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राजस्थान: भाजपा या कांग्रेस.. किसकी होंगी VVIP सीटें?

भाजपा और कांग्रेस में सीधी टक्कर के बीच इस मुक़ाबले को निर्दलीय प्रत्याशी दिलचस्प बना रहे हैं। वहीं भाजपा ने केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतारकर माहौल प्रतिष्ठा वाला बना दिया है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। फ़ोटो साभार : HT

200 विधानसभा सीटों वाली राजस्थान में 199 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा आपने-सामने हैं। भाजपा की ओर से जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाया और प्रदेश से कांग्रेस को साफ करने की बात की थी वहीं कांग्रेस भी इस बार रिवाज़ बदलने की फिराक में है।

रिवाज़ इसलिए, क्योंकि पिछले कई चुनावों से राजस्थान की सत्ता भी हर पांच साल में भाजपा-कांग्रेस की होती रही है। फिलहाल कांग्रेस की सरकार है, ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दावा कर रहे हैं कि इस बार रिवाज़ बदलकर दिखाएंगे।

वैसे तो राजस्थान इतना बड़ा राज्य है कि यहां एक-एक सीट बहुत मायने रखती है, लेकिन कुछ सीटें ऐसी भी हैं जिसपर हर किसी की नज़रे टिकी रहती हैं। जिसमें सबसे पहले बात करेंगे सरदारपुरा विधानसभा की....

सरदारपुरा विधानसभा सीट

ये सीट इसलिए बहुत खास है क्योंकि यहां से ख़ुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चुनावी मैदान में हैं। सिर्फ इस बार ही नहीं बल्कि अशोक गहलोत यहां से लगातार पांच बार चुनाव भी जीत चुके हैं। अब अशोक गहलोत के जीत का सिलसिला रोकने की ज़िम्मेदारी भाजपा ने महेंद्र सिंह राठौड़ को दी है। महेंद्र सिंह राठौड़ जोधपुर विकास प्राधिकरण यानी जेडी के पूर्व अध्यक्ष हैं। भाजपा के दिग्गज नेता माने जाने वाले राठौड़ ने कांग्रेस सरकार आने के बाद जेडीए से इस्तीफा दे दिया था। भाजपा के महेंद्र सिंह राठौड़ को उतारने के पीछे राजपूत वोट को साधना है।

बात इस सीट के इतिहास और अशोक गहलोत की करें तो, इसकी शुरुआत अशोक गहलोत के 1998 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने से शुरु करनी पड़ेगी। क्योंकि तब वो विधायक नहीं थे। गहलोत के लिए मानसिंह देवड़ा ने सरदारपुरा सीट खाली की थी, फिर गहलोत ने उपचुनाव में जीत हासिल की। इसके बाद से वे सरदारपुर विधानसभा सीट से ही चुनाव लड़ रहे हैं। बड़ी बात यह है कि 2013 के चुनाव से पहले कांग्रेस सत्ता में थी, कांग्रेस जब ऐतिहासिक हार के साथ केवल 21 सीटों पर सिमट गई, तब भी अशोक गहलोत सरदारपुरा से चुनाव जीत गए थे। गहलोत 1998, 2008 और 2018 में तीन बार मुख्यमंत्री बने। उनका सपना होगा कि वो इस बार भी खुद जीतें और पार्टी को बहुमत दिलाएं ताकि उनके चौथी बार मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ हो सके।    

झालरपाटन विधानसभा सीट

वैसे तो हर बार चुनाव में ये सीट बहुत महत्वपूर्ण रहती है, क्योंकि 2003 से ही ये पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का गढ़ रही है। मग़र ये इस बार ज़्यादा खास इसलिए है, क्योंकि भाजपा ने अपने प्रचार और मुख्यमंत्री पद के लिए वसुंधरा को ज़्यादा तरजीह नहीं दी है, ऐसे में अगर वो यहां से जीत जाती हैं, तो सीधे तौर मुख्यमंत्री पद के लिए दावा ठोकेंगी। तो दूसरी ओर वसुंधरा राजे के सामने कांग्रेस ने एक नया उम्मीदवार मैदान में उतारा है, जिनका नाम रामलाल चौहान है। बात पिछले चुनाव की करें तो वसुंधरा राजे ने कांग्रेस के मान्वेंद्र सिंह को 34980 वोटों के बहुत बड़े मार्जिन से हराया था।

