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निजी हॉस्टलों और पीजी में भी क्या कुछ नहीं झेलती हैं छात्राएं, कौन बनाएगा गाइड लाइन?

प्रयागराज में भी 1 जून के दिन एक सनसनीखेज़ मामला सामने आया जब शहर के एक प्राइम एरिया में स्थित लड़कियों के निजी हॉस्टल के बाथरूम में स्पाई कैमरा पाया गया। 
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार गूगल

एक जून को प्रयागराज में एक सनसनीखेज़ मामला अचानक सामने आया जब शहर के एक प्राइम एरिया में स्थित लड़कियों के निजी हॉस्टल के बाथरूम में स्पाई कैमरा पाया गया। हॉस्टल में रहने वाली एक छात्रा के अनुसार जब शावर में पानी नहीं आया तो वह उसे हिलाकर देखने लगी कि क्या समस्या है। अचानक एक छोटा स्पाई कैमरा ज़मीन पर गिरा और जब उसने लड़कियों को बताया तो हॉस्टल में दहशत फैल गई। कुछ लड़कियां तो इसके परिणाम सोचकर रोने लगीं और उन्होंने तुरंत अपने घर वालों को सूचित किया। 2 जून को शिकायतकर्ता के परिवार की ओर से प्राथमिकी दर्ज़ की गई। पर आश्चर्यजनक रूप से कर्नलगंज पुलिस थाने की ओर से ऐसी कमज़ोर धाराएं लगाई गईं कि कुछ ही घंटों में हॉस्टल मालिक आशीष खरे को जमानत मिल गई। 

आरोप है कि एक डॉक्टर का बेटा आशीष अपने घर के एक हिस्से में लड़कियों का हॉस्टल ही नहीं चलाता है, उसने एक कमरे में कम्प्यूटर लैब भी बना रखी हैं, जहां बैठकर वह लड़कियों के वीडियो बनाता है और खुद भी देखता है। आशीष की मां गुज़र चुकी हैं और एक भाई भी मर चुका है। पर 43 साल की उम्र में अविवाहित आशीष लड़कियों के अश्लील वीडियो बनाकर उन्हें ब्लैकमेल करने का धन्धा आराम से चलाता है। वह कम्प्यूटर साइंस का डिप्लोमाधारी है। अब तक उसके खिलाफ महिला हेल्पलाइन नं 1090 में 25 शिकायतें की जा चुकी हैं, पर न ही कभी हॉस्टल की जांच हुई, न लड़कियों के बयान दर्ज़ हुए और न ही आशीष को कभी पूछताछ के लिए बुलाया गया।

बताया जा रहा है कि इस बार भी, जैसे ही आशीष बाहर आया, उसने लड़कियों को अश्लील मैसेज भेजना शुरू किया और आपत्ति करने पर धमकी और गालियां देना शुरू किया। 

मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि उसकी हरकतें पैराफीलिया की ओर इशारा करती हैं, पर इसमें करोड़ों कमाने वाला रैकेट भी जुड़ा हो सकता है। एक छात्रा की महिला हेल्पलाइन पर शिकायत करने के बाद आशीष की दोबारा गिरफ्तारी हुई और उसके टेक्निशियन फय्याज़ का पता लगाकर दोनों को रिमांड में भेजा गया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की भूतपूर्व अध्यक्ष ऋचा सिंह की इस मामले पर सक्रियता और अख़बारों की सुर्ख़ियों की वजह से ही आईटी एक्ट की धाराएं 67 और 67ए भी प्राथमिकी में जोड़ी गईं, जिनके तहत 5 या 7 साल की सज़ा और 10 लाख तक के जुर्माने का प्रावधान है। अब यह भी जांच होगी कि आशीष किसी पॉर्न रैकेट से तो नहीं जुड़ा है क्योंकि उसके पास से कम्प्यूटर, डीवीआर, ढेर सारी सीडीज़, सीडी रिकॉर्डर, लड़कियों की सैकड़ों अश्लील तस्वीरें और फोन नंबरों की लिस्ट बरामद हुई हैं। हालांकि 8 तारीख को फ़य्याज़ ने एक ऑडियो वायरल किया जिसमें आशीष बता रहा है कि फ़य्याज़ निर्दोष है। पुलिस इसे फ़र्जी मान रही है।

