पंजाब विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है और ऐसे में कई जगह हुए बेअदबी कांड सियासतदानों के लिए एक बड़ा मुद्दा बन सकते हैं। फिलहाल हालिया घटनाओं को लेकर आम सिख भावनाएं आहत हैं, जिसे तमाम राजनीतिक दल अपने पाले में कर फायदा लेने की फिराक में लगे हुए हैं। विपक्ष तो विपक्ष, सत्ताधारी कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू भी इस मामले में अपनी ही सरकार के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को तीखे तेवर दिखा रहे हैं।
पंजाब के स्वर्ण मंदिर और कपूरथला ज़िले में सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब और प्रतीकों की बेअदबी के मामले में दो दिन में दो लिंचिंग के मामले सामने आ चुकी हैं। सिखों के सर्वोच्च धार्मिक स्थल श्री हरमंदिर साहिब में बेअदबी की घटना पर पूरे विश्व में विरोध जाहिर किया जा रहा है, और यह है स्वाभाविक भी है। लेकिन दुखद ये है कि ये विरोध, निंदा, रोष और गुस्सा सिर्फ बेअदबी के लिए है और लिंचिंग के लिए कुछ भी नहीं। विरोध करने वाले तमाम सियासी, धार्मिक और सामाजिक संगठन इस पर खामोशी अख्तियार किए हुए हैं कि इस पावन स्थल पर 'लिंचिंग' भी हुई है। शायद इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी शख्स को परिसर के अंदर भीड़ ने इस तरह से पीट कर मार डाला हो। सरकार से लेकर विपक्ष तक इस पर चुप्पी साधे हुए है।
बता दें कि बेअदबी का मामला अक्तूबर 2015 से ही पंजाब के लिए एक बड़ा मुद्दा है। उस साल गुरु ग्रंथ साहिब के पन्नों को फ़रीदकोट के बरगरी गांव के गुरुद्वारे के बाहर पाया गया था। इसके बाद बेहबल कलां में पुलिस फ़ायरिंग में दो लोगों की मौत हुई थी। बरगरी बेअदबी मामले में अब तक कई एसआईटी टीमें और दो आयोग बन चुके हैं लेकिन साज़िश का अभी तक पता नहीं चल पाया है।
क्या है पूरा मामला?
अंग्रेज़ी अख़बार 'द इंडियन एक्सप्रेस' के मुताबिक राजनेताओं, आरएसएस और किसान संगठनों ने पार्टी लाइन से हट कर बेअदबी की निंदा तो की है, लेकिन उनमें से कुछ ने ही हत्याओं पर कुछ कहा है। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने बेअदबी घटना की जांच के उच्चस्तरीय आदेश दिए हैं तो वहीं शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने घटनाक्रम की जांच के लिए केंद्र सरकार से कहा है।
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अश्वनी शर्मा से जब लिंचिंग के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें पूरी स्थिति के बारे में मालूम नहीं है। इसलिए वे पहले तथ्य पता करेंगे और फिर बयान जारी करेंगे। वहीं बीजेपी नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने यह दावा किया कि बेअदबी के प्रयास के पीछे एक बड़ी साजिश है। सिरसा ने कांग्रेस के ऊपर बेअदबी के प्रयासों पर कुछ ना करने का आरोप लगाते हुए पंजाब सरकार से मांग की है कि वो इस कथित साजिश का जल्द से जल्द पर्दाफाश करे।
शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को इसमें केंद्रीय एजेंसियों की साजिश लगती है। जबकि कई सिख संस्थाओं और उनके रहनुमाओं को लगता है कि ये जानबूझ कर तनाव का माहौल बनाने की कोशिश है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की ओर से भी ऐसे बयान जारी होने का सिलसिला बरकरार है।
अमृतसर या कपूरथला में जो भी बेअदबी की घटना हुई वो यकीनन निंदनीय और असहनीय है लेकिन इस सवाल का जवाब कौन देगा कि एक आरोपी को पीट-पीटकर मार देना कहां तक जायज़ है?