इस सीट पर वसुंधरा के दबदबे को आप ऐसे समझिए कि ये सीट झालावाड़ लोकसभा के अंतर्गत आती है, सिर्फ इतना ही नहीं वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत कुमार इस सीट से जीतते रहे हैं।  

टोंक विधानसभा सीट

राजस्थान के टोंक विधानसभा से पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट चुनाव लड़ रहे हैं। सचिन पायलट से कांग्रेस को राष्ट्रीय नेता के रूप में उनके कद और प्रभावशाली समुदायों में उनकी पैठ के भरोसे जीत की उम्मीद है। जिसके लिए सचिन को हिंदुत्व की आवाज़ को मुखरता से उठाने वाले भाजपा के अजीत सिंह से सामना करना पड़ेगा। भाजपा के अजीत सिंह को कम इसलिए नहीं आंका जा सकता है, क्योंकि उन्होंने इस बार ‘स्थानीय बनाम बाहरी’ का नारा दिया है, साथ ही वे संघ की पृष्ठभूमि से भी आते हैं। आपको बता दें कि पिछले यानी 2018 विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट ने इस सीट से भाजपा के बड़े नेता यूनुस खान को 54 हज़ार वोटों से हराया था।

इस सीट पर मुस्लिम-गुर्जर वोटों की संख्या बहुत है, और कहा जाता है कि प्रदेश के भीतर पायलट की पकड़ मुस्लिमों और गुर्जरों में बहुत है। दूसरी ओर भाजपा ने यहां जीत की ज़िम्मेदारी गुर्जर नेता रमेश बिधूड़ी को सौंपी थी, जिन्होंने यहां कहा था कि टोंक के चुनाव में लाहौर की नज़र है।

इस सीट के इतिहास को देखेंगे तो भाजपा का पलड़ा भारी रहा है, भाजपा यहां से 6 बार, जिसमें एक बार जनता पार्टी के रूप में जीती है। जबकि कांग्रेस ने 2 बार बाज़ी मारी है।

कोटा उत्तर विधानसभा

कोटा जिले की 6 विधानसभा में से सबसे हॉट सीट और कोटा की सबसे महत्वपूर्ण विधानसभा सीट में कोटा उत्तर विधानसभा अपना अलग ही महत्व रखती है। कांग्रेस ने यहां से अपने कद्दावर नेता और सबसे दमदार मंत्री शांति कुमार धारीवाल को मैदान में उतारा है, जबकि भाजपा से वसुंधरा राजे के करीबी प्रहलाद गुंजल मैदान में हैं। दोनों का ही अपना जनाधार है।

परिसीमन के बाद बनी कोटा उत्तर विधानसभा में सबसे पहले यहां से यूडीएच मंत्री शांति कुमार धारीवाल जीते और उन्हें उस समय भी यूडीएच, विधि मंत्री और गृह मंत्री बनाया गया था, जबकि एक बार प्रहलाद गुंजल जीते जो राजनीतिक उठापटक के चलते मंत्री नहीं बन सके। यहां विकास कार्यों की बात करें तो भाजपा के समय ज्यादा कुछ कार्य नहीं हुए, दो ओवर ब्रिज और कुछ छोटे-मोटे काम हुए, लेकिन कांग्रेस के कार्यकाल में यहां जमकर काम किए गए। दुनिया का सबसे बेहतरीन चम्बल रिवर फ्रंट की गाथा किसी से छुपी नहीं हैं, इसके साथ ही कई बड़े चौराहे, पट्टे वितरण, सीसी रोड, रेड लाइट फ्री शहर, बायोलॉजिकल पार्क, खेल सुविधाएं सहित कई आवासीय योजनाओं के कारण कांग्रेस एक बार फिर जीत का परचम लहराना चाहती है।

