डॉ. कफ़ील को ‘भड़काऊ भाषण’ मामले में राहत: “योगी सरकार की मनमानी पूरी तरह उजागर”

डॉक्टर कफ़ील ख़ान को इलाहाबाद हाईकोर्ट से एक बार फिर बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने डॉ. कफ़ील के ख़िलाफ़ सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर भड़काऊ भाषण के मामले में लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है। इसी मामले में यूपी सरकार ने डॉक्टर कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून यानी एनएसए भी लगाया गया था और इसी आधार पर हाईकोर्ट ने एनएसए की कार्यवाही को भी रद्द कर दिया था।
बता दें कि डॉक्टर कफ़ील ख़ान पर नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में 13 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा था। इसके बाद उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने कफ़ील ख़ान को 29 जनवरी को मुंबई से गिरफ्तार किया था। इस दौरान ख़ान को करीब 7 महीने तक मथुरा जेल में रखा था।
इस मामले में हाईकोर्ट में दायर याचिका में डॉ. कफ़ील ख़ान की ओर से कहा गया था कि उनके ख़िलाफ़ चार्जशीट दाख़िल करने से पहले सरकार की पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी। कफ़ील के वकील मनीष सिंह ने मीडिया तो बताया कि सीआरपीसी की धारा 196 अनुसार, आईपीसी की धारा 153 ए, 153 बी, 505 (2) के तहत अपराध का संज्ञान लेने से पहले, केंद्र सरकार या राज्य सरकार या ज़िला मजिस्ट्रेट से अभियोजन स्वीकृति की पूर्व अनुमति लेनी होती है। उनके मुताबिक, याचिका में इसी आधार पर डॉक्टर कफ़ील के ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर और एनएसए को चुनौती दी गई थी।
क्या था पूरा मामला?
डॉ. कफ़ील के खिलाफ ‘कार्रवाई नंबर-2’ की शुरुआत 13 दिसंबर, 2019 को हुई। इस दिन अलीगढ़ में डॉ कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने के मामले में धारा 153 ए के तहत केस दर्ज किया गया था। उन पर आरोप लगाया गया कि 12 दिसंबर को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों के सामने दिए गए संबोधन में उन्होंने धार्मिक भावनाओं को भड़काया और एक ख़ास समुदाय के प्रति नफ़रत फैलाने की कोशिश की।
इन आरोपों के चलते 29 जनवरी, 2020 को यूपी एसटीएफ़ ने डॉ. कफ़ील ख़ान को मुंबई से गिरफ़्तार किया था। उसी साल 10 फ़रवरी को अलीगढ़ की सीजेएम कोर्ट ने इस मामले में ज़मानत के आदेश दिए थे लेकिन उनकी रिहाई से पहले ही 13 फरवरी, 2020 को अलीगढ़ ज़िला प्रशासन ने उन पर एनएसए यानी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगा दिया।
मालूम हो कि राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम यानी एनएसए सरकार को किसी भी व्यक्ति को हिरासत में रखने की शक्ति देता है। इस क़ानून के तहत किसी भी व्यक्ति को एक साल तक जेल में रखा जा सकता है। हालांकि तीन महीने से ज़्यादा समय तक जेल में रखने के लिए सलाहकार बोर्ड की मंज़ूरी लेनी पड़ती है। रासुका (एनएसए) उस स्थिति में लगाई जाती है जब किसी व्यक्ति से राष्ट्र की सुरक्षा को ख़तरा हो या फिर क़ानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका हो।
हाईकोर्ट ने एनएसए के तहत गिरफ़्तारी को ग़ैर-क़ानूनी माना
इसके बाद उन्हें महीनों मथुरा जेल में रखा गया था। 1 सितंबर 2020 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसले में उन्हें हिरासत में रखने को "कानून की नज़र में सही नहीं" बताते हुए एनएसए के तहत उनकी गिरफ़्तारी को ग़ैर-क़ानूनी माना और कफ़ील को रिहा करने का आदेश दिया था। तब से कफ़ील ख़ान बेल पर बाहर हैं।
तब हाईकोर्ट ने कहा था कि कफ़ील का पूरा भाषण पढ़ने पर प्रथम दृष्टया नफ़रत या हिंसा को बढ़ावा देने का प्रयास नहीं लगता है। इसमें अलीगढ़ में शांति भंग करने की धमकी भी नहीं लगती है।
कोर्ट ने कहा था, "ऐसा लगता है कि ज़िला मजिस्ट्रेट ने भाषण से कुछ वाक्यों को चयनात्मक रूप से देखा और चयनात्मक उल्लेख किया था, जो इसकी वास्तविक मंशा की अनदेखी करता है।"
मथुरा जेल से रिहा होने पर डॉक्टर कफ़ील ख़ान ने एक बड़ा बयान देते हुए इस बात पर खुशी जतायी थी कि रास्ते में उनका एनकाउंटर नहीं किया गया। कफ़ील ख़ान का कहना था, 'मैं जुडिशरी का बहुत शुक्रगुजार हूं। इतना अच्छा ऑर्डर दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने एक झूठा, बेसलेस केस मेरे ऊपर थोपा। बिना बात के ड्रामा करके केस बनाये गये, आठ महीने तक जेल में रखा। जेल में पांच दिन तक बिना खाना, बिना पानी दिये मुझे प्रताड़ित किया गया। मैं उत्तर प्रदेश के एसटीएफ को भी शुक्रिया कहूंगा कि मुंबई से मथुरा लाते समय मुझे एनकाउंटर में मारा नहीं।"
