हो गई।" यूपी के एमएलसी चुनाव से जुड़ी तमाम घटनाएं इस बात को तस्दीक करती हैं कि भाजपा अपने प्रत्याशियों को जिताने के लिए वह सब कुछ करने के लिए तैयार है, जिसे लोकतंत्र की हत्या कहा जा सकता है।

सपा ने पुलिस व भाजपा पर उत्पीड़न करने और षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया है। अखिलेश सरकार में कद्दावर मंत्री रहे जेल में बंद गायत्री प्रसाद प्रजापति की पत्नी महाराजी देवी इस बार विधानसभा का चुनाव जीत गईं तो सपा ने एमएलसी चुनाव में बहू शिल्पा प्रजापति को एमएलसी चुनाव में टिकट दे दिया। बाद में भाजपा के एक नेता की शिकायत पर सुल्तानपुर के जगदीशपुर थाने में गायत्री प्रजापति के बड़े बेटे अनिल प्रजापति समेत तीन लोगों के खिलाफ आधारहीन रिपोर्ट दर्ज करा दी गई। अनिल सपा एमएलसी प्रत्याशी शिल्पा प्रजापति के पति हैं। आरोप यह जड़ा गया कि प्रजापति परिवार ग्राम प्रधानों और बीडीसी सदस्यों की खरीद फरोख्त से जुटा था। गायत्री प्रजापति को साल  2017 में हुए रेप के एक मामले में उम्रकैद की सजा हुई है। यूपी विधानसभा चुनाव में गायत्री प्रजापति की पत्नी महाराजी देवी अमेठी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ीं तो उन्होंने भाजपा के उम्मीदवार संजय सिंह को बड़े अंतर से पराजित कर दिया।

जिसकी सत्ता, उसकी जीत !

यूपी में स्थानीय प्राधिकारी क्षेत्र के चुनाव पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि आमतौर पर जिस पार्टी की सरकार सत्ता में होती है, वह अपने खास तजुर्बों से ज्यादातर सीटों पर अपने प्रत्याशियों को जिता लेती है। कुछ सीटें बाहुबलियों के कब्जे में आती रही हैं तो कुछ प्रत्याशी धनबल के दम पर चुनाव जीतते रहे हैं। हालांकि सत्ता की हनक, जोड़-तोड़ और बाहुबल का खेल इस बार ज्यादा असर दिखा रहा है। यूपी में स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचान क्षेत्रों की 36 सीटों के लिए चुनाव होने जा रहा है। भाजपा ने कई सीटों पर चुनाव से पहले ही अपना कब्जा जमा लिया है। इनमें मिर्जापुर, हरदोई, मथुरा, एटा, बुलंदशहर, लखीमपुर सीटें शामिल हैं।

मिर्जापुर, हरदोई, बदायूं और चित्रकूट सीटों पर सपा प्रत्याशियों के पर्चे वापस लेने के बाद अन्य प्रत्याशी भी मैदान में नहीं टिक पाए। अंततः इन सभी सीटों पर प्रत्याशियों को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया। कई स्थानीय निकाय सीटों पर केवल भाजपा प्रत्याशियों का नामांकन ही वैध माना गया। अलीगढ़ में सपा प्रत्याशी जसवंत सिंह यादव का नामांकन रद्द हो गया। इस वजह से इन सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी पहले ही जीत गए। मिर्जापुर स्थानीय निकाय सीट से सपा के एमएलसी प्रत्याशी रमेश यादव ने 23 मार्च को अपना पर्चा वापस ले लिया। इस वजह से भाजपा प्रत्याशी विनीत सिंह निर्विरोध चुनाव जीत गए। इसी तरह हरदोई में सपा के अधिकृत प्रत्याशी रजीउद्दीन ने नामांकन वापस ले लिया तो भाजपा के अशोक अग्रवाल के निर्विरोध जीतने का रास्ता साफ हो गया।

लखीमपुर खीरी जिले में एमएलसी पद के लिए सपा की ओर से अनुराग पटेल द्वारा दाखिल किए गए तीनों पर्चों को जिला प्रशासन ने निरस्त कर दिया। एटा-मथुरा-मैनपुरी की सीट पर सपा के प्रत्याशी उदयवीर सिंह धाकरे का नामांकन रद कर दिया गया। हरदोई सीट से सपा प्रत्याशी रजीउद्दीन ने 23 मार्च को नामांकन पत्र वापस ले लिया था, जिसके चलते भाजपा प्रत्याशी अशोक अग्रवाल का निर्विरोध चुन लिए गए। इसी तरह बदायूं सीट पर सपा के प्रत्याशी सिनोद शाक्य के पर्चा वापस लेने पर भाजपा के वागीश पाठक निर्विरोध एमएलसी बन गए। मिर्जापुर-सोनभद्र सीट से सपा प्रत्याशी के नाम वापसी के बाद भाजपा प्रत्याशी श्याम नरायण सिंह उर्फ विनीत सिंह को जीत का प्रमाण-पत्र दे दिया गया। इसी तरह बुलंदशहर सीट पर भी भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र भाटी निर्विरोध निर्वाचित हो गए।

