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राजभर दोबारा एनडीए में शामिल: भाजपा से रूठने, धमकाने और फिर मान जाने के क्या हैं मायने? 

ओमप्रकाश राजभर पूर्वांचल में पिछड़ी जाति के ऐसे नेता हैं जिनका रूठना, धमकाना और बाद में मान जाना एक अदा है। वह जिस पार्टी के साथ रहते हैं अपने बगावती तेवर और विवादित बयानों से परेशान किए रहते हैं।
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उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में काफी दिनों से चल रही अटकलों को विराम देते हुए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के मुखिया ओमप्रकाश राजभर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) में फिर शामिल हो गए। वह दूसरी मर्तबा एनडीए का हिस्सा बने हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 17 जुलाई 2023 को एक ट्वीट के जरिये ओम प्रकाश राजभर के साथ अपनी मुलाकात और उनके एनडीए में शामिल होने का ऐलान किया।

शाह ने ट्वीट किया, "ओम प्रकाश राजभर से दिल्ली में भेंट हुई और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में आने का निर्णय लिया। मैं उनका एनडीए परिवार में स्वागत करता हूं।" शाह के ट्वीट के बाद राजभर ने भी एक ट्वीट किया और कहा, "भाजपा और सुभासपा आए साथ। सामाजिक न्याय देश की रक्षा-सुरक्षा, सुशासन वंचितों, शोषितों, पिछड़ों, दलितों, महिलाओं, किसानों, नौजवानों, हर कमजोर वर्ग को सशक्त बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी मिलकर लड़ेगी। मैं समाज के हाशिए पर मौजूद वर्गों के विकास की लड़ाई में हमें साथ लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, शाह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को धन्यवाद देना चाहता हूं।"

पूर्वी उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को राजभर समुदाय के समर्थन का दावा किया जाता है। यह समुदाय सूबे की आबादी के लगभग चार फीसदी के बराबर है। ओमप्रकाश राजभर का सियासी असर पूर्वांचल के कुछ जिलों में अच्छा कहा जाता है। उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 80 में से 75 सीटों को जीतने का लक्ष्य रखा है। इसके मद्देनजर वह राजभर के साथ गठबंधन के जरिये अति पिछड़े वोटों में सेंधमारी करना चाहती है। यूपी के पूर्वांचल इलाके में अपनी सियासी दखल मजबूत रखना चाहती है।

यूपी से लोकसभा की तीन सीटों की डिमांड

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, राजभर ने अपने लिए उत्तर प्रदेश के लिए कैबिनेट मंत्री का पद और राज्य की तीन लोकसभा सीट और बिहार में एक लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने की शर्त रखी है। सुभासपा मुखिया राजभर ने लोकसभा की जिन सीटों को अपनी पार्टी के लिए मुफीद बताया है उनमें मऊ की घोसी, गाजीपुर और चंदौली की सीटें हैं। इनमें से किसी एक सीट पर वह अपने पुत्र अरविंद राजभर को मैदान में उतारना चाहते हैं।

एनडीए में शामिल होने के बाद राजभर ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, "सुभासपा शुरू से ही भर और राजभर जाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की लड़ाई लड़ रही है। एनडीए में शामिल होने के बाद इस लड़ाई को बल मिलेगा, क्योंकि मोदी व योगी की सरकार सुभासपा के विचारों और सिद्धांतों को आगे बढ़ाने का कार्य कर रही हैं। लोकसभा में सीटों के बंटवारे और प्रदेश सरकार में भूमिका पर फैसला 18 जुलाई 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में होने वाली एनडीए की बैठक में होगा।"

समाजवादी पार्टी के पीडीए के गठन को खारिज करते हुए राजभर ने कहा, "जब राजभर, अनुप्रिया, संजय निषाद एनडीए में हैं तो 'पी' यानी पिछड़ा बचा नहीं। प्रमोशन में आरक्षण सपा सरकार ने ही खत्म किया था, इसलिए 'डी' यानी दलित भी सपा के साथ नहीं है। रही बात 'ए' मतलब अल्पसंख्यक की, तो सपा ने 18 प्रतिशत लोगों का वोट लेकर सरकार बनाई, लेकिन मुख्यमंत्री बने सिर्फ यादव। इसलिए अब अल्पसंख्यक भी इनके झांसे में नहीं आएंगे। इसलिए सपा के पीडीए का कोई मतलब नहीं है। अखिलेश ने किसी दूसरे पिछड़े को नेता नहीं बढ़ने दिया। वह दूसरे दल के नेताओं को लोडर बनाकर रखना चाहते हैं और भाजपा लीडर बनाकर रखती है।"