उठ रहे हैं ढेर सारे सवाल

इलाहाबाद विश्वविद्यालय की भूतपूर्व छात्र नेता डॉ. ऋचा सिंह, जो 2 तारीख से केस में सक्रिय हैं, से पता चला कि उन्होंने मामला सामने आते ही हल्की धाराओं (354ग, 354घ, 292 और 292ए) के लगाए जाने और जमानत पर आपत्ति की थी और प्रशासन से अनुरोध किया था कि लड़कियों की सुरक्षा और साक्ष्य नष्ट किये जाने के खतरे के मद्दनज़र आरोपी व उनकी मदद कर रहे गैंग पर सख़्त धाराएं लगाई जाएं। उन्होंने आईटी ऐक्ट, गैंगेस्टर एक्ट और एनएसए तक लगाने की मांग की। ऋचा सिंह ने राज्यपाल, मुख्यमंत्री, राष्ट्रीय महिला आयोग और महिला एवं बाल मंत्रालय को पत्र भी लिखे हैं। उनका कहना है कि यदि हल्की धाराएं नहीं लगाई जातीं तो आरोपी की हिम्मत नहीं पड़ती कि वह लड़कियों को दोबारा धमकाए। पूरे शहर में लड़कियां आज दहशत में हैं कि कहीं उनके छात्रावासों में तो ऐसा नहीं हो रहा था; कहीं उनके वीडियो तो नहीं बन चुके हैं। कई अभिभावकों ने तो अपनी बेटियों को घर बुला लिया क्योंकि उनकी मनोवैज्ञानिक स्थिति ठीक नहीं थी।

छोटे शहरों और कस्बों से भारी संख्या में छात्राएं प्रयागराज सहित तमाम शिक्षण केंद्रों की तरफ आती हैं। कक्षा 12 पास करने के बाद से ही स्नातक कक्षाओं में दाखिला लेने अथवा प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयारी करने लड़किया आती हैं और निजी छात्रावासों में रहती हैं, क्योंकि सरकारें ऐसे छात्रावासों की व्यवस्था नहीं करतीं, या विश्वविद्यालय स्तर पर, वह भी कम संख्या में करती है। लड़कियों पर अभिभावकों से दूर रहकर अपने खाने-पीने का प्रबंध करने, पढ़ाई करने और किताबें जुटाने का तनाव रहता है। कितनी लड़कियां तो घर वालों से लड़-झगड़कर पढ़ाई जारी रखती हैं, क्योंकि उनपर शादी का दबाव बनाया जाता है। यह पहली बार नहीं है जब निजी हॉस्टलों में ऐसी घटना हुई है। इलाहाबाद में पहले भी गोविंदपुर और मुंडेरा स्थित महिला छात्रावासों में स्पाई कैमेरे पाए जा चुके हैं। आखिर क्या कारण है कि इन छात्रावासों में कभी जांच नहीं होती, कभी उनके पंजीकरण के लिए कानून नहीं बनता न ही अपराधिक कार्यों के लिए सख़्त सज़ा का प्रावधान होता? सभी धाराएं 1-3 वर्ष कारावास और जुर्माना की होती हैं जो जमानतीय होते हैं। जमानत पर छूटने के बाद भी अपराधिक कृत्य जारी रहते हैं और लड़कियों का जीवन बर्बाद हो जाता है। यही नहीं अभिभावकों में दहशत के कारण लड़कियों को शिक्षा और रोज़गार के बराबर अवसरों से वंचित होना पड़ता है, जो संविधान के विरुद्ध है। 

