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प्यू रिसर्च: भारत के धार्मिक समुदायों के बीच अलगाव की साफ़ दीवार मौजूद है!

अमेरिका स्थित प्यू रिसर्च सेंटर ने ‘भारत में धर्म: सहिष्णुता और अलगाव' नाम से एक सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी की है। इस सर्वेक्षण में लोगों ने धर्म, मान्यताओं और दूसरे धर्मों को मानने वालों के प्रति अपने मत और विचार व्यक्त किए हैं।
प्यू रिसर्च: भारत के धार्मिक समुदायों के बीच अलगाव की साफ़ दीवार मौजूद है!
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: सोशल मीडिया

कोरोना महामारी से एक साल पहले से लेकर कोरोना महामारी शुरू होने तक न्यू प्यू रिसर्च सेंटर ने भारत के पूरे इलाके में घूम कर 17 भाषाओं में 30,000 भारतीय वयस्कों के साथ आमने-सामने बैठकर उनकी धार्मिक मान्यताओं पर सर्वेक्षण किया। भारतीय समाज के वयस्कों के धार्मिक मान्यताओं से जुड़े इस सर्वेक्षण का नाम रिलिजियस इन इंडिया, टोलरेंस एंड सेग्रीगेशन है। इस सर्वेक्षण के निष्कर्ष के मुताबिक:

- तकरीबन 91 फ़ीसदी हिंदुओं को लगता है कि उन्हें पूरी धार्मिक स्वतंत्रता मिली हुई है। अपनी धार्मिक मान्यताओं को स्वतंत्र तरीके से बिना किसी रोक-टोक वे अपने जीवन के व्यवहार में ला सकते हैं। इस मामले में मुस्लिमों की तकरीबन 81 फ़ीसदी भी बिल्कुल ऐसा ही सोचते हैं।

- तकरीबन 85 फ़ीसदी हिंदुओं और 78 फ़ीसदी मुस्लिमों को ऐसा लगता है कि सच्चा भारतीय होने का यह मतलब है कि सभी धर्मों का सम्मान और आदर किया जाए।

- तकरीबन 77% हिंदू और इतने ही मुसलमान कर्म सिद्धांत को मानते हैं। यानी इस बात को मानते हैं कि जो जैसा करेगा उसे वैसा ही फल मिलेगा।

- तकरीबन 81 फ़ीसदी हिंदू और 32 फ़ीसदी क्रिश्चियन गंगा को पवित्र नदी के तौर पर मानते हैं।

- उत्तर भारत में 12 फ़ीसदी हिंदू, 10 फ़ीसदी सिक्ख और 37 फ़ीसदी मुसलमान खुद को सूफी मानते हैं। सूफी ऐसी परंपरा है जहां पर सब कुछ एक तरह का रहस्य माना जाता है। इस परंपरा की नजदीकी इस्लाम से अधिक मानी जाती है।

- तकरीबन सभी धर्मों के अधिकतर लोगों की मजबूत धार्मिक आस्था है कि बुजुर्गों का सम्मान किया जाना चाहिए।

- एक दूसरे के प्रति इतना अधिक सम्मान और एक संविधान के अंतर्गत रहने के बावजूद भी भारत के प्रमुख धर्मों के लोगों को लगता है कि वह एक दूसरे की तरह नहीं है। तकरीबन 66 फ़ीसदी हिंदुओं को लगता है कि वह मुस्लिमों से बिल्कुल अलग हैं। ठीक ऐसी ही भावना मुसलमानों की भी है। तकरीबन 64 फ़ीसदी मुसलमानों को लगता है कि उनके और हिंदुओं के बीच कुछ भी सामान नहीं है। लेकिन जैन और सिक्ख इसके अपवाद हैं। तकरीबन दो तिहाई जैन और सिख धर्म के मानने वाले लोगों को लगता है कि हिंदू धर्म से उनकी अधिक साम्यता है।

- एक दूसरे को लेकर अलगाव का यह भाव बहुत गहरा है। इसीलिए अपने धार्मिक समुदाय को छोड़कर दूसरे धार्मिक समुदाय में विवाह करने के मसले पर अधिकतर लोगों की राय नकारात्मक है। तकरीबन 67 फ़ीसदी हिंदू यह मानते हैं कि दूसरे धार्मिक समुदाय में हिंदू औरतों को शादी नहीं करनी चाहिए और तकरीबन 65 फ़ीसदी हिंदू यह मानते हैं कि दूसरे समुदाय में हिंदू मर्दों को शादी नहीं करना चाहिए। मुस्लिम समुदाय में यह संख्या और अधिक है। तकरीबन 80 फ़ीसदी मुस्लिम यह मानते हैं कि मुस्लिम औरतों को दूसरे धार्मिक समुदाय में शादी नहीं करनी चाहिए और तकरीबन 78 फ़ीसदी मुस्लिम यह मानते हैं कि मुस्लिम मर्दों को दूसरे धार्मिक समुदाय में शादी नहीं करनी चाहिए। यानी भारतीय समाज अंतर धार्मिक शादी के सख्त खिलाफ है।

