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कैसे रूस-यूक्रेन युद्ध भारत की उर्वरक आपूर्ति में डालेगा बाधा? खेती-किसानी पर पड़ेगा भारी असर

विशेषज्ञों का मानना है कि समय की तात्कालिक आवश्यकता यह है कि भारत सरकार उर्वरकों की वैकल्पिक आपूर्ति करने और किसानों को खनिज पोषक तत्वों की पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराने के लिए प्रयास करे। इसमें की गई कोताही अगले कुछ वर्षों में देश की खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।
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यूक्रेन युद्ध के बाद भारत में उर्वरक (फर्टिलाइजर)

रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रत्यक्ष आर्थिक दुष्प्रभाव तो यही है कि भोजन, ऊर्जा और उर्वरक की कीमतें तब तक बढ़ेंगी जब तक कि युद्ध समाप्त नहीं हो जाता। इस स्थिति की मुख्य वजह यह है कि यूक्रेन एक प्रमुख खाद्यान्न उत्पादक देश है- विशेष रूप से गेहूं और मकई का। वहीं, रूस खाद्यान्न के साथ-साथ यूरोप के लिए एक प्रमुख प्राकृतिक गैस आपूर्तिकर्ता है। उसके हिस्से का काला सागर का क्षेत्र उर्वरक उत्पादन एवं व्यापार का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है। इसके अलावा, इस स्थिति की एक वजह है कि दुनिया की महाशक्तियों द्वारा अपने विरोधियों पर लगाए गए गंभीर आर्थिक प्रतिबंधों सार्वजनिक दायरे में लाना है।

इस वर्तमान संकट पर कई विशेषज्ञों ने न्यूज क्लिक के साथ अपने विचार साझा किए। इनमें से एक केरल सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के पुनर्गठन और लेखा परीक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष रहे सांसद सुकुमारन नायर ने कहा- "रूस और यूक्रेन के बीच जंग भारत की उर्वरक आपूर्ति को, उसकी क़ीमतों एवं उपलब्धता को बड़े पैमाने पर बाधित करेगी। पिव्डेनी बंदरगाह (ओडेसा) से लगभग ​2.4​​ मिलियन टन अमोनिया ​2021 ​में भारत में भेजा गया था। जिसमें से मात्र ​​0.15​​ मिलियन टन उर्वरक यूक्रेन से आता है और बाकी रूस की तोगलीअट्टी अज़ोट और रोसोशो पाइपलाइनों के माध्यम से आपूर्ति की जाती है।"

त्रावणकोर के उर्वरक एवं रसायन के पूर्व प्रमुख रहे नायर ने बताया कि रूस अमोनिया, यूरिया, पोटाश का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है जबकि कॉम्पलेक्स्ड फॉस्फेट का वह पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक है। यह वैश्विक स्तर पर 23 फीसदी अमोनिया का, ​​14 फीसदी​ यूरिया का, ​​21 फीसदी​ पोटाश और ​​10 ​फीसदी कॉम्पलेक्स्ड फॉस्फेट का निर्यात करता है। इस युद्ध ने पहले ही वैश्विक उर्वरक बाजार को बाधित करना शुरू कर दिया है, क्योंकि रूस उर्वरक और इससे संबंधित कच्चे माल का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है। यह यूरिया, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम, अमोनिया, यूरिया अमोनियम नाइट्रेट (यूएएन) और अमोनियम नाइट्रेट (एएन) का सबसे बड़ा निर्यातक और पोटाश का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक भी है।

परंपरागत रूप से चीन और मोरक्को के प्रभुत्व वाले फॉस्फेटिक क्षेत्र में, रूस पिछले साल ​​4​​ मिलियन टन डायमोनियम फॉस्फेट और मोनो अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी/एमएपी) शिपमेंट के साथ एक प्रमुख निर्यातक बना हुआ है। बेलारूस के साथ मिलकर, रूस का दुनिया के पोटाश व्यापार के ​40 फीसदी​ पर दखल है। उन्होंने कहा कि काला सागर में युझ्नी और ओडेसा वे प्रमुख बंदरगाह हैं, जहां रूस से अमोनिया के लिए पाइपलाइन के जरिए विश्व को आपूर्ति होती है।