इसी प्रकार की घटनाएं जयपुर, अजमेर, नोएडा, मुम्बई, थंजावुर और पुणे में भी रिपोर्ट की जा चुकी हैं। पर आज तक निजी छात्रावासों के विनियमन के लिए कोई केंद्रीय कानून नहीं बना है। यदि छात्राएं ब्लैकमेल के डर से प्राथमिकी नहीं दर्ज करा सकीं तो रैकेट अपना काम जारी रखता है। तमिलनाडु में 2014 में जयललिता की सरकार ने कोइम्बटूर के पोल्लाची केस के बाद 23 बिंदु वाले राज्यस्तरीय गाइडलाइन बनवाकर जिलाधिकारियों को विनियमन का जिम्मेदार बनाया था। इस केस में एक गैंग के सदस्य लड़कियों से सोशल मीडिया पर दोस्त बनाकर उन्हें सुनसान जगहों पर बुलाते, बलात्कार करते और वीडियो फिल्म बनाते थे।

लड़की के लिए सबसे अधिक परेशानी

अजमेर के एक केस में लड़की को धमकाकर अपराधी ने उससे शारीरिक संबंध तक कायम कर लिए थे। थंजावुर जिले के एक छात्रावास में वार्डन कक्षा 12 की छात्रा को बाध्य कर उसे पूरे छात्रावास की सफाई करवाता था। लड़की ने कीटनाशक खाकर आत्महत्या कर ली। कोइम्बटूर के भरथियार विश्वविद्यालय की छात्राओं ने भी आंदोलन किया जब छात्रावास में रोज़ बाहरी तत्व घुसकर चोरी करने लगे और वार्डन ने कहा कि रात को कोई खटखटाए तो दरवाज़ा न खोलें। आन्ध्र के इब्रहिमपट्टनम में एक 19-वर्षीय छात्रा का बलात्कार और हत्या दुर्गा देवी लेडीज़ हॉस्टल में हुई, पर 13 साल हो गए माता पिता न्याय के दरवाज़े खटखटा ही रहे हैं।

पर ऐसे मामलों में सबसे बड़ी परेशानी यह होती है कि समाज पितृसत्तात्मक मूल्यों को लेकर चलता है इसलिए अपराधी से अधिक लड़कियों डरी रहती हैं कि यदि एक भी तस्वीर या विडियो वायरल हो गया तो पूरे समाज में उनकी छवि दूषित हो जाएगी। माता पिता की बदनामी और बिरादरी में बात फैलने के कारण शादी में दिक्कत होने का भय भी सताता है, यहां तक कि विवाह होने के बाद भी कभी भी उसके टूट जाने का डर रहता है। पर कितनी बड़ी विडम्बना है कि इसी समाज में लड़कियों पर ढेर सारी पाबंदियां रही हैं- शाम को हॉस्टल या घर के बाहर न निकलो, शरीर को पूरी तरह से ढको, लड़कों से बात न करो, प्रेम न करो और यहां तक कि अपनी पसंद से शादी न करो। लड़कियों के मन में ज़रूर यह सवाल आता होगा कि अपराधियों को इतनी छूट कैसे मिली हुई है और लड़कियों को ही दोषी क्यों ठहराया जाता है?

और, पकड़े जाने पर भी कानून उन्हें कैसे आसानी से छोड़ देता है? किसी लड़की की तस्वीर वायरल होने पर क्यों उसकी ज़िन्दगी तबाह हो जाती है, यहां तक कि कई बार अभिभावक तक उसे दोष देने लगते हैं कि उसने सावधानी क्यों नहीं बरती। कई लड़कियां तो बदनामी से बचने के लिए आत्महत्या तक कर लेती हैं। और तमाशा तो देखिये! अगर आप इंटरनेट पर केवल ‘गर्ल्स हॉस्टल सेक्स स्कैंडल’ टाइप करें तो हज़ारों ऐसे पॉर्न साइट दिखाई पड़ेंगे जिनमें अश्लील वीडियो अपलोड किये जाते हैं। क्या एक तथाकथित सभ्य समाज में आईटी ऐक्ट बनने के बावजूद यह धड़ल्ले से चल सकता है? बिना शीर्ष पदों पर बैठे लोगों की सहभागिता के यह कतई संभव नहीं है। तब, आखिर कौन हैं इसके ज़िम्मेदार? हमने मुजफ्फरपुर बालिका आश्रम के मामले में और बिहार के अन्य बालिका आश्रयों व छात्रावासों के मामलों में सत्ताधारियों की संलिप्तता को प्रत्यक्ष तौर पर देखा है।

