SKM अधिवेशन: MSP गारंटी व न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ FIR का उठा मुद्दा, महापड़ाव का ऐलान
संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने 26 से 28 नवम्बर तक देश के सभी राज्यों की राजधानियों में महापड़ाव का ऐलान किया है। प्रदेश भर से किसान, फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) गारंटी और न्यूज़क्लिक पर दर्ज मुक़दमा रद्द करने, जैसी माँगों को लेकर एसकेएम के राज्य अधिवेशन में शामिल होने शनिवार को राजधानी लखनऊ पहुंचे।
अधिवेशन में आये किसान नेताओं ने कहा की उनका आंदोलन किसी “दल विशेष” के विरुद्ध नहीं है, बल्कि हर उस “सरकार” के ख़िलाफ़ है जो किसान विरोधी है। किसान नेताओं ने मंच से केंद्र सरकार पर वादा ख़िलाफ़ी का आरोप लगाते हुए कहा कि किसान आन्दोलन की समाप्ति के समय, केंद्र सरकार ने किसानों की माँगों और समस्याओं के सम्बन्ध में एक लिखित समझौता किया था और अब सरकार उस समझौते से पीछे हट गयी है। इसी के साथ अधिवेशन में "न्यूज़क्लिक" पर दर्ज मुक़दमे में किसानों और किसान आन्दोलन पर लगाये गये तथाकथित आरोपों को वापस लेने की माँग की गई।
लखनऊ के क़ैसरबाग स्थित गाँधी भवन में हुए अधिवेशन में उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं से खेती को हो रहे नुकसान का मुद्दा भी उठाया गया। इसके अलावा एसकेएम ने कहा की पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, असम, दिल्ली आदि बाढ़ग्रस्त इलाकों को “राष्ट्रीय आपदा क्षेत्र” घोषित किया जाये और प्रभावित किसानों को मुआवज़ा दिया जाए।
किसान नेता दर्शन पाल सिंह ने कहा की एसकेएम के नेतृत्व में ऐतिहासिक किसान आंदोलन ने नरेंद्र मोदी मोदी सरकार को 3 कृषि कानूनों को वापस लेने पर मजबूर कर बड़ी जीत हासिल की थी। उन्होंने आरोप लगाया की अब नरेंद्र मोदी सरकार, किसानों की अन्य माँगों के सम्बन्ध में किसानों से हुए अपने लिखित समझौते से पीछे हट रही है, जिसमें एमएसपी गारंटी और झूठे मुकदमें वापस लेना आदि मुख्यतः शामिल है।
किसान देश की एकता को धर्म के नाम पर टूटने नहीं देगा
सिंह ने कहा कि इसी लिए एसकेएम ने आंदोलन को फिर से शुरू करते हुए, ऐलान किया है, यदि सरकार किसानों की माँगों को स्वीकार नहीं करती है तो किसान देश भर में बड़े आन्दोलन करेंगे और इसी उद्देश्य से राज्य स्तरीय कन्वेंशन किये जा रहे हैं। उन्होंने कहा की किसान आंदोलन का एक लाभ यह भी हुआ की इस ऐतिहासिक आंदोलन से देश के दो प्रमुख उत्पादक वर्ग मजदूरों और किसानों की एकता बनी है। इसके अलावा किसान आन्दोलन ने जनतंत्र, संविधान और हिंदू मुस्लिम एकता को मजबूत करने का काम किया है। उन्होंने अंत में कहा की किसान देश एकता को धर्म के नाम पर टूटने नहीं देगा।
साम्प्रदायिकता के आधार पर विभाजन की राजनीति