धनबल-बाहुबल का चुनाव

 वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार कहते हैं, "यूपी में एमएलसी का चुनाव धनबल और बाहुबल का है। हमें लगता है कि भाजपा पहले अपना चेहरा बचाते हुए काम कर रही थी, जिसे अब उसने पूरी तरह उघाड़ दिया है। बड़ा सवाल यह है कि क्या यूपी चुनाव की तरह पीएम नरेंद्र मोदी अपने प्रत्याशी के प्रचार के लिए बनारस आएंगे?  लोग यह सवाल पूछ रहे हैं और चर्चा भी कर रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि हर चुनाव को प्रतिष्ठापरक मानते हुए मोदी प्रचार करते हैं तो इस बार उनका रुख क्या होगा? लोग यह भी देखना चाहते हैं कि विस चुनाव की तरह ही एमएलसी के चुनाव में कम से कम एक दिन वह जरूर कैंप करें। स्थानीय निकाय के वोटरों से संपर्क कर उनसे भाजपा प्रत्याशी को जिताने के लिए प्रचार करें क्योंकि इस चुनाव में तो पीएम मोदी खुद भी एक वोटर हैं। ऐसे में यह उनकी नैतिक जिम्मेदारी भी है। लोग यह भी जानना चाहते हैं कि सैयदराजा के विधायक सुशील सिंह एमएलसी चुनाव में किसके समर्थन दे रहे हैं और किसका प्रचार कर रहे हैं? "

प्रदीप यह भी कहते हैं, "भाजपा ने एमएलसी चुनाव में बाहुबलियों से अपने रिश्ते को उजागर किया है। राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ आवाज उठाने का अपना नैतिक अधिकार खो दिया है। एक तरफ अपराधियों के खिलाफ बुल्डोडर वाली सरकार होने का दावा करते हैं और दूसरी ओर घोषित अपराधियों को अपनी पार्टी का अधिकृत प्रत्याशी भी बनाते हैं। भाजपा के दावे पर आखिर जनता कैसे भरोसा करेगी? हमें लगता है कि इस चुनाव की स्थिति भी जिला पंचायत चुनाव से इतर रहने वाली नहीं है, जिसकी झलक लगभग सभी जिलों में नामांकन के समय दिखने को मिल गई। कई प्रत्याशियों पर हमले किए गए, पर्चे छीने गए और पुलिस तमाशाई बनी रही।" 

वरिष्ठ पत्रकार अमितेश पांडेय को लगता है कि एमएलसी चुनाव में भाजपा बहुबलियों पर ज्यादा डिपेंड है। वह कहते हैं, "शायद सत्तारूढ़ दल को बाहुबलियों की ज्यादा दरकार है। विपक्ष भले ही चुप है, मगर ये सवाल तो हम उठाते ही रहेंगे।  जवाब भी भाजपा को देना होगा। हम भी चाहते हैं कि पीएम मोदी बनारस आएं अपने अपने प्रत्याशी का प्रचार करें। वह तो शिक्षक और ग्रेजुएट चुनाव में भी बनारस आए थे। उस समय भी सत्ता की हनक दिखी थी। वह चुनाव बुद्धिजीवियों का था, जिन्होंने भाजपा को दोनों सीटों हरा दिया था। अब तो अचरज होता है कि भाजपा वाले भी अब सीट जीतने के लिए पर्चे छीनने और गुंडों-बदमाशों की तरह मारपीट भी करने लगे हैं। आखिर योगी का बुल्डोजर कहां और वह किस पर चलेगा? "

बीएचयू में छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे समाजवादी नेता शिवकुमार सिंह कहते हैं, "जिनका कोई इतिहास न हो और वो इतिहास बनाने चलता है तो सबसे पहले अतीत की यादें मिटाने का रास्ता ढूंढता है। यही इतिहास भाजपा है। हमें तो यही दिख रहा है कि झूठ पर आधारित राष्ट्र का निर्माण करने वाले दल के लिए लूटपाट और मारपीट भी एक इवेंट है। जो चीजें हो रही हैं वो नई बात नहीं। इनका पुराना इतिहास रहा है। मीडिया की जुबान बंद कर चुके हैं। पैसे और प्रलोभान देकर अब जनता की आवाज दबाना चाहते हैं। हिंसा के दम पर राष्ट्र को चलाना चाहते हैं।"

अचूक संघर्ष के संपादक अमित मौर्य कहते हैं, " एमएलसी चुनाव में धनबल, बाहुबल और सत्ताबल के मामलों में चुनाव आयोग को सीधे दखल देना चाहिए और कड़े कदम उठाने चाहिए, लेकिन वो चुप है। हमें नहीं लगता है कि भविष्य में कोई चुनाव अब निष्पक्ष हो पाएगा। आयोग के चरित्र को देखते हुए तो यही लगता है कि लोकतंत्र का बच पाना बेहद मुश्किल और कठिन है। भविष्य में न तो चुनाव आयोग बचेगा और न ही निष्पक्ष चुनाव हो पाएगा।"

(बनारस स्थित विजय विनीत वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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