कैसे सुरक्षा हो छात्राओं की?

यह ज़रूर सच है कि सख़्त कानून बनने चाहिये और बिना पंजीकरण के हॉस्टल चलाना कानूनी जुर्म होना चाहिये, पर पहले पुलिस-प्रशासन व न्यायालय को ऐसे मामलों को हल करने के लिए अधिक संवेदनशील बनाना पड़ेगा। प्रयागराज प्रशासन को तो पता ही नहीं है कि शहर में 150 से अधिक निजी हॉस्टल चल रहे हैं, यहां तक कि गली-कूचों तक में मुर्गी के दरबों जैसे छात्रावास हैं जहां सही शौचालय, गार्ड और खाने की सुविधा तक नहीं है। कोई इमरजेंसी आ जाए तो सुनने वाला भी कोई नहीं होता। एक पुराने केस में प्रयागराज के एग्रीकल्चरल इंस्टिटियूट में सीनियर लड़कों ने जूनियर लड़कों को देर रात केवल अंडरवियर पहने हुए लड़कियों के हॉस्टल के सामने खड़ा करवा दिया था। फोन करने पर वार्डन ने फोन ही नहीं उठाया। जेएनयू के छात्रावासों में भी किसी भी समय डंडे और रॉड लिए गुंडे घुसकर छात्र-छात्राओं को पीटकर चले जाते हैं। 

यह स्वागतयोग्य है कि तमाम अर्जियों की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ऋचा सिंह की बहस को ध्यानपूर्वक सुना और स्वयं मामले का संज्ञान लिया है। पर अभी देखना बाकी है कि इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर क्या कार्यवाही होती है। जिस प्रकार भारत में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न निरोधक कानून बना, कुछ उसी तरह लड़कियों की किराये पर रहने की सरकारी अथवा गैर-सरकारी जगहों के संचालन संबंधी कानून बनना आवश्यक है।

घरेलू हिंसा कानून का मजमून तैयार करने वाले अधिवक्ता रवीन्द्र गढ़िया कहना है ‘‘प्राइवेट हॉस्टल और पीजीज़ विनियमन विधेयक 2017 में लोकसभा में पेश हुआ था पर अब वह लैप्स कर जाएगा। पर कानून-व्यवस्था और शहरी विकास तथा लीज़ पर भूमि देने का मामला राज्य का विषय है। इसलिए महिला संगठनों, छात्र-युवा संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को बैठकें आयोजित कर इन मुद्दों पर ऐसे छात्र-छात्राओं से फीडबैक लेना चाहिये जो छात्रावासों, कामकाजी महिला हॉस्टलों और पीजीज़ में रहते हैं। उनके फीडबैक के आधार पर गाइडलाइन्स बनाये जा सकते हैं और सरकार पर दबाव डालकर नए कानून भी बनाए जा सकते हैं, जो सख़्त हों और प्राथमिक तौर पर हॉस्टल या पीजी मालिक तथा प्रशासन की जिम्मेदारी तय करे।’’ 