उर्वरक आयात पर भारत की अत्यधिक निर्भरता

​​नायर ने कहा, "भारत अपने उर्वरकों के कच्चे माल (प्राकृतिक गैस, सल्फर और रॉक फॉस्फेट), मध्यवर्ती (अमोनिया और सल्फ्यूरिक और फॉस्फोरिक एसिड), और तैयार उत्पादों (डायमोनियम फॉस्फेट, पोटाश, और जटिल उर्वरक) की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विदेशों से आयात पर बहुत निर्भर है। यूरिया उत्पादन में ​2000​​ तक हासिल की गई आत्मनिर्भरता अमित्रतापूर्ण नीतियों की वजह से निवेश अगले दो दशकों तक हतोत्साहित रहा और फिर निजीकरण और कम ऊर्जा दक्षता के कारण कई संयंत्रों के बंद होने से वह आत्मनिर्भता भी नष्ट हो गई थी, इन्हीं परिस्थितियों के चलते बड़े पैमाने पर निर्यात शुरू हो गया।"

उन्होंने इस मुद्दे पर विस्तार से बताते हुए कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा यूरिया आयातक भारत भी फॉस्फेटिक और पोटाश उर्वरकों का बड़ा हिस्सा आयात करता है। भारत प्रतिवर्ष 8-9 ​मिलियन टन यूरिया मुख्य रूप से चीन, ओमान, यूक्रेन और मिस्र से आयात करता है। चीन ने अक्टूबर ​2021 से यूरिया आयात पर ​​प्रतिबंध लगा दिया है। जैसे-जैसे गैस की कीमतें बढ़ती हैं, आयातित अमोनिया की कीमत भी बढ़ती जाती है। यूरिया की आपूर्ति की कमी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (​​प्रतिवर्ष 5 ​मिलियन टन) नए पुनर्निर्मित संयंत्रों और गोरखपुर, बरौनी, सिंदरी एवं तलचर के चालू उर्वरक संयंत्रों में अधिकतम उत्पादन कर उसकी कमी की पूर्ति की जा सकती है। 

आर्थिक मामलों के पूर्व सचिव ईएएस सरमा ने कहा कि भारत में कुल ​​2.3​​ मिलियन टन फॉस्फेटिक उत्पादों की क्षमता वाली तीन इकाइयों की योजना बनाई गई थी, लेकिन उन्हें ​2023 के अंत तक​​ ही चालू किया जा सकेगा।

पोटाश आपूर्ति के संबंध में, उन्होंने कहा, "प्रतिवर्ष लगभग ​4​​ मिलियन टन पोटाश कनाडा, रूस, बेलारूस, जॉर्डन, लिथुआनिया, इज़राइल और जर्मनी से आयात किया जाता है। फिलहाल इन देशों में उत्पन्न आकस्मिक परिस्थितियों के कारण उसे बहुत अधिक दरों पर आयात किया जा रहा है। इससे पहले, सऊदी अरब, मोरक्को और चीन डीएपी के हमारे प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहे हैं।"

सरमा ने कहा कि चीन ने पहले ही पिछले साल डीएपी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। दूसरे, रूस और यूक्रेन के बीच अभी युद्ध जारी है। लिहाजा, भारत मोरक्को, सऊदी अरब और जॉर्डन से इसका आयात करने पर विवश है। ​2022​​ के बजट में उर्वरक सब्सिडी के लिए बजट आवंटन केवल ​​1.05​​ लाख करोड़ रुपये रखा गया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में ​​35,000​​ करोड़ रुपये कम है। यह अनुमान जारी युद्ध के कारण और बढ़ सकता है। 

आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान का प्रतिकूल प्रभाव

रूस और यूक्रेन में उत्पादन में व्यवधान और यूरोप में संयंत्रों को बंद करने से दुनिया भर में उर्वरक वस्तु की कीमतें बढ़ जाएंगी। पारंपरिक बाजारों से उत्पाद आंदोलन में बदलाव से वैश्विक उर्वरक बाजार में कीमत में उतार-चढ़ाव होगा, जिससे उर्वरकों की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। सरमा ने कहा, “अगर हम ​1980​ ​और ​1990​ ​के दशक की उर्वरक विस्तार नीति को जारी रखा होता, जहां उर्वरक पीएसयू ने खनिज आधारित संयंत्र पोषक तत्वों की हमारी मांग को पूरा करने के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था, तो हम ऐसी अनिश्चित स्थिति में नहीं घिरे होते, जिसमें कि हम अभी फंसे हैं।आज, भारतीय किसान उर्वरक उत्पादों की सुगमता से उपलब्धता के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं, पर उनकी कीमतें भी आसमान छू रही हैं। केवल यूरिया, जिस पर प्रशासनिक दखल रहने से उसका दाम नियंत्रण में रहता है, वही किसानों के लिए सस्ता है और उनकी पहुंच में है।”