अपनी बात रखते हुए किसान नेता आशीष मित्तल ने आरोप लगाया कि सरकार विकास के मुद्दों जैसे महंगाई, बेरोज़गारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि संकट से भटक गई और साम्प्रदायिकता के आधार पर विभाजन की राजनीति कर भाईचारे को नष्ट कर रही है। मित्तल ने आरोप लगाया की केन्द्र की मोदी सरकार एवं उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की नीतियाँ कारपोरेट परस्त, साम्प्रदायिक, फासीवादी चरित्र और संविधान धर्मनिरपेक्षता एवं सामाजिक न्याय के साथ-साथ दलितों, माहिलाओं, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों तथा गरीबों के ख़िलाफ़ हैं।
खेती को कारपोरेट के हवाले नहीं किया जा सकता
उन्होंने कहा की सार्वजनिक क्षेत्र के बड़े संस्थानों को कौड़ियों के मोल अडानी और अम्बानी जैसे कारपोरेट्स को बेचा जा रहा है। मित्तल कहते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है और क़रीब 78 प्रतिशत आबादी की आजीविका खेती से चलती है, इसको किसी भी क़ीमत पर कारपोरेट के हवाले नहीं किया जा सकता है।
लखीमपुर कांड
मित्तल ने लखीमपुर कांड का मुद्दा भी उठाया और कहा की लखीमपुर खीरी में 4 किसानों व 1 पत्रकार को मंत्री के आरोपी पुत्र द्वारा कुचलकर सामूहिक हत्या के कथित साजिशकर्ता केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को केन्द्रीय मंत्रीमण्डल से बर्खास्त कर गिरफ़्तार किया जाये। इसके अलावा जिलों में आन्दोलन के दौरान किसानों पर दर्ज मुकदमें वापस लिये जायें और आंदोलन के दौरान मरने वाले किसानों के परिवार को मुआवजा दिया जाए।
न्यूज़क्लिक पर एफआईआर का होगा विरोध
न्यूज़ पोर्टल न्यूज़क्लिक पर हुए मुक़दमे की बात करते हुए किसान नेता पी कृष्णाप्रसाद ने कहा केंद्र सरकार ने न्यूज़क्लिक पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के ज़रिये किसान आंदोलन को देश विरोधी बताकर बदनाम करने का काम किया है और सरकार द्वारा आरोप लगाया गया है कि विदेशों से धन लेकर देश विरोधी कार्य किया है।
पी कृष्णाप्रसाद ने कहा किसान सवाल करते कि देश के संसाधनों को, खेती को विदेशी कंपनियों को कौन बेच रहा है? देश के कानूनों को विदेशी कंपनियों के पक्ष में कौन बदल रहा? उन्होंने फिर सवाल किया कि, जो देश बेच रहे हैं वह देश विरोधी है या जो अपने अधिकारों के लिए लोकतान्त्रिक ढंग से लड़ रहे हैं वह राष्ट्र विरोधी हैं?
पीएम निधि नहीं एमएसपी की गारंटी चाहिए
इसके अलावा किसान नेता पी कृष्णाप्रसाद ने कहा कि एमएसपी गारंटी कानून न होने के कारण एक क्विंटल धान पर किसान को 1200 रुपये का नुक़सान हो रहा है। जिसका अर्थ है किसानों को कुल 60000 रुपये का औसतन सालाना नुक़सान हो रहा है। उन्होंने कहा लेकिन मोदी सरकार 6000 रुपये “पीएम निधि” देकर किसान सम्मान करने का दावा करती है, तो किसानों यह निधि नहीं एमएसपी की गारंटी चाहिए है।
उन्होंने आगे कहा राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) द्वारा पत्रकारों व अन्य जनान्दोलनों में शामिल लोगों पर गैर-कानूनी ढंग से छापेमारी और गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) जैसे संगीन व अलोकतांत्रिक कानूनों में पाबन्द करने व गिरफ़्तारी पर रोक लगाई जाए।