- तकरीबन 45 फ़ीसदी हिंदू ऐसा मानते हैं कि वह किसी भी दूसरे धर्म के मानने वाले लोगों के पड़ोसी बन सकते हैं। लेकिन तकरीबन 36 फ़ीसदी हिंदू ऐसा मानते हैं कि वह मुस्लिम धर्म के मानने वाले लोगों के पड़ोसी नहीं बनना चाहते हैं। जैन धर्म के तकरीबन 54 फ़ीसदी सदस्यों का भी यही कहना है कि वह मुस्लिम धर्म मानने वाले लोगों के पड़ोसी नहीं बनना चाहते हैं। जबकि तकरीबन 92 फ़ीसदी जैन धर्म के लोग यह मानते हैं कि उन्हें हिंदू धर्म के लोगों के पड़ोसी बनने में कोई एतराज नहीं।

- भारत में सबसे बड़ी आबादी हिंदुओं की है। भारत की कुल आबादी की तकरीबन 80 फ़ीसदी से अधिक है। इस आबादी का 64 फ़ीसदी हिस्सा मानता है कि सच्चा भारतीय होने के लिए हिंदू होना जरूरी है। तकरीबन 59 फ़ीसदी हिंदू मानते हैं कि जो हिंदी बोलता है, वही सच्चा भारतीय है। और तकरीबन 51 फ़ीसदी हिंदू मानते हैं जो हिंदू है और हिंदी बोलता है वही सच्चा भारतीय है।

- अगर इसी आंकड़े को पूरे भारत में क्षेत्रीय आधार पर बांटकर देखा जाए तो स्थिति और साफ दिखेगी। उत्तर भारत में 69 फ़ीसदी, मध्य भारत में 83 फ़ीसदी, दक्षिण भारत में 42 फ़ीसदी, पूर्वी भारत में 65 और पश्चिम में 61 फ़ीसदी हिंदुओं को लगता है कि सच्चा भारतीय होने के लिए हिंदू होना जरूरी है। यानी दक्षिण भारत के अलावा भारत के सभी इलाके हिंदू राष्ट्रवाद में डूबे इलाके हैं।

- तकरीबन 95 फ़ीसदी मुस्लिम मानते हैं कि उन्हें भारतीय होने पर बहुत अधिक गर्व है। तकरीबन 85 फ़ीसदी मुस्लिम मानते हैं कि भारत के लोग भले परफेक्ट न हो लेकिन भारतीय संस्कृति श्रेष्ठ संस्कृति है।

- तकरीबन 20 फ़ीसदी मुसलमान यानी पांच में से एक मुसलमान यह मानता है कि वह व्यक्तिगत तौर पर धार्मिक भेदभाव का शिकार हुआ है। उत्तर भारत में इस तरह की मान्यता रखने वाले लोगों की संख्या भारत के दूसरे हिस्सों के मुकाबले ज्यादा है। तकरीबन 24 फ़ीसदी मुसलमान यह मानते हैं कि धार्मिक तौर पर वह बहुत अधिक भेदभाव के शिकार हुए हैं।

- यह चौंकाने वाला आंकड़ा है कि भारत में मुसलमानों का जितना प्रतिशत अपने समुदाय के खिलाफ व्यापक भेदभाव देखता है उतने ही प्रतिशत हिन्दू ऐसे हैं जो कहते हैं कि भारत में हिन्दुओं को व्यापक धार्मिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है (21%)।

- सात दशकों के बाद भारतीय मुस्लिमों के बीच प्रबल मत है कि उपमहाद्वीप का विभाजन हिन्दू- मुस्लिम संबंधों के लिए "एक बुरी घटना" थी। लगभग आधे मुस्लिम (48%) मानते हैं कि इससे हिन्दुओं के साथ संबंधों को चोट पहुंची, जबकि इसकी तुलना में बहुत कम ( 30%) लोगों का कहना है कि हिन्दू-मुस्लिम संबंधों के लिए यह अच्छा रहा।

- सिक्ख जिनका पंजाब का गृहक्षेत्र दो हिस्सों में विभाजन हुआ था, वे मुस्लिमों की तुलना में ज्यादा मानते हैं कि विभाजन हिन्दू-मुस्लिम संबंधों के लिए एक बुरी घटना थी: दो तिहाई सिक्ख ( 66% ) ऐसा ही मानते हैं। 60 बरस के आयु वर्ग और इससे बुजुर्ग सिक्ख जिनके माता-पिता ने विभाजन देखा, वे युवा सिक्खों की तुलना में ज्यादा मुखर होते हैं यह कहने में कि देश का विभाजन सांप्रदायिक संबंधों लिए बुरा था (74% बनाम 64% ) |