झोटवाड़ा विधानसभा क्षेत्र

मतदाताओं की संख्या के लिहाज़ से ये सबसे बड़ी विधानसभा सीट है। यहां चार लाख से ज़्यादा मतदाता है। अस्तित्व में आने के बाद से अब तक इस सीट पर हुए तीन चुनाव में दो बार भाजपा और एक बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है। इस बार भाजपा की ओर से यहां जयपुर ग्रामीण से सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को प्रत्याशी बनाया गया है। इनके खिलाफ कांग्रेस ने राजस्थान विश्वविद्यालय में छात्र नेता रहे अभिषेक चौधरी को टिकट दिया है। बात निर्दलीय प्रत्याशी की करें तो आशु सिंह सुरपुरा भी मैदान में हैं, जो इस सीट पर खासा लोकप्रिय हैं।

इस सीट के इतिहास की बात करें तो जाट-यादव-राजपूत बहुल इस सीट पर 2008 में राजपाल ने लालचंद कटारिया को 2455 मतों से हराया। 2013 के चुनाव में राजपाल के सामने कांग्रेस ने रेखा कटारिया को प्रत्याशी बनाया। राजपाल की जीत का अंतर बढकऱ 19,302 हो गया। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो राजपाल को नगरीय विकास और उद्योग मंत्री बनाया गया। फिर आया साल 2018 का चुनाव, तब एक बार फिर राजपाल और लालचंद आमने-सामने थे। कटारिया ने 10,747 मतों से जीत हासिल की। इस जीत से उन्होंने 2008 की हार का भी हिसाब बराबर कर लिया। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और कटारिया कृषि मंत्री बनाए गए।

यहां शहर के पॉश इलाकों में शुमार वैशाली नगर इसी विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है। 200 फीट बायपास पार करके पृथ्वीराज नगर-उत्तर आता है। यह घनी आबादी वाला क्षेत्र है। यहां के लोगों को मूलभूत सुविधाओं की दरकार है। स्थिति यह है कि कई कॉलोनियों में पानी के लिए पाइप लाइन तो बिछा दी गई, लेकिन पानी का इंतजार खत्म नहीं हुआ। सीवर लाइन नहीं होने से लोग वर्षों से सेप्टिक टैंक के भरोसे हैं। इससे आगे बढऩे पर ग्रामीण इलाके की शुरुआत होती है। वहां भी समस्याएं अपार हैं।

विद्याधर नगर विधानसभा

ये विधानसभा भाजपा का गढ़ रही है, इस सीट से भैरों सिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह विधायक हैं, लेकिन इस बार पार्टी ने उनका टिकट काटकर राजसमंद से सांसद दिया कुमारी को मैदान में उतारा है। हालांकि जैसे ही नरपत सिंह का टिकट कटा तो वो नाराज हो गए, जिसके बाद पार्टी ने डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की और नरपत सिंह को फिर चित्तौड़गढ़ से मैदान में उतारा दिया। यहां से कांग्रेस की ओर से सीताराम अग्रवाल मैदान में हैं जिनके सामने भाजपा की दिया कुमारी बड़ी चुनौती होंगी।

अब बात करें कि विद्याधर सीट को इतना खास क्यों माना जा रहा है तो इसके पीछे कारण है कि भाजपा ने इस बार राजस्थान विधानसभा चुनाव में अपना मुख्यमंत्री फेस घोषित नहीं किया। ऐसे में विद्याधर नगर से मैदान में उतरी दिया कुमारी जो राजकुमारी भी हैं, उनको भी महिला चेहरे पर मुख्यमंत्री की रेस में शामिल माना जा रहा है, दिया कुमारी को राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे के विकल्प के तौर पर भी देखा जा रहा है।