विशेषज्ञों का मानना है कि समय की तात्कालिक आवश्यकता यह है कि भारत सरकार वैकल्पिक आपूर्ति करने और किसानों को खनिज पोषक तत्वों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करे। इस काम में की गई कोताही अगले कुछ वर्षों में देश की खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी। इसके अलावा, हमें पहले से चालू संयंत्रों में उत्पादन बढ़ाना पड़ सकता है।

“यूरिया की किल्लत के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से (​​प्रति वर्ष 5​​ मिलियन टन) की पूर्ति पुनर्निमित संयंत्रों, और गोरखपुर, बरौनी, सिंदरी एवं तलचर में पहले से चालू उर्वरक संयंत्रों में अधिकतम उत्पादन के जरिए की जा सकती है।” सार्वजनिक क्षेत्र और सार्वजनिक सेवाओं के पीपुल्स कमीशन के समन्वयक थॉमस फ्रैंको ने सिफारिश की, "तीन इकाइयों में कुल ​​2.3​​ मिलियन टन फॉस्फेटिक उत्पादन की योजना बनाई गई है, लेकिन उन इकाइयों में 2023 के अंत तक ​​ही उत्पादन शुरू हो पाएगा। इस बारे में एक त्वरित समीक्षा की जानी चाहिए। इसके आधार पर तत्काल राहत प्रदान करने के लिए इनमें से कुछ इकाइयों के कमीशन को आगे बढ़ाने के लिए एक कार्य योजना बनाई जानी चाहिए।”

फ्रैंको ने कहा कि सरकार को पोटाश की आपूर्ति के लिए वैकल्पिक आयात व्यवस्था करने और आयात मूल्य में बढ़ोतरी के साथ सामंजस्य बैठाने के लिए उचित बजटीय प्रावधान करने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि समय की तात्कालिक मांग है कि भारत सरकार वैकल्पिक आपूर्ति और किसानों को खनिज पोषक तत्वों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करे। ऐसा करने में बरती गई शिथिलता आगामी कुछ वर्षों में देश की खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।

उन्होंने कहा कि भारत सरकार को वैकल्पिक आपूर्ति के लिए जल्दबाजी करनी चाहिए और किसानों को खनिज पोषक तत्वों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए। ऐसा करने में बरती गई शिथिलता आगामी कुछ वर्षों में देश की खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी। इसके अलावा, हमें पहले से ही कार्यान्वयन के तहत संयंत्रों में उत्पादन की शुरुआत को तेज करना पड़ सकता है।

सीखने लायक खास सबक

यूक्रेन युद्ध के कारण पैदा हुई अनिश्चितताओं से सरकार को कुछ महत्त्वपूर्ण सबक लेना चाहिए। इसलिए कि देश की खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिए उर्वरक, बिजली, डीजल और पानी महत्त्वपूर्ण कारक हैं। 

फ्रैंको के अनुसार, उर्वरकों के आयात पर देश की मौजूदा अत्यधिक निर्भरता ने उर्वरक की उपलब्धता और उर्वरक की कीमतों की स्थिरता को लेकर एक गंभीर अनिश्चितता पैदा कर दी है। आज जैसी स्थिति काफी हद तक कम की जा सकती थी, अगर भारत ने ​1980​​ और ​​1990​ ​के दशक में बनाई गई उर्वरक विस्तार नीति का अनुसरण किया जाता, जब उवर्रकों के सार्वजनिक क्षेत्र ने खनिज आधारित संयंत्र पोषक तत्वों की हमारी माँगों को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। कृषि अर्थव्यवस्था के गंभीर तनाव में आने और किसान की दशा को और खराब होते जाने के मद्देनजर, कृषि के सभी महत्त्वपूर्ण इनपुट, अर्थात् बिजली, पानी, डीजल और उर्वरकों के बारे में अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि खास कर उर्वरकों के मामले में, मात्र यूरिया ही प्रशासनिक मूल्य नियंत्रण के अधीन है, इसलिए वह किसानों के लिए सस्ता है और उनकी पहुंच में है। इस लिहाजन, अन्य उर्वरकों को भी प्रशासनिक मूल्य नियंत्रण व्यवस्था के तहत लाने का प्रयास सरकार को करना चाहिए। इसके अलावा, यह सरकार के लिए उर्वरक क्षेत्र में सीपीएसई (सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का वर्गीकरण) की भूमिका को मजबूत और विस्तारित करने का एक मजबूत मामला है। इसे देखते हुए, डीआईपीएएम (निवेश और सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग) के कुछ सीपीएसई जैसे मद्रास फर्टिलाइजर्स और नेशनल फर्टिलाइजर्स के निजीकरण के वर्तमान प्रस्ताव को तुरंत रद्द कर देना चाहिए।"

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:-

Russia Ukraine War Posing Challenges in Fertiliser Supply of India

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