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बैंक हड़ताल: कर्मचारियों ने कहा "शौक़ नहीं मजबूरी है, ये हड़ताल ज़रूरी है"

“हम दो दिन का वेतन कटवाकर यहां हड़ताल में शामिल हुए हैं। ये संघर्ष बैंक कर्मचारी से अधिक देश की आम गरीब जनता के लिए है। क्योंकि ये निजीकरण उन्हें बैकिंग सिस्टम से बाहर करने का प्रयास है।”
बैंक हड़ताल: कर्मचारियों ने कहा "शौक़ नहीं है लेकिन ये हड़ताल ज़रूरी है"

नयी दिल्ली: सार्वजनिक क्षेत्र के दो और बैंकों के निजीकरण के प्रस्ताव के विरोध में देशभर में सरकारी बैंकों के लाखों कर्मचारी दो दिन की हड़ताल पर रहे। यूनियन नेताओं ने दो दिन की इस हड़ताल में करीब 10 लाख बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों के शामिल होने का दावा किया है।

इस हड़ताल के दूसरे दिन देश की राजधानी और देश की संसद से कुछ सौ मीटर की दूरी जंतर-मंतर पर हजारों की संख्या में हड़ताली कर्मचारियों ने पहुंचकर अपना विरोध जताया।

हड़ताली कर्मचारी मोदी सरकार के खिलाफ़, वित्त मंत्री और निजीकरण के विरोध में नारे लगा रहे थे। वे बार बार कह रहे थे कि हमें हड़ताल पर जानें का शौक़ नहीं है। हम दो दिन का वेतन कटवाकर यहां हड़ताल में शामिल हुए हैं। ये संघर्ष बैंक कर्मचारी से अधिक देश की आम गरीब जनता के लिए है। क्योंकि ये निजीकरण उन्हें बैकिंग सिस्टम से बाहर करने का प्रयास है। इसलिए ये शौक़ नहीं मजबूरी है, ये हड़ताल ज़रूरी है!

कई कर्मचारियों ने कहा यह सांकेतिक हड़ताल थी लेकिन अगर सरकार नहीं मानती है तो हम अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने से भी पीछे नहीं हटेंगे।

नौ यूनियनों के संगठन यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (यूएफबीयू) ने 15 और 16 मार्च को हड़ताल का आह्वान किया था। ये नौ बैंक यूनियनें हैं- एआईबीईए, एआईबीओसी, एनसीबीई, एआईबीओए, बीईएफआई, आईएनबीओसी, एनओबीडब्ल्यू और एनओबीओ।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले महीने पेश आम बजट में सरकार की विनिवेश योजना के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी।

यूको बैंक की युवा कर्मचारी पूजा जो अपने कई अन्य साथी कर्मचारियों के साथ यहां पहुंची थीं। वे और उनके साथ आए बाकी सभी ने लगभग एक बात कही कि जब भी सरकार को अपनी कोई योजाना लागू करनी होती है तब सरकारी बैंकों की याद आती है। लेकिन अब जब यह बैंक रहेंगे ही नहीं तो गरीबों तक यह लाभ कौन देगा? 

पूजा  ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा “हम दिन रात एक कर आम जनता तक मदद पहुंचने का काम करते हैं। कोरोना महामारी में जब पूरा देश बंद था उसमें डॉक्टर और पुलिस के साथ केवल बैंक खुले थे। क्योंकि हम जनता के लिए काम करने को प्रतिबद्ध है।”

निजीकरण को जनविरोधी बताते हुए उन्होंने कहा "वो लूट रहे हैं सपनों को, मैं चैन से कैसे सो जाऊं, वो बेच रहे अरमानों को अब कैसे चुप रह जाऊं।"

पंजाब नेशनल बैंक के कर्मचारी कुंज बिहारी ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा की हम यह हड़ताल देश की आमजनता के लिए लिए कर रहे हैं। हम किसान नौजवान और छात्रों के लिए कर रहे है क्योंकि देश के सुदूर इलाकों में सरकारी बैंकों की ही शाखाएँ है निजी बैंकों की नही हैं। ऐसे में सरकार  इन्हें बंद कर देगी तो बैंक उनकी पहुंच से दूर हो जाएगा।

अशोक कुमार जो कैनरा बैंक के कर्मचारी हैं और वो तीन साल पहले ही बैंक में प्रतियोगी परीक्षाओं को पास कर आएं हैं। उन्हें भी सरकार द्वारा बैंको के निजीकरण के बाद से डर लग रहा है। वो कहते हैं कि सरकार के इस कदम से सबसे अधिक अगर कोई प्रभावित होगा तो वो युवा ही है। अब सोचिए मेरी तरह कितने ही लोगों ने सालों साल मेहनत करके सरकारी नौकरी ली है और सरकार अब एक झटके में हमें निजी हाथों में सौंप देगी। तो फिर जिस नौकरी की सुरक्षा के लिए हम यहां आए थे वो कहां रह जायेगी।