सबसे बड़ी बात, जो समझने की है कि सामंती मानसिकता पहले भी लड़कियों को कैद रखती थी और आज जब पूंजीवादी मूल्यों का बोलबाला है तब भी महिलाओं को पैसा कमाने का माध्यम बनाया जा रहा है। जब कोई केस खुल जाता है, पुनः वही सामंतवादी, पितृसत्तात्मक सोच महिला को दोषी करारकर संतोष कर लेती है। आखिर में नवयुवतियों को ही संगठित होकर अपनी लड़ाई लड़नी होगी।

तमिलनाडु हॉस्टल एवं महिला व बाल गृह विनियमन कानून 2014 के महत्वपूर्ण प्रावधान इस प्रकार हैं-

* इस कानून के बनने के बाद से कोई भी हॉस्टल, लॉज या महिला व बाल गृह लाइसेंस के बिना नहीं चलाया जाएगा

* लाइसेंस के लिए आवेदन जिलाधिकारी को दिया जाएगा जिसके लिए 3000 रुपये से अधिक शुल्क नहीं लगेगा

* उपयुक्त जांच के बाद ही अधिकतम 3 साल के लिए लाइसेंस दिया जाएगा। लाइसेंस न मिलने पर लिखित कारण बताया जाएगा

* पहले से चल रहे हॉस्टलों को कानून के लागू होने के 2 माह के भीतर लाइसेंस हासिल करनी होगी

* लाइसेंस की एक्सपायरी से 3 माह पहले ही उसके नवीनीकरण के लिए आवेदन देना होगा

* लाइसेंस में कुछ जरूरी बातों को दर्ज किया जाएगा जिसमें हॉस्टल का और उसके मालिक का नाम तथा हॉस्टल या गृह का मकसद होगा जिसे बिना जिलाधिकारी की अनुमति के बदला नहीं जा सकेगा। कितने सदस्य रहते हैं, और वे बच्चे हैं कि छात्र हैं, महिलाएं हैं आदि, कमरों की संख्या, स्वास्थ्य और साफ-सफाई, सुरक्षा, रिहायशी स्थिति आदि की जानकारी दी जाएगी और उसकी जांच द्वारा पुष्टि होगी

* यदि जिलाधिकारी को पता लगा कि दिये गए तथ्यों में कोई गलती या फ्रॉड है, तो लाइसेंस खारिज किया जा सकता है जिसका लिखित कारण बताया जाएगा

* कलक्टर किसी भी सदस्य को दूसरे हॉस्टल या गृह में भेज सकते हैं या माता-पिता को सौंप सकते हैं, यदि कोई वजह हो

* मैनेजर की नियुक्ति आवश्यक है और ऐसा न होने पर मकान मालिक को मैनेजर माना जाएगा

* हॉस्टल में कोई भी ज्वलनशील पदार्थ या अवांछित सामग्री नहीं रखी जाएगी। वेस्ट डिस्पोज़ल की सही व्यवस्था होगी, शुद्ध पेय जल, बिजली का प्रबंध, फायर एक्स्टिंविशर, स्वास्थ्य प्रबंध, ताज़ा भोजन, साफ-सफाई, पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था, आदि होगी।

* कमरों में नियत संख्या से अधिक सदस्य नहीं रखे जाएंगे

* सुरक्षा व्यवस्था हेतु आने-जाने के गेटों पर सीसीटीवी कैमरे और डीवीआर होंगे तथा गार्ड होंगे जो सेवानिवृत्त पुलिसकर्मी या सैनिक होंगे और उन्हें जांच के बाद ही रखा जाएगा

* विजिटर कार्ड, आईडी कार्ड जारी होंगे और बाहरी तत्वों को अंदर आना मना होगा

* शिकायत दर्ज करने की व्यवस्था होगी और किसी भी अवांछित घटना की सूचना तत्काल कलक्टर को दी जाएगी।

* पंजीकरण न करने पर, लाइसेंस न लेने पर या प्रावधानों के उलंघन के लिए 2-3 साल का कारावास और 50,000रु जुर्माने का प्रावधान भी है

(लेखिका महिला अधिकारों के लिए काम करती हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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