मामले का राजनीतिकरण
वैसे विभिन्न पार्टियों के नेताओं के बयान से साफ जाहिर है कि वो इस मामले को अपने-अपने तरीके से जमीनी स्तर पर ले जाएंगे और अपने गुस्से का इजहार करेंगे। बीते लंबे समय से राजनीति से लगभग दूरी बना चुके प्रकाश सिंह बादल ने इस मामले पर सबसे पहले बयान जारी कर कहा कि यह 'कौम' पर हमला है। हरसिमरत कौर बेअदबी की घटना पर बोलीं, लेकिन लिंचिंग पर खामोश रहीं। कांग्रेस का रुख भी कुछ अलग नहीं रहा। उप मुख्यमंत्री और गृह विभाग के मुखिया सुखजिंदर सिंह रंधावा ने भी इसमें गहरी साजिश देखी। आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल भी करीब-करीब इसी लाइन पर दिखे और लिंचिंग मामले पर चुप्पी साध गए।
उधर, पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह एक अलग ही दुविधा में दिखे। उन्होंने इस बेअदबी की तीखी निंदा तो की लेकिन इसे केंद्रीय एजेंसियों की साजिश कहने से कतराते दिखें। शायद इसलिए क्योंकि आने वाले दिनों में उनका बीजेपी से गठजोड़ हो सकता है।
हालांकि पंजाब के उप मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कहा कि शनिवार, 18 दिसंबर को दरबार साहिब में कथित साज़िशकर्ता को मारा नहीं जाना चाहिए था क्योंकि वो इस साज़िश के बारे में प्रशासन की मदद कर सकता था। रंधावा जो कि राज्य के गृह मंत्री भी हैं उन्होंने रविवार, 19 दिसंबर को स्वर्ण मंदिर का दौरा भी किया।
पुलिस प्रशासन का क्या कहना है?
बेअदबी मामले में लिंचिंग की जब दूसरी ख़बर डीजीपी सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय को मिली तो उन्होंने ट्वीट किया, "अमृतसर और कपूरथला में हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं का मैंने गंभीरतापूर्वक संज्ञान लिया है। राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने की कोई भी कोशिश की गई तो उससे मज़बूती से निपटा जाएगा।"
इंडियन एक्सप्रेस को एक राजनीतिक टिप्पणीकार ने अपना नाम न सार्वजनिक करने की शर्त पर कहा कि लिंचिंग दिखाती है कि 'राज्य में धार्मिकता चरम पर है और लगातार बेदअबी की घटनाओं से सिख समुदाय में असुरक्षा की भावना है।'
एक अन्य प्रसिद्ध शिक्षाविद् ने अख़बार से कहा कि कुछ लोगों द्वारा भीड़ के ज़रिए न्याय करने का जश्न अराजकता का कारण बन सकता है। उन्होंने कहा, "पंजाब में ऐसा कभी नहीं हुआ है, हम नहीं चाहते हैं कि इस तरह के लोग आपे से बाहर हो जाएं।"
'लिंचिंग' कितनी जायज़?
गौरतलब है कि कई मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इससे पहले भी पंजाब में कई धर्म स्थलों पर मानसिक रोगी बेअदबी करते पाए गए हैं। इसी महीने एक तख्त साहिब में भी बेअदबी हुई थी, जिसमें एक व्यक्ति ने परिसर में बीड़ी पी थी और तब उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया था। तब डॉक्टरों ने उस आदमी को बाकायदा मानसिक रोगी कहा था।
बहरहाल, बेअदबी की घटनाओं को लेकर एसजीपीसी यानी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की भूमिका अहम है। प्रबंधन को चाहिए था कि वो दोषी व्यक्ति को पुलिस के हवाले कर गहन पूछताछ करवाती, जिससे बाद में कुछ निष्कर्ष सामने आते। बेअदबी और धार्मिक भावनाओं का अपमान निश्चित तौर पर असहनीय है लेकिन किसी भी हाल में कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए। किसी भी धार्मिक स्थल पर इस तरह का कत्लेआम बर्दाश्त नहीं होना चाहिए न ही इसे बढ़ावा मिलना चाहिए, क्योंकि एक सभ्य समाज के तौर पर हम सब इंसान पहले हैं और किसी धर्म के अनुयायी बाद में। कहा भी जाता है कि जैसे को तैसे की भावना और आंख के बदले आंख पूरे संसार को अंधा बना सकती है।