एसकेएम के आगे कार्यक्रम के बारे में पी कृष्णाप्रसाद ने बताया की 6 नवंबर को न्यूज़क्लिक पर की गई एफआईआर के ख़िलाफ़ तहसील व ज़िला मुख्यालयों पर विरोध कार्यक्रम कर राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा जाएगा।
आवारा पशुओ ने किया त्रस्त
आवारा पशुओं की समस्या पर भी पी कृष्णाप्रसाद ने अपनी बात रखी और कहा कि उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं व जंगली जानवरों से किसान व ग्रामीण बुरी तरह त्रस्त हैं। फसलों की बर्बादी हो रही है और किसानों व राहगीरों की जाने जा रही हैं। उन्होंने कहा कि इन पशुओं को बाड़े में रखने की योगी सरकार की योजना असफ़ल साबित हुई है और इसका जल्द कारगर हल निकाला जाए। किसान नेता ने कहा कि गोवंश की बिक्री और पशु बाजारों से रोक हटाई जाए। इसके अलावा आवारा पशुओं के हमले से मौत होने पर 10 लाख रुपये, घायल होने पर एक लाख रुपये और फ्री इलाज और फसलों के नुकसान का उचित मुआवजा दिया जाए।
किसान नेता राजवीर सिंह जादौ ने बताया कि लखनऊ के कन्वेंशन में एसकेएम को उत्तर प्रदेश में मज़बूत व व्यापक करने और संयुक्त आंदोलनों को तेज करने करने का संकल्प लिया गया। इसके अलावा उन्होंने कहा की एसकेएम ने 26-28 नवम्बर, 2023 को देश के सभी राज्यों की राजधानियों में महापड़ाव का ऐलान किया है जिसमें राजधानी लखनऊ में भी महापड़ाव का आयोजन होगा।
इसके अलावा दिसम्बर 2023 और जनवरी 2024 में बड़े दृढ़ और व्यापक संयुक्त विरोध प्रदर्शन किये जायेगे। इन सभी कार्यक्रमों में एसकेएम के साथ ट्रेड यूनियनों, खेत मज़दूर संगठनों को भी शामिल किया जायेगा। उन्होंने कहा की जैसे 24 अगस्त, 2023 को तालकटोरा स्टेडियम दिल्ली में मजदूर–किसान कन्वेंशन ने इतिहास रचा था वैसे ही उत्तर प्रदेश में आगे बढ़ते हुए व्यापक एकता कायम करनी होगी।
एमएसपी और गन्ने की क़ीमत
अखिल भारतीय किसान सभा की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष मुकुट सिंह ने देश और प्रदेश के किसानों की मांग और समस्याओं को उठाया और कहा सभी फसलों के लिए एमएसपी “सी2 लागत + 50 फीसदी” की दर तय कर ख़रीद की गारन्टी का क़ानून बनाया जाए और गन्ने की क़ीमत 500 रुपये प्रति कुन्तल की जाए और गन्ने का बकाये का तत्काल भुगतान किया जाए। इसके अलावा सुपरफाइन धान की खरीद की एमएसपी 5000 रुपये प्रति कुन्तल घोषित कर ख़रीद की गारन्टी दी जाए। प्रदेश में धान क्रय केन्द्रों को संचालित कर किसानों का सारा धान एमएसपी पर खरीदा जाए।
क़र्ज़ मुक्ति
मुकुट सिंह ने मांग की कि किसानों और खेत मजदूरों को पूर्ण क़र्ज़ा मुक्त किया जाए, बैंकों, माइक्रो फाइनेंस (समूह) और निजी क़र्ज़ समेत सभी क़र्ज़ों को माफ़ किया जाए। बिजली बिल 2022 वापस लिया जाए। प्रीपेड मीटर लगाना बन्द किया जाए। सिंचाई हेतु निजी नलकूपों और सभी उपभोक्ताओं को 300 यूनिट फ्री बिजली का वादा योगी सरकार पूरा करे और ग्रामीण क्षेत्र में किसानों, खेत मजदूरों, दलितों व गरीबों के बकाया बिल माफ किये जाएं।