- जबकि सिक्खों और मुसलमानों के यह कहने की संभावना अधिक है कि विभाजन एक अच्छी बात की तुलना में एक बुरी चीज था, हिंदू विपरीत दिशा में झुकते हैं 43% हिन्दुओं का कहना है कि विभाजन हिंदू-मुस्लिम संबंधों के लिए फायदेमंद था, जबकि 37% लोग इसे बुरी चीज के रूप में देखते हैं।

- अभी भी भारतीय समाज में धर्म को खोने के कोई संकेत नहीं दिखाई दे रहे हैं। भारत की 97 फ़ीसदी आबादी भगवान जैसी अवधारणा में जबरदस्त भरोसा करती है। तकरीबन 60 फ़ीसदी आबादी रोजाना प्रार्थना करती है। तकरीबन 84 फ़ीसदी आबादी यह मानती है कि धर्म का उनके जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है।

- 96 फ़ीसदी निरक्षर, 97 फ़ीसदी मिडिल क्लास तक पढ़े, 96 फ़ीसदी ग्रेजुएट, 96 फ़ीसदी शहरी और और 97 फ़ीसदी ग्रामीण भगवान जैसी अवधारणा में मजबूत भरोसा रखते हैं।

- भारत में 72% हिंदुओं का कहना है कि गोमांस खाने वाला व्यक्ति हिंदू नहीं हो सकता है। यह उन हिंदुओं के प्रतिशत से भी अधिक है जो कहते हैं कि एक व्यक्ति हिंदू नहीं हो सकता है यदि वे भगवान (49%) में विश्वास को अस्वीकार करता है, कभी मंदिर नहीं जाता है (48%) या कभी प्रार्थना नहीं करता है (48%) |

- जो हिंदू गोमांस खाने के मजबूती से खिलाफ है, वे दूसरों की तुलना में यह कहने की अधिक संभावना रखते हैं कि वे अन्य धर्मों के अनुयायियों को अपने पड़ोसी के रूप में स्वीकार नही करेंगे और यह कहते हैं कि सच्चा भारतीय होने के लिए हिंदू होना महत्वपूर्ण है।

- भारत में अधिकांश मुसलमान कहते हैं कि वह व्यक्ति मुसलमान नहीं हो सकता जो कभी नमाज नहीं पढ़ता या मस्जिद नहीं जाता है। इसी तरह लगभग दस में से छह कहते हैं कि दिवाली या क्रिसमस का उत्सव मनाना मुस्लिम समुदाय के सदस्य होने के साथ असंगत है। साथ ही, बहुत अधिक मात्रा में अल्पसंख्यक पूर्वाग्रह मुक्तता का स्तर व्यक्त करता है कि कौन मुसलमान हो सकता है, जिसमें पूर्णतया एक तिहाई (34% ) मुसलमान कहते हैं कि कोई व्यक्ति मुसलमान हो सकता है, भले ही वे अल्लाह में विश्वास न करें। (सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत में 6% खुद को मुसलमान कहने वाले कहते हैं कि वे अल्लाह में विश्वास नहीं करते हैं)

- हिन्दू की तरह मुसलमानों में आहार प्रतिबंध हैं जो एक समूह की पहचान बनाए रखने में शक्तिशाली है। तीन-चौथाई (77%) भारतीय मुसलमानों का कहना है कि वह व्यक्ति मुसलमान नहीं हो सकता है जो सूअर का मांस खाता है, जो उस संख्या से भी अधिक है जो कहते हैं कि वह व्यक्ति मुसलमान नहीं हो सकता है जो अल्लाह ( 60%) में विश्वास नहीं करता है या कभी मस्जिद नहीं जाता है (61%)। 

- भारतीय मुसलमान धार्मिक प्रतिबद्धता के उच्च स्तर देते हैं, 91% लोग कहते हैं कि उनके जीवन में धर्म बहुत महत्वपूर्ण है, दो तिहाई ( 66%) कहते हैं कि वे दिन में कम से कम एक बार नमाज पढ़ते हैं, और दस में से सात कहते हैं कि वे सप्ताह में कम से कम एक बार मस्जिद जाते हैं जिसमें अधिकांश उपस्थिति मुस्लिम पुरुषों (93%) की है। कमोबेश ऐसी ही धार्मिक प्रतिबद्धता पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी है।

यह सारे निष्कर्ष प्यू रिसर्च की छपी रिपोर्ट के हैं। इन सब का बारीक अध्ययन करने के बाद प्यू रिसर्च का मोटा निष्कर्ष यह है कि भारतीय समाज के धार्मिक समुदाय एक दूसरे के साथ सहिष्णुता की भावना के साथ रह तो सकते हैं लेकिन एक दूसरे के साथ घुलना मिलना नहीं चाहते। यह किसी बर्तन में रखी हुई तरीदार सब्जी की तरह नहीं है जिसमें सभी तरह की सब्जियां एक दूसरे के साथ घुली मिली रहती हैं। बल्कि इन सबके बीच अलगाव की बहुत साफ दीवार खींची हुई हैं। जो इनके जीवन को काफी हद तक प्रभावित करती हैं।

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