ध्यान रहे कि जेल में बंद रहने के दौरान डॉक्टर कफ़ील ने एक पत्र भी लिखा था जिसमें उन्होंने जेल के भीतर कथित तौर पर अमानवीय स्थितियों का ज़िक्र किया था। डॉक्टर कफ़ील का यह पत्र सोशल मीडिया में भी वायरल हुआ था।
पत्र में डॉक्टर कफ़ील ने लिखा था कि 150 क़ैदियों के बीच में सिर्फ़ एक शौचालय है जहां सामान्य स्थितियों में कोई अंदर भी नहीं जा सकता है। उन्होंने जेल में खान-पान जैसी व्यवस्था और सोशल डिस्टेंसिंग की कथित तौर पर उड़ रही धज्जियों का भी ज़िक्र किया था।
इस मामले में डॉ. कफील ने हाईकोर्ट में दलील दी थी कि अलीगढ़ के मजिस्ट्रेट के सामने आरोप पत्र दाखिल करने से पहले यूपी पुलिस ने उत्तर प्रदेश सरकार की अनिवार्य अनुमति नहीं ली थी। हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस गौतम चौधरी ने इस दलील के साथ सहमति जताई और मामले को वापस स्थानीय अदालत में भेजकर सही प्रक्रिया का पालन करने को कहा।
डॉक्टर कफ़ील ने अपनी जीत को भारत के लोगों की जीत बताया
अदालत का फ़ैसला आने के बाद ख़ान ने मीडिया को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की। उन्होंने इसे भारत के लोगों की जीत बताते हुए कहा, “ये भारत के लोगों के लिए एक बड़ी जीत है और न्यायपालिका में हमारे विश्वास को पुनर्स्थापित करता है। माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इस फैसले से उत्तर प्रदेश के लोगों के साथ योगी आदित्यनाथ सरकार की मनमानी पूरी तरह से उजागर हो गई है।”
बयान के मुताबिक उन्होंने आगे कहा, “हम ये भी आशा करते हैं कि इस बड़े निर्णय से देश भर की जेलों में बंद सभी लोकतंत्र समर्थक नागरिकों और कार्यकर्ताओं को उम्मीद मिलेगी। भारतीय लोकतंत्र अमर रहे!”
गौरतलब है कि हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने लगभग चार साल बाद बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कथित कमी के कारण कई बच्चों की मौत के मामले में डॉ. कफील ख़ान के निलंबन को लेकर विभागीय जांच के आदेश वापस ले लिए। अब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार तीन महीने में उनके निलंबन पर फ़ैसला ले सकती है।
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इस मामले में डॉ कफ़ील ख़ान को सितंबर 2017 में गिरफ़्तार किया गया था और अप्रैल 2018 में उन्हें ज़मानत पर रिहा किया गया। इस केस में भी उन्हें उच्च न्यायालय की ओर से ज़मानत दी गई थी और अदालत ने कहा था कि डॉ. कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ लापरवाही के आरोपों को स्थापित करने के लिए कोई साक्ष्य मौजूद नहीं हैं।
सरकार केस लादती रही और कफ़ील उनके खिलाफ कोर्ट में याचिकाएं
साल 2019 में विभागीय जांच की एक रिपोर्ट ने भी डॉ. कफ़ील को क्लीन चिट दे दी थी लेकिन अभी तक उनका निलंबन वापस नहीं लिया गया है। डॉ. कफ़ील इसके लिए कई बार सरकार को पत्र भी लिख चुके हैं। हालांकि अब चार साल बाद यूपी सरकार ने उनके ख़िलाफ़ जांच के आदेश पर यू-टर्न ले लिया है।
वैसे डॉक्टर कफ़ील ख़ान सरकार से हमेशा लोहा ही लेते रहे। अपने खिलाफ लगे तमाम आरोपों के बावजूद वो सरकार की नीतियों की खुलकर आलोचना करते और हाशिए पर खड़े लोगों के लिए इंसाफ की बात करते रहे। इस दौरान कई बार कफ़ील ख़ान सीधा-सीधा सरकार पर हमलावर भी हुए, उन्होंने सीएए और एनआरसी का विरोध किया, राज्य की चिकित्सा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए और शासन-प्रशासन के खिलाफ अपनी आवाज़ को बेबाकी से सामने रखा।
बहरहाल, डॉक्टर कफ़ील ख़ान के केस में आगे जो भी हो, लेकिन कोर्ट से अब तक कई बातें साफ हो चुकी हैं। जैसे अलीगढ़ जिला प्रशासन का एनएसए लगाना कानूनी तौर पर सही नहीं था। अब तक कफ़ील ख़ान के खिलाफ कोई आपराधिक आरोप साबित नहीं हुआ, इसलिए सारे चार्ज वापस ले लिये गये। दोबारा जांच के आदेश दिये गये थे वे भी वापस ले लिये गये और अब उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही भी तीन महीने के भीतर पूरी की जाने की कोशिश है। ऐसे में साफ है कि डॉक्टर कफ़ील ख़ान का केस योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए फज़ीहत के सबब से भी ज़्यादा एक सबक़ बन गया है कि सत्ता का बेज़ा इस्तेमाल करके भी सच को बहुत दिनों तक दबाया नहीं जा सकता।
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