उन्होंने बताया कि एसकेएम मानता है कि यमुना व अन्य नदियों में पारम्परिक रूप से बालू मजदूरों के रोज़गार को सरकार की नीतियों के कारण बड़े माफियाओं के हवाले किया जा चुका है। जेसीबी की खुदाई के कारण नदी की परिस्थितिकी और पर्यावरण को भारी क्षति पहुँच रही है इस पर रोक लगाई जाये और "मछुआरा" समुदाय के लोगों के लिए पारम्परिक रोज़गार को बहाल किया जाए।
एसकेएम के अधिवेशन में उठी अन्य मांगे
मनरेगा
“महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम” (मनरेगा) में साल में 200 दिन काम और 600 रुपये प्रति दिन मजदूरी की जाए। किसानों-खेत मजदूरों को 60 साला पेंशन 10000 रुपये प्रति माह दी जाये, विधवा, विकलांगों को भी इतनी ही माहवार पेंशन दी जाए।
प्रदेश की "एक ज़िला एक प्रोडक्ट (फसल) योजना" कारपोरेट व विदेशी कम्पनियों के पक्ष की है जिसमें जिले भर के किसानों से एक फसल उगवाई जायेगी और ज़िले को एक बड़ी कम्पनी को उसका व्यवसाय सौंपा जायेगा। यह किसान विरोधी है इसे रद्द किया जाए।
कारपोरेट परस्त “पीएम फसल योजना" को वापस लिया जाए और जलवायु परिवर्तन, सूखा, बाढ़, फसल सम्बन्धी बीमारियों आदि के कारण किसानों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए एक व्यापक व कारगर सार्वजनिक क्षेत्र की फसल बीमा योजना लागू की जाए, जिसका प्रीमियम केन्द्र व राज्य सरकारें भरें।
भूमि अधिग्रहण को रोका जाए
अन्यायपूर्ण भूमि अधिग्रहण को रोका जाए। वर्ष 2016 से प्रदेश में भूमि के सर्किल रेट नहीं बढ़ायें गये हैं, को तत्काल बाजार दरों से बढ़ाया जाए। सरकारी, गैर सरकारी परियोजनाओं के लिए भूमि बैनामे के बजाए अधिग्रहण प्रक्रिया और किसानों की सहमति से ही ली जाए। भूमि अधिग्रहण कानून 2013 एवं पुनर्स्थापना पुनर्वास नीति लागू कर सर्किल रेट का 4 गुना दिलाया जाए।
महंगाई पर रोक लगाने के लिए सभी खाद्यान्न वस्तुओं से जीएसटी हटाई जाए। बीज, खाद, कीटनाशक डीजल की कीमते अच्छी खासी घटाई जाएं, खाद की सब्सिडी बहाल की जाए। यूरिया के साथ जबरदस्ती नैनो लिक्विड व जिंक बिक्री पर रोक लगाई जाए।
गाजीपुर व बाराबंकी सहित यूपी में पोस्ते (अफीम) की खेती से रोक हटाकर पुन: लाइसेंस जारी किये जाएं। इन क्षेत्रों में अफीम की फैक्ट्री 1820 से लगी हुई हैं और अफीम बाहर से मँगाई जाती है। जबकि इन क्षेत्रों में किसान इस खेती के अभ्यस्त हैं।
कोल आदिवासियों को एसटी का दर्जा
उत्तर प्रदेश में कोल आदिवासियों को जनजातियों (एसटी) का दर्जा दिया जाए। अन्य पारम्परिक वनजीवी समुदायों को वनाधिकार कानून 2006 के तहत् रक्षा दी जाए और इस कानून का सख्ती से पालन किया जाए।
“बटाईदार किसानों” के पंजीकरण के लिए कानून बनाया जाए ताकि उन्हें खेती के लिए बैंकों से कर्ज लेने, फसल नुकसान का मुआवजा तथा अन्य सरकारी योजनाओं के लाभ का अधिकार मिल सके।
तराई के इलाके में कई पीढ़ियों से बसे किसानों और उनके मकानों को ज़ोर जबरदस्ती के साथ बुलडोज कर गाँव से बेदखल किया जा रहा है, कुछ इलाकों को बाघ अभ्यरण व वन विभाग के नाम पर कुछ स्थानों पर अन्य कारण बताकर की जा रही बेदखली को रोका जाए।
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