वैसे ये कहा जा सकता है कि इस सीट पर दिया कुमारी के लिए चुनाव जीतना आसान ही रहेगा, क्योंकि यह सीट भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रही है। लगातार तीन बार यहां से भारतीय जनता पार्टी जीत चुकी है। 2008 में परिसीमन के बाद भैरव सिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राज यहां से लगातार तीन बार जीत हासिल की है, जिन्हें पार्टी ने इस बार यहां से टिकट काटकर चित्तौड़गढ़ से टिकट दिया है। यहां ब्राह्मण वोटर की बात करें तो लगभग 70000 ब्राह्मण वोटर हैं, जो कि भाजपा का वोट बैंक है। पार्टी राजपूत प्रत्याशी को मैदान में उतारती है तो राजपूतों के लगभग 75000 वोटर हैं, और तकरीबन 50000 वैश्य वोटर हैं। यह तीनों वोटर की संख्या लगभग 2 लाख है, जो भाजपा के वोट बैंक माने जाते हैं।

लक्ष्मणगढ़ विधानसभा क्षेत्र

सीकर जिले में आने वाली लक्ष्मणगढ़ विधानसभा सीट इस बार हॉट सीट बनी हुई है, यहां से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा चौथी बार चुनावी ताल ठोक रहे हैं, वहीं भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष महरिया को अपना उम्मीदवार बनाया है। डोटासरा लक्ष्मणगढ़ से लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके हैं और इस बार जीत का चौका लगाने के मकसद से चुनावी मैदान में उतरे हैं, वहीं दूसरी तरफ 6 महीने पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में वापसी करने वाले सुभाष महरिया के सामने अपनी प्रतिष्ठा बचाने की चुनौती है।

जयपुर से तकरीबन 140 किलोमीटर दूर लक्ष्ममणढ़ विधानसभा क्षेत्र का अधिकांश इलाका ग्रामीण है, जाट बाहुल्य मतदाताओं वाली इस सीट को हमेशा से कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है, कांग्रेस के दिग्गज नेता परसराम मोरदिया यहां से लगातार 5 बार विधायक चुने गए हैं, वहीं भाजपा को इस सीट पर केवल एक बार जीत मिली है और वर्तमान में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा यहां से लगातार तीसरी बार विधायक हैं।

सवाई माधोपुर विधानसभा सीट

सवाई माधोपुर एक वीवीआईपी सीट है, और इस बार यहां मुकाबला त्रिकोणीय होता नज़र आ रहा है। कहा जा रहा है कि इस बार यहां जातीय समीकरण बेहद अहम रोल अदा करने वाले हैं। इस बार यहां से भाजपा ने राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा को मैदान में उतारा हैं, जबकि उनके सामने कांग्रेस के विधायक दानिश अबरार हैं। लेकिन यहां मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है भाजपा की बागी आशा मीना ने, जो टिकट न मिलने के बाद निर्दलीय ताल ठोक रहीं हैं।

इस क्षेत्र में मीना, मुस्लिम और गुर्जरों की अच्छी खासी संख्या है, ये तीनों नतीजों को प्रभावित करते हैं। 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में अबरार को मुस्लिमों, गुर्जरों और अन्य समुदायों का अच्छा खासा वोट मिला इसलिए अबरार ने इस सीट पर अच्छी जीत दर्ज की।

फिलहाल 199 सीटें में शामिल इन हॉट सीटों पर जीत किसकी होती है, ये 3 दिसंबर को मालूम होगा। लेकिन इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि इन सभी सीटों पर मुकाबले बहुत रोचक होने वाले हैं, क्योंकि भाजपा की ओर से जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कमान संभाले हुए थे, तो कांग्रेस के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने धुंआधार रैलियां की हैं। तो दूसरी ओर निर्दलीय प्रत्याशियों ने कई सीटों पर भाजपा-कांग्रेस का सिरदर्द बढ़ा दिया है।

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