ऑल इंडिया बैंक एम्पलाइज एसोसिएश्न (एआईबीईए) ने बयान में कहा कि अतिरिक्त मुख्य श्रम आयुक्त के साथ 4, 9 और 10 मार्च को हुई सुलह-सफाई बैठक में हमने कहा था कि यदि सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार करे, तो हम हड़ताल के फैसले पर पुनर्विचार करेंगे। लेकिन सरकार ने हमारी पेशकश स्वीकार नहीं की।

बयान में कहा गया है कि सोमवार को शुरू हुई हड़ताल सफल रही। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने अपने ग्राहकों को सूचित कर दिया था कि वे लेनदेन के लिए डिजिटल माध्यम मसलन इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग का इस्तेमाल करें।

ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन (एआईबीओसी) के महासचिव सौम्य दत्ता ने कहा कि सरकार की नीतियों का अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। इसका परिणाम राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों के नतीजों में भी दिखेगा।

उन्होंने कहा कि कुछ शीर्ष स्तर के कर्मचारियों को छोड़कर बैंकों के सभी कर्मचारी इस दो दिन की हड़ताल में शामिल हुए हैं।

उन्होंने कहा कि हड़ताली कर्मचारियों ने देशभर में जहां अनुमति मिली वहां रैलियां निकाली। इसके अलावा वे धरने पर बैठे। दत्ता ने कहा कि यदि सरकार ने हमारी बातों को नहीं सुना, तो हम और बड़ा कदम भी उठा सकते हैं। यह कदम किसान आंदोलन की तरह अनिश्चितकालीन हड़ताल का हो सकता है।

दत्ता ने कहा कि हम अपनी शाखाओं के जरिये करोड़ों लोगों से जुड़े हैं। हम लोगों को सरकार की गलत नीतियों से अवगत करा रहे हैं कि कैसे वे इनसे प्रभावित होंगे।

उन्होंने कहा कि वित्तीय सेवा विभाग के जरिये बैंक यूनियनों ने वित्त मंत्री से कहा है कि वह संसद में सरकारी बैंकों के निजीकरण के बारे में अपने बयान को वापस लें।

एक बैंक अधिकारी ने कहा कि प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्केल के 100 प्रतिशत कर्मचारी हड़ताल में शामिल हुए।

अधिकारी ने कहा, ‘‘हम उन्हें सहायक प्रबंधक, प्रबंधक या वरिष्ठ प्रबंधक कहते हैं। इस स्तर के 100 प्रतिशत कर्मचारी हड़ताल में शामिल हुए। 80 से 90 प्रतिशत बैंक शाखाओं के प्रमुख यही अधिकारी हैं।’’

अधिकारी ने कहा कि मुख्य प्रबंधक या सहायक महाप्रबंधक स्तर के अधिकारियों की अगुवाई वाली बड़ी शाखाओं की संख्या 20 प्रतिशत है। यदि ये वरिष्ठ अधिकारी इस हड़ताल में शामिल नहीं भी हैं, तो भी वे अकेले शाखा का संचालन नहीं कर सकते हैं।

आपको बता दे कि सरकार पहले ही आईडीबीआई बैंक का निजीकरण कर चुकी है। 2019 में आईडीबीआई की बहुलांश हिस्सेदारी एलआईसी को बेची गई थी। पिछले चार साल के दौरान सरकार ने 14 सार्वजनिक बैंकों का किसी अन्य सरकारी बैंक के साथ विलय किया है।

बैंक कर्मचारियों के इस आंदोलन के साथ एकजुटता ज़ाहिर करते हुए 15 मार्च को देशभर में केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच व संयुक्त किसान मोर्चा ने भी प्रदर्शन किए। 15 मार्च को मज़दूरों और किसानों ने निजीकरण विरोध दिवस के रूप में मनाया। उन्होंने मज़दूर विरोधी लेबर कोड, कृषि के निगमीकरण, बिजली विधेयक 2020, सार्वजनिक क्षेत्र, बैंक, बीमा, बीएसएनएल, बिजली, ट्रांसपोर्ट, रेलवे के निजीकरण आदि के खिलाफ देशभर में  प्रदर्शन किया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने रेलवे स्टेशन पर धरना दिया व केंद्र सरकार के खिलाफ जोरदार नारेबाजी भी की। मज़दूर संगठन सीटू ने केंद्र सरकार को चेताया है कि मजदूर विरोधी लेबर कोड, काले कृषि कानूनों, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण व बिजली विधेयक 2020 के खिलाफ आंदोलन तेज होगा। 

ऑल इण्डिया बैंक ऑफ़िसर यूनियन के सचिव संजय कुमार ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि आज देश की जनता समझ चुकी है कि ये सरकार सबकुछ बेचने पर तुली है। अब इसकी नज़र बैंको में आम जनता के जमा 1 लाख 45 करोड़ रुपये पर टिकी हुई है। ये इसे अपने दो उद्योगपतियों को सौंपना चाहती है। लेकिन यह नहीं जानती कि इससे पहले भी कितनी सरकार आई और गईं, बैंक यूनियनों ने उनके भी घुटने टिकाए थे अब इन्हें भी हमारी मांग माननी होगी वरना हमारा आंदोलन और तेज़ होगा। 

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