ये है राजभर की अदा

सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश राजभर और भारतीय जनता पार्टी के बीच पुराना सियासी रिश्ता है। हालांकि वह सियासत में जिसके साथ जितनी तेजी से खड़े होते हैं, उतना ही जल्दी रूठ भी जाते हैं। उत्तर प्रदेश में साल 2017 के विधानसभा चुनाव में वह भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़े। भाजपा सरकार सत्ता में आई तो ओमप्रकाश राजभर को उत्तर प्रदेश के मंत्रिमंडल में पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री नियुक्त किया गया। कैबिनेट मंत्री बनने के बाद अपनी उपेक्षा का आरोप लगाते हुए उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। बाद में वह साल 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़े और आधा दर्जन सीटों पर अपने विधायकों को जिताने में कामयाब रहे। बाद में सपा से भी उनका मोह भंग हो गया।

ओमप्रकाश राजभर पूर्वांचल में पिछड़ी जाति के ऐसे नेता हैं जिनका रूठना, धमकाना और बाद में मान जाना एक अदा है। वह जिस पार्टी के साथ रहते हैं अपने बगावती तेवर और विवादित बयानों से परेशान किए रहते हैं। मौका मिलने पर अपने विरोधियों पर सधे अंदाज में निशाना साधते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के समय उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में आयोजित एक सभा में उन्होंने कहा था, "भाजपा में जितने भी पिछड़ी जाति के नेता हैं, वे मोदी-योगी का जूता साफ करते हैं।" एक सभा में ओमप्रकाश ने यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ भी विवादित बयान दिया था और कहा था, "अगर केशव जातिगत जनगणना कराने की बात करेंगे तो भाजपा उन्हें खुद पार्टी से बाहर कर देगी। साल 2022 में मैं भाजपा को दफन कर दूंगा।"

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फिलहाल ओमप्रकाश राजभर को भाजपा को साथ रखना अमित शाह और पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर 2024 के लोकसभा चुनाव में। यूपी के पूर्वांचल में उनकी बिरादरी काफी वोटर हैं। भाजपा नेताओं को लगता है कि राजभर वोटरों के छिटक जाने से उनकी पार्टी को भारी नुकसान हो सकता है। हालांकि भाजपा के कई नेता राजभर को पार्टी में शामिल करने के पक्ष में नहीं थे।

ओपी को संभाल पाना आसान नहीं

वाराणसी के पत्रकार राजीव मौर्य का मानना है कि ओमप्रकाश राजभर फटहर नेता हैं और लंबे समय तक उन्हें संभाल पाना आसान नहीं है। अपने विवादित बयानों के चलते वह अक्सर चर्चा में रहते हैं। वह अपने बड़बोलेपन के लिए भी जाने जाते हैं और किसी के लिए कुछ भी बोल देते हैं। राजीव बताते हैं, "सुभासपा के 9वें स्थापना दिवस के मौके पर उन्होंने यहां तक कह दिया था कि भाजपा जितना धन दो महीने में खर्च करती है, हमारी बिरादरी उतने का शराब पी जाती है।"  

"एक मर्तबा उन्होंने यह कहकर बड़ा विवाद खड़ा कर दिया कि आजादी के बाद जिन्ना को भारत का पीएम बना दिया गया होता तो, देश का बंटवारा नहीं होता। उन्होंने यह भी कहा था कि अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी खुद जिन्ना की तारीफ करते थे। ऐसे में भाजपा को राजभर के बगावती तेवर और तौर-तरीकों को समझना होगा। साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव तक उन्हें अपने साथ बनाए रखने के लिए चतुराई से प्रयास करने की ज़रूरत है। समय-समय पर उनकी नाराज़गी को समझने और उसे दूर करने के लिए भाजपा को प्रतिबद्धता दिखानी होगी। कोशिश ऐसी करनी होगी ताकि उन्हें बार-बार मनाने की जरूरत न पड़े, क्योंकि वो कब बिगड़ जाएंगे, कहा नहीं जा सकता।"

पत्रकार राजीव यह भी कहते हैं, "सियासत संभावनाओं की गणित है। मौजूदा समय में बाहुबली मुख्तार अंसारी के पुत्र अब्बास अंसारी सुहेलदेव समाजवादी पार्टी के विधायक हैं। तकनीकी रूप से अब वह भी एनडीए के हिस्से बन गए हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि अब्बास सुभासपा के साथ रहेंगे या फिर वह इस्तीफा देंगे अथवा उन्हें पार्टी से निकाल दिया जाएगा?  विधायक अब्बास अगर सुभासपा के साथ एनडीए के गठबंधन में रहते हैं तो फौरी तौर पर उन्हें राहत मिल सकती है और उसका असर आगामी लोकसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है।"

"धोखेबाज नेता हैं राजभर"

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर के भाजपा के पाले में जाने के बाद लंबे समय तक उनके सलाहकार और सुभासपा के प्रवक्ता रहे शशि प्रताप सिंह ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। वह कहते हैं, "ओमप्रकाश राजभर अपने समाज को सिर्फ धोखा देने के लिए जाने जाते हैं। बीजेपी ने उनके साथ गठबंधन करके बहुत बड़ी गलती की है। ओपी ने पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और योगी को झूठा बताने की कोशिश की थी, लेकिन वह खुद ही सबसे बड़े झूठे हैं।"

"पूर्वांचल की सियासत में राजभर सबसे बड़े अविश्वनीय नेता के रूप में जाने-पहचाने जाते हैं। उन पर जो लोग भरोसा करते हैं, उनके साथ वो दगा जरूर करते हैं। वह अपने समाज के हितैषी नहीं है। उनका मकसद सिर्फ इतना है कि किसी भी तरह से अपने बेटों के सियासत में स्थापित कर दें। वह अपने बेटे अरविंद राजभर को जिताऊ सीट चाहते हैं, लेकिन वो कामयाब नहीं होंगे। कितनी अजीब बात है कि ओमप्रकाश राजभर ने हमेशा भाजपा के खिलाफ सिर्फ अपशब्दों के ज़रिए ध्वजा लहराई है, लेकिन आज वह खुद उसके खूंटे में बंध गए हैं। इससे शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता राजभर समाज अब ओमप्रकाश अच्छी तरह समझ गया है और आने वाले लोकसभा चुनाव में उन्हें मुंहतोड़ जवाब देगा।"

दारा ने भी छोड़ दी सपा

पूर्वांचल की सियासत में एक और नया मोड़ आया है। 16 जुलाई 2023 को समाजवादी पार्टी के विधायक दारा सिंह चौहान ने उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। भाजपा नेता अमित शाह से मिलने के बाद उन्होंने अपना इस्तीफा ई-मेल के माध्यम से विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को भेजा। साथ ही उन्होंने फोन से उनसे बात की की। दारा सिंह चौहान योगी-वन सरकार में वन मंत्री थे और पिछले साल विधानसभा चुनाव के ठीक पहले वह सपा में शामिल हुए थे। तब उनके शामिल होने को सपा ने बड़ी सफलता के रूप में प्रचारित किया था। पिछड़ा वर्ग समाज (नोनिया जाति) से आने वाले दारा सिंह चौहान मऊ और आजमगढ़ में अपने सजातीय समाज में खासा दखल रखते हैं।

दारा सिंह चौहान ने अपनी सियासत की शुरुआत बसपा से की थी। वह साल 1996 और 2000 में राज्यसभा के सदस्य रह चुके हैं। साल 2009 में बसपा के टिकट पर वह घोसी लोकसभा सीट जीते थे। साल 2017 में वह मधुबन से भाजपा के टिकट पर विधायक बने। साल 2022 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर घोसी से विधायक चुने गए, लेकिन कुछ ही दिनो  बाद सपा से रिश्ते दरकने लगे।

दारा सिंह के इस्तीफे के बाद समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, "चौहान ने सपा के विश्वासघात किया है। लगता है कि भाजपा के पास प्रत्याशी लायक कोई नेता नहीं है। इसलिए वह उन्हें अपने साथ ले रही है। चौहान और भाजपा के लिए नीति और मूल्य कोई मायने नहीं  रखते। समाजवादी पार्टी ने उन्हें विधायक बनाकर सम्मान दिया, लेकिन चौहान ने पार्टी की नीति-रीति पर तनिक भी भरोसा नहीं किया।"

पिछड़ी जातियों के दो दिग्गज नेताओं के पाला बदलने से पूर्वांचल में तेजी से सियासी समीकरण बदल रहे हैं। माना जा रहा है कि विपक्षी दलों के कई और नेताओं को भाजपा अपने पाले में खींच सकती है। सियासी गलियारों में चर्चा है कि बसपा से भाजपा और फिर सपा में शामिल पूर्वांचल के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य पर भी डोरे डाले जा रहे हैं। उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य बदायूं से भाजपा की सांसद हैं। कयास लगाया जा रहा है कि अपनी बेटी को दोबारा सांसद बनाने के लिए वह सपा को अलविदा कह सकते हैं। स्वामी प्रसाद पूर्वांचल में पिछड़े समुदाय के मौर्य-कुशवाहा बिरादरी के धाकड़ नेता माने जाते रहे हैं।  

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